Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Tragedy

काश! काश! 0.10...

काश! काश! 0.10...

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समय बीतता जा रहा था। नेहा का इंटरव्यू हुआ था। फिर वह, गर्विता की  स्नेह-दुलार एवं समर्पित भाव से देखरेख और साथ देने में व्यस्त रही थी। 

वास्तव में कभी कभी ही जीवन में ऐसे अवसर आते हैं जब खुद का ‘किसी का अपना होना’ सिद्ध किया जा सकता है। नेहा को यह अवसर मिला था और उसने चूक नहीं करते हुए सिद्ध किया था कि वह गर्विता की अपनी ही है। 

किसी और के लिए ऐसा सिद्ध करना कदाचित् कठिन हो सकता था मगर नेहा जिसने अपनी कम वय से ही अपनी कमजोर माँ की सेवा सुश्रुषा की थी, के लिए यह कठिन नहीं था। 

माँ के नरम गरम रहे स्वास्थ्य के बीच नेहा, पापा-माँ के लिए बेटी क्या होती है, छोटे भाई की दीदी क्या होती है, इसे कम उम्र में ही सिद्ध करते हुए निभा चुकी थी। अब नेहा ने यह भी सिद्ध कर दिया था कि वह, गर्विता की वैसी ननद नहीं है, जिसे कोई भाभी पसंद नहीं कर पाती है। 

गर्विता के पूर्ण विश्राम की एक महीने की अवधि के तीन दिन पूर्व, नेहा का लैब अटेंडेंट पद के लिए नियुक्ति पत्र आया था। उसे, नौकरी पर उपस्थिति दस दिन बाद देनी थी। 

यह संयोग था कि नौकरी पर उपस्थिति के दो दिन पूर्व, नवीन के लिए निर्धारित दो माह का समय खत्म हो रहा था। इस दिन से नवीन को, बच्चों एवं नेहा के वापस साथ के लिए लिवा ले जाने की अनुमति थी। नियुक्ति पत्र हाथ में लेकर उसके मन में संशय जन्मा था कि नवीन ने अपने कृत्य का पश्चाताप किया था भी या नहीं! वह दो माह होते ही लिवाने आएगा भी या नहीं। 

इस संशय का कारण यह था कि पचास से अधिक दिन हो जाने पर भी, नवीन ने कॉल करके बच्चों और उसकी सुध लेने का कोई प्रयास नहीं किया था। नेहा सोच रही थी कि अगर वह नहीं आया तो, उसका तथा उसके बच्चों का क्या होगा। 

इन दिनों में, आज पहली बार नेहा यह सोचने को विवश हुई थी कि कहीं उसकी प्रतिक्रिया और सबक देने का ढंग ज्यादा कड़क तो नहीं था। यह नवीन पर कारगर साबित हुआ है या नहीं! या इससे नवीन के चरित्र में बुराई ने और अधिक स्थान तो नहीं कर लिया है?

गर्विता की पूर्ण विश्राम की अवधि पूरी होने के बाद डॉक्टर ने पुनः सोनोग्रॉफी की थी। गर्भ की स्थिति संतोषजनक हो जाने पर गर्विता भी आज गौरव के साथ ऑफिस गई थी। बच्चे स्कूल गए हुए थे। तब नेहा को मोबाइल पर आते कॉल की रिंग सुनाई दी थी। नेहा के मोबाइल पर कॉल कम ही आते हैं, ऐसे में उसे लगा हो ना हो यह कॉल नवीन का है। 

नेहा ने जाकर मोबाइल देखा था। कॉल नवीन का नहीं था। कॉल किसी अननोन नं. से था। ट्रू कॉलर उसमें सिर्फ मप्र बता रहा था। नवीन का कॉल नहीं है, यह देखकर उसे रिप्लाई करने में कोई रुचि नहीं थी। फिर भी उसने कॉल रिसीव कर लिया था। दूसरे तरफ से किसी महिला की आवाज सुनाई दी थी जो पुष्टि करने के स्वर में पूछ रही थी - "तुम नेहा ही हो ना?" 

नेहा ने उत्तर दिया - "हाँ, मैं नेहा बोल रही हूँ। आप कौन बोल रही हैं?"

उस महिला ने कहा - "मैं तुम्हारे पड़ोस में रहने वाली, तुम्हारी एक हितैषी बोल रही हूँ। तुम अपने दुष्कर्मी पति को छोड़कर, कहाँ चली गई हो? तुम्हारे नहीं होने पर नवीन ने यहाँ व्यभिचार मचा कर, हम पास पड़ोस में रहने वाले लोगों का जीना हराम कर रखा है।"

यह सुनते हुए नेहा के दिमाग में खतरे की घंटियां बजती सुनाई दीं थीं। उसने चिंता में पड़कर पूछा - "क्या किया है नवीन ने, जो आप ऐसा कह रही हैं? "

महिला ने कहा - "अरे तुम नहीं जानती क्या? जब चाहे जब उसके यार दोस्त, घर में ड्रिंक्स पार्टी किया करते हैं। अभी कुछ दिनों से नवीन, रात में कॉलगर्ल्स को भी बुलाने लगा है। कल रात पुलिस भी आई थी। यह सब देखकर हमारे मर्द, बच्चों पर क्या असर पड़ेगा, जरा भी नहीं सोचता है, वह! तुम जल्दी लौटकर आओ। काबू में करो उसको नहीं तो तुम और नवीन को आगे बहुत पछताना पड़ेगा।"

इतना बता कर उस महिला ने कॉल काट दिया था। नेहा दीवार से टिक कर बात कर रही थी। कॉल खत्म होते ही नेहा के घुटने मुड़ गए थे। वह सिर पकड़कर, वहीं धरती पर बैठ गई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। 

उसने गौरव के ऑफिस से लौटने की प्रतीक्षा करना उचित समझा था। दोपहर बाद पहले बच्चे स्कूल से लौटे थे। शाम को गौरव-गर्विता आए थे। 

नेहा ने गर्विता के गर्भ के दिनों का विचार कर, उसके सामने इस की चर्चा ठीक नहीं समझी थी। वह गौरव के अकेले में होने का इंतजार कर रही थी। रात में गौरव घर के बाहर जाते दिखा तो नेहा ने पूछा - "गौरव कहाँ जा रहे हो?"

गौरव ने कहा - "दीदी, पास की स्टोर्स तक जा रहा हूँ। कुछ लाना है क्या वहाँ से?" 

 नेहा ने कहा - "चलो मैं ही तुम्हारे साथ चली चलती हूँ। "

नेहा ने साथ चलते हुए गौरव को, महिला की बताई सारी बात कह सुनाई थी। सुनकर गौरव भी चिंता में पड़ गया था। 

नेहा ने कहा - "गर्विता ने किसी दिन सही कहा था। मैंने नवीन की छोटी भूल का कड़ा सबक देकर उचित नहीं किया है। काश! में अच्छी पत्नी बन पाई होती।"

गौरव ने दीदी को ढाढ़स देते हुए कहा - "दीदी, आपने कुछ भी गलत नहीं किया है। आप जिस भी भूमिका में होती हैं, उसे अच्छे से निभाती हैं। एक दो दिन में मैं, नवीन जीजू से मिलने जाऊँगा। वास्तविकता क्या है, यह उनसे आमने-सामने बैठकर बात करने पर पता चल पाएगी। अभी आप और मैं किसी से कुछ नहीं कहेंगे।" 

नेहा की चिंता कम नहीं हुई थी तब भी उसने, कुछ नहीं कहा था। स्टोर्स से उसने चॉकलेट्स खरीदी थीं। घर लौटकर, गर्विता, गौरव और बच्चों को चॉकलेट्स खिलाते हुए कहा था - 

आज यह चॉकलेट्स पार्टी, मेरी जॉब लगने की ख़ुशी में।

गर्विता ने प्यार से नेहा के गालों पर चुंबन लिया था। ऐसा ही देखा देखी में उसके दोनों बच्चों ने भी किया था …  


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