काश! काश! 0.16...
काश! काश! 0.16...


नवीन जब संयत हुआ और पुनः बोलने की स्थिति में दिखाई दिया तब गौरव सोच रहा था कि पुलिस रैड के बारे में अब जीजू से सुनने मिलने वाला है।
रुँधे गले से निकल रहे विचित्र से स्वर में जीजू ने कहना शुरू किया -
मेरे दिन तो ऑफिस के काम की व्यस्तताओं में बीत जाते थे। दोस्तों के साथ पीना खाना छोड़ा तब बाकी समय में, घर में मेरे साथ मेरा अकेलापन होता था। कामुक प्रवृत्ति शायद मुझमें अन्य पुरुषों से अधिक है। नेहा के न होने से इसकी तृप्ति नहीं हो रही थी।
इसे सुनकर गौरव सोचने लगा, जब दीदी साथ थी तब भी तो इन्होंने रिया मैम के साथ कांड करने का प्रयास किया था।
नवीन का कहना जारी था। वह कह रहा था -
मैं नेहा के ऐसे छोड़ जाने से कभी पश्चाताप में होता कभी विचार आता कि नेहा के व्यवहार पर मुझे उसे सबक देना चाहिए। वह मेरे पर आश्रित है। कब तक उसे भाई का साथ और उसके घर में रहने को जगह मिलेगी। मुझे वह करना चाहिए कि जिससे घबरा कर नेहा, जीवन में फिर कभी मेरी उपेक्षा न कर सके।
घर में अकेले, मैं मोबाइल में ही नेट पर अश्लील सामग्री देखता-पढ़ता था। मोबाइल फोन भी आजकल इतना स्मार्ट हो गया है कि जिस विषय में यूजर की रुचि नोटिस करता है। उसी से संबंधित जानकारी सर्फिंग में पॉप अप होने लगती है। मुझे कॉलगर्ल के विज्ञापन दिखाई देने लगे थे।
मेरे मन में चलते इन विचारों और मेरी यौन पिपासा ने एक दिन मुझे महँगी कॉलगर्ल को घर बुलाने के लिए दुष्प्रेरित किया।
गौरव सोच रहा था मेरी इतनी अच्छी दीदी को, यह कैसा नीच आदमी पति के रूप में मिला है।
नवीन तो सब सच बोलकर जैसे आज कोई बात राज नहीं छोड़ने की कसम खाया हुआ था। वह कह रहा था -
मैंने महँगी कॉलगर्ल इसलिए चुनी थी कि मेरे दोस्त ने जिसे पिछली बार बुलाया और पूरी रात भोगता रहा था, उसका शरीर नेहा से भी अधिक ढला हुआ था।
यह सुनकर गौरव की मुट्ठियाँ भिंच गई थी। एकबारगी उसे लगा कि वह नवीन के थोबड़े पर घूँसा जड़ देने वाला है। तभी गौरव को स्मरण हो आया था कि वह बात बिगाड़ने नहीं बनाने के लिए यहाँ आया है। उसने किसी तरह स्वयं पर नियंत्रण रखा था।
नवीन कह रहा था। उस रात मैंने महँगी कीमत पर तय की गई, एक कॉलगर्ल को घर बुला लिया था। मैंने उसकी जितनी सुन्दर तस्वीर देखकर उसे बुलाया था, वह उतनी ही सुन्दर थी। बल्कि जब मैंने प्रत्यक्ष उसे देखा तो वह मेरी आशा से अधिक युवा थी।
उस दिन यह अच्छा था कि मैंने शराब नहीं पी रखी थी। उसे अपने सामने पाकर आश्चर्यजनक रूप से मुझे नेहा के घर छोड़ते समय के शब्द याद आए थे कि -
“अब दो महीने के समय में यदि आपने, किसी अन्य प्राणप्रिया की तलाश और उससे संबंध स्थापित नहीं किए तब, दो महीने बाद मुझे और बच्चों को लिवाने आ जाइयेगा”।
स्मरण आते ही मैं सम्हल गया चारित्रिक पतन के (कु)मार्ग पर आगे बढ़ने वाले मेरे कदम थम गए थे। मैंने उस लड़की से संबंध नहीं बनाना तय कर लिया। वह कॉल पर आ चुकी थी इसलिए उसे, मुझे उसकी पूरी कीमत देनी थी। मैंने उससे पूछा था - “अभी रात पूरी पड़ी है मैं पहले उससे, उसकी लाचारी सुनना चाहूँगा कि क्यों वह इस देह व्यापार के बुरे धंधे में आई है”।
उद्वेलित गौरव यह सुनकर कुछ शांत हुआ था। नवीन आगे बता रहा था -
उस लड़की ने बताया कि वह पास के गाँव से पढ़ने आई है। उसका बाप एक अति अय्याश किस्म का आदमी है। कई बार वह घर से भागकर, मौज मस्ती के लिए महीनों तक मुंबई जाकर रहता है। ऐसे समय में लड़की को यहाँ पढ़ने रहने के खर्चे के लिए पैसे नहीं मिल पाते हैं। उलटे उसे ही गाँव में माँ एवं भाई के लिए पैसे भेजने होते हैं।
वह अपनी माँ को झूठ बताती है कि वह पढ़ने के साथ, पार्ट टाइम जॉब कर रही है और उन्हें जॉब से कमाए हुए रुपए भेजती है। उस लड़की ने यह भी बताया कि वह इस पेशे में नई ही आई है। वह हर दिन ऐसा नहीं करती है। जब पैसों की बहुत आवश्यकता हो जाती है तब कभी कभी ही महँगी कीमत के बदले अपना शरीर बेचती है।
नवीन रुका था। तब गौरव ने कहा - जीजू, मुझे चाय की चाह हो रही है, क्या आप एक कप और लेना पसंद करेंगे?
नवीन ने कहा - हाँ गौरव तुम चाय बनाओ। तब तक मैं जल्दी से नहाकर आता हूँ।
गौरव ने कहा - यह ठीक रहेगा।
नवीन नहाकर आया, तब तक गौरव ने फ्रिज में रखी ब्रेड लेकर सैंडविच एवं चाय बना ली थी। सब कहकर जैसे नवीन के सीने पर रखा कोई बोझ हट गया था। गौरव भी जितनी चिंता में आया था उसमें से काफी दूर हो गईं थीं। चाय-सैंडविच लेते हुए, नवीन ने कहा -
पता है गौरव उस रात लड़की के सामने मुझे लगा कि जैसे मैं कोई प्रौढ़ पुरुष हूँ। मुझे लगा कि मैं ही उस लड़की का बाप हूँ। मुझे लगा कि मुझे इस बेटी को ऐसी लाचारी से निकालना चाहिए। मैंने उसे ऐसी विजिट बंद करने के लिए कहा था। उससे कहा था कि उसे अपने खर्चो के लिए जब जब भी सहायता चाहिए होगी मैं रुपयों का प्रबंध करूँगा।
उससे देह व्यापार में आगे लिप्त नहीं रहने का आश्वासन लेकर मैंने उसे, उसकी तय कीमत से अधिक रुपए देते हुए दो घंटे में ही घर से विदा कर दिया था।
अब गौरव रिलैक्स अनुभव कर रहा था। फिर भी वह पड़ोसी महिला के द्वारा दीदी को बताई बात को वेरिफाई करना चाहता था।
गौरव ने पूछा - जीजू, क्या घर पर कभी पुलिस भी आई थी?…