Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy Inspirational

काश! काश! 0.13...

काश! काश! 0.13...

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कुछ मिनट सोचने के बाद मैंने फिर लिखना आरंभ किया था -  

यह परिवार और विवाह संस्था का आरंभिक स्वरूप रहा होगा। जिसकी बुनियाद बेटी के त्याग तथा साहस से निर्मित हुई होगी। रूढ़ि पसंद, मानव मस्तिष्क ने तब इसे ही रस्म (परिपाटी) बना ली होगी। विवाह पर बेटी विदा की जाने लगी। अनजाने लोगों को अपना मानने की सहृदयता उसने दिखाना जारी रखा होगा। 

जैसा मेरा अनुमान (परिकल्पना) है कि जब सभ्यता इस रूप में विकसित होने लगी होगी तब, बाद की कुछ नई पीढ़ियों ने नारी की पहल (Initiatives), उनके आरंभिक त्याग, साहस तथा सहृदयता का स्मरण रखा होगा। तब सैकड़ों पीढ़ी गुजरीं होंगी। तब नारी के परिवार संस्था में उत्कृष्ट पहल एवं योगदान विस्मृत किए जाने लगे होंगे। अब वर (पुरुष) परिवार (पक्ष), वधु (नारी) को इस तरह विदा करा लिए जाने को अपना अधिकार मानने लगा होगा। 

मानव समाज में किसी अच्छी परंपरा में, समय के साथ आ जाने वाली विकृति ने तब अस्तित्व लेना आरंभ किया होगा। प्रारंभिक काल में तो विदा कराकर लाई अपनी अर्धांगिनी को पति ने रानी की तरह रखा होगा। काल बीतने के साथ अपने शारीरिक रूप से बलिष्ठ होने की प्रकृति से कुछ पतियों ने, पत्नी को दबा कर रखना शुरू किया होगा। इन्होंने, उन्हें अपनी दासी के रूप में देखने की समाज दृष्टि देना आरंभ किया होगा। 

तब ऐसे पति आस-पड़ोस मोहल्ले, गाँव के लोगों की आलोचना के पात्र होते रहे होंगे। आलोचना के पात्र पति, पत्नी को यूँ दमित करके रखने एवं उससे अपनी सेवा करवाने के सुख को निर्लज्जता से डींग जैसे अन्य लड़कों, पतियों में सुनाते होंगे। विकृत मानसिकता का यह कीड़ा तब कुछ और लड़कों एवं पतियों के दिमाग में लगने लगा होगा। अपने लिए सुख सुविधा किसे भली नहीं लगती है। ऐसे नारी को अपने अच्छे गुणों के बावजूद दासता की बुरी हैसियत स्वीकार करनी पड़ने लगी होगी। 

आज भी अच्छे पुरुष और पति का अस्तित्व में होना, संकेत करता है कि जब समाज दृष्टि में ऐसा विकृत परिवर्तन आना आरंभ हुआ होगा तब भी बहुत से पुरुष ऐसी समाज दृष्टि को अस्वीकार करते होंगे। 

शारीरिक रूप से साहसी दिखने वाले कई पुरुष, वास्तव में मानसिक रूप से कायर होने लगे होंगे। अपने लिए सुख एवं आनंद की अपेक्षा करना और अपनी पत्नी को दासता की बेड़ियों में रखने की अति-स्वार्थ प्रवृत्ति जनित यह (पुरुष) कायरता समाज का कटु सच होने लगा होगा। 

यह सब लिखते हुए मुझे लगता है कि यहाँ से ही पुरुष से श्रेष्ठ, सामाजिक स्थान रखने वाली नारी को, उत्कृष्ट पद खोकर समानता के नहीं बल्कि हीन पद में रखने की समाज विकृति ने प्रभाव बढ़ा लिया होगा। इसकी परिणति यह भी होने लगी होगी कि एक पति, एकाधिक पत्नियों को दासी के रूप में रखने लगा होगा। 

पति का काम खेती एवं शिकार से उदर पोषण की सामग्री लाने का होता होगा। पत्नी पर, बच्चों की सम्हाल और रसोई आदि के गृहकार्य का उत्तरदायित्व होता होगा। 

तब धन-पैसा चलन में आया होगा। पत्नी के हिस्से घर का काम होने से, बाजार पति के द्वारा बनाया गया होगा। धन का प्रभाव बढ़ने लगा होगा। यद्यपि पुरुष-नारी दोनों ही समान महत्व के मनुष्य होते हैं। पुरुष ने चतुराई से अपनी आर्थिक आश्रिता बताकर, पत्नी को अपने अहसान का बोध कराया होगा। 

ऐसे उच्च स्थान पर रहने वाली नारी का ‘हश्र’, पुरुष की तुलना में हीन स्थान पर आना हुआ होगा। काश! मानव समाज में (पुरुष के) श्रेष्ठ - (नारी के) हीन होने की समाज दृष्टि ने स्थान नहीं बनाया होता। 

डायरी में इतना लिखने के बाद मेरी लेखनी थमी थी। मैं सोचते हुए उठी थी कि मैंने कैसे इतना सब लिख पाया है? मुझे अनुभव हुआ कि निश्चित ही, निर्दोष नेहा पर के अत्याचार के स्मरण ने मुझे उद्वेलित किया हुआ था। 

शयनकक्ष में आई तो ऋषभ सो चुके थे। मैं धीरे से उनके पीठ से चिपक कर लेट गई थी। फिर मुझे नींद ने अपने प्रभाव में ले लिया था। 

~~ 

रविवार के अवकाश में, गौरव ने नवीन जीजू के घर जाना उचित समझा था। गर्विता को पता चला तो वह भी गौरव के साथ होना चाहती थी। गौरव ने कहा - गर्विता, पता नहीं जीजू कैसा व्यवहार करें। हमारे गर्भस्थ शिशु की भलाई की दृष्टि से तुम्हें वहाँ जाने का खतरा नहीं उठाना चाहिए। 

गर्विता ने कहा - गौरव, दीदी द्वारा जीजू के लिए तय की गई अवधि दो दिन बाद पूरी हो रही है। उस दिन जीजू को स्वयं आना है। ऐसे में आप खुद वहाँ जाकर, जिसे खतरा बता रहे हैं, वह जानबूझकर क्यों उठा रहे हैं? अगर मेरा चलना आप उचित नहीं मानते तो आप पर आशंका, मुझे आपका अकेले जाने को भी उचित नहीं मानती है। हम देखें, प्रतीक्षा करें कि दो दिन बाद जीजू आते हैं या नहीं। 

जितना गर्विता को पता था उसे जानते हुए उसका ऐसा कहना, गौरव को स्वाभाविक लग रहा था। वह नेहा दीदी की पड़ोसी महिला की बताई बातें, गर्विता को नहीं बताना चाहता था। उन बातों की सत्यता की जाँच करने के लिए ही जीजू से मिलने, उसका जाना आवश्यक था। यह जानकारी सच्ची या झूठी है, इससे तय होना था कि जीजू के दो दिन बाद आने पर, दीदी एवं बच्चों को उनके साथ भेजने के लिए परिस्थितियाँ अनुकूल हुईं हैं या नहीं। उसने बात बनाते हुए उत्तर दिया - 

गर्विता, मेरे जाने का कारण यह है कि यदि जीजू, बहनोई होने का अहं रखने वाले पुरुष हैं तो मैं उनके अहं को तुष्ट करूँ। उन्हें घर आने के लिए निमंत्रित करूं ताकि उन्हें दीदी को लिवाने आने में कोई संकोच न लगे। 

गर्विता बहुत सहमत तो नहीं दिखी थी मगर चुप रह गई थी। गौरव रास्ते में सोच रहा था कि जीजू अभी घर में अकेले प्राणी हैं। हो सकता है जब मैं घर पहुँचूं तो वे घर में नहीं हों। वह सोच रहा था क्या उन्हें कॉल करके बताना चाहिए? उसे लग रहा था कि हो सकता है जीजू उससे मिलना नहीं चाहें। पूर्व सूचना पर वे घर से निकल कर कहीं चले जा सकते हैं। उसने कॉल पर बात करने का विचार त्याग दिया था। 

गौरव को यह ही उचित लगा कि जीजू को ऐसे बचने का अवसर नहीं दिया जाए। वह आज सत्यता का पता कर ही लेना चाहता था। इन विचारों के बीच वह जीजू के द्वार पर अकस्मात पहुँचा था। 

डोरबेल प्रेस की तो कुछ क्षणों में द्वार जीजू ने ही खोला था। एकाएक गौरव को अपने सामने खड़ा देखकर नवीन चौंक गया था …. 


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