जिम्मेदारी और कर्तव्य की जंग..
जिम्मेदारी और कर्तव्य की जंग..
सुहानी कहा हो। इधर आओ "कुसुम बहुत ही गुस्से में अपनी बेटी सुहानी को आवाज दे रही थी।
"क्या हुआ मां, इतने गुस्से में क्यों हो आप "सुहानी अपनी मां से पुछती है।
"कितनी बार कहा है घर से बाहर मत जाओ घर में रहो। तेरी शादी है वो भी 20दिन में। और ये जीन्स पहना बंद कर। शादी वाला घर तेरे ससुराल से कोई ना आते जाते रहता है। और इस तरह घर से बाहर मत जा। और जीन्स नहीं सूट पहन कर रह। बेटा शादी में हर छोटी-बड़ी बात का ख्याल रखना ज़रूरी है। तेरी सासु मां फोन की बहुत गुस्से में थी। कह रही थी उनके किसी रिश्तेदार ने तुम्हें बाजार में दोस्तों के साथ देखा था वहीं कह रही थी। बोल रही थी...अब शादी होने को सलीके से रहे और सलीके से कपड़े पहने। बाहर ज्यादा जाने की। जरूरत नहीं है।
"पर मां मैंने ऐसा क्या कर दिया। जो वो ऐसे बात कर रही है। और ये क्या था सलीके से रहने और सलीके से कपड़े पहने। कहना क्या चाह रही थी। जीन्स पहनी थी इसलिए। पर हितेन को कोई एतराज नहीं है। उन्होंने कभी भी मुझे ऐसे नही कहा।" सुहानी अपनी मां को कहती हैं।
कुसुम "पर बेटा हितेन के घर वालों को ये सब पसंद नहीं है। बात समझा कर शादी को अब 20दिन ही बाकी है और मैं नहीं चाहती की हितेन के घर वाले तुझसे नाराज़ हो।" एक मां का डर उनकी बातों में दिख रहा था।
सुहानी "पर मां उसके घर वाले नाराज़ क्यों होंगे?? मैंने कोई छोटे कपड़े थोड़े ही पहनें। आपको तो पता है ना मुझे हर तरह के कपड़े पहना पसंद है। और हाँ आपकी बेटी इतनी भी बेपरवाह नहीं है की कब, कहां, कैसे क्या पहना, क्या बोलना है सब की समझ है। इसलिए अब आप परेशान मत हो।" अपनी मां को सुहानी एक प्यार भरी झपी देती है और दोनों मुस्कुराने लगती है।
"क्या बात है आज मां बेटी में बड़ा प्यारा आ रहा है।" आलोक अपनी पत्नी कुसुम और बेटी सुहानी को कहते हैं।
सुहानी "पापा मां को अब आप ही समझाओ की ज्यादा परेशान ना हों मेरी शादी को लेकर।"
कुसुम "परेशान कैसे ना हूँ, हितेन की मां को देख कर लगता है कि वो सुहानी से ज्यादा खुश नहीं हैं। सगाई वाले दिन क्या हुआ था याद है ना। रिश्ता तोड़ने तक की नौबत आ गई थी। वो तो भला हो हितेन और उसके पापा का जो उन्होंने सही समय पर सब कुछ संभला लिया।"
सुहानी "पर मां उस दिन जो कुछ भी हुआ उसमें गलती उनकी थी। उन लोगों को सब कुछ पता था ना शादी तय करने से पहले की ।मैं शादी एक ही शर्त पर करूंगी की शादी के बाद मैं अपनी नौकरी नहीं छोड़ोगी और ना ही अपने माता पिता की जिम्मेदारी। जो अभी जैसा है, वैसा ही रहेगा। इसमें गलत क्या है। मेरी शादी के बाद आप दोनों अकेले हो जाएंगे। आपकी देखभाल करना मेरी जिम्मेदारी के साथ मेरा कर्तव्य भी है। इसमें गलत क्या है???
कुसुम "पर बेटा शादी के बाद लड़की के लिए उसके रिश्ते और जिम्मेदारी सब के मायने बदल जाते हैं। जानती हूं तेरी शादी के बाद हम दोनों अकेले हो जाएंगे। एक ही संतान है हमारी पर, बेटा लड़की की जिम्मेदारी ससुराल के प्रति होती ना की मायके के प्रति। बात को समझने की कोशिश कर। तेरी जिम्मेदारी और कर्तव्य दोनों ससुराल के प्रति होनी चाहिए।"
सुहानी अपनी मां से कहती हैं "ये बात आपको समझने की जरूरत है। जन्म से लेकर आज तक आप दोनों ने कभी भी मुझे लड़की हो इस बात का अहसास नहीं कराया। हमेशा मुझे यही शिक्षा दी आप दोनों ने की लड़कियां लड़कों से कम नहीं होती। उनमें कोई भेदभाव नहीं तो ।आज अचानक से ये भेदभाव क्यों??? क्यों की मैं लड़की हूं ??? इसलिए माता-पिता की जिम्मेदारी नहीं ले सकती ???? अगर लड़का होती तो आप ये बात नहीं करते ना मां????उस दिन सगाई में जो कुछ भी है। उसमें मेरी गलती नहीं थी। हितेन की मां की गलती थी। उनकी सोच की गलती थी। वो ऐसे कैसे बोल सकती है की शादी के बाद मेरी सारी जिम्मेदारी उनके घर के लिए होगी । मायके से कोई मतलब नहीं?? कोई सरोकार नहीं ?? मायके के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं?? माता पिता के प्रति कोई कर्तव्य नहीं??? शादी के बाद नौकरी नहीं करनी है??? घर की बहू घर के कामों के लिए है ,ना की बाहर जाकर नौकरी करने के लिए। शादी हुई नहीं की सास बनकर सब फरमान जारी कर दिया था उन्होंने। जो की गलत है और मैंने ही सासु मां से कही थी कि शादी के बाद बहू की जो भी जिम्मेदारी होती है उसे में निभाऊंगी, पर बेटी होने के नाते मेरी जो अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य है उसे में छोड़ नहीं सकती ।मैं अपने माता-पिता की एक मात्र संतान हूँ। मेरी शादी के बाद वो दोनों अकेले हो जाएंगे। उनकी देखभाल कौन करेगा...??मैं उन्हें अकेले नहीं छोड़ सकती। जितनी जिम्मेदारी ससुराल के प्रति है । उतनी ही जिम्मेदारी मेरी मायके के प्रति है। उम्र के इस पड़ाव में उन्हें में अकेले नहीं छोड़ सकती।"
सुहानी की बातों को सुनकर आलोक जी अपनी पत्नी से कहते हैं "उस दिन जो कुछ हुआ, सही हुआ। कम से कम हमें ये तो पता चला कि हितेन क्या सोचता है, इन सब के बारे में। जब हितेन शादी के लिए सुहानी को देखने आए थे। तब सुहानी ने ये सब बातें हितेन को कहीं थी। तब हितेन ने बिना संकोच किए हामी भरी थी और उस दिन हितेन ने भी सबके सामने सुहानी की बात का सम्मान किया था और अपनी मां को ये भी समझाया की जब एक बेटे का कर्तव्य अपने माता पिता के प्रति हो सकता है। तो एक बेटी की अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य क्यों नहीं हो सकता?? समय बदल रहा है, अपनी सोच भी बदलिए। समय के साथ जिम्मेदारी और कर्तव्य के मायने एक है। मुझे कोई एतराज नहीं है कि शादी के बाद सुहानी अपने माता-पिता की जिम्मेदारी संभाले बल्कि जिस तरह से सुहानी की जिम्मेदारी ससुराल के प्रति है, उसी तरह मेरी भी जिम्मेदारी मेरे ससुराल के प्रति होनी चाहिए। जब वो मेरे माता-पिता का ख्याल रख सकती है तो मैं क्यों नहीं रख सकता, उसके माता-पिता का ख्याल। हितेन की बातों को सुनकर हितेन के पापा ने उसकी मां को समझाया और मनाया। वो मान भी गई अपने बेटे की खुशी के लिए। हितेन ने हमारी सुहानी को वैसे ही अपनाया है जैसी वो है। इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है एक बेटी के पिता के लिए।
आलोक जी की बातों को सुनकर कुसुम कहती हैं सुहानी को "जो भी अपने ससुराल और मायके का मान बनाये रखना। जैसी है वैसी रह । मुझे नहीं पता था कि मेरी बेटी ने हीरे जैसा दामाद पसंद किया है।
"वो तो है" सुहानी की बातों को सुनकर आलोक जी और कुसुम हंसने लगते हैं।
जिम्मेदारी और कर्तव्य के मायने सब के लिए एक होने चाहिए...ना की अलग-अलग। ससुराल के प्रति जिम्मेदारी तो मायके के प्रति कर्तव्य सिर्फ बेटीयों को नहीं बेटों को भी निभानी चाहिए।
कुछ गलत लिखा हो तो क्षमा चाहूंगी
अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो कृपया कर ज़रुर बताएं
धन्यवाद