जिद्दी बालक
जिद्दी बालक
आजकल के जमाने में बच्चे कुछ ज्यादा ही जिद्दी ( नाजायज तरीके से अपनी बात मनवाने बाले ) होते जा रहे हैं प्राय : लोगों के आजकल एक दो ही बच्चे होते हैं सो मॉ - बाप भी उनकी हर जायज नाजायज मांग झट से पूरी कर देते हैं चाहे फिर उसका परिणाम कुछ भी हो । एक गाँव जिसका नाम सुमेर था वहाँ एक दम्पति के इकलौता लड़का जिसका नाम कुलवंत था कुलवंत इकलौता बच्चा होने के साथ - साथ मॉ - बाप व परिवार का बहुत ही चहेता बेटा था कुलवंत ने इशारा किया नहीं कि उसकी हर माँग पूरी अब तो वह जिद्दी व किसी की बात न मानने वाला लड़का हो गया था वह जो अपने मन में आता सो वो ही करता था।
एक दिन उसने कहा बापू मुझे ढेर सारी टाफिया दिलाओ बापू ने कहा बेटा सर्दी का मौसम है टाफियॉ ज्यादा खाना नुकसानदेय है वह नहीं माना उसने रो - रोकर अपनी जिद पूरी कराके ढेर सारी टाफियॉ दुकान से बुलाकर खाली । अब कुलवंत को बड़ी ठंड ( निमोनिया ) हो गया।
कुलवंत का बापू उसे शहर के बड़े अस्पताल ले गया जहाँ वह एक महीने तक भर्ती रहा और लाख रूपया इलाज में खर्च हुआ तब जाकर कुलवंत की जान बची । इस घटना से ही कुलवंत ने सीख नहीं ली थी सो कुछ दिन बाद उसने जिद करके बड़ी साइकिल खरीदवा ली बापू ने उसे अच्छी तरह सिखाया और बेटा साइकिल सावधानी पूर्वक ध्यान से और धीमे चलाना पर कुलवंत तो एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने वाला जिद्दी बालक हो गया था वह तेज - तेज असावधानीपूर्वक साइकिल चलाता और शेखी बघारता।
एक दिन उसकी साइकिल दुर्घटनाग्रस्त हो गई। वह गिर पड़ा उसका एक पैर व एक हाथ टूट गया ( फेक्चर ) हो गया । अब तो वह कहीं का नहीं रहा।
इस कहानी से हमें निम्नलिखित शिक्षाएं मिलती हैं
1 नाजायज जिद नहीं करना चाहिए।
2 बच्चों की नाजायज मांग मां बाप को कभी पूरी नहीं करना चाहिए।
3 अति का अंत होता है अति सर्वत्र वर्जयेत।
स्वरचित
सुनील कुमार गुप्ता
शिक्षक
शासकीय माध्यमिक शाला
गोरखपुर