Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

काश! काश! 0.25...

काश! काश! 0.25...

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रविवार को ऋषभ, अश्रुना के साथ गाँव के लिए निकल गए थे। और यदि सब योजनानुसार हो जाता है तो उन्हें शाम 6-7 बजे तक लौटकर आना था। 

छुट्टी के इस दिन दोपहर में बच्चों के सोने के बाद मेरे पास एकांत के दो घंटे थे। मैं चाहती तो मैं भी छुट्टी की दोपहर में सोने का आनंद ले सकती थी मगर मेरे मस्तिष्क में कुछ और ही चल रहा था। 

मैंने नेहा को कॉल किया था। उसके कॉल पर आने के बाद सामान्य बातें हुईं थीं। फिर मैंने कहा -

नेहा, मैं अश्रुना से मिली हूँ। यद्यपि उससे मेरी अधिक बात तो नहीं हुई है फिर भी मुझे लगता है कि नवीन ने अश्रुना को लेकर कोई झूठ नहीं कहा है। 

नेहा ने पूछा - रिया मैम, क्या आप मेरी इतनी चिंता करती हैं? नवीन, मुझसे फिर कोई छल तो नहीं कर रहे हैं यह जाँच करने के लिए, आपने उस अश्रुना जिसका बताया नं. बंद है, तक को खोज निकाला है। 

मैंने हँसकर कहा - नेहा, यह मुझसे मेरा अपराध बोध करवा रहा है। मैं मानती हूँ कि अनायास ही सही मगर नवीन और तुम में कलह की निमित्त मैं हुई हूँ। मैं स्वयं को तुम्हारी दोषी मानती हूँ और चाहती हूँ कि अब आगे तुम्हारे लिए चीजें ठीक कर सकूँ। नवीन की विश्वसनीयता की जाँच जरूरी है अतः मैंने अश्रुना को खोज निकाला है। जिससे नवीन की गौरव से कही बातें सत्यापित की जा सकें। 

नेहा ने कहा - आप मेरी दोषी नहीं हैं। अपितु मैं आपकी कृतज्ञ हूँ। आप सच नहीं बताती तो मैं अब भी नवीन के छली रवैये में सुधार की कोशिश नहीं कर रही होती अपितु अभी भी उसके धोखे में रह रही होती। 

मैंने कहा - नेहा, आपको कृतज्ञ होने की जरूरत नहीं। आपके हित के साथ ही अश्रुना को खोजने के पीछे मेरी एक और भावना है। अगर सच में अश्रुना ने कभी कॉलगर्ल का काम किया है तो मैं उसे, उसके गलत अपनाए मार्ग से हमेशा के लिए लौटा लाना चाहती हूँ। अब देखिए मेरा प्रयास सफल होता है या नहीं। 

नेहा ने प्रशंसा में कहा - रिया मैम, आपकी ऐसी बातें मुझे आपको अपना आदर्श बनाने को प्रेरित करती हैं। 

मैंने हँसते हुए कहा - नेहा, चलो छोड़ो इन बातों को, तुम बताओ कॉलेज में तुम्हारा कैसा चल रहा है। 

तब नेहा ने बताया - मैम, मेरी विभागीय परीक्षा हो गई है। इसमें मुझे सृजन सर की बहुत हेल्प मिली है। जिस दिन लिखित परीक्षा थी उसके दो दिन पहले से सृजन सर, एक सेमीनार में भाग लेने बाहर चले गए थे। ऐसा मुझे लगता है कि मैंने पेपर अच्छा किया है। फिर भी अगर सृजन सर बाहर नहीं गए होते तो शायद यह इससे भी अच्छा किया होता। 

मैंने कहा - नेहा, मेरा मन कह रहा है, मुझे पूरी आशा है कि आप इसमें अवश्य ही पास हो जाएंगी। 

नेहा ने, धन्यवाद रिया मैम कहा, फिर हमने बाय करते हुए कॉल काट दिया था। 

मैं, नेहा की बात पर गौर करने लगी थी। मुझे सृजन-नेहा के बीच में वह बात दिखाई पड़ रही थी जो कभी नवीन और मेरे बीच में थी। अर्थात् नवीन के काम का अधिक जानकार होना तथा मेरे कार्य में उसका मदद करना, जिससे मुझे कार्य निष्पादन में आसानी होती थी। नवीन की ऐसी बौद्धिक क्षमता एवं मुझसे किए जाते सहयोग से मैं उसका आदर करती थी। तब नवीन ने मेरे ऐसे आदर भाव को गलत समझ लिया था और जबरन मेरे निकट आने की कोशिश कर दी थी। 

यह सोचने से मेरे पूरे बदन में झुरझुरी सी हुई थी। मैंने साइड टेबल पर रखे गिलास से जल पिया था। फिर सोचने लगी सहकर्मी स्त्री-पुरुष का ऐसा ही संबंध, अब सृजन और नेहा के बीच बनता प्रतीत हो रहा था। 

अब मैं मन ही मन मना रही थी कि सृजन, नवीन जैसी कोई हल्की हरकत नेहा के साथ न कर बैठे। अगर ऐसा कुछ हुआ तो नेहा तो दोतरफा छली जाएगी। वह ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण स्त्री का उदाहरण बन जाएगी जो पति की आश्रिता होकर घर में छली गई और जब उससे बचने के लिए उसने अपने पैरों पर खड़ी होने के लिए अर्निंग होने का प्रयास किया तो वह बाहर के पुरुष से भी छल ली गई। 

फिर मैंने अपने इस विचार को दिमाग से बाहर निकाला। मैं सोचने लगी कि ऋषभ का मित्र होने से सृजन ऐसा बुरा व्यक्ति नहीं होगा। साथ ही नेहा मेरे संपर्क में है। वह अपनी हर बात मुझसे कहती भी है। ऐसे में अगर ऐसी कोई परिस्थिति बनती दिखती है तो मैं नेहा का बचाव कर लूँगी। 

कहते हैं ज्यादा विचार करने बैठो तो विचार हमें डराने लगते हैं। यही मेरे साथ होने लगा था। अचानक मेरे मन में नया डरावना विचार आ गया कि नेहा, पति से मिलने वाले सुख से तीन माह से दूर है। क्या ऐसे में सृजन कोई गलत प्रयास करे तो नेहा फिसल तो नहीं जाएगी। 

तब अपने इस डर से मैं स्वयं को आश्वस्त करने का प्रयास करने लगी। मैं नेहा के व्यक्तित्व पर गौर करने लगी थी। वह मुझे स्वाभिमानी सच्चरित्र युवती लगती थी। मुझे स्मरण आया भारतीय पत्नियों में तो जौहर तक की शक्ति रही है। नेहा दो बच्चों की माँ है। तीन चार महीने की दैहिक भूख उसे कदापि पथभ्रष्ट नहीं कर पाएगी। 

अंत में मैंने यह विचार किया कि ना तो नेहा हल्की स्त्री है और ना ही सृजन बुरा और गैरजिम्मेदार आदमी, ऋषभ तरह के पुरुष और भी तो होते हैं। कदाचित सृजन, जो ऋषभ का मित्र है वह ऋषभ जैसा ही होगा। 

मैंने टाइम देखा, लगा बच्चे अब 15-20 मिनट में उठने वाले होंगे। अर्थात् मेरे पास डायरी में लिखने के लिए समय नहीं था। तब भी मैं सोचने लगी कि अब अगली बार मुझे डायरी में क्या लिखना है। 

मेरे सामने तीन अलग अलग परिस्थितियों से घिरी हुईं तीन नारियाँ थीं। एक मैं स्वयं, एक नेहा और एक अश्रुना। 

तब मैं जीवन यथार्थ के मंच पर इन तीन नारी पात्र की अनुकूलताओं एवं चुनौतियों को लेकर सोचने लगी थी। अपनी डायरी में लिखी पूर्व की बातों का स्मरण करते हुए इन नारी पात्रों को उन बातों से जोड़ कर देखने लगी थी। ….  


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