Harish Sharma

Tragedy

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Harish Sharma

Tragedy

जिंदगी का रोज़नामचा

जिंदगी का रोज़नामचा

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रात के आठ बज चुके हैं । वो अपने छत वाले कमरे में टहल रहा है । कितनी आवाजें,कितने संवाद,कितने सुख दुख के विचार जैसे उसके भीतर कौंध रहे हैं कमरे की खिड़की पर पर्दा टँगा है । वो पर्दा हटाकर सामने दिखते शहर के फ्लाईओवर पर आती जाती गाड़ियों को देखता है । गाड़ियों की आवाजों के बीच एक एम्बुलेंस के सायरन की आवाज बिल्कुल स्पष्ट सुनाई देती है ।

"शायद उसकी डेड बॉडी घर ले रहे हों । ओह कितना दुखद है ये सब । अभी चालीस की उम्र भी नही हुई । बच्चे छोटे हैं । क्या वाकई ईश्वर इतना निर्दयी हो सकता है । कैसे झेल पायेगा परिवार ये दुख । ....क्या वाकई हम सब के जीवन में इतनी अनिश्चितताएं हैं,निश्चितता केवल एक छल है । ...बस ये समय भी क्रूरता के साथ गुजर जाएगा । हां... समय.. । समय किसी की परवाह कब करता है । " उसने जैसे किसी आभासी व्यक्ति से कहा हो । उसके सिवा वहाँ था ही कौन??

आज शाम को बाजार में जब वो एटीएम से पैसे निकाल रहा था और उसके दिमाग मे महीने के पहले चुकाए जाने वाले बिलों का हिसाब किताब नाच रहा था तभी उसके मोबाइल की कॉलर ट्यून बजी । अभी हाल ही में एक पॉपुलर वेब सीरीज में बजते म्यूज़िक की धुन उसने कॉलर ट्यून सेट की थी । आस पास के लोग भी उस ट्यून को सुनकर जैसे मुस्कुराए थे । जैसे कह रहे हो ,पता है पता है तुम भी इस वेब सीरीज के दीवाने हो ।

उसने मोबाइल स्क्रीन पर परिचित मित्र का नाम देखा और काल लेकर बात करने लगा । "और भाई क्या हाल चाल हैं ?" उसने पूछा । "अपने हाल तो ठीक है पर एक दुखद खबर है ,यार अपना शशि नही रहा ।"

उसे सुनकर जैसे आश्चर्य हुआ हो या खबर के मुताबिक उसने रिएक्ट किया हो,इसके बारे में कहना मुश्किल है । वास्तव में हम परिस्थिति के अनुसार रिएक्ट करने के अभ्यस्त हो चुके होते हैं,इसलिए पता ही नही चलता कि हम दुख या सुख का आभास हृदय से करते हैं या लोकलाज के तहत अभिनय करते हैं । स्वाभाविक है कि ऐसी खबर सुनकर आदमी दुख प्रकट करता है या उसे वाकई दुख महसूस हुआ वो इसका अभिनय करता है ।

"अभी शशि की एक पड़ोसी महिला मेरी पत्नी को बाजार में मिली थी ,उसी ने बताया । शशि की पड़ोसन और मेरी पत्नी एक ही स्कूल में पढ़ाती हैं । उसने मुझे घर आकर खबर थी । मुझे ये तो पता था कि पिछले पन्द्रह दिनों से वो वेंटिलेटर पर था आई सी यूं में । मैंने तो उसी दिन भगवान से प्रार्थना की थी कि भगवान वो जल्द ही स्वस्थ होकर घर वापिस लौटे । पहले एक्सीडेंट में ही कितना कुछ झेल चुका है । बड़ी मुश्किल से रिकवरी हुई थी एक साल में । अब थोड़ी लाइफ सेट हुई तो फिर पुरानी चोट के कारण हृदय गति की समस्या पैदा हो गई ।"

वह पूरी तरह से हैरानी प्रकट करता हुआ ' ओह नो,बहुत दुखद' कहता हुआ शशि की मौत का समाचार सुनता रहा । शशि के कितने ही चित्र,उसकी बातें,आवाज और उसकी मुद्राएं उसके दिमाग मे कौंधती रही ।

"समय का कोई पता ही नही चलता,खैर हम सिर्फ अफसोस करने के शिव कर ही क्या सकते हैं । जीवन का यह खेल हमारी योजनाओं की परिधि से हमेशा बाहर ही रहता है । अच्छा अभी डेड बॉडी तो घर पहुंची नही होगी,उसके लिए भी फॉर्मेलिटीज होती है ,हस्पतालों का अपना हिसाब किताब है,खैर अंतिम क्रिया की कोई सूचना मिली तो चलते हैं ।" कह कर उसने फोन काट दिया । कितनी ही गाड़ियां सामने सड़क पर से लगातार आती जाती गुजर रही थी ।

दुनिया को किसी की मौत से क्या फर्क पड़ता है । बाजार की इस भीड़ में उसके दिमाग मे क्या चल रहा है,इससे किसी को क्या लेना देना । उसी तरह जैसे भीड़ में आते जाते कितने ही इंसानों के दिमाग मे क्या चल रहा है,इसका उससे कोई लेना देना नही । रोजाना कितने लोग पैदा होते है और मर जाते हैं,दुनिया यूँही चलती रहती है । जैसे कोई खेल चल रहा हो जो हार गया वो खेल से बाहर ,मतलब उसका गेम ओवर ।

अभी पिछले महीने जब उसके ससुर को अचानक सांस लेने में तकलीफ हुई तो रात के नौ बजे थे । शहर के अस्पताल में दिखाया तो सौ किलोमीटर दूर एक बड़े सुपर स्पेशलिटी हस्पताल में रेफर कर दिया । एम्बुलेंस में आक्सीजन लगाकर और कुछ एहतियात के इंजेक्शन देकर आनन फानन में बड़े हस्पताल जाना पड़ा । हस्पताल पहुंचते ही थोड़े चेकअप के बाद पैंतीस हजार रुपये भरने के लिए रिसेप्शन से फार्म मिल गया । किसी न किसी तरह पैसों का जुगाड़ हुआ ,इलाज शुरू हो गया । आदमी को बचाने की खातिर एक बार तो सब हर कठिनाई को शहन कर लेते हैं । हस्पताल वालों को भी शायद कई बार आदमी की इसी कमजोरी के चलते पैसा बटोरने का अवसर सूझता हो । पर ऐसे समय मे हस्पताल के डॉक्टर भगवान से कम भी कहाँ होते हैं ।

डेढ़ घण्टा ही बीता था कि समाचार मिला कि ससुर जी नही रहे । इस दुख के अवसाद को संभालते हुए डेड बॉडी लेने की बात हुई तो हस्पताल प्रशासन ने पचास हजार और मांग लिए ।

"पचास हजार किस बात के,अभी पैंतीस हजार तो पहले ही भरवा चुके हैं ।" शायद पत्नी के चाचा ने कहा था । रिसेप्शन पर पूछा तो नर्स ने बिल दिखाते हुए कहा कि मरीज को बचाने के लिए कुछ स्पेशन इंजेक्शन लगाने पड़े । पर अफसोस कि मरीज नही बच सका । इंजेक्शन बहुत महंगे थे,उसी का पचास हजार और बिल में जुड़ गया ।

आनन फानन में एक दो रिश्तेदारों को फोन किया तो पैसे आते आते दो घण्टे बीत गए । खैर बिल चुका दिया गया । अब नया टंटा खड़ा हो गया कि पहले पुलिस रिपोर्ट होगी कि मरीज की मौत अस्पताल में हुई है,पोस्टमॉर्टम जरूरी है । इसलिए पुलिस कार्यवाही होने के बाद ही बॉडी मिलेगी ।

मेरा दिमाग भन्ना गया हो जैसे । ये कैसे हृदयहीन लोग हैं,मरने के बाद भी उसके शव पर ऐसा ओछापन । मरता क्या न करता । पुलिस वाले आये तो उन्हें एक साइड में लेजाकर उन्हें समझाने की कोशिश की कि हम पोस्टमार्टम करवाना ही नही चाहते । पुलिस वालों को अपने रजिस्टर भरने होते हैं,कि जी नियम कानून हैं ,हम ऐसे कैसे बिना पोस्मॉर्टम के शव ले जाने दें ।

खैर मैंने पांच हजार और उन्हें चुपके से थमाया तो सारी फार्मेलिटी झट से पूरी हो गई । नियम कानून पूरे हो गए और तब जाकर ससुर के साबुत शव को घर लाकर अग्नि नसीब करवा सके । उसके दिमाग मे जैसे पूरी फिलम घूम गई हो ।

"कितनी बार सोचा है कि हेल्थ पालिसी लेकर रखूं । भगवान न करें कहीं ऐसी समस्या आ जाय तो कैशलेस की सुविधा तो हस्पताल में मिलें । एक दम से पैसा जुटाना कौन आसान बात है । साधारण आदमी के जीवन का तो कोई मूल्य ही नही । अचानक मर न जाये,अचानक गम्भीर बीमारी से पीड़ित न हो जाय,इसी बात का भय तो आदमी को डराता रहता है और इसी डर के चलते वो बीमा कंपनियों की शरण लेने मजबूर होता है । मतलब ठीक ठाक रहते हुए भी वो एक अनिश्चित परिस्थिति का सामना करने के लिए मूल्य चुकता रहता है । क्या शशि ने भी ऐसा कुछ इंतजाम किया होगा?

जैसे उसकी स्मृति फिर उसे वापिस अपने कमरे में ले आई ।

बड़ा जीवंत युवा था शशि । हंसमुख,अपने काम मे निपुण । जब तक पक्की नौकरी नही मिली, हर छोटी बड़ी कम्पनी में पूरे तन मन से जुटा रहा । फेसबुक पर भी हमेशा पॉजिटिव । जब ऐक्सिडेंट में उसकी किडनी डेमेज हो गई और अंदरूनी इंफेक्शन के कारण उसका लीवर भी क्रिटिकल कंडीशन में हो गया तो उसे तीन चार महीने अस्पताल में रहना पड़ा । पूरा एक साल दवा चली । दिल्ली के बड़े अस्पताल में इलाज हुआ । पच्चीस लाख का खर्च । उसकी पत्नी ने कोई कसर नही छोड़ी । घर गिरवी रख दिया । दोनों का प्रेम विवाह था । दोनों जीवन के हर सुख दुख में कंधे से कंधा मिलाकर डटे रहे । शशि की पत्नी ने भी प्राइवेट स्कूल में नौकरी की,ट्यूशन पढ़ाई,पर कभी अपने जीवन की किसी मुसीबत के आगे हार नही मानी । जैसे वो अपने पति को मौत के मुंह से छीन लाई हो । जब शशि स्वस्थ होकर घर लौटा तो उसने जैसे नई ऊर्जा के साथ दोबारा काम शुरु किया । बैंक की परीक्षा क्लीयर कर असिस्टेंट मैनेजर हो गया । जीवन मे खुशियां जैसे दोबारा खिल गई हो । पुराना घर बेच दिया । किराए के घर मे कुछ देर रहकर दोबारा एक नया मकान लोन लेकर खरीद लिया । हो सकता है कि उसका शरीर पहले से कमजोर दिखता हो पर जिंदगी जीने के मामले में वो आगे से अधिक मजबूत लग रहा था


तीन साल बीत चुके थे,सब कुछ ठीक ठाक था । जिंदगी पूरी तरह पटरी पर आ चुकी थी । बच्चे खुश थे,सोशल मीडिया पर परिवार की हर सेलिब्रेशन चमक दमक रही थी । लोग बाग मिसाल देते थे कि जिंदगी में संघर्ष का जज्बा किसी से सीखना हो तो कोई शशि से सीखे । शशि की पत्नी ने अब अकैडमी खोल ली थी । अच्छी ट्यूशन मिल रही थी । शहर के बड़े प्राइवेट स्कूल में उसे वाइस प्रिंसिपल का पद ऑफर हुआ था पर वो केवल अपने विषय को पढ़ने में ही आनन्द महसूस करती थी ।

शशि जब भी आते जाते मिलता,हमेशा मुस्कुरा कर मिलता । लगता ही नही था कि ये आदमी मौत से लड़कर लौटा है । एक मध्यवर्गीय आदमी अपने पूरे जीवन मे जितना कमाता है,उतना तो ये एक एक्सीडेंट के इलाज में ही गवा बैठा पर चेहरे पर कोई शिकन नही । वाकई जिंदगी में सबसे कीमती जिंदगी होती है,वो सलामत रहे तो सब कुछ बच जाता है । और अभी उम्र ही कट थी । सिर्फ पैंतीस साल ।

किसी ने कहा है कि जब सुबह होती है तो अंधेरा मिट जाता है पर शाम होते गई वो अंधेरा फिर लौटता है । वास्तव में सुबह हमेशा अंधेरे के घेरे में रहती है और अंधेरा ही वास्तविकता है,वो कभी कही नही जाता । जैसे व्यक्ति की मृत्यु उसके जन्म के साथ ही निश्चित होती है,सदा साथ साथ परछाई की तरह चलती है । इंसान दुनियादारी के चक्कर मे उसे भूल जाता है । पर भूलने से चीजे मिटती तो नहीं । वो कहीं न कही,किसी अंधेरे कोने में ताक लगाकर बैठी रहती है और समय आने पर झपट्टा मारकर दायरे में आने वाले शरीर को दबोच लेती हैं ।

शशि के साथ भी ऐसा ही हुआ,उसके पुराने जख्म जो शरीर के कही गहरे भीतर बैठे ठीक होने का अभिनय कर रहे थे ,दोबारा जीवंत हो गए । शशि को खाने पीने और सांस लेने में तकलीफ शुरू हो गई । इलाज के लिए लोकल डॉक्टर को दिखाया तो उसने हफ्ता दवा देकर देखा,जब हालात नही सुधरे तो हर लोकल डॉक्टर की तरह बड़े हस्पताल के लिए सलाह दे दी । बस फिर वही हुआ .... कुछ दिन इलाज चला और फिर शशि को वेंटिलेटर पर रख दिया गया । पिछले दस दिन से वो वेंटिलेटर पर था । जिंदगी पीछे छूट रही थी,हस्पताल का बिल आगे बढ़ रहा था । पर इस बार पक्की नौकरी के कारण मिला मेडिकल बीमा हस्पताल वालो के लिए एक अवसर था और शशि की घरवाली के लिए एक उम्मीद । आखिरकार उम्मीद टूट गई ।

अब जब उसे सूचना मिली तो वो जाने कितने सोच विचार करता हुआ इस बात के बारे में सोच रहा था कि आखिर आदमी किस उम्मीद से जीता है । किस बात को लेकर निश्चिंत रह सकता है । क्या केवल ये सारे आभास भी क्षण भंगुर है ????......... समय बीतता है तो फिर वापस उसी तरह अपने जीवन मे ,उसकी जिम्मेवारियीं में अनिश्चितता को परे रखकर जीने लगते हैं ।



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