Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

काश ! काश ! 0.28

काश ! काश ! 0.28

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अश्रुना ने गाइड किया वैसे कार चलाते हुए ऋषभ, गाँव में उसके घर के लगभग 300 मीटर पास पहुँचा था। यहाँ एक मैदान था। ऋषभ कार यहीं पार्क करना चाहता था। अश्रुना ने बताया कि घर के सामने भी कार खड़ी की जा सकती है। तब ऋषभ कार घर के सामने तक ले आया था। ऋषभ सोच रहा था, यहाँ तंग सड़क पर पार्क करने की जगह मैदान सही जगह रहती। 

कार से उतरते हुए ऋषभ ने कैरी बैग्स और अश्रुना ने अपना बैग लिया था। तब रिमोट लॉकिंग प्रयोग करके ऋषभ ने शीशे चढ़ाए और डोर लॉक किए थे। दोनों अश्रुना के घर, दरवाजे पर पहुँचे थे। दरवाजे खुले हुए होने से, अश्रुना ने मम्मी-मम्मी कहते हुए घर में प्रवेश किया था। अपने पीछे आए, ऋषभ को घर के पहले कमरे में पड़ी फाइबर की पुरानी सी कुर्सी पर बैठने का संकेत किया था। 

अश्रुना की आवाज सुनकर मम्मी सामने आईं थीं। उनके हाथ में लगे आटे को देखने से ऋषभ को समझ आया था कि अभी वे खाना बना रही थीं। आकर उन्होंने अश्रुना को गले लगाया और ऋषभ की तरफ जिज्ञासु दृष्टि से देखा था। अश्रुना ने आधा सच, आधा झूठ प्रयोग करते हुए ऋषभ का परिचय यह कह कर उन्हें दिया - 

मम्मी, ये ऋषभ सर हैं। कॉल सेंटर में जहाँ मैं पार्ट टाइम काम करती हूँ वहाँ ये मेरे बॉस हैं। मेरे बताने पर ये घर के सुधार कार्य के लिए, मुझे 40 हजार रुपए का एडवांस दे रहे हैं। आज रविवार अवकाश है तो इन्होंने गाँव देखने की रुचि दिखाई है और इसलिए ये मेरे साथ आए हैं। 

अश्रुना की मम्मी जिनकी उम्र 40-42 की रही होगी वे एकदम फिट महिला थी। यह अवश्य था कि संघर्षमय जीवन के कारण, उनके मुख पर से आकर्षण उम्र के पहले ही विदा लेता लग रहा था। अश्रुना की मम्मी ने कृतज्ञ दृष्टि से ऋषभ को देखा तब ऋषभ ने हाथ जोड़े थे। उन्होंने भी हाथ जोड़कर अभिवादन का उत्तर दिया था। 

इस बीच अश्रुना भीतर के कमरे से फाइबर की वैसी ही दो कुर्सियाँ ले आई थी। उसने मम्मी को बैठने के लिए कहा था। मम्मी ने कहा - अश्रुना, मैं थोड़ी बची रोटियाँ बना कर अभी आती हूँ तब तक तुम ही साहब जी के साथ बैठो। 

अश्रुना ने कहा - मम्मी, मैं भी साथ चलकर चाय बना लेती हूँ। (फिर ऋषभ से मुखातिब होकर) - सर, बस पाँच मिनट बैठिए। मैं चाय साथ लेकर वापस आती हूँ। 

ऋषभ ने कैरी बैग्स अश्रुना की तरफ बढ़ाते हुए कहा - अश्रुना, इसमें खाना और कुछ अन्य भोज्य सामग्रियाँ हैं। इन्हें उपयोग कर लो तो सबके खाने के लिए अतिरिक्त कुछ अधिक नहीं करना पड़ेगा।

इस पर पहली बार, अश्रुना की मम्मी ने ऋषभ से मुखातिब होकर कहा - अरे साहब जी, इतना खर्च करने की जरूरत नहीं थी। 

ऋषभ समझ पा रहा था कि अभाव होने पर हर एक रुपया खर्च करने के पहले सोचा जाता है। यही बात अभी अश्रुना की माँ के साथ थी। ऋषभ, अश्रुना की मम्मी के लिए उचित संबोधन सोच नहीं पाया था। अतः मुस्कुरा कर हाथ ही जोड़ कर रह गया था। अश्रुना और मम्मी तब अंदर चलीं गईं थीं। 

जब कमरे में ऋषभ अकेला रह गया तो उसकी दृष्टि दरवाजे के बाहर गई। अभी कुछ ही देर पहले अश्रुना और वह जब आए थे तब चमकदार धूप खिली हुई थी लेकिन अब बाहर धूप नहीं रह गई थी। लगता है सूर्य के सामने काले बादल छा गए थे। दोपहर में ही शाम जैसा अंधेरा छा गया जैसे लग रहा था। अश्रुना चाय बनाकर लाई थी तब तक बाहर हवा की गति तेज हुई और बादलों की गरज के साथ आकाशी बिजली चमकने लगी थी। अश्रुना ने कहा - सर, लगता है तेज बारिश होने वाली है।  

अश्रुना यह कह रही थी, तभी एक 14-15 साल का लड़का घर में प्रवेश करता दिखाई पड़ा। अश्रुना को देखकर उसने कहा - वाहह् दीदी आप आईं हैं। 

यह कहते हुए उसने ऋषभ की ओर प्रश्नात्मक दृष्टि डाली तो अश्रुना ने बताया - पप्पू, ये मेरे बॉस ऋषभ सर हैं। 

यह सुनने पर पप्पू झुककर, ऋषभ के पैर छूने लगा था। ऋषभ ने उसे दोनों हाथों से पकड़कर रोक दिया। आशीर्वचन, खुश रहो बोलते हुए उसने पूछा - पप्पू तुम, कौनसी क्लास में पढ़ते हो?

पप्पू ने बताया - सर, मैं नवमी कक्षा में पढ़ता हूँ। 

इस बीच अश्रुना भीतर जाकर, एक और कप में पप्पू के लिए भी चाय ले आई थी। ये सब चाय पी रहे थे तब बारिश शुरू हो गई थी। पहले हल्की गति से शुरू हुई बारिश ने कुछ ही मिनटों में मूसलाधार रूप ले लिया था। रोटियाँ सेंकने का काम पूर्ण करने के बाद जब अश्रुना की मम्मी आईं तो वे अनवरत हो रही तेज बरसात से चिंतित दिखाई दे रहीं थीं। उन्होंने कहा - आधा घंटा और यदि बादल यूँ ही बरसते रहे तो घर में, सड़क पर बह रहा पानी भरने लगेगा। 

ऋषभ ने उनकी चिंता मिटाने के लिए कहा - भाभी जी, मुझे लगता है बरसात जल्दी थम जाएगी। 

उम्र में मम्मी से 10-12 वर्ष छोटे शहरी सर, ऋषभ के मुँह से किसी अपनों जैसा वाला, ‘भाभी जी’ का संबोधन सुनना, अश्रुना की मम्मी और अश्रुना, दोनों के लिए सुखद आश्चर्य था। इस बीच पप्पू अंदर के कमरे में चला गया था। तब ऋषभ ने अपने साथ लाए 40 हजार रुपए अश्रुना के सामने ही उसकी मम्मी को दिए और कहा - भाभी जी, ये रुपए घर की मरम्मत के लिए, अश्रुना ने अग्रिम रूप में माँगे हैं। 

अश्रुना की मम्मी ने कहा - यह बड़ी सहायता करके आपने हमारी कठिनाई सरल कर दी है। मुझे समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे इतनी बड़ी राशि की व्यवस्था हो पाएगी। साहब जी आपकी इस उदारता के लिए हम बहुत ऋणी हैं। 

ऋषभ ने कहा - हम अश्रुना की सैलरी से छोटी छोटी किश्तों में इसे वापस ले लेंगे। आप चिंता नहीं कीजिए। 

आधे घंटे बाद रसोई में सबके साथ ऋषभ ने भी पटों (चौकी) पर बैठकर भोजन किया था। तब कम ज्यादा होते हुए, पानी का बरसना निरंतर जारी रहा था। भोजन के बाद जब ऋषभ सामने के कमरे में आया तो सड़क का पानी भीतर आने लगा था। ऋषभ ने बाहर दृष्टि डाली तो बाहर खड़ी कार के आधे से ज्यादा पहिए सड़क पर भर गए पानी में डूबे हुए थे। ऋषभ को चिंता हुई कि आने का प्रयोजन तो पूरा हो गया है मगर ऐसे में कार कैसे चल पाएगी। 

तब सामने के कमरे में पानी अधिक भरने लगा था। अश्रुना ने ऋषभ को भीतरी कक्ष में आने के लिए कहा था। 

पप्पू सहित शेष तीनों सामने भर रहे पानी को बाल्टियों में भरकर घर के पिछवाड़े में फेंकने का कार्य करने लगे थे। ऐसे में ऋषभ साक्षी बने रहकर बैठा नहीं रह सकता था। वह भी इस कार्य में उनका साथ देने लगा था। 

इसी बीच रिया का कॉल आया तो ऋषभ को बताना पड़ा था कि उसे लौटने में देरी होगी।


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