Aaradhya Ark

Fantasy Inspirational

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Aaradhya Ark

Fantasy Inspirational

काश फेरे दिलों को जोड़ पाते

काश फेरे दिलों को जोड़ पाते

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"मम्मी, मेरे लिए मेरा करियर भी इक्वली इम्पोर्टेन्ट है, पर रुद्राक्ष यह बात नहीं समझता। लिहाज़ा मुझे कोई ठोस निर्णय लेना ही पड़ेगा!"


शिल्पी ने जब कुछ रोष और कुछ दुख से कहा तो रेवती को उसकी चिंता हुई और वह शिल्पी के कहे शब्दों को समझने की कोशिश करने लगी। क्या मतलब है शिल्पी के ठोस निर्णय का...कहीं तलाक की बात तो नहीं सोच रही शिल्पी?

यह सोचते ही रेवती का जैसे सर्वांग काँप उठा।

ये गुस्सैल बेटी पता नहीं क्या करने वाली है। शिल्पी का रुख देखकर भविष्य की आशंका से आज रेवती को चिंता के साथ साथ बहुत डर भी लग रहा था।

"तुम रुद्राक्ष से रिश्ता तोड़ने की बात सोचना भी मत!"

बोलते हुए आज रेवती को अपने ही शब्द खोखले से लग रहे थे। आज जो बात वो अपनी बेटी को समझा रही थी, काश... समय रहते उसने खुद समझा होता। अपनी माँ की बात मानी होती... सुधीर की ज़िम्मेदारी में हाथ बंटाया होता तो कदाचित उसकी बेटी हठात तलाक की बात अपनी ज़ुबान पर नहीं ला पाती। रेवती भी तब कहाँ समझ पाई थी सुधीर की भावनाओं को। बस हमेशा होड़ सी लगी रहती थी दोनों में अपनी बात को ऊपर रखने की।


आज जब उसकी खुद की बेटी शिल्पी उसकी गलती दुहराने जा रही थी तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि शिल्पी को वही गलती करने से कैसे रोके, जिसके पछतावे से वो आज तक बाहर नहीं निकल पाई थी।

जब रेवती ने देखा कि अभी शिल्पी कुछ ज़्यादा ही गुस्से में है और अपने करियर के ग्रोथ से इतनी खुश है कि प्रमोशन के साथ हुए ट्रांसफर को भी ख़ुशी ख़ुशी एक्सेप्ट करने को राज़ी है और रुद्राक्ष जब उसे ट्रांसफर लेने के लिए रोक रहा है तो वह उसे छोड़ने को भी तैयार हो गई है तो रेवती का माथा ठनका। उसे समझ आ गया कि शिल्पी अपने तरक्की के मद में चूर होकर गृहस्थी को ताक पर रखकर बचपना कर रही है। पर अभी उसे कुछ समझाने का कोई फायदा नहीं था, फिर उसे ऑफिस के लिए भी देरी हो जाती इसलिए

रेवती ने फिर कोई बहस नहीं की। इस वक़्त वह अपनी बेटी का मूड नहीं ख़राब करना चाहती थी। सोचा, जब शिल्पी शाम को ऑफिस से वापस आएगी तब आराम से बात करेगी। कहीं उसकी नकचढ़ी और स्वाभिमानी बेटी यह ना समझ ले कि अब उसकी शादी हो गई है तो उसकी माँ को उसका मायके में रहना अखर रहा है। आज रेवती ने अपना काम जल्दी खत्म करके खुद को एकदम फ्री रखने का सोचा था ताकि अपनी बेटी को आराम से समझा सके कि पति पत्नी में ज़रा सी अनबन या मदभेद का अंत तलाक नहीं होता।


रेवती को पता था... मीठा शिल्पी की कमज़ोरी रही है हमेशा से। सो उसके लिए उसकी पसंद के बेसन के लड्डू और सेवइयाँ बनाने लगी। शिल्पी को हमेशा से सेवइयाँ ही पसंद थी जबकि रेवती को खीर पसंद था। खाने पीने और अपने स्वाभिमान को सबसे ऊपर रखने में शिल्पी अपने पिता सुधीर पर गई थी। उन्हें भी सेवइयाँ बहुत पसंद थी। रेवती को बाप बेटी के पसंद के खाने पीने की चीज़ों और बात व्यवहार का मिलान करते करते सुधीर से जुड़ी हुई और भी कई बातें याद आ रही थीं। वैसे उनसे अलग होने के बाद शायद ही कोई दिन ऐसा बीता हो जब रेवती को सुधीर की याद ना आई हो। पर इन यादों की सहेज़कर रखी हुई पिटारी को वह रात को बिस्तर पर जाने के बाद ही खोलती थी। पर आज तो दिन दहाड़े सुधीर की यादों ने डाका डाल दिया था तो रेवती का मन अतीत के गालियारे में विचरित करने को विवश हो उठा।


सुधीर और रेवती का संबंध लैला मजनूँ की तरह नहीं तो बुरा भी नहीं था। एक आम पति पत्नी से कई गुना बेहतर था उनका रिश्ता। सिर्फ शहर में पली बढ़ी रेवती और गाँव के पृष्ठभूमि से जुड़े हुए सुधीर में कभी कभी आधुनिकता को किस हद तक अपनाना है इस बात पर बहस हो जाया करती थी। फिर दो तीन दिन के अबोले के बाद प्यार मुनहार से सब ठीक हो जाता था। सुधीर को तो अपना लिया था रेवती ने पर उनके ग्रामीण माता पिता को ना तो अपना पाई थी और ना ही अपने हृदय में उनके लिए सम्मान की भावना जगा पाई। तभी उनके संबंधों में छोटी छोटी बातें ही बड़ी होती चली गईं थीं और रेवती को सुधीर से अलग होना पड़ गया था।


वैसे आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो बात बहुत मामूली सी तो थी। सुधीर चाहता था, रेवती दो एक साल घर में सास ससुर के साथ रहे उनके साथ थोड़ा वक़्त गुजारे, फिर चाहे तो कोई नौकरी कर ले। तबतक दादा दादी बन चुके उसके माता पिता को भी एक खिलौना मिल जायेगा फिर वो चाहे तो अपनी नौकरी ज्वाइन कर सकती है। वैसे भी रेवती के प्रेग्नेंट होने की खबर सुनते ही उसके सास ससुर गाँव से आ गए थे जो रेवती को बिल्कुल पसंद नहीं आया था।उसने इसका विरोध किया तो सुधीर का अपना तर्क था कि उसके माँ बाप के भी बेटा बहू पोता पोती को लेकर कुछ अरमान है। पर रेवती को लगा वो उसे सताने और नौकरानी जैसा बनाने के लिए ऐसा कह रहा है। तब जो लड़ झगड़ कर मायके आई तो रेवती की माँ ने भी उसे बहुत समझाया कि सास ससुर के साथ रहने के लिए उसे मना नहीं करना चाहिए। पर तब रेवती के सर पर भी ऐसा ही भूत चढ़ा हुआ था जो अभी उनकी बेटी शिल्पी के सर पर चढ़ गया था। सुधीर भी तो यही चाहते थे कि दोनों पति पत्नी साथ साथ रहें और अपने माता पिता को भी अपने साथ रखें। रेवती को यह बिल्कुल मंज़ूर नहीं था।


पर तब सुधीर की बातें रेवती को तानाशाही लगी थी, और एक बार लड़ झगड़कर जो मायके आई तो सुधीर के लाख मनाने पर भी नहीं मानी थी। क्योंकि सुधीर की तरफ से एक अनकहा आग्रह था कि उनके साथ रहना है तो उनके माता पिता को भी पर्याप्त सम्मान देकर अपनाना होगा और रेवती इस बात के लिए बिल्कुल ही तैयार नहीं थी।


शिल्पी के जन्म के समय तो सुधीर का एक दूसरा ही रूप सामने आया था जिससे रेवती को लगने लगा था कि अब शायद सुधीर उसकी बात मानकर अपने माता पिता को वापस गाँव छोड़ आएंगे और वह फिर से अपनी बेटी और पति के साथ जीवन का एक नया अध्याय शुरू कर पाएगी।


जैसे ही रेवती की माँ ने अपने दामाद सुधीर को बेटी के जन्म की सूचना दी वह अगले दिन ही बच्ची के लिए कई जोड़े कपड़े और ढेर सारे खिलौने लेकर आ गए थे। अपनी नन्ही गुड़िया को गोद में उठाते ही बहुत भावुक हो गए थे सुधीर। शिल्पी के माथे पर एक चुम्बन जड़कर देर तक रेवती को प्यार से निहारते रह गए थे। उनकी उस प्यार भरी निगाहों का सामना नहीं कर पाई रेवती तो नई दुल्हन की तरह शरमाकर सर झुका लिया था। उन क्षणों में उनके अंदर की स्त्री जैसे अपने प्रिय के बाहु पाश में बंध जाने को विकल हो उठी थी। इसलिए जब सुधीर ने रेवती को गले से लगाया तो इतने दिनों की जुदाई और गीले शिकवे उनकी मजबूत बांहों के घेरे को अश्रु कणों से भिगोते हुए बह गए।


उन भावुक पलों में भी रेवती को अपनी बात मनवाना बखूबी याद रहा था। तभी तो जब सुधीर ने उनसे अपने घर चलने को कहा था तो उन्होंने उनके सामने अपनी शर्त रख दी थी कि वह उनके माता पिता के साथ एडजस्ट नहीं कर सकती। जब तक सुधीर उनको गाँव नहीं छोड़ आते रेवती उस घर में वापस नहीं जाएंगी। सुधीर ने रेवती को लाख मनाया यहाँ तक कि अस्पताल में ही रोते रोते सुधीर ने उसके पैर तक पकड़ लिए थे कि वापस घर चलो। पर तब उसकी एक बचकानी बात ने सुधीर का मन बुरी तरह तोड़ दिया, जब रेवती ने नाराज़गी दिखाते हुए यह कहा कि,

"अगर मुझे अपने घर ले जाना चाहते हो तो अपने माता पिता को गाँव छोड़ आओ। वो गँवार हमारे साथ रहेंगे तो हमारी बच्ची भी वैसी ही गँवई हो जायेगी!"

ना जाने काल का कौन सा दुष्चक्र था कि उस दिन रेवती अपने कथन से जैसे खुद अपने दुर्भाग्य को न्यौत आई थी।


रेवती की उस बात से कदाचित सुधीर इतना आहत हुए थे कि अगले ही दिन बिना कुछ कहे सुने वापस चले गए थे। अपने माता पिता के लिए ऐसे शब्द सुनकर वह रेवती को माफ नहीं कर पाए थे शायद। उनकी चुप्पी जब बहुत दिनों तक रही तो उस मौन में खलल डालने के लिए रेवती ने अपना एक और दांव चला। रेवती ने बिना किसी से सलाह मशवरा किए सुधीर को परेशान करने के लिए सुधीर को तलाक के पेपर भेज दिए। उसे लगा था कि अब कम से कम सुधीर उसकी बात मानकर वापस आ जायेंगे और अपनी पत्नी और बच्ची को अपने साथ घर ले जायेंगे। परन्तु रेवती के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब सुधीर ने चुपचाप तलाक के पेपर पर साइन करके उसे वापस भेज दिया था। जबकि रेवती ने तलाक के पेपर के ज़रिये अपने तुरप का आखिरी पत्ता फेंका था, अपनी बात मनवाने का, सुधीर को और झुकाने का। पर ये खेल रेवती पर इतना भारी पड़ा था कि तमाम उम्र अकेले गुजारनी पड़ गई थी। दोनों के बीच अहम आ गया था जिसे अभिमान ही कहा जा सकता है स्वाभिमान कतई नहीं।


अब यही गलती अपनी बेटी को नहीं करने देगी वह। पर कैसे मनाए वो अपनी ज़िद्दी बेटी को जो छोटी सी बात को दिल से लगा बैठी है। पति पत्नी के बारीक़ रिश्ते को समझने की समझ कहाँ है शिल्पी को?


बस इतना ही तो कहा था उसके पति रुद्राक्ष ने कि अगर वो अपना ट्रांसफर ले लेती है तो दोनों साथ कैसे रह पाएंगे? फिर साथ रहने का मतलब क्या। शिल्पी की प्राइवेट नौकरी है, यहाँ छोड़कर कहीं और ट्राइ कर सकती है। इस पर जब शिल्पी ने यह सोच लिया कि पति उसकी नौकरी को कम आँक रहा है या उसे आगे नहीं बढ़ने देना चाहता तो ये उसकी समझ की कमी है।


कई बार हम वही देखते हैँ जो देखना चाहते हैँ. शिल्पी के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा था। पति के कहने का गलत मतलब निकाल रही थी और यह नहीं देख पा रही थी कि वो कितना प्यार करता है उससे कि उसे खुद से दूर नहीं जाने देना चाहता।

अगर शिल्पी को नहीं दिखाई दे रहा पति के कहे का सच, उसका छुपा हुआ प्यार तो रेवती ज़रूर उसे दिखाएगी। अपनी बेटी को पछतावे के अँगारे पर चलने से बचाएगी। पति पत्नी मिलकर एक रिश्ता बनाते हैँ और एक प्यारे से रिश्ते से निर्माण होता है घर का...उस गृहस्थी में जब बच्चे की किलकारी गूंजती है तब पति पत्नी में सब कुछ साझा हो जाता है। जीवन की सार्थकता तो पूर्ण होने में है ना कि अहं के वशीभूत होकर अलग अलग जीने में।

रेवती यही बात शिल्पी और रुद्राक्ष को समझाना चाहती थी।


वैसे बचपन से शिल्पी ऐसी ही थी। वो उसकी वही बात मानती जिसके लॉजिक से वो सहमत होती। अब माँ ने भी तो अपने स्वाभिमान के लिए पापा से तलाक लिया था तो मैं अगर रुद्राक्ष से तलाक लेना चाहती हूँ तो इसमें गलत क्या है?


शिल्पी के तर्क में दम तो था। पर रेवती अपनी बेटी को कैसे समझाए कि स्वाभिमान और ईगो में एक बड़ा सा फर्क होता है। उसकी माँ ने जो किया वो अभिमान था कदाचित स्वाभिमान नहीं।


आज शिल्पी के रुद्राक्ष से तलाक लेने के निर्णय से रेवती का मन बहुत ही अशांत था। ऐसे में उन्हें अपनी माँ की कही बात याद आ रही थी जो उन्होंने रेवती और सुधीर के तलाक लेने की बात पर दुखी होकर कहा था।


"ये आजकल के बच्चों में ज़रा भी धैर्य नहीं, रिश्ते निभाने में ज़रा सा त्याग क्या करना पड़ता है कि ये रिश्ते का ही त्याग कर देते हैँ!"


यही तो कहा था माँ ने जब वो सुधीर को छोड़कर आई थी और अपने वापस ना जाने का निर्णय लिया था और अब शिल्पी भी.....!

नहीं.. नहीं.. मैं शिल्पी और रुद्राक्ष को अलग नहीं होने दूँगी। शिल्पी अगर अपनी नासमझी में रुद्राक्ष की भावनाओं का मोल नहीं समझ रही थी तो क्या हुआ,मैं उसे समझाऊंगी!"


रेवती अब दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि चाहे जो हो जाए वह अपनी बेटी का घर नहीं टूटने देगी।

रेवती ख्यालों से बाहर आई तो देखा सेवई और आलूदम के साथ बेसन के लड्डू तैयार हो गए थे। पुरियाँ तो खाते वक़्त ही तली जाएंगी। सोचते हुए रेवती रुद्राक्ष को फ़ोन करने चली गई।


रुद्राक्ष ने भी फ़ोन पर यही शिकायत की थी कि शिल्पी बस ज़िद किये बैठी थी कि उसका ट्रांसफर हुआ है प्रमोशन के साथ तो वो ज़रूर जाएगी। आखिर रुद्राक्ष यही तो चाहता था कि वो बंगलौर ना जाकर यहीं लखनऊ में कहीं और जॉब के लिए कोशिश करे। वरना साथ रहेंगे कैसे?

साथ ही उसे इस बात का भी अफ़सोस था कि वो नहीं जा सकता उसके साथ क्यूँकि उसकी सरकारी नौकरी थी। पर शिल्पी को इस आग्रह के पीछे लग रहा है कि रुद्राक्ष उसे आगे नहीं बढ़ने देना चाहता। ये नहीं दिख रहा इस पागल को कि रुद्राक्ष उसे अपने से दूर नहीं करना चाहता।


शिल्पी और रुद्राक्ष का सोचते सोचते उसे फिर से सुधीर की याद आ गई। सुधीर भी तो यही कहते थे कि सब साथ रहेंगे। माँ बाप का इकलौता बेटा हूँ उनकी सेवा करना मेरा धर्म है। तुम मेरी पत्नी हो, अगर मैं जीवन के सफ़र में तुम्हारा साथ हमेशा चाहता हूँ तो गलत क्या है?



"ओह.... सुधीर की यादें मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती?"

रेवती फिर बड़बड़ा उठी।

कितना मुश्किल होता है जीवन संध्या में जीवनसाथी के बगैर रहना। अब मेरी बेटी भी मेरी वाली गलती करने जा रही है… नहीं.... "मैं उसे ऐसा हरगिज नहीं करने दूँगी!" रेवती स्वतः बुदबुदा उठी।

"अरे वाह, बड़ी अच्छी खुशबू आ रही है!" बेसन के लड्डू देखकर शिल्पी उछलकर बोली।

तब तक रेवती अपनी बेटी की पसंद की चीज़ों को लेकर थोड़ा थोड़ा उसके मुँह में डालती जा रही थी तो शिल्पी को बड़ा मज़ा आ रहा था कि माँ एकदम बच्चे की पसंद को अच्छी तरह जानती है।


थोड़ा सा सब कुछ चखने के बाद शिल्पी फ्रेश होकर बालकनी में आई ही थी कि पीछे से रेवती भी आ गई। मौन की अपनी एक भाषा होती है... जो माँ बेटी अच्छी तरह समझ रही थी।


उस दिन खाना खाते हुए शिल्पी नन्ही बच्ची की तरह चहक रही थी जिसे देखकर रेवती को बड़ी ख़ुशी हो रही थी। खाने के बाद सेवईयाँ खाते हुए शिल्पी के मुँह से अचानक निकला,

"पता है मम्मी, रुद्राक्ष को भी मेरी तरह सेवईयाँ बहुत पसंद है और उसमें खूब सारे किशमिश भी!"

वैसे भी खाना खाते और बात करते हुए हुए शिल्पी कम से कम किसी ना किसी सन्दर्भ में चार पाँच बार रुद्राक्ष का जिक्र कर चुकी थी। रेवती समझ रही थी कि उसकी बेटी और दामाद की नाराज़गी बस ऊपर ऊपर की है अंदर से उनके रिश्ते में बहुत गहराई है जो शायद शिल्पी और रुद्राक्ष को प्रत्यक्ष

तौर पर पता नहीं है।

शिल्पी के अंदर उसके पति रुद्राक्ष के प्रति इसी छुपे हुए प्यार का एहसास दिलाने की कोशिश रेवती कर रही थी।


"चाहे जैसे भी हो शिल्पी को शादी की गरिमा और एक परिवार को संजोकर रखने की बात वह आज शिल्पी को समझाकर रहेगी।"


इसी निश्चय के साथ रेवती उठी और दो कप कॉफी बनाकर शिल्पी के रूम की तरफ चल दी।


सच, एक माँ अगर अपनी आन पर आ जाए तो अपने बच्चे को हर मुसीबत से बचा सकती है।

फिर चाहे बात उसके करियर की हो या ज़िन्दगी में आए किसी भी तुफान की।


रेवती ने उस रात अपनी बेटी को पति पत्नी के रिश्ते की गहराई की बात समझाई और उसे तलाक के निर्णय पर फिर से सोचने को कहा। पहले तो शिल्पी नाराज़ होती रही फिर इस शर्त पर मान गई कि इसके पहले वो रुद्राक्ष से बात करेगी।


फिर क्या था, अगले दिन रेवती ने फोन करके रुद्राक्ष को बुलाया और दोनों को बैठाकर सारी बातें सुनी फिर उन्हें अपनी जिंदगी के तपते रेगिस्तान की दास्तां सुनाई तो उसने शिल्पी और रुद्राक्ष की आँखों में एक दूसरे से किये गए बातों के लिए पछतावा साफ झलक रहा था। रेवती के सामने ही दोनों ने एक दूसरे से माफ़ी माँगी और रुद्राक्ष ने रेवती को आश्वासन दिया कि अब वो ऐसे नहीं लड़ेंगे।

अब जाकर आज की सुबह की चाय बहुत स्वाद बहुत अच्छा था।


आखिर शिल्पी और रुद्राक्ष ने एक दूसरे की इच्छा का मान रखते हुए भावनाओं का मोल जो समझ लिया था। और आज रेवती के घर से दूसरी बार बेटी विदा हो रही थी। पर इस विदाई में रेवती की आँखों में आँसू की बजाए ख़ुशी झलक रही थी। क्यूँ ना हो आखिर उनकी बेटी का घर हमेशा के लिए बसने जा रहा था। एक माँ के मन में अपने बच्चे की ख़ुशी और उसकी भलाई सर्वोपरि है बाकि दुनियादारी बाद में।


आज रेवती ने भी बड़ी समझदारी से अपनी बेटी का घर टूटने से तो बचाया ही था अपने अनुभव उनसे बाँटकर भविष्य में भी उनसे अपने रिश्ते को हमेशा खुशनुमा बनाए रखने के कई गुण भी सीखा दिए थे।

शिल्पी को विदा करते हुए उसे हर वक़्त अपने पार्श्व में सुधीर की उपस्थिति महसूस हो रही थी। एक कतरा आँसू रेवती की आँखों से बहकर आँखों की कोर से बाहर आ गया था... इन बूंदों में सुधीर की यादें बसी हुई थी जिसे रेवती ने हाथ से पोछा नहीं बल्कि यूँ ही चेहरे पर सूख जाने दिया था।


एक तरफ बेटी का घर बसने का संतोष तो दूसरी तरफ सुधीर का घर छोड़ने का अफ़सोस... दोनों तरह के मिलेजुले भाव थे रेवती के हृदय में। हाथ उठाकर भगवान से शिल्पी और रुद्राक्ष के सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करते हुए रेवती का मन आज काफ़ी शांत था और सुकून से भरा हुआ भी।


(समाप्त)


प्रिय दोस्तों, कैसी लगी आपको मेरी यह कहानी। कृपया अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।

धन्यवाद



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