काश ! काश ! 0.12
काश ! काश ! 0.12


नेहा ने बताया - रिया मैम, बताते हुए मुझे दुःख हो रहा है कि नवीन को सबक देने के मेरे प्रयोग का परिणाम मेरी आशा के विपरीत मिला है। बल्कि यह कहूँ कि जो मुझे पता हुआ है अगर सच है तो वह बुरा और विकराल है।
नेहा इतना कह कर चुप हुई तो मैं चिंता में पड़ गई। मेरे स्वर से मेरा चिंतित होना झलक रहा था, जब मैंने पूछा - क्या हुआ नेहा जी, यह क्या कह रहीं हैं, आप?
नेहा ने इस पर मुझे, उनकी पड़ोस की महिला की कॉल पर, उससे कही बात विस्तार से बताई थी। अंत में यह कहा - रिया मैम, मेरा भाई गौरव, आजकल में इसकी सत्यता पता करने के लिए नवीन से मिलने जाने वाला है।
मैंने कहा - नेहा, आप या गौरव, नवीन से कॉल पर बात करके भी तो पता कर सकते हो।
नेहा ने उत्तर दिया - बीते इस समय में गलती पर होने के बाद भी, नवीन ने ना तो मुझसे और ना ही गौरव से कोई बात की है। यहाँ तक कि उसने बच्चों की याद करते हुए भी कोई कॉल नहीं किया है इसलिए मैं और गौरव, कॉल पर नवीन से बात करने के पक्षधर नहीं हैं। ऐसे में यही उपयुक्त होगा कि गौरव जाकर ही उससे बात करे।
फिर मैंने कहा था - भगवान करे, उस महिला की कही बात झूठी हो।
ऐसे मैंने बात खत्म की थी। कॉल के बाद मैं संशय में थी कि नेहा ने जैसा बताया है, उससे संभावना कम ही लगती है कि नवीन, नेहा को वापस ले जाने के लिए आने वाला है। इस संशय से मेरा हृदय भारी हुआ लगने लगा था।
दिन में मैं, ऑफिस एवं घर के कार्य करते हुए, पति-पत्नी में रिश्ते के विचारों में डूबी रही थी। उस रात मैंने पतिदेव से कहा - ऋषभ, आप मुझे अनुमति दें तो आज मैं बिस्तर पर बाद में आऊंगी। मेरे मन में बहुत कुछ चल रहा है जिसे मैं डायरी में लिखना चाहती हूँ।
ऋषभ ने कहा कुछ नहीं था। मेरे दोनों हाथ, अपने हाथों में लिए थे। फिर उन पर चुंबन अंकित कर मेरे हाथ छोड़े और मुस्कुराए थे। यह उनकी मौन अनुमति थी। मैं अपनी डायरी लेकर टेबल पर आ बैठी थी। बच्चे पहले ही सो चुके थे। अतः विचारपूर्वक लिख पाने का उपयुक्त वातावरण मुझे सुलभ था। डायरी के नए पृष्ठ पर मेरी लेखनी चलने लगी थी -
प्रकृति में हर प्राणी प्रजाति में नर-मादा के अस्तित्व एवं अभिप्राय, प्राणी प्रजाति/नस्ल में जीवन चक्र की निरंतरता के लिए होता है। अन्य प्राणियों में तो नर-मादा के चलते आए रिश्ते का स्वरूप, जीवन के आरंभिक काल से आज तक वैसा ही अव्यवस्थित सा है।
मानव ही एकमात्र वह अनूठी प्राणी प्रजाति है जिसने अपने रहने के लिए एक समाज और एक जीवनशैली विकसित की है। मनुष्य में ही पुरुष-नारी के मध्य प्रणय संबंध, पति-पत्नी के सभ्य स्वरूप में आ पाया है।
मुझे लगता है, कदाचित् दो महिलाओं ने पहले पहले अपने लिए कुटीर बनाई होंगी, और अपने बच्चों के साथ उसमें रहना शुरू किया होगा। तब इनमें से एक महिला की बेटी और दूसरी का बेटा बड़ा हुआ होगा। नवयुवा इन दोनों में प्रेम हुआ होगा। कुटीर में रहना आदत होने से दोनों ही साथ मिलकर, कुटीर में रहना चाहते होंगे। पहली महिला चाहती रही होगी कि लड़का, उनकी बेटी के साथ आकर रहे। दूसरी चाहती होगी कि लड़की, उनके बेटे के साथ आकर रहे।
आखिर में उत्पन्न मार्गावरोध (Bottleneck) की स्थिति से निकलने में लड़की ने अपनी माँ को, लड़के के साथ रहने जाने को मना लिया होगा। माँ एवं भाई बहनों को छोड़, दूसरे लोगों के साथ रहने का साहस, लड़की ने प्रदर्शित किया होगा।
यह विवाह, संस्था का आरंभिक स्वरूप रहा होगा। जिसमें लड़के और लड़की के प्रणय संबंध, आपस में (एक के एक के साथ) सीमित रहे होंगे। उन्होंने लड़के की माँ की कुटीर से लगकर ही एक और कक्ष का निर्माण किया होगा। जिसमें वे रहते होंगे।
इसके पहले तक अपनी माँ’ओं के साथ बच्चे, किशोरवय होने तक, गुफा आदि में रहते होंगे। इस जोड़े में नई बात यह हुई होगी कि इन्होंने अपने बच्चों का साथ मिलकर लालन-पालन किया होगा।
यह पहली बार हुआ होगा जब मानव बच्चों ने, अपने पिता को पहचाना होगा। अन्यथा अब तक वे (बच्चे) नर-नारी के अनेक के साथ सहवास किए जाने के रिवाज में, अपने जनक को नहीं सिर्फ अपनी जननी को पहचानते होंगे।
कदाचित् ऐसा होना दूसरे पुरुष-नारी को भी अच्छा लगा होगा। इनकी देखादेखी और भी लोग, कुटीर में रहने लगे होंगे। तब इसी जोड़े जैसे ही और युगल होने लगे होंगे, जिन्होंने परस्पर, एक पुरुष (पति) का एक नारी (पत्नी) के प्रति निष्ठावान रहना अच्छा पाया होगा।
यह नूतन अनुभव उनके लिए अच्छा रहा होगा कि जीवन यापन करते हुए, प्रणय संबंधों के लिए मनुष्यों में जानवरों में मचे जैसे संघर्ष की स्थिति, इस नई जीवन पद्धति में नहीं बनती है।
प्रथम जोड़े में लड़की का, अपने माँ के परिवार को छोड़ कर अन्य अनजानों में रहने का दिखाया गया साहस वाला, यह ‘आरंभ’ तब रीति / परंपरा बन गई होगी। अब लड़के और उसके परिवार में अपेक्षा की जाने लगी होगी कि उनकी प्रणय संगिनी ही उनके साथ आकर रहे।
लिखने के लिए डायरी का नया पृष्ठ पलटते हुए मैं सोचने लगी थी कि मेरी इस परिकल्पना (Riya's Hypothesis) में परिवार और विवाह संस्था की नींव में जब नारी का ऐसा उत्कृष्ट त्याग और साहस था तब विकसित हुई मानव सभ्यता में अनेकों परिवार और अनेकों दांपत्य में नारी की दुर्दशा होने के कारण क्या रहे होंगे ?