"जादुई बरसात"
"जादुई बरसात"
हल्की-हल्की बारिश में मेरी साइकिल तेजी से आगे बढ़ रही थी। दोनों तरफ धान के खेत और सामने बादलों से घिरा सुंदर व विशाल पहाड़। यह दृश्य मन को मोह लेने वाला था। इन्हीं सब के बीच मैं खोया हुआ था कि तब अचानक मेरी नज़र सामने आकर रुक गई। मेरे सामने रास्ते के दूसरे तरफ से एक लड़की आ रही थी। पीठ पर बैग, एक हाथ में छतरी और दूसरे हाथ से साइकिल को संभालने की कोशिश करते हुए वह धीमे-धीमे बारिश में धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। वह वाकई बहुत सुंदर लग रही थी, मेरी नज़र उस पर आकर रुक गई थी। उस शुन-शान रास्ते में हम दोनों ने एक-दूसरे को पहली बार देखा, हम एक-दूसरे के लिए अनजान थे मगर आज मानो हम एक-दूसरे को आंखों से ही पहचान की कोशिश में थे। मगर यह क्या, उसकी संतुलन अचानक बिगड़ गई और वह साइकिल समेत नीचे गिर गई। उसकी छतरी लुढ़कती हुई पास के एक बड़े नाले में गिर गई। मैं भी तत्परता दिखाते हुए उसके पास गया उसे खड़ा करवाया, मगर वह अब भी काफी परेशान थी, वह अपनी छतरी को ढूंढ रही थी। अब वह रोने पर उतार आई थी, कुछ आंसू उसके सुंदर गालों से होते हुए बहने लगी। उसे परेशानी में देख मेरा दिल पिघल सा गया, मैंने अपना हाथ आगे कर उसके गालों को सहलते हुए उसके आंसू पोंछ दिया और उससे चुप होने को कहा और वह चुप हो भी गई, वह मुझे एक टक देखी जा रही थी और अचानक मुझे भी मेरी गलती का एहसास हो गया था। मैं जल्दी ही अपना हाथ उससे दूर किया। मैं अपनी गलती पर पछतावा कर रहा था। वह कुछ बोल नहीं रही थी, उसके गाल भी अब शर्म के मारे लाल हो गए थे। अब बारिश और भी तेज होने लगी थी और हम बस एक-दूसरे को एक-टक देख रहे थे। मैंने धीरे से कहा "मुझे माफ करदो मेरा कोई गलत मतलब नहीं था" बस इतना ही कहना था कि भी जल्दी से अपनी साइकिल पर बैठ गई और अपनी मुह को मुझसे छिपाने की कोशिश करती हुई वह तेजी से वहाँ से चली गई। वह जाती हुई धीरे से मुस्कुरा रही थी, बस वही मेरे लिए काफी था। वह अब मुझसे दूर चली जा रही थी और मैं उसे बस जाते हुए देख रहा था, सिर्फ इसी उम्मीद में की काश वह एक बार पलट देख ले......
अगर उस दिन वह मुझे पलट कर देख लेती तो वह बरसात हमेशा के लिए मेरे लिए जादुई हो गया होता, हमेशा के लिए......