Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

काश! काश! 0.17...

काश! काश! 0.17...

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गौरव के प्रश्न पर नवीन ने, गौरव को यूँ निहारा था कि जैसे पूछ रहा हो, वह यह बात कैसे जानता है। मगर बोलकर पूछने की जगह उसने आगे बताना शुरू किया था - 

नेहा के यहाँ नहीं होने पर जिस तरह से मेरे दोस्तों ने मेरे घर को पियक्कड़ों का अड्डा जैसा बनाया हुआ था, उससे मेरे पड़ोसी त्रस्त थे। शायद किसी ने पिछली बार एक कॉलगर्ल का मेरे घर रात भर रहना भी देखा हुआ था। इस बार जब वह लड़की, मेरे घर में आई तो किसी ने उसे देख लिया और पुलिस को सूचना दे दी थी। 

गौरव, उस दिन भाग्य, उस लड़की, नेहा, मेरे बच्चों तथा मेरे साथ था। पुलिस जब पहुँची तब रात भर के लिए आई उस लड़की को मैं, घर से पहले ही विदा कर चुका था। पुलिस को घर में कालगर्ल, कोई आपत्तिजनक वस्तु या बात नहीं मिली थी। ऐसे मैं बच गया था। 

गौरव अब कारण जानने के लिए अधीर हुआ था। उसने पूछा - 

जब आप इन बुरे कर्मों से किसी तरह बचे रहे हैं तो वापस नेहा दीदी और बच्चों को साथ लिवा लेने के लिए क्यों नहीं आ रहे हैं?

गौरव ने दीर्घ श्वासोच्छ्वास (Respiration) के साथ कहा - नेहा ने, मेरे से जिस आचरण की अपेक्षा की थी, काश! मैं वैसा कर पाता। इन दो महीने में मैं अच्छे आचरण रखने में विफल रहा हूँ। मैंने अब स्वयं पर दो माह का ‘और’ अकेलापन भुगतने का दंड आरोपित करना तय किया है। इस अवधि में मैं अपने निर्मल कर्म और आचरण से, नेहा के हृदय एवं पास पड़ोस में बदरंग हुई अपनी छवि को ठीक करना चाहता हूँ। 

मैं नहीं चाहता कि पास पड़ोस में मेरी करनी से हमारे घर के विरुद्ध जो वातावरण अभी बना हुआ है, इसमें आकर नेहा और बच्चे परेशान रहें। क्या तुम मेरे बच्चों एवं नेहा को दो माह के लिए अपने घर में और शरण दे सकते हो? 

गौरव ने कहा - जीजू, आप कैसी बात करते हो, वह घर दीदी का इस घर से भी पहले से अपना है। उसमें दीदी, हमारी शरण में नहीं, हम पर अपनों वाला अधिकार एवं अनुराग सहित रहती है। 

अब नवीन, अपने स्थान से उठा था। गौरव के दोनों हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसने कहा - गौरव, नेहा और बच्चों को जिस तरह तुमने आदर और अपनत्व से साथ दिया है उसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ। 

गौरव को यह समय लौट चलने का लगा था। उसने कहा - जीजू, आपको एक बात बतानी है। 

नवीन ने कहा - हाँ वह क्या है, मुझे बताओ? 

गौरव ने कहा - दीदी को महाविद्यालय में लैब अटेंडेंट का जॉब मिला है। वे चार दिन बाद ड्यूटी ज्वाइन करने वाली हैं। 

नवीन ने कहा - नेहा मेरी पत्नी, स्वाभिमानी लड़की है। लैब अटेंडेंट यद्यपि उसकी योग्यता से छोटा काम है। फिर भी इस हेतु लाचार वह मेरी करतूत से हुई है। मैं उसे बधाई देने के लिए आज ही कॉल करूंगा।  

गौरव वापस घर आया था। तब दीदी, बच्चों के लिए स्कूल से मिली एक्टिविटीज करवा रहीं थीं। द्वार गर्विता ने खोले थे। गौरव को देखते ही पूछा - 

क्या हुआ गौरव, नवीन जीजू ठीक तो हैं, दीदी एवं बच्चों को वापस लिवा ले जाने के लिए वे कब आ रहे हैं?

ऐसा पूछने पर भी अब की गर्विता को लेकर, गौरव को कोई शंका नहीं हुई थी। वह जानता था कि गर्विता, दीदी-बच्चों के वापस जाने की राह नहीं देख रही है। गौरव को समझ आ रहा था कि गर्विता के पूछने के पीछे, उसका दीदी को लेकर चिंता एवं बच्चों के भविष्य की विचार है। गौरव ने कहा - 

नहीं गर्विता, जीजू अभी लिवाने के लिए नहीं आने वाले हैं। वे ‘और’ दो माह बाद आएंगे ऐसा उन्होंने कहा है। 

अब तक अपने कक्ष से निकल कर दीदी भी आ गई थीं। उन्होंने गौरव की कही बात सुन ली थी। जिसे सुनकर वे भीतर से दुखी हो गई थीं मगर अपने मनोभाव को मुख पर प्रकट होने से रोक रही थीं। 

गौरव के उत्तर से स्तंभित (Shocked) गर्विता ने, चिंता से दीदी की ओर देखा था। फिर चिंतित स्वर में पूछा - क्या, जीजू नाराज हैं?

दीदी ने गौरव क्या उत्तर देता है इसे उपेक्षित छोड़ा था। वे किचन में चलीं गईं थीं। गौरव तब तक जूते उतारकर सोफे पर आकर बैठ गया था। गर्विता भी अनुसरण करते हुए उसके पीछे पीछे सोफे पर आ बैठी थी। तब ट्रे में जल का गिलास लिए दीदी भी वहाँ आ गई थी। नेहा (दीदी) ने, भाई को पीने के लिए जल दिया था। गौरव ने जल पी लेने के बाद कहा - 

नहीं गर्विता, जीजू नाराज नहीं हैं। वे पछतावे में हैं। उन्होंने स्वयं पर प्रायश्चित की अवधि दो माह बढ़ाने का निर्णय किया है। 

गर्विता ने उतावली से पूछा - क्या अकेले रहना जीजू को अधिक अच्छा लगने लगा है? वे, दीदी को आश्वस्त करते हुए साथ ले जाने के लिए क्यों नहीं आ रहे हैं?

गौरव को पता था कि दीदी की पड़ोस की महिला के द्वारा बताई बातें अभी गर्विता नहीं जानती है। अतः वह संक्षिप्त में ही अपनी बात खत्म करने की सोच रहा था। तब दीदी ने कहा - गौरव तुम, नवीन से हुई सभी बातें विस्तार से हमें बताओ। 

गौरव ने प्रश्नात्मक मुद्रा में दीदी की ओर देखा था। नेहा ने उसके मन में क्या है समझ कर कहा - गौरव, गर्विता हमारी अपनी है। उसे भी पता चलना चाहिए कि नवीन ने क्या कहा है।        

गौरव तब उठा था। दीदी के कक्ष के दरवाजे पर गया था। अंदर देखा तो बच्चे अपनी एक्टिविटीज में व्यस्त थे। उसने आहिस्ता से दरवाजा बंद कर दिया था। सोफे पर वापस आ बैठने के बाद दोनों के सामने उसने, नवीन की कही एक एक बात कह सुनाई थी।


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