कदमों वाला खेल
कदमों वाला खेल


इंग्लैंड के साउथहैम्पटन शहर के एक छोटे से कस्बे में एक सपना पल रहा था और उस सपने को जी रहा था १३ साल का एक छोटा सा बच्चा फ्रांसिस एंटोनियो।
सपना था अपने देश को फुटबॉल विश्व कप जीतते देखना। हाँ... जीतते देखना क्यूँकी एंटोनियो खुद ये काम कभी नहीं कर सकता था। कारण, फुटबॉल के खेल में सबसे ज्यादा महत्व रखते हैं पैर और एंटोनियो के दोनों पैर बचपन से टेढ़े थे। वो अपने दोनों पंजों के बल बमुश्किल चल पता था। ज़रा सी ठोकर लगने पर गिर पड़ता था।
उसे फुटबॉल खेलने का जुनून था। वो अपने हाथ की हर ऊँगली पर फुटबाल घुमाकर उसे सर के पीछे टिका लेता था। लेकिन उसके पैरों की वजह से कोई उसे अपने साथ खिलाता नहीं था।वह हर रोज़ ठीक समय पर मैदान पहुँचकर एक कोने में बैठ जाता था। वहीं से वो हर खिलाड़ी को बॉल को पास करने और गोल करने के तरीके बताया करता था।
१३ साल की छोटी आयु में भी उसकी फुटबॉल की समझ बहुत अच्छी थी। उसकी, खिलाडियों की स्थिति और अदला-बदली की समझ देखकर सभी उसकी बात मानते थे और एंटोनियो के कहेनुसार ही खिलाड़ी खड़ा करते थे।
एक दिन स्कूल में बास्केटबाल कोर्ट से गेंद छिटककर पास खड़े एंटोनियो के पास आ गयी। उसने वहीं से गेंद बास्केट में डाल दी। ये देखकर स्कूल टीम के कोच ने एंटोनियो को बुलाकर उससे कुछ बातें की। बातों-बातों में उन्होंने एंटोनियो के सपने और जुनून को भांप लिया। उन्होंने एंटोनियो को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया।
इस घटना के ठीक २० साल बाद इंग्लैंड की टीम विश्व-कप के पहले ही दौर में ब्राज़ील से हारकर बाहर हो गयी।
टीम के कप्तान को पद से हटा दिया गया। वहीं कोच को बर्खास्त कर दिया गया।
ठीक उसी समय एक नये कोच की नियुक्ति हुई। नया कोच उनके सामने आया तो खिलाड़ियों को विश्वास नहीं हुआ। वो कोच फ्रांसिस एंटोनियो था। कोई भी खिलाड़ी एंटोनियो के साथ प्रैक्टिस को तैयार नहीं हुआ। कोई भी कोचिंग अनुभव न होने और ख़राब पैरों के कारन फ्रांसिस हाल ही में विश्व कप हारे खिलाडियों में वो उर्जा और उम्मीद पैदा नहीं कर पा रहा था जिसकी उन्हें अति आवश्यकता थी।
खैर, एक दोपहर कुछ खिलाड़ी अपने ट्रेनर्स से छुपकर धूम्रपान कर रहे थे इतने में उन्होंने देखा की फ्रांसिस कुछ बच्चों को मैदान में प्रैक्टिस करा रहे थे। वो लोग उन बच्चों को देखकर वहाँ गये। एंटोनियो पर फब्तियाँ कसते हुए उनमें से एक बोला-
"ओ कोच! अब बच्चों को सिखाना ही रह गया है क्या?"
एंटोनियो बोला-
"इन्हें इसलिये सिखा रहा हूँ क्यूँकी ये तुम लोगों से अच्छा खेलते हैं।"
ये सुनकर वो लोग कहने लगे-
"अगर इनमे से एक ने भी हमारे खिलाडियों को छकाकर गोल कर दिया तो कल से हम सब आपके साथ अभ्यास करेंगे।"
फिर क्या था, एंटोनियो के इशारे पर एक-दो नही बल्कि सभी बच्चों ने गोल कर दिये।
अपना सा मुँह लिये खिलाड़ियों को समझ आ गया की अब अगर इंग्लैंड को कोई विश्व ख़िताब जिता सकता है तो वो फ्रांसिस एंटोनियो ही है।
अगले दिन से सभी खिलाड़ियों ने अभ्यास शुरू कर दिया। फ्रांसिस की बुद्धिमत्ता,खेल-कौशल और मैदान में खिलाडियों के जमावट की समझ से सभी दंग रह गये।
जल्द ही इंग्लैंड की टीम ने सभी द्विपक्षीय श्रृंखलाएं जीतना शुरू कर दिया।
इसका प्रभाव उनकी टीम रैंकिंग पर भी पड़ा। दो साल में ही इंग्लैंड की टीम तीसरे पायदान पर पहुँच गयी जिससे उसे अगले साल बर्लिन में होने वाले ओलंपिक खेलों में सीधे प्रवेश मिल गया।
अगले साल अपने सभी शुरुआती मैच जीतकर इंग्लैंड की टीम ओलंपिक क्वार्टर-फाइनल में पहुँच गयी।लेकिन उसके कप्तान सहित ४ खिलाड़ी चोटिल हो गये।उसे फिर ब्राज़ील के ही हाथों ७-१ के भारी अंतर से पराजय मिली।
फ्रांसिस के कार्यकाल में ये टीम की सबसे बड़ी हार थी। एंटोनियो और उनकी टीम को बहुत आलोचनाएँ सहनी पड़ीं।
मगर एंटोनियो का लक्ष्य तो अगले साल अपने ही देश में होने वाला विश्व कप जीतना था। उसने टीम में एक नयी उर्जा का संचार किया और उन्हें ये एहसास कराया की अपने देश में विश्व कप जीतना कितना सुखद अनुभव देगा।
आखिर वो दिन भी आ ही गया। अपने पहले ही मैच में इंग्लैंड ने इटली को ५-० से, अगले मैच में बेल्जियम को ५-० और फिर ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को २-० से हराया। टीम का क्वार्टर-फाइनल मुकाबला हुआ जर्मनी से। इंग्लैंड की टीम मुकाबले में पिछड़ रही थी।मध्यांतर तक स्कोर ०-० था।इस मैच में रेफरी द्वारा अपने एक खिलाड़ी को गलत कार्ड देने पर एंटोनियो रेफरी से दूसरी टीम के खिलाड़ी को भी कार्ड देने की मांग करने लगे। इतने में जर्मनी के एक खिलाड़ी ने ज़ोर से अपना सर एंटोनियो की नाक पर दे मारा। एंटोनियो वहीं गिर पड़ा। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहाँ उसकी हालत नाज़ुक हो गयी। इधर उस हादसे ने टीम में एक नई उर्जा भर दी। इंग्लैंड की टीम ने वो मैच २-० से अपने नाम किया। मैच के बाद सभी खिलाड़ी एंटोनियो को देखने अस्पताल गये जहाँ उसकी गंभीर हालत देखकर सभी रो पड़े और एंटोनियो के लिए विश्व कप जीतने की ठान ली।
कहते हैं कि जब किसी भी व्यक्ति को किसी कार्य को करने का कारण मिल जाता है तो उस कार्य को करना आसान हो जाता है।
इंग्लैंड टीम के साथ भी ऐसा ही हुआ। उसने स्पेन की मजबूत टीम के खिलाफ मैच २-२ से ड्रा करा लिया। पेनाल्टी शूटआउट भी ३-३ से टाई हो गया।
इंग्लैंड की टीम ने सेमी-फाइनल से पहले एक भी गोल नहीं खाया था जिसका फायदा उसे मिला और बेहतर गोल-अंतर के कारण इंग्लैंड पहली बार विश्व-कप फाइनल में जगह बनाने में सफल रहा।
इधर एंटोनियो को तीन दिन बाद होश आया। अपनी टीम के फाइनल में पहुँचने की खुशी में वो अपने सारे दुःख भूल गया और फाइनल में अपनी टीम के साथ मैदान पर जाने की जिद करने लगा। डॉक्टरों के मना करने पर भी जब वो नहीं माना तो उसे कुछ डॉक्टरों की एक टीम के साथ मैदान पर जाने की अनुमति दे दी गयी। रविवार के दिन चमकते सूरज के बीच वही चिर-प्रतिद्वंदी ब्राज़ील की टीम इंग्लैंड और विश्व-कप के बीच एक अभेद दीवार की तरह खड़ी थी। लेकिन इंग्लैंड का इरादा भी आज हार मानने का नहीं था। एंटोनियो की उपस्थिति ने टीम को उत्साह से लबरेज कर दिया था।
इंग्लैंड की सारी जनता मानों आज साउथहैम्पटन के मैदान में उमड़ पड़ी थी। इंग्लैंड के राष्ट्रपति भी मैच देखने आये थे।
खैर, खेल शुरू होते ही ब्राज़ील के मैच पर पकड़ बनानी शुरू कर दी। उसके तेजतर्रार मजबूत खिलाडियों और बेहतरीन रक्षापंक्ति का इंग्लैंड के पास कोई जवाब नहीं था फिर भी जैसे-तैसे इंग्लैंड की टीम ने मध्यांतर तक ब्राज़ील को कोई गोल करने नहीं दिया।
मध्यांतर के बाद ब्राज़ील की टीम ने इंग्लैंड के गोलपोस्ट पर आक्रमण और तेज़ कर दिये। अंततः खेल के ६७वें मिनट में ब्राज़ील ने गोल कर ही दिया। एंटोनियो से अब रहा नहीं गया। उसने एक ऐसे ख़िलाड़ी को मैदान में उतारा जो टीम में सबसे युवा था और सबसे ज्यादा तेज भागता था। लेकिन परेशानी इस बात की थी की उसने अभी तक इस विश्व-कप में एक भी मैच नहीं खेला था।सभी को ये फैसला अजीब लगा। लेकिन मैदान पर उतरते ही वो बिजली की सी फुर्ती से इधर- उधर भागने लगा। अचानक कप्तान के पास पर गेंद उसके पास आयी और उसे लेकर वो तेज़ी से विपक्षी गोलपोस्ट की ओर बढ़ा। एक-दो-चार खिलाड़ियों और फिर गोलची को पछाड़ते हुए उसने गेंद गोलपोस्ट के हवाले कर दी। पूरा स्टेडियम मानो पागल हो गया। सब इस पल की एक-एक झलक को अपने फ़ोन और कैमरे में क़ैद कर लेना चाहते थे।
सभी खिलाड़ियों ने उस छोटे उस्ताद को हवा में उठा लिया।
५ मिनट बाद खेल दोबारा शुरू हुआ। ब्राज़ील ने खिलाड़ियों ने इंग्लैंड की रक्षापंक्ति भेदने का भरसक प्रयास किया लेकिन गोल न कर सके। मैच १-१ की बराबरी पर समाप्त हुआ।
अब बारी थी शूटआउट की।
एंटोनियो ने अपने गोलची को बुलाकर बताया की ब्राज़ील के ज्यादातर खिलाड़ी उल्टे पैर से किक मारते हैं तो ज्यादातर गोल या तो सीधे आयेंगे या फिर तुम्हारे बायीं तरफ। दायीं तरफ गोल करना मुश्किल होगा तो तुम उधर ज्यादा प्रयास मत करना।
ये युक्ति सफल रही और गोलची ने ब्राज़ील के शुरुआती दो गोल निरस्त कर दिए लेकिन विपक्ष के गोलची ने भी गोल नहीं होने दिया।इंग्लैंड ने तीसरा गोल करके १-० की बढ़त ली लेकिन अगले ही शॉट में ब्राज़ील के कप्तान ने अंक बराबर कर दिया। चौथा गोल दोनों टीमों का खाली गया। अब पाँचवे और अंतिम शॉट की बारी थी।ब्राजील के खिलाड़ी ने गेंद दायीं ओर मारी जिधर एंटोनियो ने मना किया था। इंग्लैंड का गोलची दूसरी ओर कूदा लेकिन शायद उस दिन भगवान भी इंग्लैंड का साथ दे रहे थे। गेंद गोलपोस्ट के खंबे से लड़कर बाहर छिटक गयी। पूरा स्टेडियम खुशी से उछल पड़ा अब बस एक गोल करना था जो न भी होता तो इंग्लैंड बेहतर गोल-अंतर से विश्व-कप जीत जाता। खैर, इंग्लैंड के कप्तान ने वो गोल कर दिया। ब्राज़ील के खिलाड़ी मैदान पर ही रोने लगे। इधर इंग्लैंड के खिलाडियों ने एंटोनियो को अपने कंधे पर बैठा लिया और स्टेडियम के चक्कर लगाते हुए दर्शकों का अभिवादन स्वीकार करने लगे।
उस दिन इंग्लैंड समेत समूचे विश्व को पता चला कि ३७ सालाना एक व्यक्ति जो अपने कदमों से ठीक से चल भी नही पाता आज उसके जुनून ने कदमों से ही खेले जाने वाले एक खेल को अपने आगे नतमस्तक कर दिया। पूरा ब्रिटेन आज खुशियाँ मन रहा था लेकिन सबसे ज्यादा खुश एंटोनियो था जो इस दिन को देखने के लिए मौत को भी मात देकर आया था।
मैदान के चक्कर लगाते समय उसकी आँखों में बचपन से लेकर आजतक का संघर्ष ख़ुशी के आंसू बनकर तैर रहा था और एंटोनियो उस संघर्ष को सूती रुमाल में समेटकर हमेशा के लिए अपने पास, अपनी जेब में रखता जा रहा था...