काश! काश! 0.29...
काश! काश! 0.29...
इस रविवार जब नवीन आया तो उसने बच्चों के साथ नेहा से भी साथ घूमने के लिए बाहर चलने की जिद की। इसमें गौरव ने नवीन का साथ दिया था। ऐसे में न चाहते हुए भी नेहा, बच्चों और नवीन के साथ डुमना नेचर पार्क आ गई थी।
बच्चे, वहाँ आए अपरिचित बच्चों में खेलने लगे थे। तब नवीन नेहा को, साथ चलते हुए पेड़ों के झुरमुट में उस जगह ले आया, जहाँ से वे अपने खेलते बच्चों पर दृष्टि रख सकते थे और अन्य भ्रमणकर्ताओं की दृष्टि में आने से सरलता से बच सकते थे।
यहाँ नवीन ने एकाएक नेहा को अपने बाँहों में भींच लिया था। नेहा इसके लिए तैयार नहीं थी। कुछ पलों तक तो वह समझ नहीं पाई कि यह हो क्या रहा है। जब समझी तो वह नवीन की पकड़ से छूटने के लिए कसमसाई थी। नवीन ने कहा -
नेहा कुछ मिनट तो मेरी बाँहों में रह लो, तुम! मेरा मचल रहा मन अब तुमसे दूर रहने में बहुत कष्ट पाता है।
नवीन के कहने की उपेक्षा करते हुए नेहा ने अपनी पूरी शक्ति से स्वयं को नवीन के आलिंगन से मुक्त करवा लिया था। फिर कहा -
नवीन, आपके संकल्प के पूर्ण होने को अब मात्र 10-12 दिन रह गए हैं। मेरे लौटने के करीब आ गए समय में अब धैर्य खोकर, क्यों आप अपना संकल्प भंग करने में लगे हो।
नवीन ने कहा - नेहा तुम्हारा यह नया रूप मुझे यूँ अधीर होने को विवश कर रहा है। जब से तुमने जॉब ज्वाइन कर लिया है तब से अपना वजन कम करके एवं अपने को श्रृंगारों से सजाए रख कर, तुम हमारे विवाह के समय से भी अधिक रूपवती हो गई हो। अब मुझे रहा नहीं जाता है।
नेहा मन ही मन प्रसन्न हो रही थी कि नवीन बाहर की जिन आकर्षक युवतियों पर ललचाया रहता था। गृहिणी से वर्किंग होने के बाद से वह स्वयं भी वैसी आकर्षक युवती हो गई थी। प्रकट में उसने कहा -
नवीन आप अभी चाहें भी तो मैं, आपका संकल्प टूटने नहीं दूँगी।
नेहा के कथन ने नवीन को हताश कर दिया था। तभी दिखाई दिया कि दूर खेल रहे उनके बच्चों की अन्य बच्चों के साथ झूमा झटकी हो रही है। नवीन उन्हें देखने के लिए चला गया था। नेहा वहीं धरती में ऊपर उभरी हुई एक छोटी चट्टान पर बैठ गई थी।
नेहा सोचने लगी कि अभी जो हुआ और जिस तरह से उसने नवीन को रोका है, उसका कारण क्या है?
नेहा ने अनुभव किया कि नवीन ने उसके साथ छल, झूठ और विश्वासघात किए हैं। फिर भी नवीन, उससे अंतरंग सामीप्य में हिचक नहीं रहा है। जबकि उसने नवीन से कोई छल या विश्वासघात नहीं किया है। इस कारण चार माह से अधिक समय से पति (पुरुष) साथ के सुख से वंचित रहने के बाद, अभी भी उस सुख के लिए वह उत्सुक नहीं है।
वह सोच रही थी कि ऐसा होते हुए भी अब जब निर्धारित समय सीमा के बाद नवीन के घर में वापस जाएगी तब वह नवीन को टाल नहीं सकेगी। उसे लग रहा था उसे पत्नी का दायित्व निभाना भी होगा मगर पहले वाला समर्पण और प्रणय भाव उसमें पुनः आने में अभी और कई महीने लग सकते हैं।
जब नवीन बच्चों के साथ नेहा के पास आ गया तब उसकी विचार तंद्रा टूटी थी। शेष दिन बिता कर अंत में नेहा, बच्चों सहित गौरव के घर लौट आई थी। नवीन अपने घर चला गया था।
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नवीन ने अश्रुना को दिए वचन के अनुसार इस महीने जब 15000 रुपए की सहायता राशि देने के लिए बात की तो अश्रुना ने उसे धन्यवाद कहते हुए कहा - नवीन सर, अब मुझे इन रुपयों की जरूरत नहीं है।
नवीन ने चिंता से पूछा - अश्रुना, तुम फिर से तो उसी धंधे में नहीं पड़ गई हो?
अश्रुना ने कहा - नहीं सर, जीवन पर कालिख वाला वह समय अब मेरा अतीत हो गया है। आपसे मिली प्रेरणा के बाद अब मैं कभी भटक कर उस (कु) मार्ग पर फिर कभी नहीं जाऊंगी। आप विश्वास कीजिए।
नवीन सोचने लगा, अब जब नेहा और बच्चे लौट आने वाले हैं तब अपने वादे पर हर महीने 10-15 रुपए अश्रुना को देना उसके लिए असुविधाजनक होने वाला था। ऐसे में अश्रुना को इनकी जरूरत नहीं है तो यह अच्छी ही बात है। फिर भी नवीन ने कहा - ठीक है अश्रुना, मगर आगे जब भी आपको सहायता की जरूरत हो तो निसंकोच मुझसे कहना।
अश्रुना ने कहा - जी सर, मैं आपकी यह बात याद रखूँगी। मुझे मिले अपनत्व के लिए मैं सदा आपकी ऋणी रहूँगी। अपनी ओर से मेरी कोशिश होगी कि जीवन में जब भी मैं समर्थ हो पाई, अपने पर आपका यह ऋण उतारने का प्रयास करुँगी।
इस बात के बाद दोनों ने परस्पर बाय कहते हुए कॉल खत्म किया था।
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इधर नेहा के वापस जाने का दिन करीब आ रहा था। गर्विता के गर्भावस्था को अब छह मास से अधिक हो गए थे। गर्विता सोचती थी कि दीदी अब यहीं रहें तो कितना अच्छा हो।
देखे-सुने अनुसार उसके मन में बैठी यह धारणा कि भाभी-ननद का रिश्ता कटु अनुभव देता है, अब गलत सिद्ध हो चुकी थी। वह सोचती थी कि उसकी ही कोई बड़ी बहन होती तो वह भी (ननद) नेहा दीदी जैसा प्रेम नहीं दे पाती।
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नवीन को अगले दिन आना था। कॉल पर यह तय भी हो चुका था कि नेहा और बच्चे अब नवीन के साथ अपने घर लौट आएंगे।
उस दिन नेहा अपनी ड्यूटी पर कॉलेज पहुँची थी। सृजन ने नेहा को अपने कक्ष में बुलवाया था। गर्मजोशी से मिल कर सृजन ने नेहा को बधाई देते हुए कहा था -
नेहा, बड़ी प्रसन्नता की बात है। आज प्राचार्य के द्वारा, आपको रसायन शास्त्र के लेक्चरर पद पर नियुक्ति पत्र मिलने वाला है।
नेहा को यह सुनकर इतनी प्रसन्नता हुई कि वह भूल गई कि भारतीय संस्कृति में यह नहीं होता है। उसने सृजन सर से गले लगकर कहा - सर, आपकी प्रेरणाओं से ही मेरे जीवन में यह दिन आया है।
बाद में प्राचार्य महोदय से उसे नियुक्ति पत्र मिला था। उन्होंने इस उपलक्ष में नेहा से पार्टी दिए जाने का प्रॉमिस लेते हुए बारंबार बधाई दी थी।
कॉलेज से लौटते हुए, उस दिन नेहा सोच रही थी कि प्रसन्नता अतिरेक में उसका, सृजन सर से गले लगना क्या उचित था? उसके मन ने कहा जब यह किसी कामुक विचार से प्रेरित होकर नहीं हुआ तो इसमें गलत कुछ नहीं है।
उसके मन ने ही फिर कहा, मगर यह तो उसका एक पक्ष है सृजन सर इसमें दूसरा पक्ष हैं।
काश! वे भी इसका अन्यथा अर्थ न निकालें ….