Ragini Pathak

Abstract Drama

4.4  

Ragini Pathak

Abstract Drama

जेठानी की सीख

जेठानी की सीख

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340


"माँजी ! देखिये मैं आप सब के लिए क्या लेकर आयी हूँ ?" शालिनी ने अपनी सास उमा जी से कहा।

शालिनी सास, ससुर, पति, ननद जेठ सबके लिए महंगे कपड़े लेकर आयी थी सिवाय जेठानी रमा के। शाम को किचन में रमा को जाते देख कर शालिनी ने कहा "भाभी सुनिये ना ! ये लीजिये जेठ जी और बच्चों के लिए नया टैबलेट लेकर आयी थी। "

रमा ने कहा "शालिनी एक बात तुम्हें मैंने पहले भी समझायी थी और आज फिर कह रही हूं। इतने महंगे गिफ्ट हर महीने लाने की क्या जरूरत है ?"

पैसों की बचत भी करना सीखो। आज की बचत ही कल हमारे काम आती है। तुम पूरी तनख्वाह क्यों खर्च कर देती हो। पूरी एक महीने की मेहनत के बाद ये पैसे आते हैं और तुम खर्च में एक पल भी नहीं लगाती। मैं तुम्हें तुम्हारी भलाई के लिए ही कह रही हूं। "

इतना सुनते ही शालिनी को गुस्सा आ गया। उसने कहा "भाभी ! मुझे पता था कि आप अपना लेक्चर जरूर देंगी। इसलिए मैं आपके लिए कुछ नहीं लायी। ना आगे से लेकर आऊंगी। दअरसल आप ये सब मेरी भलाई के लिए अपनी जलन में कह रही हैं। आपको जलन होती है कि मैं आपसे ज्यादा कमाती हूं। आप सबके लिए इतने महंगे गिफ्ट ला ही नहीं सकती क्योंकि इसके लिए बड़ा दिल चाहिए। जो आपके पास तो बिलकुल भी नही। आप एक मिडिल क्लास कंजूस औरत है।

इतना सुन के रमा की आंखों में आंसू आ गए। वो अपने कमरे में जाने लगी तभी उमा जी ने कहा"रूको रमा ! शालिनी बड़ो से बात करने का ये तरीका तुम्हें सिखाया गया है। रमा ने तुम्हारी भलाई के लिए तुम्हे बचत करने के लिए कहा। और तुम उसको जलन और कंजूसी का नाम दे रही हो। आज एक बात मेरी तुम ध्यान से सुन लो। तुम्हारे ये महंगे गिफ्ट या कोई और चीज मेरी बहु रमा की जगह नहीं ले सकता। और हाँ अपनी इस बात के लिए तुमको एक दिन पछतावा जरूरी होगा।

शालिनी वहाँ से पैर पटकते हुए गुस्से में अपने कमरे में चली गयी।

शालिनी ने अपने पति अमन को ये बात बतायी। कहा-अमन बुरा मत मानना लेकिन मैं चाहें कितनी भी कोशिश कर लूं। लेकिन भाभी की जगह कभी नहीं ले सकती। क्योंकि मैंने लव मैरिज की और जेठानी जी माँजी की पसंद की हुई बहु हैं। इसलिए माँजी भाभी को ज्यादा प्यार करती हैं। और वहां हुई पूरी बात बतायी।

तब अमन ने कहा"शालिनी आज एक बार फिर मैं भी तुमको समझा रहा हूं कि तुम जितना गलत भाभी को समझती हो। वो उतनी ही समझदार और सुलझी हुई है। "

तुमसे तो वो कभी जलन रख ही नहीं सकती। क्योंकि उन्होंने ही पूरे घर को हमारी शादी के लिए राजी किया था।

देखो अमन तुम भी नहीं समझ रहे। मैं कोई छोटे मोटे घर की बेटी नही। मुझे पैसों की कोई कमी नही। मैं अपनी शौक के लिए ही नौकरी करती हूँ। वरना मैं जो चाहूँ ।वो मेरे पापा मुझे तुरंत दिला दे.. पापा का इतना बड़ा बिजनेस है। मैं क्यों बचत की चिंता करुँ। ....

अगले दिन रविवार को शालिनी दोस्तों के साथ घूमने जा रही थी। तभी उसकी नजर हॉल में बैठी जेठानी पर गयी। उसने गुस्से से अपना पर्स उठाया और फोन हॉल की टेबल पर ही भूल गयी।

रमा ने आवाज देनी चाही ।तो उमा जी ने रोक लिया।

कहा "जाने दो वैसे भी एक फोन है उसके पास अभी आवाज दोगी तो बेकार में नाराजगी झेलनी पड़ेगी। "

रमा ने हम्म कहते हुए जैसे ही फोन रखा। देखा तो शालिनी के फोन पर उसके भाई का फोन आ रहा था।

रमा ने फोन उठाकर बोलना चाहा कि तभी उसने बिना आवाज़ सुने रोते हुए बताया कि"दीदी जल्दी अस्पताल आ जाओ। पापा को अस्पताल लेकर जा रहे हैं। कहते हुए फोन रख दिया"

रमा के साथ पूरा परिवार अस्पताल पहुंचा। वहाँ जाकर पता चला कि उनके पार्टनर ने उन्हें धोखा दे दिया। और धोखे से सबकुछ अपने नाम कर लिया।

शालिनी का भाई उमेश मुँह पर हाँथ रखकर बेंच पर बैठा रो रहा था। तभी रमा ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए कहा"उमेश क्या बात है ?अपनी बड़ी बहन को नहीं बताओ गे। उमेश आश्चर्य से रमा देखने लगा।

और सारी बात बतायी। कि अभी पैसे जमा नहीं किये गए तो डॉक्टर इलाज नहीं करेंगे। मुझे और माँ को पापा ने पैसों की कभी डिटेल नहीं बतायी। अभी हमारे पास इतने पैसे नही। और शालिनी दी भी फोन नहीं उठा रही। मुझे लगा वो ही आएंगी।

रमा ने कहा " लाओ मुझे बिल दो और तुम आंटी के पास जाओ..... मैं अभी आती हूं और जाकर काउंटर पर पैसे जमा किए। "

शालिनी ने फोन पर अपने भाई के इतने सारे मिस कॉल देखकर परेशान हो गयी। तभी उसको उमेश का मैसेज रिसीव हुआ। जिसमें उसने लिखा था दीदी पापा की हार्ट सर्जरी हो रही है अर्जेंट पैसे चाहिए। और उसने उस मैसेज में पूरी बात लिख के बतायी।

शालिनी भागती हुई अस्पताल पहुंची। तब तक ऑपरेशन हो चुका था वहाँ सिर्फ अमन और उमेश मौजूद थे।

शालिनी रोये जा रही थी। तब अमन ने कहा "शालिनी घर चलो। अभी पापा को ICU में रखा है। अब कल सुबह ही मिलना हो पायेगा।

शालिनी ने अमन से कहा"अमन मुझे उमेश से एक मिनट कुछ बात करनी है। "

हाँ !" ठीक है.....कर के आ जाओ ।मैं कार में बैठा हूँ। "

शालिनी ने उमेश से कहा"उमेश तूने पैसों का इंतजाम कहाँ से किया ? क्या अमन से लिया या मेरे ससुराल वालों से"....."उनको तूने सारी बातें बता दी क्या ?"

शालिनी मन ही मन सोच रही थी कि अब उसको हमेशा ताने सुनने पड़ेंगे। और इनके पास होंगे तो भी ये लोग मदद नहीं करेंगे। सासुमां ने पहले ही कह दिया था।

तब उमेश ने कहा नहीं दीदी सिर्फ रमा दी को सारी बात पता है। और उन्होंने ही अस्पताल के पैसे दिए बिना किसी को बताये। दीदी वो तो बहुत अच्छी है....डॉक्टर से बात की और बिना किसी शोर गुल के मदद भी की। अगर आज वो ना होती तो ना जाने क्या होता ? वो तो माँ को भी अपने साथ घर पर लेकर गयी है।

शालिनी सन्न हो गयी सुन के की जिस जेठानी की इज्ज़त उसने कभी नहीं कि आज उन्होंने उसके लिये इतना कुछ किया।

घर पहुंच कर उसने देखा- कि रमा उसकी माँ का सिर दबा रही थी। शालिनी माँ के गले लग गयी। तब रमा ने शालिनी से इशारे में ना रोने की अपील की।

शालिनी अपने आंसू को रोकते हुए बोली। माँ मै चेंज कर के आती हुँ।

शालिनी ने अमन से कहा"अमन जरा भाभी को कमरे में भेजना। '

रमा कमरे में आते ही बोली"शालिनी मैंने तुम्हें रोने से इसलिए रोका क्योंकि आंटी जी भी कब से रो रही थी और उनका सिर दर्द होने लगा था वो घर पर अकेली रहती तो ज्यादा सोचती इसलिए यहाँ लेती आयी कि हम सब के बीच उनको अच्छा लगेगा। तुमको बुरा लगा हो तो............

शालिनी ने रमा का हाथ पकड़ कर अपना एक हाथ रमा मुँह पर रख के कहा"भाभी बस इतना शर्मिंदा मत कीजिए मुझे। आप मुझे माफ़ कर दीजिए मैं आपको पहचान नहीं पायी। आपकी अच्छाई को आपका ढोंग समझ बैठी। "

आपका एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी।

नहीं शालिनी कोई एहसान नहीं किया। मैंने वो भी तो मेरे मातापिता समान ही है। और बहने कभी एकदूसरे पर एहसान नहीं करती। तुम तो मेरी छोटी बहन जैसी हो। गलती करना तुम्हारा अधिकार है। समझाना मेरा काम। इसे ही तो परिवार कहते है समझी

हाँ ! भाभी और शालिनी ने रमा के गले लग कर रोते हुए कहा"लेकिन अब आपकी ये छोटी बहन कभी कोई गलती नहीं करेगी। और आपकी हर बात मानेगी। वादा रहा


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