काबलियत
काबलियत
"काबलियत तो इंसान में है,
इतनी कि जन्नत भी झुका दे,
एक बार पहचान ले खुद को
तो पूरी दूनिया को हिला दे"।
क्या आपने कभी खुद की पहचान कि है कि मैं कौन हुं,
क्या मैं एक पिता, पति, मित्र, मुसाफिर डाक्टर या मरीज हूं अगर नहीं तो यह जो आपको विभिन्न नाम दिए गए हैं उनमे से आप क्या हैं
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या किसी ने भी कभी खुद से पूछा है आपने बारे में,
मेरा मानना है अपने बारे में पूछने की कोशीश बहुत कम लोग करते हैं क्योंकी इंसान जो कार्य करता है उसको उसी कार्य के मुताबिक नाम दिया जाता है और वो उसी में खुश होकर संतुष्ट हो जाता है,
मेरे मुताबिक सच्चाई तो यह है एक पुत्र के आधार से हम पिता और पत्नि के आधार से पति अगर सफर कर रहें हैं तो हम एक मुसाफिर के रूप में हैं,
यानि हमारी सभी पहचानें दुसरों के कहने पर आधारित हैं तो फिर हम स्वंय कौन हैं यह हम ने कभी भी सोचने की कोशिश नहीं की,
देखा जाए जीवन के सभी दुख स्वंय को नहीं पहचानने के कारण हैं हमें अपने सच्चे स्वरूप को पहचाने की जरूरत है,
तो मेरा मानना है मैं स्वंय एक शास्भत आत्मा हुं जो एक परमात्मा का ही एक अंश है
तो में यहा़ं पर एक आत्मा के रूप में मनुष्य का रूप धारण करके आया हूं मैं क्यूं आया हूं मैने क्या करना है मेरा कर्तव्य क्या है यह मेरी आत्मा पर निर्भर करता है कि मैं किसी दुसरी आत्मा की क्या मदद कर सकता हूं या नुक्सान दे सकता हूं लेकिन मैं एक आत्मा हूं जो परमात्मा का ही एक अंश है पर लोग मुझे अलग अलग नामों से पुकारते हैं, मेरे ख्याल में हम मनुष्य एक दिन में कई भावनाओं को अनुभव करते हैं और अपनी पहचान अलग अलग नामों से करबाते हैं,
देखा जाए हम आत्मा के रूप में एक समझदार मनुष्य रूपी चौला पहन कर अच्छे कार्य करने के लिए इस दूनिया में आए हैं कि यहां कि वभिन्न आत्माओं को सुख पहुंचाकर वापिस परमात्मा के साथ जुड़ जांए और वहां जाकर फिर अपने कर्मों के मुताबिक हमें नई आत्मा किसी दुसरे रूप में भी मिल सकती है और हम, उसी रूप के नाम से पहचाने जाते हैं,
अन्त में यही कहुंगा कि अगर हम अपने खुद के बारे में अनुमान लगाएं तो हम एक परमात्मा रूपी एक अंश हैं जिनको सृष्टी में भला कार्य करने के लिए भेजा गया है लेकिन इधर आकर इंसान सही रास्ता भटक कर अपनी अलग अलग पहचान बनाये बैठा है,
सच कहा है,
पहचान पाने की खातिर पूरा जीवन लगा दिया
चंद रूपयों के लालच मैं ईमान दांव पर लगा दिया।
हमें चाहिए,
लफ्ज मेरी पहचान बनें तो बेहतर है,
चेहरे का क्या वो तो साथ
चला जाएगा।