काश ! काश ! 0.11
काश ! काश ! 0.11
यह नेहा की अच्छाइयाँ ही थीं, लगभग दो माह पहले जिनका आना गर्विता को पसंद नहीं आया था, अब कुछ ही दिनों में उनका जाने का विचार, आज उसे दुखी कर रहा था। रात जब गौरव गर्विता के साथ बिस्तर पर आया तब गौरव ने उसे उदास देखकर पूछा - गर्विता क्या बात है? तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है क्या ?
गर्विता ने कहा - नहीं गौरव, तबियत तो ठीक है मगर मन दुखी है। दीदी के वापस जाने का विचार मुझे कष्ट दे रहा है।
गौरव को पता था कि नवीन जीजू और दीदी में बात समाधान पर नहीं आई है। अभी कम ही संभावना दिखती है कि जीजू आएं और दीदी उनके साथ जाना पसंद करें। यह बात जानने से गौरव ने कहा -
गर्विता, दीदी तो अपनी ही हैं। तुम्हें उनका जाना दुखी कर रहा है तो हम उन्हें कुछ दिन और रहने के लिए रोक लेंगे। गर्भावस्था में माँ दुखी रहे यह गर्भस्थ शिशु के लिए अच्छा नहीं होता है। दीदी से हम यहाँ और रहने के लिए कहेंगे तो वे मान जाएंगी।
गर्विता को लगा कि गौरव, उसका मन रखने के लिए ही ऐसा कह रहे हैं। उसने फिर कुछ नहीं कहा था। वह सोने की चेष्टा करने लगी थी। दोनों के मन में अलग अलग तरह के विचार चलने से नींद नहीं आ रही थी। दोनों ने विपरीत करवट ली थी। जहाँ गौरव को दीदी और उनके बच्चों की समस्या सता रही थी, वहीं गर्विता विचार मंथन में उलझी हुई थी।
गर्विता सोच रही थी मानव में अनेक तरह की प्रवृत्तियाँ देखने में आती हैं। उसमें, नेहा दीदी की तरह की उत्कृष्ट प्रवृत्तियाँ हो सकती हैं और खुद गर्विता के तरह की अति स्वार्थी प्रवृत्तियाँ भी हो सकती हैं।
इससे भी घटिया, नवीन जीजू की तरह निम्न प्रवृत्तियाँ भी हो सकती हैं। जिनके अधीन कोई पुरुष अपनी पत्नी को सिर्फ दासी के रूप में सेवारत देखना चाहता है। नवीन को पत्नी की थोड़ी भी दया नहीं है। दो महीने में उसने एक बार भी जानने का प्रयास नहीं किया है कि दो छोटे छोटे बच्चों का भार अपने पर लिए, पत्नी की क्या दशा हो रही होगी।
अब गर्विता आत्म-मंथन करते हुए सोचने लगी थी। दो माह पहले जब दीदी उनके द्वार पर आईं थीं तब गर्विता को यह उनकी आवश्यकता समझ आई थी। तब उसे उनका आगमन पसंद नहीं आया था। इन दो माहों के बीच, उसे कम्पलीट रेस्ट एडवाइस किया गया था। दीदी ने जिस मनोयोग और अपनापन से उसकी आवश्यकता को निभाया था। दीदी का यह अपनापन अब उसे अत्यंत भा रहा था।
यह उसे स्पष्ट लग रहा था कि ‘कोई एक ही मनुष्य’ दूसरे को तब अच्छा लगता है जब वह उसे सुख पहुँचाता है। जैसे ही ‘वह’ दूसरे से अपने सुख की अपेक्षा करने लगता है वह दूसरे को भार प्रतीत होने लगता है। आज जब सामने गर्भावस्था के दिन चढ़ते जाने हैं तथा कल जब प्रश्न उसके प्रसव और नवजात सहित स्वयं उसकी (जच्चा की) देखरेख का दिखाई पड़ रहा है तब वही दीदी, उसे देवी लग रही हैं जो किसी दिन उसे एक शरणार्थी सी लगीं थीं।
गर्विता सोचने लगी कि काश! वह ऐसी स्वार्थी नहीं होती। मन ही मन प्रायश्चित के भाव सहित उसने तय किया, अब जिसमें दीदी की भलाई है वह उस बात को खुशी से मानेगी। फिर गर्विता को नींद लग गई थी।
वास्तव में जिस तरह की घटनाएँ आज हमारे समाज में बहुतायत में देखने सुनने आतीं हैं उसी तरह की एक घटना मेरे (रिया के) साथ हुई थी। किसी पुरुष की छेड़छाड़, बुरी दृष्टि एवं बुरी हरकत की प्रत्यक्ष पीड़िता, मैं मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुई थी। इसी घटना से परोक्ष रूप से पीड़िता, उस बुरे आदमी (नवीन) की पत्नी नेहा थी।
घटना से आहत हुआ स्वाभिमान लिए हुए नेहा, पति का साथ छोड़कर भाई के घर रहने पहुँच गई थी। अर्थात् अनायास ही एक और पक्ष (भाई गौरव का परिवार) इसी एक घटना से प्रभावित हुआ था। यद्यपि मेरे साथ गलत प्रयास करने वाला नवीन खुद भी एक पक्ष था लेकिन वह इससे क्या भुगत रहा है, यह मेरी चिंता का विषय नहीं था। किसी अपराधी को सजा मिले तो उसमें कुछ बुरा नहीं है।
बुरा तो वह होता है जब ऐसी घटना के दुष्प्रभाव, निर्दोष लोगों को भुगतना पड़ते हैं। अगर मेरे पति ऋषभ एक संवेदनशील अच्छे पति नहीं होते तो (प्रत्यक्ष पीड़िता) मैं, सबसे अधिक दुखी परेशान होती। हर पुरुष, नवीन की तरह का गैर जिम्मेदार और बुरा नहीं है।
बहुत से पुरुषों का अच्छा होना, आशाजनक बात है। अब भी ऐसे पुरुष हैं जिनमें अच्छाई का अस्तित्व है। मेरे पति ऋषभ ने मुझे मनोबल और अवलंबन देकर मानसिक वेदनाओं से मुक्त कर दिया था। तथापि उनका प्रयास तो नवीन की पत्नी और उसके परिवार को भी, नवीन के किए के दुष्प्रभाव से बचाने का रहा था। यह जुदा बात थी कि कापुरुष नवीन की पत्नी नेहा, इसके दुष्प्रभाव से बच नहीं पाई थी।
मैं अपने परिवार और विभागीय दायित्व में व्यस्त रहा करती थी।
नेहा का जब से दो माह रहने के लिए अपने भाई के घर जाने का पता चला था तब से मेरे मन में एक बात की प्रतीक्षा, एक जिज्ञासा रहा करती थी। मैं दो माह की अवधि बीत जाने पर नेहा को, अच्छे रूप से बदल गए अपने पति नवीन के साथ फिर मिलकर सुख से जीवन व्यतीत करते देखने की अभिलाषी थी। ऐसे अब, जब यह दो माह की अवधि समाप्त हो रही थी तब नेहा और नवीन के बीच अब क्या चल रहा है, इसे जानने की मुझे उत्सुकता हुई थी।
भाई के घर रहने जाने के समय नेहा से हुई मेरी बात आखिरी रही थी। इस अवधि में उनमें क्या कुछ हुआ है इससे मैं अनजान थी। एक सुबह मैंने नेहा को कॉल लगाया था। नेहा के रिसीव करने पर हम दोनों की ओर से सामान्य शाब्दिक शिष्टाचार का आदान प्रदान हुआ था। फिर मैंने पूछा -
नेहा तुम्हारे द्वारा नवीन को अच्छे परिवर्तन के लिए दी गई, दो माह की अवधि पूर्ण होने वाली है। तुम्हें इसमें अपेक्षित, कुछ आशाजनक परिणाम आता दिखाई दिया है या नहीं? क्या तुम्हारे पति नवीन, तुम्हें घर वापस ले जाने के लिए आने वाले हैं ?
दूसरी ओर से पहले नेहा की गहरी श्वास - उच्छ्वास लेने की ध्वनि सुनाई दी थी। फिर नेहा ने कहना आरंभ किया था।