जुन्हाई
जुन्हाई
आज चांदनी को अपना पहला प्यार जाहिर करना था । सजते सँवरते हुए वह दिवाकर के साथ होने वाले लम्हें के बारे में सोचने लगी। अपने चेहरे के निशान और जिंदगी की बेबसी को छुआ तो मन हाँ ना के सवालों में घिरने लगा, लेकिन फिर भी एक छोटी उम्मीद के साथ उसने दिवाकर से मिलने की ठान ही ली थी। बड़े प्रेम से बनाई हुई, अपने अरमानों से भरी खीर को एक डिब्बे में बंद करके, कुछ चंद सिक्के और पैसों को बटुए में तह करके राजपुर के लिए निकल पड़ी।
रिक्शे में बैठे-बैठे एक आखरी बार उस खत को खोला जिसमें दिवाकर ने उसे राजपुर के सिंह चौक पर मिलने के लिए कहा था। उसे नहीं मालूम था कि दिवाकर कैसा दिखता है लेकिन कई दिनों से अपने जेहन में चल रही उथल पुथल को वह जाहिर करना चाहती थी। रिक्शे वाले ने राजपुर के सिंह चौक पर चांदनी को उतार दिया। काफी देर तक वहां पर खड़े होने के बाद इधर-उधर दूर पास कहीं भी दिवाकर का नामोनिशान नहीं था। होता भी कैसे? इससे पहले दोनों ने एक दूसरे को कभी देखा भी नहीं था । मगर आसपास कि हलचल में चांदनी मन ही मन खुश भी थी । शायद कई अरसे के बाद उसके चेहरे पर इतनी खुशी दिखी। दरअसल, अपनी मां की मृत्यु के बाद घर की सीढ़ी एका एक गिरने से चांदनी दुनिया से कहीं दूर हो गई थी और अपने शराबी बाप के नापाक़ हरकतों ने उसे अंदर ही अंदर घोट दिया था। परंतु एक दिन अचानक मिला खत ,उसे जीवन की कड़वाहट से धीरे धीरे दूर ले गया और इस बार वह नई जिंदगी को दस्तक देने जा रही थी।
काफी वक्त हो चुका था। दोपहर से शाम हो चुकी थी। लेकिन चांदनी की निगाह अभी भी खोज में थी। तभी सामने से काफी देर से देख रहा एक युवक उसके करीब आता है।
" लगता है आप किसी के इंतजार में हैं। बहुत देर हो चुकी है आप यहां से गये भी नहीं।"
" नहीं... अममम्...जी हाँ। यहां मेरे दोस्त आने वाले थे।"
" आने वाले थे! लगता है कोई अजीज है।"
" नहीं ऐसी बात नहीं है।"
चांदनी थोड़ा शर्मा जाती है और कुछ हट कर खड़ी हो जाती है।
" वैसे ज्यादा देर हो चुकी है, आपके पास उनका नंबर हो तो फोन कर लो।"
"अ... नहीं मेरे पास उनका कोई नंबर नहीं है।"
" क्या आपने उन्हें कभी देखा भी है?"( हंसते हुए)
"नहीं देखा तो नहीं ।"
"तो फिर दोस्ती कैसे हो गयी?"
खत के जरिए "
"क्या! देखिए इसे जमाने में खत की बात ना करें।"
" जी ये सच है"
" अच्छा। तो बिना एक दूसरे को देखे यह खत का आदान प्रदान कैसे हुआ जी।"
चांदनी थोड़ा हिचकने लगती है। वह उस अजनबी से दूर हट जाती है । वह अपने कुछ बातों को निजी रख लेती है और चुप हो जाती है।
" चलो ठीक है। मेरे लिए यह समझना थोड़ा अजीब है, लेकिन क्या मैं एक बात पूछ सकता हूं; अगर आपको बुरा ना लगे, यह आपके चेहरे पर ज़ख्म कैसा है?"
" अ..नहीं.. अ।"
चांदनी अपने निशान को छुपाने लगती है। उसके चेहरे का घाव उसके अतीत को सामने लाने की कोशिश करता है, इससे पहले कि वह अजनबी उससे और कुछ पूछता चांदनी वहां से चलने के लिए इजाजत लेती है ।
"अरे रुकिए वैसे अभी थोड़ी देर में अंधेरा हो जाएगा और मैं भी आगे तक ही जा रहा हूं अगर आप बुरा ना माने तो क्या मैं आपको लिफ्ट दे सकता हूं।"
चांदनी धीरे से ना करती है और वहाँ से चली जाती है। अगली सुबह बीते दिन की थकान और दिवाकर से ना मिलने की निराशा के साथ चांदनी उठती है तो एक के बाद दूसरा डौरबेल सुनाई पड़ता है। चांदनी उठकर दरवाजा खोलती है तो सामने कोई नहीं रहता । वह समझ जाती है । वह डोर मेट उठाती है तो एक लिफाफा वहां पड़ा रहता है । चांदनी उसे उठाकर खोलती है तो उसमें दिवाकर का खत मिलता है। वह धीरे धीरे मन ही मन पढ़ने लगती है।
" चांदनी वक्त के साथ सब कुछ बदला लेकिन हमारा एक दूसरे पर भरोसा और एक दूसरे का ख्याल करना कभी नहीं बदला। उस ढलते सूरज और उभरते चांद में तुम्हारा साथ, उस भीड़ भाड़ रास्ते और चलती हुई गाड़ियों के शोर में, तुम्हारी बात का हर एक शब्द याद है। तुम्हें पहली बार देखा, सुना और करीब भी आया । यकीनन तुम भी मुझे पहचान पाती। तुम्हारा वो दाग तुम्हारी खूबसूरती को और सामने लाता है।फिर कभी मिलना तो उस दाग को छुपाना मत। मुझे तुम्हारा प्यार मंजूर है। तुम्हारा दिवाकर।"
चांदनी मन ही मन खुश होती है। उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कराहट फेल जाती है, और फिर बीते दिन के मलाल में वो बंद पड़ा डिब्बा अपने इक़रार से फिर खुल जाता है।