काश! काश! 0.14...
काश! काश! 0.14...


नवीन ने गौरव को घर में अंदर आने की जगह दी और गौरव को सोफे पर बैठाने के बाद कहा - गौरव, मैं अभी आया।
कहते हुए नवीन किचन में गया था। गौरव ने बैठे हुए ही सब तरफ दृष्टि दौड़ाई थी। घर में अस्त व्यस्त पड़ी चीजें एवं सब सामानों पर पड़ी धूल दीदी की अनुपस्थिति की चुगली कर रहीं थीं।
कुछ समय में नवीन ट्रे में चाय एवं बिस्किट्स लेकर आया था। सेंटर टेबल पर रखते हुए उसने कहा - गौरव, चाय गैस पर चढ़ा रखी थी। (फिर पूछा -) कैसे हो तुम सब, गर्विता, नेहा और बच्चे?
गौरव ने चाय का घूँट लेने के बाद कहा - सब अच्छे हैं। आप बताइये अकेले दिन कैसे बीतते हैं, आपके?
गौरव को जीजू के व्यवहार में पूर्ववत आत्मीयता अनुभव हो रही थी। जैसी आशंका थी कि जीजू, उससे शिकायती या द्वेषपूर्ण बातें कहेंगे, वह उनकी बातों में परिलक्षित नहीं हुई थी। वह कई बातें कहने की सोचता हुआ आया था। आशा के विपरीत नवीन के अच्छे व्यवहार से वह, अब बात कैसे शुरू करना है इस विचार में खोया, बिस्किट और चाय लेता रहा था।
नवीन भी इस बीच चुप ही था। अंततः चुप्पी गौरव ने तोड़ी और पूछा - आप दीदी एवं बच्चों से मिलने कब आ रहे हैं?
नवीन ने कहा - नेहा ने जो अवधि तय की थी उस हिसाब से मुझे दो दिन बाद, बच्चों और नेहा को साथ लिवा ले आने के लिए तुम्हारे घर आना चाहिए मगर मैं अभी आ नहीं सकूँगा?
नवीन के व्यवहार एवं कही गई बात में मेल न होने ने गौरव को चौंकाया था। जीजू उससे व्यवहार अपने जैसा और बात किसी पराए की तरह की कर रहे थे। वह समझ नहीं पाया था कि क्या कहे। तब चाय समाप्त करते हुए नवीन ने कहा -
जिस परिस्थिति में नेहा बच्चों सहित तुम्हारे घर गई थी, यह बताने की मुझे आवश्यकता नहीं लगती है। नेहा, अपनों में जैसे रहती है उससे मुझे अंदाजा है कि उसने, कम से कम तुम से सारी बातें कही होंगी।
गौरव ने कहा -
जी, जीजू आप सही कह रहे हैं। दीदी एक अत्यंत निर्मल हृदय प्राणी हैं। वे अपने कष्ट मौन सहती हैं। कभी दूसरे के कष्ट का कारण नहीं बनती हैं। मुझे उनसे दीदी ही नहीं माँ का स्नेह एवं व्यवहार भी मिला है। पापा के नहीं रहने के बाद अब तो वे पापा की भी पूर्ति करती हैं।
उन्होंने दो माह हमारे साथ रहने में, हमारी परेशानी की कल्पना की थी। अपनी लाचारी बताने के लिए उन्होंने स्पष्टीकरण दिया था। आप दोनों के बीच उत्पन्न हुई कटुता के कारण सहित सभी बातें हमें बताते हुए इस परिस्थिति में वहाँ हमारे साथ रहना न्यायसंगत बताया था।
नवीन ने कहा - हाँ गौरव जैसा तुम बता रहे हो वैसा ही अनुभव नेहा को लेकर मेरा भी है। नेहा मेरी पत्नी है यह मेरे भाग्य की बात है।
अब गौरव आश्चर्य मिश्रित भाव से नवीन का मुख निहार रहा था। उसने कहा - जीजू, दीदी के गुणों को जब आप मानते हैं तो उन्हें और बच्चों को लिवाकर ले आने में आपको कौन सा संकोच है? क्या आप का पति वाला अहं आड़े आ रहा है कि आप, दीदी को मनाने में अपनी हेठी होना समझ रहे हैं।
नवीन सुनकर चुप रहा था। शायद कुछ सोचने लगा था। तब गौरव असमंजस में था कि उसने अपनी बात अधिक कटु शब्दों में तो नहीं कह दी है।
नवीन ने कुछ पलों की चुप्पी के बाद कहा था - गौरव, मेरा पति अहं अब अतीत की बात हो गई है। मैं पहले ऐसा सोचता था कि पति, पत्नी से श्रेष्ठ प्राणी होता है। पिछले कुछ दिनों में मुझे अपनी वह सोच भ्रामक लगने लगी है। अब मैं मानने लगा हूँ कि पति-पत्नी के बीच ऐसी तुलना नहीं होनी चाहिए। बच्चों एवं परिवार के लिए दोनों के महत्व कुछ अलग अलग हैं। फिर भी पत्नी कहीं भी पति से हीन तरह की प्राणी नहीं होती है।
गौरव को जीजू की हर अगली बात नई पहेली जैसी लग रही थी। वह सोच रहा था कि नवीन ने जब इस यथार्थ को पहचान लिया है तब वह समझ नहीं पा रहा था कि अब समस्या क्या बची है? क्यों जीजू, दीदी और बच्चों से मिलने और उन्हें लिवा ले आने को तैयार नहीं हैं? यही उसने नवीन से पूछा भी -
जीजू जब आप ऐसा कह रहे हैं तो अब कौन सी समस्या है जो आप दीदी को मना लेने और अपने बीच की समस्या को सुलझा लेने की पहल नहीं करना चाह रहे हैं?
नवीन ने उत्तर देने के स्थान पर उलटा प्रश्न किया - गौरव, क्या नेहा और हमारे बच्चों का तुम्हारे घर रहना, तुम्हारे और गर्विता के लिए परेशानी की बात है?
गौरव ने कहा -
नहीं जीजू, दीदी और बच्चों का हमारे साथ रहना, हमारे लिए परेशानी की बात नहीं है। उनका हमारे साथ रहना तो हमारे लिए अधिक सुख सुविधा का कारण है। मेरी चिंता तो बच्चों, दीदी और आपको लेकर है। आप सभी को एक दूसरे के साथ से जो सुख सुविधा मिलनी चाहिए उससे वंचित हैं। सभी के जीवन के महत्वपूर्ण ये दिन आप दोनों की दुविधाओं में व्यर्थ बीत रहे हैं।
नवीन ने कहा - गौरव तुम सही कह रहे हो। मेरे बच्चे पापा के लाड़ दुलार से, नेहा, पति के प्यार से वंचित है। इनके बिना दो माह का समय बीत गया है। यह प्रश्न महत्वहीन है, मैं किन सुखों से वंचित हूँ? मैं दोषी, अपराधी हूँ जिसकी सजा बच्चों और पत्नी से दूर रहकर भुगत रहा हूँ।
गौरव ने कहा - मगर जीजू, आपके लिए नियत सजा अवधि तो अब समाप्त हो रही है। तब आपको प्रतीक्षा किस और बात की है?
नवीन ने कहा - मैं अभी यही सब तुम्हें बताने जा रहा हूँ। मैं वास्तव में एक निकृष्ट व्यक्ति हूँ।
जीजू आगे कहते तभी गौरव के मोबाइल में रिंग बजने लगी थी। गौरव ने देखा कॉल गर्विता का था …