काश काश ! 0.15
काश काश ! 0.15
एक मिनट कहकर गौरव ने जीजू से कॉल लेने की अनुमति ली थी। गर्विता का दूसरी ओर से चिंतित स्वर सुनाई दिया था। वह पूछ रही थी - गौरव, वहाँ सब ठीक तो है, ना?
गौरव ने कहा - गर्विता, चिंता न करो। जीजू और मैं साथ चाय पीते हुए बात कर रहे हैं।
गौरव ने साथ चाय पीने का जिक्र जानबूझकर, स्थिति को सामान्य बताने के लिए किया था। गर्विता को तसल्ली मिली थी। कॉल समाप्त होने पर गौरव, जीजू की तरफ देखने लगा था। जीजू ने फिर बताना आरंभ किया -
गौरव, नेहा के यहाँ से जाते समय मैं बहुत पश्चाताप में भरा हुआ था। अपने किए की क्षमा याचना करता रहा था। मैं नेहा को रोक लेना चाहता था मगर उसने दो माह की अवधि, मुझ पर प्रायश्चित में बिताने के लिए तय कर दी थी। वह बच्चों सहित तुम्हारे घर के लिए चल दी थी। इस पर मेरी आरंभिक प्रतिक्रिया नेहा की अपेक्षित वाली ही थी। मैं प्रायश्चित में दो माह बिताना चाह रहा था।
गौरव, मेरे तरह के निकृष्ट पुरुष पर गलती का पश्चाताप अधिक समय बना नहीं रहता है। मैंने भुला दिया कि मैं, अपनी पत्नी से किए छल के उजागर होने पर उससे क्षमा माँगता रहा था। मेरे पर मर्दानगी का भ्रम हावी हुआ था। मैंने इसे भ्रम इसलिए बताया कि यह हममें से बहुतों का मानना होता है कि बंदिशें, पत्नी के लिए होती हैं। जबकि कई स्त्री से संबंध स्थापित करना पति की मर्दानगी होती है।
नेहा के जाने के बाद, अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए मैंने, उसी मित्र का साथ करना शुरू किया था जिसके उकसावे के बाद किए गए मेरे कृत्य से ही नेहा एवं मेरे बीच कलह की अप्रिय स्थिति जन्मी थी। मैं घर में अकेला हूँ यह पता चलने पर, दो तीन और भी मित्र ने इस घर को शराब आदि के लिए अच्छा अड्डा समझ लिया था। मैं भूल रहा था कि वे तो मजे करके चले जाने वाले लोग थे मगर स्थाई पड़ोसियों में मेरी छवि बिगड़ रही है।
हर दो तीन दिनों के अंतराल में, मेरे घर ऐसी पार्टी होने लगी थी। तब मैं अक्ल का अंधा हुआ था। मुझे तत्कालीन मजा और लाभ दिख रहा था। मेरे घर में पार्टी करने के लिए वे लोग ही पीने खाने की व्यवस्था करके आते थे। इससे मुझे मुफ्त शराब और खाना मिल रहा था। मुझे यह बहुत बाद में पता चला कि इस मुफ्त के लालच में मेरा घर, घर नहीं शराबियों का अड्डा प्रसिद्ध हो गया था।
मेरे तथाकथित वे मित्र, मेरा इतना ही प्रयोग करते तो भी कसर रही आती। एक रात जब कोई और मित्र नहीं थे। घर में ‘एक’ वह मित्र और मैं ही थे, तब उसने एक कॉलगर्ल को घर में बुला लिया। सारी रात उसने उसके साथ रंगरेलियाँ कीं। उसने मुझसे भी उस कॉलगर्ल के साथ मजे करने के लिए कहा। मैंने उस रात उसकी यह बात नहीं मानी थी। पता है गौरव उसका कारण क्या था?
गौरव ने कहा - यह भी आप बता दीजिए।
नवीन ने कहा - थोड़ा रुको मैं वॉशरूम से आता हूँ।
नवीन वॉशरूम गया था। गौरव गुस्से में भरा बैठा सोच रहा था, पड़ोसी महिला द्वारा दीदी को कॉल पर बताई गई बात में सत्यता थी।
नवीन वापस आया फिर उसने बताना शुरू किया था - मैं उस मित्र की बात मान लेता लेकिन उस कॉल गर्ल के शरीर में मुझे आकर्षण नहीं लगा था। उसे देख दो विचार मेरे मन में चलते रहे थे। मैं नेहा के साथ की कल्पना कर रहा था। दूसरा मुझे उस कॉल गर्ल पर दया आई थी। मुझे उसके ढल गए शरीर को देखने से वह, एक लाचार माँ सी लगी थी। मुझे लगा था कि शायद कम पढ़ी लिखी वह औरत अपने शरीर को बेच कर, अपने घर परिवार का उदर पोषण कर रही है।
उस रात मुझे लग रहा था कि मैं निकृष्ट पुरुष तो हूँ मगर अपने मित्र से कम, जिसे उस लाचार औरत के शरीर से उसका माँ होना दिखाई नहीं पड़ रहा था। वह, उसे भोगने को मिल गई अप्सरा प्रतीत हो रही थी।
गौरव पता है वह रात मुझे सबक देकर गई थी। मैंने अपने दोस्तों से पीने-खाने के लिए अपने घर में आने के लिए मना कर दिया था। ऐसे मित्रों का मेरे घर आने का सिलसिला बंद हुआ था।
जीजू चुप हुए थे। गौरव सोचने लगा था कि पड़ोसी महिला ने, नेहा को घर में पुलिस दबिश की भी बात कही थी। जीजू ने यह बताया नहीं है। गौरव इसे झूठी बात मानते हुए, अच्छा मान रहा था। गौरव, जीजू और दीदी में सुलह चाहता था। जीजू के बताए विवरण से गुस्से में भर जाने पर भी गौरव, बात बिगाड़ने वाले शब्द नहीं कहना चाहता था। गौरव ने कहा -
जीजू, मैं आपके अकेलेपन वाली स्थिति की कल्पना कर पा रहा हूँ। हालांकि आपके लिए घर से जाते समय, दीदी की आपसे अपेक्षा की यह अवहेलना है। फिर भी कॉल गर्ल के घर में होते हुए आपका संयम रखना कुछ हद तक आपकी बुराई को कम कर रहा है। आप अपने अकेलेपन से मुक्त होने के लिए दीदी और बच्चों को लिवा लाइए। मुझे विश्वास है कि इतना होने पर भी मैं दीदी को वापस यहाँ आने के लिए मना लूँगा।
तब नवीन के कहे शब्दों ने गौरव को झकझोर दिया था। उसने बताया - गौरव अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई है। क्यों मैं अभी, नेहा का सामना करने को तैयार नहीं हूँ उसका कारण बताना अभी बाकी है। तुम्हारा कहना सही होता अगर मैं इतने के बाद समझ जाता, काश! मैं इतने पर ही रुक पाता।
नवीन के ये शब्द गौरव को भयावह लग रहे थे। तब भी आगे क्या हुआ, वह यह जानने को अधीर हुआ जा रहा था। वह एकाधिक कारणों से गुस्से से भरा हुआ था।
नवीन को चुप हुआ देखकर, वह उकताहट अनुभव कर रहा था। नवीन ने हाथ में रुमाल लिया था। शायद उसके आँखों में पश्चाताप के आँसू थे। जिन्हें वह पोंछ रहा था। गौरव को नवीन के ये मगरमच्छी आँसू लग रहे थे ….