जीवन शिखर आरोहण
जीवन शिखर आरोहण
यह तस्वीर मैंने, वृद्ध होने पर कौन हमारी सहायता करेगा, इस प्रश्न के उत्तर के साथ पोस्ट की थी।
आज इस तस्वीर को देखकर मेरे मन में आए विचार के साथ, मैं फिर पोस्ट कर रहा हूँ। मेरे विचार यह हैं -
मैं सहायता का हाथ बढ़ाने वाले के स्थान पर स्वयं अर्थात् एक बूढ़े को देख रहा हूँ। पीछे जो पर्वतारोही है, मैं उसे अपना परिचित/परिजन युवा होना देख रहा हूँ। बड़े होने के कारण एक वृद्ध व्यक्ति जीवन शिखर पर पहले ही पहुँच गया होता है। अब उस शिखर पर बने रहने के लिए उसे कुछ अधिक करने की आवश्यकता नहीं होती है और बूढ़े हो जाने से ना ही उसमें साहस एवं क्षमता होती है, वह उस शिखर से ऊपर के शिखर को खोजे उस पर आरोहण (चढ़ाई) करे।
प्रश्न यह उत्पन्न होता है, जीवन दृश्य/परिदृश्य जब ऐसा हो जाए तो कोई बूढ़ा क्या करे? क्या है उसकी भूमिका?
मुझे इसका उत्तर इस तस्वीर में ही मिलता है। यह हमारे युवा हैं जो हमारे बाद उस शिखर पर आने से एक कदम दूर हैं, जीवन पर्वतारोहण के इस साहसिक प्रयास में, शिखर पर पहुँचते पहुँचते थक के चूर हो रहे हैं। शिखर पर पहले से विराजित, बूढ़े व्यक्ति का अब कर्तव्य होता है, वह अपनी कम हुई शक्ति में भी तस्वीर में दिख रहे, ऊपर वाले व्यक्ति की तरह हाथ बढ़ा कर, युवा पर्वतारोही को शिखर पर कदम रखने की सुविधा दे।
बूढ़ा हाथ नहीं तब भी पूबढ़ाएगारी संभावना है कि युवा शिखर पर पहुँच जाएगा मगर बूढ़े व्यक्ति का यह जेस्चर युवा के लिए यह कार्य सरल और सुनिश्चित कर सकेगा।
कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा होता है। हम बूढ़ों को इतना ही तो अब करना है, हमारी थोड़ी सी दी गई सहायता, युवाओं के लिए इस शिखर पर ही नहीं आगे के शिखरों के आरोहण का साहस, हौंसला प्रदान करता है।
अब मैं इस तस्वीर से अलग परिवार एवं समाज पर आता हूँ। हमारे बेटे, बेटियाँ नित दिन अपने अपने कार्य पर सुबह से निकल कर, शाम या देर रात को घर लौटते हैं। हम घर में रहकर, उनके छोटी छोटी आवश्यकताओं को समझ कर, उतना बस कर देते हैं तो यह उनकी बड़ी सहायता हो जाती है। घर के छोटे छोटे कार्य करना, हमारी रही सही शक्ति में होता है। अपनी शक्ति अनुसार थोड़ा भी कुछ कर देना, हमारे बेटे/बेटियों के लिए, हमारे हृदय में उनके लिए स्नेह/हितैषी का संदेश पहुँचाता है।
हम बूढ़े बहुत जी चुके होते हैं। अब बचा जितना जीवन है, हमें अपने बेटे/बेटियों या युवाओं की वह प्रेरणा होने के लिए लगाना होता है, जिससे युवा बेटे/बेटी उन जीवन शिखरों पर आरोहण को प्रोत्साहित होते हैं, जिन पर हम नहीं पहुँचे होते हैं।
क्या किसी वृद्ध व्यक्ति के लिए, यह देखना सुखद नहीं होता है, जहाँ पहुँचने की अभिलाषा उनकी रही थी, और जहाँ वे स्वयं नहीं पहुँच पाए थे, वहाँ अब उनकी थोड़ी सी सहायता एवं प्रेरणा से उनके बेटे/बेटी पहुंचने में सफल हो रहे होते हैं?