Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Others

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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काश! काश! 0.23...

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मेरी एवं अपनी जिज्ञासा होने पर भी, ऋषभ ने अश्रुना के बारे में अपने दोस्त सृजन से कहना उचित नहीं समझा था। सृजन से कॉलेज की किसी लड़की के बारे में टोह लेने को, वह नैतिक दृष्टि से उचित नहीं मान रहा था। किसी को अपने कॉलेज की छात्रा से संबंधित जानकारियाँ देना, उसके मित्र सृजन, एक प्रोफेसर को आचार संहिता के विरुद्ध लग सकता था। 

तब एक संयोग हुआ था। ऋषभ की सृजन से एक विवाह समारोह में भेंट हुई थी। ऋषभ ने सृजन से अन्य बातों के बीच पूछा था - मित्र सृजन, तुम तो कॉलेज में कई लड़कियों को पढ़ाते हो क्या मेरा एक काम कर सकते हो?

सृजन ने संदेह पूर्ण दृष्टि से ऋषभ को देखा था। फिर पूछा - "कैसा काम?"

ऋषभ ने कहा - "सृजन, तुम घबड़ाओ नहीं यह कोई अनैतिक काम नहीं है। मेरे एक रिश्तेदार को बेटी हुई है। वह बेटी के लिए मुझसे, एक यूनिक नेम देने को कह रहा है। तुम्हारे कॉलेज में लड़कियों में का कोई यूनिक नेम तुम्हें पता हो तो बता दो।" 

सृजन यह सुनकर रिलैक्स हो गया था। वह कुछ पल सोचते रहा था। फिर उसने ऋषभ को बताया था - "एक लड़की का नाम अश्रुना है जो एमबीए की छात्रा है। मुझे यह नाम अनूठे में भी अनूठा लगता है।"

ऋषभ ने कहा - "हाँ, अश्रुना नाम तो मैंने कहीं सुना ही नहीं है। यह मैं अपने रिश्तेदार को बता देता हूँ। मगर क्या पता, इस नाम की वह लड़की अच्छी है या बुरी? उसने इस निराले नाम को खराब तो नहीं कर रखा है।"

सृजन ने कहा - "यह मैं नहीं जानता हूँ। वह विज्ञान संकाय में नहीं है।"

फिर और लोगों के पास आ जाने से सृजन और ऋषभ ने यह बात यहीं छोड़ दी थी। 

ऋषभ को दो दिन बाद सृजन का कॉल आया था। सृजन ने बताया - "ऋषभ, मैंने अश्रुना के बारे में पता किया है। ग्रामीण क्षेत्र से यहाँ पढ़ने आई वह लड़की, शायद गरीब परिवार की है। मुझे तो वह सीधी साधी लड़की लगती है। कुछ लोग उसे अच्छी लड़की नहीं बताते हैं। मुझे उन लोगों की बातों पर विश्वास नहीं होता है। जमाना अच्छा नहीं, किसी गरीब लड़की के बारे में व्यर्थ की बातें करना आजकल मनबहलाव का विषय होता है।"

ऋषभ ने हँसकर कहा - "अरे सृजन, तुम उस दिन की बात याद रखे हुए हो, अब छोड़ो उसे। मैंने तो अपने रिश्तेदार को कह दिया था। इसमें अश्रु शब्द होने से इस नाम में उन्होंने रुचि नहीं दिखाई थी।" 

इस ट्रिक द्वारा ऋषभ ने सृजन से, अश्रुना की जानकारी लेना मुझे बताया था। मुझे ऋषभ की ट्रिक पर हँसी आई थी। ऋषभ ने बताया, जिस अश्रुना को हम खोज रहे हैं, वह निश्चित ही यही लड़की होना चाहिए। 

अश्रुना के बारे में पता हुई जानकारी सुनने पर मुझे भी यही लगा था। मैंने ऋषभ से उससे मिलने जाने की अनुमति माँगी थी। तब ऋषभ ने कहा - "कॉलेज में अश्रुना से मिलते हुए यदि सृजन देख लेगा तो उसे हम पर संदेह हो जाएगा।"

मैंने इस तरह से सोचा तो मुझे ऋषभ की आशंका सही लगी थी। तीन दिन बाद मुझे ऋषभ ने ही बताया - "रिया, तुम कल चाहो तो अश्रुना से मिलने जा सकती हो।" 

मैंने प्रश्न पूर्ण दृष्टि से ऋषभ को देखा तो उन्होंने मुझे बताया - "आज रोड पर क्रॉस होते हुए मुझे, सृजन मिल गया था। सृजन से हुई संक्षिप्त बात में मुझे पता चला है कि वह किसी सेमीनार में भाग लेने के लिए तीन दिन के लिए बाहर जा रहा है।"

मैंने तय किया था और आज कॉलेज में अश्रुना से मिलने पहुँच गई थी। 

कॉलेज के आगंतुक कक्ष में महिला चपरासी की सहायता से मैंने अश्रुना को बुलवाया था। उसे अपना परिचय दिया था। 

अश्रुना आकर्षक लड़की थी। देखने पर कहीं से नहीं लगता था कि यह कॉलगर्ल हो सकती है। अश्रुना ने मुझसे मेरे मिलने का कारण पूछा था। उत्तर में मैंने उलटा प्रश्न किया - अश्रुना, तुम नवीन को जानती हो ना? मैं और नवीन ऑफिस में सहकर्मी हैं। 

अश्रुना भयभीत सी दिखाई पड़ी थी। उसने कहा - "मैम, यहाँ ऐसी बात करना मेरे लिए अहितकारी होगा।"

मैंने कहा - "हाँ, मैं भी यही मानती हूँ मगर तुम्हारी भलाई के लिए मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं। क्या तुम अभी कॉलेज के बाहर आ सकती हो। किसी रेस्टारेंट में बातें करने के बाद, मैं तुम्हें वापस कॉलेज के सामने छोड़ जाऊँगी।"

अश्रुना ने सहमति में सिर हिलाया था। तब पहले मैं, अपनी स्कूटी लेते हुए कॉलेज के बाहर आई थी। मेरे पीछे अश्रुना भी बाहर आ गई थी। अपनी स्कूटी में बैठाकर मैं उसे एक अच्छे रेस्टारेंट में ले आई थी। फिर फैमिली केबिन में बैठकर मैंने स्नैक्स और कॉफी आर्डर कर दी थी। 

अश्रुना के चेहरे पर उसके मानसिक तनाव में होना स्पष्ट देखा जा सकता था। मैंने इसे समझा था। मैं उसे आश्वस्त करना चाहती थी कि मुझसे उसे कोई खतरा नहीं है। मैंने कहा - 

"अश्रुना, तुम्हें मुझसे किसी तरह का भय नहीं है। अगर तुम नहीं चाहती कि मैं तुमसे कोई बात करूँ तो मौन रहकर कॉफी लेने के बाद मैं तुम्हें वापस तुम्हारे कॉलेज छोड़ आऊँगी। पर अगर तुम मुझे अपनी हितैषी मानकर मुझे मेरे प्रश्नों पर सच बता सकोगी तो तुम्हें लाभ ही होगा।"

अश्रुना ने संशय में रहते हुए कहा - "मैम, अपनी छोटी सी आयु में ही मैंने ऐसे ऐसे लोग देखें हैं जिससे मुझे समझ नहीं आता है कि मैं किस का विश्वास करूं किसका नहीं।"

वह, मुझ पर विश्वास कर पाए इसके लिए मैंने कहा - "अश्रुना, तुम ठीक कहती हो। हम ऐसा करते हैं, अभी सिर्फ कॉफी लेते हैं फिर तुम्हें कॉलेज छोड़ देती हूँ।" 

अब वेटर आर्डर ले आया था। मैंने उसे स्नैक्स-कॉफी लेने का संकेत किया और खामोशी से मैं भी लेने लगी थी। मैं उसके मुख पर आते जाते भाव से उसके मन में क्या चल रहा समझने की कोशिश कर रही थी।

कॉफी पीते हुए कुछ सोचने के बाद अश्रुना ने कहा - "मैम, ऐसी कुछ परिस्थितियाँ मेरे साथ हैं, जो मुझे खतरे की संभावना होने पर भी दूसरों की बात का विश्वास करने को विवश करतीं हैं … "


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