astha singhal

Romance

3.4  

astha singhal

Romance

इंतज़ार

इंतज़ार

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प्रियंका और संदीप, वाणी को लेने एयरपोर्ट जा रहे थे। प्रियंका बहुत उदास बैठी थी। वाणी उसकी बहुत अच्छी सहेली थी. दोनों एक साथ स्कूल गए और एक साथ ही कॉलेज किया। कॉलेज खत्म होने पर वाणी उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चली गई। वहां उसकी मुलाकात शिखर से हुई। दोनों ने परिवार के विरुद्ध जाकर शादी कर ली और वहीं बस गए। वाणी के परिवार ने उससे रिश्ता तोड़ लिया। 


पंद्रह साल बीत गए। प्रियंका और वाणी दोनों ने एक दूसरे से दोस्ती कायम रखी। एक दूसरे के हर सुख दुख में दोनों ने एक दूसरे का साथ दिया।


आज जब पंद्रह साल बाद वाणी वापस आ रही है तो प्रियंका को खुशी नहीं बल्कि दुःख हो रहा है। क्योंकि आज वह आ तो रही है पर अकेली। पांच महीने पहले एक सड़क हादसे में वाणी ने शिखर और अपने बेटे रोहित को खो दिया था। वाणी की तो मानो दुनिया ही खत्म हो गई थी। वहां उसे संभालने वाला, सांत्वना देने वाला कोई नहीं था। प्रियंका और  संदीप के बहुत समझाने के बाद वाणी वापस आने के लिए तैयार हुई।


प्रियंका का उदास चेहरा देखकर संदीप ने उसे संभालते हुए कहा, "प्रियंका, अगर तुम ही हिम्मत हार जाओगी तो वाणी को कैसे संभालोगी। उसके आने पर तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान होनी चाहिए‌। ये ग़म के बादल नहीं।" 


प्रियंका ने ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा, " तुम सही कह रहे  हो संदीप। मुझे अपने आप को संभालना होगा, तभी तो मैं वाणी को संभाल पाऊंगी‌।" 


दोनों एयरपोर्ट पहुंचे। कुछ पल इंतजार के बाद उन्होंने वाणी को आते देखा। वाणी को देखते ही प्रियंका ने ज़ोर से अपना हाथ हिलाया। वाणी उसे देख कर मुस्कुराई। 


वाणी एक बहुत ही दृढ़ व्यक्तित्व की महिला है। सुडोल शरीर और अच्छी कद काठी। उसका रंग सांवला है किन्तु नैन नक्श तीखे हैं। पर आज प्रियंका वाणी को देख हैरान रह गयी। वह बहुत कमज़ोर हो गई थी। चेहरे पर अपनों को खो देने का दर्द साफ छलक रहा था। वाणी के आते ही


दोनों एक-दूसरे के गले लगे। दोनों की आंखें नम हो गई थीं। इतने लम्बे अंतराल के बाद दोनों एक दूसरे से मिल रहे थे। संदीप ने वाणी का सामान गाड़ी में रखते हुए माहोल को हल्का करते हुए कहा," दोनों सहेलियों का भरत मिलाप हो गया हो तो घर चलें।"


एक महीना बीत गया था। वाणी के चेहरे पर उदासी और अकेलापन अब तक छलक रहा था। किसी भी काम में उसका मन नहीं लगता था। प्रियंका ने भरसक प्रयास किये पर वह वाणी के दर्द को कम नहीं कर पा रही थी। संदीप ने आखिरकार एक रास्ता खोज निकाला।


" संदीप जीजू , कहां ले जा रहे हैं आप मुझे? कुछ तो बताओ? प्रियंका तू ही बता दे." वाणी ने उत्सुकता से पूछा। 

" अरे वाणी! थोड़ी देर शांत रहो। सब पता चल जाएगा।" प्रियंका ने मुस्कुराते हुए कहा।


कुछ देर बाद वह तीनों एक बड़े से प्लाट के सामने खड़े थे।


संदीप ने वाणी की तरफ देखते हुए कहा, "वाणी, जिंदगी में सुख दुख आते जाते रहते हैं। लेकिन हम हार मान कर जीना नहीं छोड़ सकते। तुम्हारे सामने अभी  पूरी ज़िंदगी पड़ी है, और तुम हार मान कर बैठ गईं। मैं जानता हूं वाणी कि जीवन में परिवार सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है और अगर वही हमसे छिन जाए तो हम जीने का मकसद खो देते हैं। इसलिए आज मैं तुम्हें फिर से जीने का मकसद दे रहा हूं। ये मेरे दोस्त की ज़मीन है। कुछ साल पहले उसने यहां एक रेस्टोरेंट खोला था। पर फिर उसको विदेश में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई और वह वहां चला गया। अब ये जगह तुम्हारी है। तुम यहां रेस्टोरेंट खोलो या फिर कुछ और ये तुम्हारे ऊपर है।"


वाणी भावविभोर हो गई । उसने नम आंखों से संदीप की तरफ देखते हुए कहा," थेंकयू जीजू, आप दोनों ने मेरे बारे में सोचा और मुझे एक नई दिशा दिखाई। " ये कहते ही वाणी की आंखों से अश्रु धारा बह निकली। प्रियंका ने उसे गले से लगा लिया और बोली," चल अब जल्दी से जगह देख ले और सोच ले कि क्या करना है"।


वाणी ने वहां एक बहुत उम्दा कैफिटेरिया खोला। वाणी तरह तरह के पकवान बनाने में  निपुण थी। इसलिए उसे ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। देखते ही देखते उसका कैफिटेरिया बहुत प्रसिद्ध हो गया। खास कर युवाओं में। प्रियंका के बेटे शिवम की मदद से हर महीने कैफिटेरिया में लाइव शो आयोजित किया जाता था। नये उभरते संगीतकार वहां  अपनी प्रतिभा दिखाते थे।


सब बहुत अच्छा चल रहा था। देखते ही देखते एक साल बीत गया। वाणी बहुत मसरूफ़ रहती थी। प्रियंका के लाख मना करने पर भी उसने अलग से घर किराए पर लिया। वह उनके गृहस्थ जीवन में खलल नहीं डालना चाहती थी।


एक दिन वह कैफिटेरिया में बैठी दूर दिख रही समुद्र की लहरों को देख रही थी। मन ही मन सोच रही थी कि जीवन भी इन लहरों के समान है। कभी अचानक तेज़ लहरें सब कुछ नष्ट कर देती हैं और कभी इतनी शांत हो जाती हैं कि मानों कुछ हुआ ही नहीं। वह इन ख्यालों में खोयी हुई थी कि अचानक एक गंभीर आवाज़ ने उसे झकझोर दिया।

"एक्सक्यूज मी"।


वाणी ने सिर उठा कर देखा। एक लगभग चालीस वर्षीय  अच्छी कद काठी का युवक  हाथ में गिटार लिए खड़ा था। । उसके गोरे रंग पर फ्रेंच कट दाढ़ी बहुत खिल रह थी।


" जी कहिए, क्या ऑर्डर है आपका।" वाणी ने तुरंत पूछा।


"एक बढ़िया सी कॉफी"। उसने मुस्कुराते हुए कहा।


" क्या मैं वहां एकांत में बैठकर अपने गिटार की प्रेक्टिस कर सकता हूं?" उसने वाणी से पूछा।


"नो प्रॉब्लम। आपका जहां जी चाहे आप बैठ सकते हैं।" वाणी ने तुरंत जवाब दिया।


उसकी गिटार की धुन बहुत मधुर थी। वाणी का मन अनायास ही उस धुन की तरफ आकर्षित हो रहा था। वह खुद उसका ऑर्डर लेकर गयी।


"आपका ऑर्डर"। कहते हुए वाणी ने कॉफी मेज़ पर रख दी। 


" अरे! आपने क्यों कष्ट किया।" उसने बड़े प्यार से कहा।


वाणी के पास  इसका कोई जवाब ही नहीं था। इसलिए उसने बात घुमाते हुए कहा,"आपको यहां पहले कभी नहीं देखा? " 


"जी, मैं कुछ समय पहले ही यहां शिफ्ट हुआ हूं। मेरा नाम आकाश है।" उसने अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा।


"मेरा नाम वाणी है, आपसे मिलकर अच्छा लगा।" वाणी ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा। " प्लीज़ कैरी ऑन " कहकर वाणी वहां से चली गई।


आकाश लगभग रोज़ ही कैफिटेरिया आने लगा। रोज़ वह उसी जगह पर बैठ कर घंटों गिटार पर एक से एक संगीतमय धुनें बजाता था। कभी कभी तो वहां आने वाले उसके इर्द गिर्द इकठ्ठा हो जाते थे और उसकी धुनों का लुत्फ़ उठाते थे। वाणी भी दूर खड़े होकर सुनती रहती थी पर कभी नज़दीक नहीं गई।


आकाश की शख्सियत बहुत मुख्तलिफ सी थी। वह बहुत चुप रहता था पर उसकी आंखे बहुत कुछ कहती थीं। उसके चेहरे पर छलकती हल्की सी हंसी वाणी को अपनी तरफ अनायास ही आकर्षित करती थी।

एक दिन रात के दस बजे तक आकाश वहां बैठकर गिटार बजा रहा था।  


"आकाश जी, केफिटेरिया बंद करने का समय हो गया है।" वाणी ने हिचकिचाहट भरे स्वर में कहा।

"ओह!" आकाश ने कलाही  पर बंधी अपनी घड़ी देखते हुए कहा," माफ़ कीजिए वाणी जी, समय का पता ही नहीं चला।  गुड़ नाईट।" ये कहते हुए आकाश वहां से चला गया।


कुछ देर बाद जब वाणी घर जाने के लिए निकली तो उसके कानों में आकाश की गिटार की धुन सुनाई पड़ी। वह उस धुन की तरफ खिंची चली गई। उसने देखा आकाश तन्हा समुद्र किनारे बैठा गिटार बजा रहा था।

"आप घर नहीं गये अभी तक?" वाणी ने असमंजस में पूछा।


आकाश ने हड़बड़ा कर सिर उठाया और बोला," मन नहीं था इसलिए यहीं बैठ गया।"


"आपके परिवार वाले आपका इंतजार कर रहे होंगे।" वाणी ने बैठने की इजाज़त मांगते हुए पूछा।


"परिवार है ही नहीं तो इंतज़ार कौन करेगा।" आकाश ने वाणी के बैठने के लिए जगह बनाते हुए कहा।

वाणी ने आकाश को प्रश्न भरी निगाहों से देखा।


" मां पापा को गुज़रे काफी समय हो गया। शादी मैंने की नहीं और इस शहर में कोई अपना है नहीं मेरा।" 


आकाश ने वाणी के प्रश्न का जवाब एक ही सांस में दे दिया।


वाणी ने थोड़ा हिचकिचाते हुए पूछा," आपने.... शादी क्यों नहीं की? "


" कोई मिला ही नहीं।" आकाश ने बड़े सधे हुए स्वर में जवाब दिया। 


" कमाल है! आपको कोई नहीं मिला?" वाणी ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।


" मैं इसे अपनी तारीफ समझूं या ....." आकाश ने चुटकी लेते हुए कहा।


"अरे! आप ग़लत समझ रहे हैं। मेरे कहने का मतलब था कि आप की शख्सियत इतनी बढ़िया है, आपको कोई कैसे नहीं मिला?" वाणी ने झेंपते हुए कहा।

" खैर मेरी छोड़िए , आप इतनी रात को यहां बैठी हुई हैं, आपके परिवार वाले भी तो चिंता कर रहे होंगे।"  आकाश ने बात पलटते हुए कहा।


"परिवार....." यह कहते ही उसकी आंखे नम हो गईं और कुछ पल के लिए वह शांत हो गई। आकाश के आवाज़ लगाने पर वाणी को ऐसा लगा मानो किसी ने उसे सपनों की दुनिया से निकाल कर यथार्थ के कड़वे धरातल पर लाकर पटक दिया हो।


" कहां खो गईं थी आप, सब ठीक है ना?" आकाश ने चिंता व्यक्त करते हुए पूछा।


"डेढ़ साल पहले एक कार ऐक्सिडेंट में मैंने अपने पति शिखर और बेटे रोहित को खो दिया। यहां पर परिवार के नाम पर सिर्फ मेरी सहेली प्रियंका है। उसी ने मुझे संभाला और यह रेस्टोरेंट की जगह भी उसके पति संदीप की वजह से ही मिली। मैं बहुत एहसानमंद हूं उन दोनों की।  यही है मेरी कहानी।" वाणी ने गहरी सांस भरते हुए कहा।


" मैं समझ सकता हूं परिवार की अहमियत। पर एक बात की दाद देनी पड़ेगी कि इतनी परेशानियों के बावजूद भी आप ने उन्हें अपनी हंसी के पीछे बहुत खूबसूरती से छुपा रखा है।" आकाश ने वाणी की आंखों में देखते हुए कहा।


"ज़िंदगी यूं गुज़र रही थी ख्वाब सी,

बस एक पल में बन गई सवाल सी,

किस्मत की लकीरों को काश बदल पाते हम,

गुज़रा वक्त  ए दोस्त काश लौटा पाते हम,

पर ज़िन्दगी की यही रीत है,

खूबसूरती से जीने में ही जीत है."


आकाश की कही इन खूबसूरत पंक्तियों के बाद दोनो के बीच एक खामोशी सी छा गई।


फिर वाणी ने अपनी नज़रें आकाश से हटाते हुए कहा "आप कविताएं भी लिखते हैं। बहुत खूबसूरत पंक्तियां हैं। मेरे ख्याल से अब हमें चलना चाहिए।"

दोनों वहां से उठे और अपने अपने गंतव्य की तरफ चल दिए।


उस दिन के बाद से आकाश और वाणी अक्सर समुद्र किनारे टहलने लगे। कभी आकाश की मधुर संगीतमय धुनों को वाणी आंखें बंद कर सुनती रहती तो कभी वह घंटों एक दूसरे से बातें करते रहते। आकाश एक शीतल हवा के झोंके के समान था और वाणी मानो एक पत्ते की भांति उस हवा की शीतलता में उड़ती चली जा रही थी।


आजकल वाणी का चेहरा खिला खिला सा रहता था। होंठ हमेशा गुनगुनाते रहते। वाणी का ये बदला सा रूप देखकर प्रियंका बहुत खुश थी।


"वाणी , कुछ अलग सी लग रही हो आजकल। बिल्कुल वैसी जैसी शिखर से मिलने के बाद रहने लगी थी।" प्रियंका ने उसे छेड़ते हुए कहा।

"चल पगली, कुछ भी बोलती रहती है। आजकल काम अच्छा चल रहा है और जिंदगी को एक नये नज़रिए से देखने की कोशिश कर रही हूं, बस... और क्या!" वाणी ने अपनी कैश फाइल को बंद करते हुए कहा।


"और ये नया नज़रिया किसने प्रदान किया आपको।" 


प्रियंका ने गहराई में जानने की कोशिश करते हुए कहा।

वाणी प्रियंका को प्रश्न भरी निगाहों से देख रही थी।

" क्या कहना चाहती है सीधे पूछ।" वाणी ने खीझ कर कहा।


"तू सब समझती है। देख वाणी, जिंदगी में हर पल हमें किसी ना किसी का साथ चाहिए। जवानी फिर भी कट जाती है पर उम्र के जिस पड़ाव पर हम हैं वहां हमें कोई ना कोई  तो चाहिए जो हमारा हमसफ़र बन कर हमारे साथ रह सके। हम उसके साथ अपने सारे सुख दुख बांट सकें। तू समझ रही है ना मैं क्या कहना चाहती हूं?" प्रियंका ने वाणी को समझाते हुए कहा।


वाणी ने प्रियंका को गले से लगाते हुए कहा," प्रियंका, मैं जानती हूं कि तुझे हमेशा मेरी चिंता सताती रहती है। पर तेरी ये दोस्त इतनी कमज़ोर नहीं है कि उसे किसी के साथ की ज़रूरत पड़े। मैं अकेले अपने आप को संभाल सकती हूं।"

 

प्रियंका ने वाणी को प्यारी सी झप्पी देते हुए कहा," मैं जानती हूं कि तू बहुत हिम्मत वाली है। पर वाणी तेरे सामने अभी पूरी ज़िंदगी पड़ी है। अकेली कैसे संभालोगी सब कुछ?"


"संभालने को बचा ही क्या है दोस्त। बस मैं और ये रेस्टोरेंट।और वैसे  ये बार बार तू जो साथ चाहिए साथ चाहिए कि रट लगा कर बैठी है , तो बहन ये भी बता दे कि ये साथ है कौन?मेरी नज़र में तो कोई है नहीं , शायद तेरी नज़र में कोई हो।" वाणी ने चुटकी लेते हुए कहा और ज़ोर से हंसने लगी।


प्रियंका उसे हंसते हुए देखती रही और फिर गंभीर आवाज़ में एक शब्द बोली, " आकाश।"


वाणी की जैसे सारी हंसी ही गायब हो गई। वह सोफे से उठ खड़ी हुई और हैरान होकर बोली," आकाश? पागल तो नहीं हो गई तू ? कुछ भी बोल रही है। "


"कुछ भी नहीं बोल रही मैं। एकदम सही बोल रही हूं। " प्रियंका ने कड़क स्वर में कहा।


"सिर्फ इसलिए कि मैं आकाश के साथ समय व्यतीत करती हूं, तो तू उसका यह मतलब निकालेगी? तेरी सोच कब से ऐसी हो गई प्रियंका?" वाणी की आवाज़ में दर्द साफ छलक रहा था।


"मेरी सोच वही है वाणी। मैं तो सिर्फ तुझे ज़िंदगी में फिर से बसते हुए देखना चाहती हूं। और मैंने यह महसूस किया कि जब  तुम आकाश के साथ होती हो  तो मुझे मेरी वही वाणी नज़र आती है जो कॉलेज में थी, ज़िंदादिल, बेफिक्र और हमेशा मुस्कुराने वाली। और आकाश बहुत अच्छा इंसान है।" प्रियंका ने प्यार भरी आवाज़ में कहा।


"मैं जानती हूं प्रियंका, एक तू ही तो है मेरी सुख दुख की साथी। तू मेरा भला नहीं सोचेगी तो कौन सोचेगा। पर जैसा तू सोच रही है वैसा नहीं हो सकता। मैं मानती हूं कि आकाश एक बहुत उम्दा इंसान हैं। उनके साथ होती हूं तो ज़िंदगी को खुल के जी पाती हूं। वो एक अच्छे दोस्त हैं। आगे कुछ नहीं।" वाणी ने प्रियंका को समझाते हुए कहा।


प्रियंका के चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान छा गई. वह बोली," चल देखते हैं कि मेरा अनुभव सही साबित होगा या तेरा ये 'हम सिर्फ दोस्त हैं ' वाला तर्क।"

वाणी प्रियंका को कुछ देर देखती रही और फिर दोनों ज़ोर से हंसने लगीं।


************


अगले दिन वाणी सुबह से ही आकाश का इंतजार कर रही थी। वह उसको प्रियंका की इस  सोच के बारे में बताना चाहती थी। उसे पक्का यकीन था कि आकाश भी सुनकर हंसेगा। रात के दस बज गए थे पर आकाश का कुछ पता नहीं था। वाणी ने उसके मोबाइल पर बहुत बार फोन किया पर फोन कवरेज क्षेत्र से बाहर था।  वाणी निराश होकर अपने घर लौट गयी। वह रात भर बेचैन सी थी। बेचैनी इस बात की ज़्यादा थी कि आखिर वो बेचैन हो क्यों रही है? क्यों उसे आकाश के फोन ना करने पर बुरा लग रहा था? क्यों आज उसे एक खालीपन का अहसास हो रहा था?

यह सब सोचते -सोचते सुबह हो गई।


आज भी आकाश की कोई खबर नहीं थी। उसका फोन आज भी बंद था । वाणी की बेचैनी और फिक्र बढ़ती ही जा रही थी।


"भला यह भी कोई बात हुई? कम से कम एक बार फोन तो  कर सकते थे आकाश"। वाणी ने प्रियंका से कहा।


"वाणी तू यूं ही परेशान हो रही है । काम आ गया होगा कोई। जाना पड़ गया होगा ।" प्रियंका ने उसकी परेशानी दूर करते हुए कहा।


"अरे! बता कर जाना चाहिए था । दिस इज़ नॉट फेयर।" वाणी ने गुस्से से उत्तर दिया।


"तुझे बता कर क्यों जाना चाहिए था? तू क्या उनकी पत्नी है ? कौन है तू? और तू क्यों इतनी चिंता कर रही है? आना होगा आ जाएंगे। " प्रियंका ने कटाक्ष करते हुए कहा।


एक हफ्ता गुज़र गया। वाणी को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।मन बहुत अशांत था। वह रोज़ रात को कैफिटेरिया बंद करने के बाद समुद्र किनारे ज़रुर जाती थी।इस उम्मीद में कि शायद आकाश वहां आ जाए। अब उसके सब्र का बांध टूट रहा था। वह प्रियंका को गले लगा कर बहुत रोई। "मुझे नहीं पता मैं क्यों परेशान हूं? ये बेचैनी मुझे जीने नहीं दे रही। बस एक बार मुझे मिलना है ।"


*************

उस दिन रविवार का दिन था। कैफिटेरिया में बहुत भीड़ थी। वाणी ऑर्डर लेने में बहुत व्यस्त थी। अचानक उसको एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई पड़ी," एक हॉट कॉफी।"


वाणी ने गर्दन उठा के देखा तो सामने आकाश खड़ा था।

 वाणी के दिल की धड़कन अचानक से तेज़ हो गई। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह आकाश पर अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करे या फिर उसे अनदेखा कर ऑर्डर ले। उसने चुपचाप ऑर्डर लिया और उसे इशारे से एक खाली सीट पर बैठने को कहा।

"मुझे नहीं मालूम था कि आपकी याददाश्त इतनी खराब है।एक हफ्ते में छह महीने की दोस्ती भूल गईं आप?" आकाश ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा।


वाणी का दिल कर रहा था कि वह आकाश पर अपनी एक हफ्ते की भड़ास निकाल दे। उसके ना आने पर जो बेचैनी उसके दिल ने झेली उसका बदला वह अपने तीखे कटाक्ष भरे सवालों से ले। पर वह चुप रही ।


"वाणी?.... क्या हुआ है? कुछ तो बोलो।" आकाश ने बेचैन होकर पूछा। उससे वाणी की खामोशी सहन नहीं हो रही थी। वाणी अपने आंसुओं को छुपा नहीं पा रही थी। वह हड़बड़ी में काउंटर छोड़ कर कैफिटेरिया से बाहर चली गई। आकाश भी उसके पीछे पीछे चल दिया।


"वाणी .... वाणी रुक जाओ। मुझसे बात तो करो।" आकाश ने भाग कर वाणी का हाथ पकड़ते हुए कहा।

वाणी ने जैसे एक रौद्र रूप धारण कर लिया और चिल्ला उठी, " बस करें आकाश, हाथ छोड़िए ।आपका जब मन करेगा आप आएंगे और जब मन करेगा मेरी ज़िंदगी से चले जाएंगे। मैं क्या हूं आकाश? और आपको कोई हक नहीं बनता मेरी भावनाओं को ऐसे ठेस पहुंचाने का।"


कुछ पल के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गई।  ख़ामोशी सिर्फ बाहर थी, अंदर दोनों के दिल में तुफान उठा हुआ था।


वाणी अचानक रोने लगी। आकाश उसके पास आकर बोला," वाणी मुझे माफ़ कर दो। मेरा इरादा आप पर चिल्लाने का बिल्कुल भी नहीं था।"  उसने वाणी को अपनी तरफ खींचा और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया और उसके आंसुओं को साफ करते हुए कहा," वाणी, मेरा इरादा आपको हर्ट करने का बिल्कुल नहीं था। बल्कि आप तो वो शख्सियत हैं जिसके सामने मैंने अपने आप को वैसे ही दिखाया जैसा मैं हूं। एक आप ही तो हैं जिससे मैंने अपने दिल की हर बात कही है।  मुझे समझ नहीं आ रहा कि आप ऐसे रीएक्ट क्यों कर रही हैं?"


वाणी खामोश निगाहों से आकाश को देखती रही। फिर अपने आप को संभालते हुए बोली," सॉरी आकाश, पिछले कुछ दिनों से एक अजीब सी बेचैनी ने मुझे घेर रखा है। क्यों बेचैन हूं मैं खुद ही नहीं समझ पा रही। पिछले कुछ महीने जो आपके साथ बिताए वो लम्हे दिल में बस से गये। २सालों में जिंदगी को इतना खुल कर नहीं जिया जितना आपके साथ इन छह महीनों में जिया है। आपके साथ हर छोटी-बड़ी बात शेयर करके मानो दिल को एक सुकून सा मिलने लगा था। ज़िंदगी में जो खालीपन शिखर और रोहित के जाने के बाद आया वो कोई नहीं भर सकता पर वह कम होने लगा था। आप के अचानक चले जाने से पता नहीं क्यों मुझे बुरा लगा? नहीं लगना चाहिए था। आखिरकार ये आपकी ज़िंदगी है। आप कहां जाते हैं , क्यों जाते हैं, कब आएंगे, इसका फैसला करने का हक सिर्फ आपको है। मैंने ये कैसे सोच लिया कि मुझे भी हक है आपसे सवाल पूछने का. नहीं है. मुझे हक नहीं है।" वाणी ने रोते हुए कहा और अपने चेहरे को अपने हाथों से ढक लिया।


आकाश स्तब्ध सा वाणी को देखता रहा और वाणी सुबक  सुबक कर रोती रही। फिर आकाश ने वाणी के दोनों हाथों को उसके चेहरे से हटाते हुए उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा," वाणी आपसे किसने कहा कि आपको कोई हक नहीं है।  एक सिर्फ आप ही तो हैं जिसको मैंने ये हक दिया है। आप ही तो हैं जिसके साथ मैंने पहली बार इतना कुछ शेयर किया  है। आपको पूरा हक है मुझसे पूछने का ।दरअसल गलती मेरी ही है। मुझे कम से कम आपको खबर करनी चाहिए थी। पर काम में ऐसा उलझ गया कि याद ही नहीं रहा।" आकाश ने अपने कान पकड़कर माफी मांगते हुए कहा। वाणी उसके कंधों पर सर रख कर काफी देर तक बैठी रही। आकाश ने भी अपने हाथ को उसके कंधे पर रख कर उसे अपनी बाहों में भर लिया।

"अच्छा लगता है जब कोई हमारी परवाह हम से भी ज़्यादा करता है। रिश्ते दिल से होने चाहिएं शब्दों से नहीं, नाराज़गी शब्दों में होनी चाहिए दिल में नहीं। मुझे पूरा यकीन है कि अब आप मुझसे नाराज़ नहीं हैं ।" आकाश ने वाणी की तरफ देखते हुए कहा।

वाणी मुस्कुराते हुए बोली," आज कुछ पंक्तियां में भी सुनाना चाहती हूं, इज़ाजत है..."


आपसे रोज़ मिलने को दिल चाहता है,

कुछ सुनने सुनाने को दिल चाहता है,

था आपके मनाने का अंदाज़ ही कुछ ऐसा,

फिर से रूठ जाने को जी चाहता है।


" अरे नहीं, बिल्कुल नहीं। फिर से मत रूठना, मैं मना नहीं पाऊंगा।" आकाश ने हाथ जोड़कर कहा। और फिर दोनों खिलखिला कर हंसने लगे।


"वाणी मेरे ख्याल से अब हमें चलना चाहिए। काफी देर हो गई है।" आकाश ने कलाही पर बंधी अपनी धड़ी देखते हुए कहा। वाणी ने गहरी सांस लेते हुए कहा," आज की ये शाम हमेशा याद रहेगी। अनजाने में कुछ ग़लत कह दिया हो तो माफ़ कर दीजियेगा। मेरा इरादा आपको दुख पहुंचाने का बिल्कुल नहीं था।"


आकाश ने उठकर वाणी को उठाने के लिए अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया। वाणी ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ उसके हाथों में दे दिया और आकाश ने उसे संभालकर उठा दिया। " थेंक्स " वाणी ने धीमे स्वर में कहा।

आकाश ने मुस्कुराते हुए उसका आभार स्वीकार किया।


" तो फिर कल मिलते हैं। आप कल आएंगे ना? या फिर से गायब होने का इरादा है।" वाणी ने हंसते हुए कहा।


"कल...."आकाश कुछ परेशान सा लग रहा था। 

" क्या हुआ आकाश? आप इतने परेशान क्यों हो गये?"वाणी ने गंभीरता से पूछा।


"नहीं.... नहीं मैं परेशान नहीं हूं वाणी...वो मैं आपसे कुछ कहना चाहता था।"  आकाश ने झिझकते हुए कहा।

वाणी की आंखों में एक चमक सी आ गई।" बोलिए आकाश , आप क्या कहना चाहते हैं।"


आकाश कुछ पल वाणी की आंखों में देखता रहा। वाणी के दिल की धड़कन तेज हो गई थी। वह बहुत बेचैनी से आकाश के कुछ कहने का इंतजार कर रही थी। आकाश वाणी के नज़दीक आया और उसके दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम कर बोला ," वाणी...आप एक बहुत उम्दा इंसान हैं। आप एक बहुत सशक्त महिला हैं। एक वादा कीजिए आज मुझसे कि आप कभी भी किसी भी हालात में कमज़ोर नहीं पड़ेंगी। आप अपनी ताकत को अपनी कमज़ोरी कभी नहीं बनने देंगी. कभी भी मुश्किल हालातों में टूटेंगी नहीं. प्लीज़  वादा कीजिए।"


"आकाश क्या हुआ है आपको? आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?" वाणी की आंखें नम हो गईं।


"कुछ नहीं.... मैं बस चाहता हूं कि आपको कोई दुख कोई तकलीफ़ छू भी ना पाए। और अगर ऐसा हो भी तो आप उसका सामना हंस कर दृढ़ता से करें , जैसे आज तक करती आई हैं । आंसुओं से या कमज़ोर बनकर नहीं। " आकाश ने वाणी को और करीब लाते हुए कहा।


" मैं वादा करती हूं आकाश मैं कभी कमज़ोर नहीं पडूंगी।वाणी कल भी मज़बूत थी , आज भी मज़बूत है और आगे भी मज़बूत ही रहेगी।"  वाणी ने मुस्कुराते हुए कहा।


"अब चलें। एक बात और, कल प्रियंका का जन्मदिन है। हमने कैफिटेरिया में ही एक छोटी सी पार्टी रखी है। आप प्लीज़ ज़रुर आइएगा। प्रियंका भी कब से आपसे मिलना चाहती है। आप आएंगे ना आकाश?" वाणी ने संदेह भरी आवाज़ में पूछा।


आकाश ने कुछ कहा नहीं पर मुस्कुरा कर सहमति में सिर हिला दिया।


वाणी मुस्कुराई और आकाश को बाए बोल कर वहां से जाने लगी। आकाश वहीं खड़े होकर उसको देखता रहा। उसका मन किया कि उसको आवाज़ देकर रोक ले पर ऐसा कर नहीं पाया। वह वाणी को तब तक देखता रहा जब तक वह उसकी आंखों से ओझल नहीं हो गई । कितना कुछ कहना था आज उसको वाणी से। कुछ भी नहीं कह पाया। कितना बेबस सा महसूस कर रहा था वो इस पल। आसमान में सूरज डूब रहा था और उसकी लालीमा चारों ओर बिखर रही थी। आकाश बहुत देर वहां खड़ा होकर प्रकृति की खूबसूरती को देखता रहा और फिर वहां से चला गया।


*************"*


वाणी वहां से सीधे प्रियंका के घर गयी। वहां उसने उसे सारी बात बताई.  प्रियंका ने बहुत उत्सुकता से उसकी सारी बात सुनी और बोली," ये क्या वाणी? तूने उनको बोला क्यों नहीं? दिल की बात को ज़ुबान पर लाने में कितना समय लगाएगी?"


" प्रियंका प्लीज़ तू फिर से शुरू मत कर। मुझे कुछ नहीं कहना था, जो कहा वह भी बहुत ज़्यादा कह दिया शायद।पता नहीं आकाश मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे?" वाणी ने झल्लाकर कहा।


प्रियंका मुस्कुराने लगी, तो वाणी ने हैरान होकर उसको देखा और बोली," क्या? मुस्कुरा क्यों रही है? "

" मुस्कुरा इसलिए रही हूं क्योंकि पहली बार दो परिपक्व लोगों को झूठ बोलते देख रही हूं।"  प्रियंका तपाक से बोली।


"झूठ? क्या झूठ बोला  हमने? " वाणी ने सोफे से उठते हुए पूछा।


प्रियंका ने उसे इशारे से फिर से बैठाते हुए कहा, "झूठ ही तो बोल रहे हो तुम दोनों। अपने आप से भी और एक दूसरे से भी। दोनों एक-दूसरे को पसंद करते हो, प्यार करते हो पर कबूल नहीं कर रहे. आज जिस तरह तूने रिएक्ट किया वाणी उसको देखकर तो कोई अंधा भी बता सकता है कि तू आकाश से कितना प्यार करती है। तेरी ज़िंदगी में उसका होना कितना महत्व रखता है ये तू बहुत अच्छी तरह जानती है। फिर भी इस सच्चाई से क्यों इंकार कर रही है? ये भी तू जानती है।"

" मैं जानती हूं? मैं कुछ नहीं जानती।" वाणी ने थोड़ा रूआंसा होकर बोला।


प्रियंका वाणी के पास आकर बैठ गई और उसकी आंखों से गिर रहे आंसुओं को साफ करते हुए बोली," वाणी, मैं जानती हूं कि तू शिखर से बहुत प्यार करती है और हमेशा करती रहेगी। पर क्या तेरी ज़िंदगी में दोबारा प्यार नहीं आ सकता ? तुझे पूरा हक है फिर से अपनी दुनिया बसाने का। किसी को अपना बनाने का। और यकीन मान इससे शिखर की आत्मा को शांति प्राप्त होगी। वो जहां भी है तुझे फिर से अपना संसार बसाते  देख कर खुश होगा। अपने दिल से इस अपराध बोध को निकाल दे कि तुझे दोबारा प्यार करने का हक नहीं है।"


वाणी ने प्रियंका को गले लगा लिया। कितनी खुशकिस्मत है वह कि उसे प्रियंका जैसी दोस्त मिली।


" पर प्रियंका..." वाणी ने हिचकिचाते हुए कहा ," आकाश मेरे बारे में क्या सोचते हैं मुझे नहीं पता। "

" कोई बात नहीं कल वह आ रहे हैं ना मेरे जन्मदिन पर , तब पूछ लेना। वैसे मेरा अनुभव यह कहता है कि वो भी तुझसे प्यार करते हैं।" प्रियंका ने हंसते हुए कहा।

" पर अगर उन्होंने मना कर दिया तो.... कितनी शर्मिंदगी होगी।" वाणी बोली।


"वाणी.....अगर हम किसी को पसंद करते हैं तो हमें अपनी भावनाओं को ज़रूर ज़ाहिर करना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा वो मना कर देंगे। पर तेरे दिल को तसल्ली तो हो जाएगी कि तूने कहा दिया।" प्रियंका ने उसे समझाते हुए कहा।


अगले दिन शाम तक वाणी  प्रियंका की जन्मदिन पार्टी के लिए खूबसूरत सजावट करती रही। तभी प्रियंका का फोन आया," तू सजावट  में ही लगी रहेगी या तैयार भी होगी। आज तेरे लिए भी बहुत स्पेशल दिन है।"

वाणी मन-ही-मन मुस्कुराई और बोली," हां हां जा रही हूं।"


वाणी घर पहुंची और तैयार होने लगी। उसके ज़हन में बार बार आकाश का ही ख्याल आ रहा था। आज जब वह अपने दिल की बात आकाश को बताएगी तो आकाश की क्या प्रतिक्रिया होगी? क्या वह भी इज़हार करेंगे? यह सोचते ही वाणी के दिल की धड़कन तेज हो गई। आकाश के कितने करीब थी कल वह। उसके दिल की धड़कनों को अब तक महसूस कर पा रही थी। बस अब उसे इंतजार था रात का।


वाणी तैयार होकर पार्टी में पहुंची। 'शुक्र है अभी प्रियंका संदीप आए नहीं ।' वाणी ने मन में सोचा। थोडी़ देर में वह दोनों आ गये। सभी मेहमान प्रियंका को जन्मदिन की बधाई देने लगे। वाणी ने एक बहुत बड़े गुलदस्ता प्रियंका को भेंट करते हुए उसे बधाई दी।


"वाह! मेरे पसंदीदा फूलों का गुलदस्ता! थेंक्स वाणी। और माशाअल्लाह क्या गज़ब लग रही हो आज साड़ी में। कितने सालों बाद तुम्हें साड़ी में देख रही हूं। सच बोलूं, आकाश आज तुझे देखते ही इज़हार ना कर दें तो मेरा नाम बदल देना।" प्रियंका ने वाणी को छेड़ते हुए कहा।


" इज़हार करने के लिए जनाब का होना जरूरी है। अभी तक उनका कोई अता-पता ही नहीं है।" वाणी ने गुस्से से कहा।

इतने में संदीप वहां आकर बोला," सब मेहमान केक काटने का इंतजार कर रहे हैं।  और कितना समय लगेगा।"

वाणी ने तुरंत जवाब दिया," प्रियंका केक कटिंग कर लेते हैं। आकाश आ जाएंगे।"


रात के दस बज गए थे। सब मेहमान खाना खा कर जा रहे थे। वाणी की नज़रें आकाश को ही खोज रही थीं। पर आकाश नहीं आया।


"वाणी कब तक इंतज़ार करेगी। चल कुछ खा ले अब।" प्रियंका ने फिक्र करते हुए कहा।

"नहीं प्रियंका, मेरा पेट तो इंतज़ार कर के ही भर गया। तुम लोग भी अब घर जाओ और आराम करो। मैं भी घर जाती हूं।"  वाणी प्रियंका की तरफ मुस्कुराते हुए बोली।


"वाणी , तू ठीक है ना? आज मैं चलूं तेरे साथ।" प्रियंका पर्स उठाते हुए बोली।


" नहीं प्रियंका, मैं बिल्कुल ठीक हूं। संदीप जीजू इसे लेकर जाओ वरना आप को छोड़ कर ये मेरे घर पर डेरा जमा लेगी।" वाणी ने हंसते हुए कहा।


प्रियंका के सामने वाणी ने अपने अंदर उठ रहे तूफान को काबू कर लिया। वह नहीं चाहती थी कि उसकी वजह से उसकी सहेली का जन्मदिन खराब हो ।


घर पहुंचते ही वाणी ने पर्स को सोफे पर फैंक दिया।कानों से झुमके उतार कर टेबल पर फैंक दिया। और कमरे में चली गई। बहुत देर तक बिस्तर पर बैठी रही । एक टक शून्य में देखती रही और सोचती रही कि आकाश का सच क्या है? वह किस आकाश पर भरोसा करे। उस आकाश पर जो उसकी परवाह किए बिना कभी भी उसे छोड़ कर चला जाता है या फिर उस आकाश पर जो उसको यह यकीन दिलाता है कि वो सपने में भी उसको चोट नहीं पहुंचा सकता। आकाश का वह दोस्त वाला रुप सच्चा था , जब उसने घंटों उसके साथ बैठकर अपनी ज़िंदगी के कितने ही पहलू साझा किए। या फिर उसका कल का वह रूप सच्चा था जब उसने आकाश के दिल की धड़कन को महसूस किया था। क्या है आकाश का सच? वाणी को पता ही नहीं चला कब ये सोचते-सोचते उसकी आंख लग गई।


अगले दिन वाणी एक नये नज़रिए के साथ उठी। उसने तय कर लिया था कि आज के बाद वह आकाश को लेकर बिल्कुल परेशान नहीं होगी। वह अपना सारा ध्यान अपने कैफिटेरिया पर लगाएगी। उसने आकाश को वादा किया था कि वह कभी कमज़ोर नहीं पड़ेगी और आंसुओं को कभी अपने ऊपर हावी नहीं होने देगी।


आज छह महीने बीत चुके थे। वाणी आज बहुत खुश थी।आज वहां की लोकल ट्रेवल एंड ब्लोगर एसोसिएशन ने वाणी के कैफिटेरिया को बेस्ट कैफिटेरिया ऑफ द ईयर के अवार्ड से सम्मानित किया था। वाणी ने अगले दिन अपने नियमित ग्राहकों के लिए एक पार्टी का आयोजन किया था। 


**************


वाणी और प्रियंका का बेटा शिवम कल की पार्टी की तैयारियों में जुटे हुए थे। शिवम ने एक प्रख्यात म्यूजिकल बैंड को आमंत्रित किया था। उसी की तैयारी कर रहे थे कि वाणी को उसके चौकीदार ने आकर एक खूबसूरत फूलों का गुलदस्ता पकड़ाया और कहा कि यह किसी ने उसे वाणी को देने को कहा है‌। वाणी ने उत्सुकता से वह गुलदस्ता ले लिया । उसमें से एक चिट्ठी निकली। वाणी ने उसे खोला तो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। चिठ्ठी आकाश की थी।वाणी ने शिवम को कुछ देर कैफिटेरिया संभालने को कहा और वहां से चली गई।


वाणी ने कांपते हाथों से चिठ्ठी खोली और पढ़ने लगी।


' वाणी

आशा करता हूं कि आप सकुशल होंगी। सबसे पहले आपको बेस्ट केफिटेरिया इन द टाउन के अवार्ड के लिए बधाई। आप सच में इस अवार्ड की हकदार हैं।

वाणी आपको फिर से बिना बताए चले जाने के लिए मैं आपसे माफ़ी मांगता हूं। मैं जानता हूं कि मेरे इस व्यवहार ने आपको बहुत दुख पहुंचाया होगा। पर मेरा यकीन मानिए मेरा इरादा आपको दुख पहुंचाने का बिल्कुल भी नहीं था। मैं मजबूर था वाणी। और उस समय मैं तुम्हें अपनी मजबूरी बता नहीं सकता था। वाणी आपसे एक गुज़ारिश है, प्लीज़ अब जो मैं आपको बताने जा रहा हूं उसे किसी और से शेयर मत कीजिएगा । किसी से भी नहीं।

वाणी , मैं एक रॉ एजेंट हूं। इंटेलिजेंस ब्यूरो के लिए काम करता हूं। यहां एक मिशन पर आया था। इससे ज़्यादा और कुछ बताने की इजाज़त नहीं है मुझे।'


वाणी यह पढ़ते ही भौंचक्की सी रह गई। उसने अभी अभी क्या पढ़ा उसपर उसे यकीन नहीं हो रहा था। 


"एजेंट?" वाणी ने अपने आप से कहा। वह खत को अपनी जेब में डालकर वापस कैफिटेरिया के अंदर गई। 

शिवम तब तक सब काम कर चुका था। " मौसी... मैंने सब इंतज़ाम कर दिया है।" 

"वाह! थैंक्स शिवम। चल अब तू घर जा। प्रियंका इंतजार कर रही होगी।


शिवम के जाने के बाद वाणी ने अपने स्टाफ को बुलाया और बोली,  कल बहुत बड़ी पार्टी है इसलिए मैं चाहती हूं कि आप सब घर जल्दी जाएं और आराम करें।" 

सबके जाने के बाद वाणी चौकीदार को कैफिटेरिया बंद करने को कह कर जल्दी से घर के लिए निकल गई।

घर पहुंचते ही उसने ख़त निकाला और आगे पढ़ना शुरू किया।


' वाणी मैं जानता हूं कि यह पढ़ते ही आप हैरान रह जाएंगी।वाणी मैं मिशन पर ज़रूर था पर आपसे मिलना मिशन का हिस्सा बिल्कुल नहीं था। आपके साथ गुज़ारा हर पल सच्चा था। मैं मानता हूं कि मैंने आपसे यह बात छुपाई पर मेरा प्रोफेशन मुझे इजाज़त नहीं देता कि मैं अपनी सच्ची आइडेंटिटी किसी को भी बताऊं। पर इसके अलावा मैने अपनी ज़िंदगी के बारे में जो भी आपको बताया वह सब सच था। वाणी...आप मेरे लिए बहुत खास हैं।

मिशन खत्म होने के बाद जब मैं यहां से जा रहा था तो बहुत मन किया आपसे मिलने का पर हिम्मत नहीं हुई। वापस जाकर मुझे लगा कि मैं सब भुला कर अपने काम पर ध्यान लगा पाऊंगा। पर पूरे हफ्ते एक अजीब सी बेचैनी थी। ऐसा लगा कि जैसे मैं खुद को वहीं छोड़ आया हूं। उस दिन आपसे आख़िरी बार मिलने वापस आया था। क्योंकि जिस मिशन पर मुझे जाना था वहां से शायद मैं कभी वापस नहीं लोटता। पर उस दिन आपकी प्रतिक्रिया देख के स्तब्ध रह गया। इसलिए बिना कुछ कहे मुझे वापस आना पड़ा। 

वाणी, मिशन पर जाने से पहले मैंने तय कर लिया था कि अगर जिन्दगी रही तो वह आपके नाम होगी‌। 

मैं आपका आज शाम वहीं इंतज़ार करूंगा। अगर आपने मुझे माफ़ कर दिया है तो आशा करता हूं कि आप मुझसे मिलने आएंगी। एक दरख़्वास्त है आपसे कि इस ख़त को पढ़ने के बाद जला दीजियेगा। 

आपके इंतज़ार में

आकाश'


वाणी की आंखों से अश्रु धारा बह निकली। वह खुश थी कि आकाश उस मिशन से सही सलामत वापस आ गए।


वाणी ने घड़ी देखी और हड़बड़ा कर उठी। जल्दी से तैयार होकर वह घर से निकल गई। 


समुद्र किनारे पहुंच कर उसने देखा कि आकाश वहां पहले से ही मौजूद था। वह उसके करीब गयी और बोली,


"उनसे मिलने की ख्वाहिश में हर रोज़ मरते रहे,

वो ना आए पर हम इंतज़ार करते रहे,

झूठा ही सही मेरे दोस्त का वादा,

हम तो सच मानकर एतबार करते रहे।"


"वाणी...." आकाश की आवाज़ में जुदाई का दर्द साफ छलक रहा था। कुछ क्षण के लिए दोनों के बीच खामोशी छा गई। दोनों एक-दूसरे को देखते रहे। वाणी गुलाबी साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी।आकाश भी काली जींस और सफेद शर्ट में बहुत आकर्षक लग रहा था।


आकाश ने खामोशी तोड़ते हुए कहा," आने के लिए बहुत शुक्रिया वाणी। मुझे थोड़ा बहुत यकीन था कि आप आएंगी। आप नहीं जानतीं कि आपके आने से कितनी राहत महसूस कर रहा हूं‌।"


वाणी की आंखें नम थीं। उसने आकाश की तरफ कदम बढ़ाते हुए कहा," आपको मेरे आने का थोड़ा बहुत यकीन तो था आकाश। पर कभी मेरे बारे में सोचा आपने। मैं रोज़ यहां आती थी कुछ समय बिताने। पर मेरे पास तो कोई यकीन भी नहीं था कि आप आएंगे। था तो बस इंतजार।"


आकाश ने वाणी के हाथों को अपने हाथों में थाम लिया और बोला," वाणी मुझे माफ़ कर दो। आप जानती हैं कि मैं कितना मजबूर था‌। मैं अपनी उस हरकत के लिए बहुत शर्मिन्दा हूं। आप मुझे अगर माफ नहीं भी करेंगी तो भी कोई शिकायत नहीं। आखिरकार मैंने आपको इतना आहत जो किया है।"


वाणी आकाश की आंखों में देखते हुए बोली," आपको मुझसे माफ़ी मांगने की जरूरत नहीं है। आपको तो मैंने उसी दिन माफ़ कर दिया था। मैं इतना तो जानती ही थी कि अगर आप नहीं आए हैं तो ज़रूर इसके पीछे कोई न कोई वजह रही होगी। और वैसे भी दिल की धड़कन कभी झूठ नहीं बोलतीं।"


"दिल...की... धड़कन। किस के दिल की धड़कन? मैं कुछ समझा नहीं।" आकाश ने अचरज भरी निगाहों से वाणी को देखते हुए कहा।

वाणी के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान छा गई। उसने दबी हुई आवाज़ में कहा, "उस दिन आपकी दिल की धड़कनों को बहुत करीब से महसूस किया था। उनमें एक सच्चाई थी।"


आकाश ने वाणी को अपनी तरफ खींचा और अपने आगोश में भरते हुए पूछा, "आज क्या बोल रही हैं मेरे दिल की धड़कन‌।"


"आज तो मेरे और आपके दिल की धड़कन एक ही सुर में धड़क रही हैं। मानो जैसे एक हो गई हों।" वाणी ने आकाश के आगोश में समाते हुए कहा।


"बिल्कुल सही। और अब यह कभी भी अलग नहीं होंगी।" आकाश ने वाणी की आंखों में देखते हुए कहा।

शाम घिर आई और आसमान में सूर्यास्त हो रहा था।

"वाणी जानती हो उस दिन तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत देर तक यहां बैठा रहा और सूर्यास्त को देखता रहा। पर उस दिन यही सूर्यास्त मुझे बेरंग और नीरस दिखाई दे रहा था क्योंकि मेरा दिल दुख और दर्द से भरा था। पर आज यही सूर्यास्त कितना खूबसूरत और अद्भुत लग रहा है।" आकाश ने वाणी की आंखों में देखते हुए कहा। दोनों के चेहरों पर मुस्कान खिल उठी।


अगले दिन पार्टी में वाणी और आकाश दोनों एक साथ पहुंचे । प्रियंका और संदीप ने उनका बहुत ज़ोरदार स्वागत किया। वाणी आज लाल रंग की सितारों जड़ित साड़ी में बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसके खुले हवा में उड़ते बाल उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे। आकाश भी गहरे नीले रंग के सूट में जच रहा था।


प्रियंका स्टेज पर पहुंची और आकाश-वाणी को सम्बोधित करते हुए बोली " आज मैं बहुत खुश हूं । आज मेरी सहेली की ज़िंदगी का बहुत अहम दिन है। यह अवार्ड उसकी मेहनत का परिणाम है। वाणी और आकाश मैं चाहुंगी कि आप दोनों यहां स्टेज़ पर आएं।"

वह दोनों स्टेज़ पर पहुंचे। वाणी ने वहां आए सभी मेहमानों का शुक्रिया करा और अवार्ड का सारा श्रेय भी उन्हीं को दिया। फिर उसने आकाश का परिचय देते हुए कहा, "यह मेरे दोस्त, मेरे हमदर्द, मेरे हमसफ़र आकाश हैं। आप में से बहुत से लोग इनको जानते भी हैं। सच कहूं तो इस कैफिटेरिया को इतना कामयाब बनाने में इनकी धुनों का बहुत बड़ा हाथ है। आपमें से अक्सर बहुत से लोग इनकी धुनें सुनने ही आते थे। इसलिए मैं दिल से इनका शुक्रिया करती हूं।" आकाश वाणी की तरफ देखते हुए बोला," आज आप सब के सामने एक बात कहना चाहता हूं वाणी को..." फिर आकाश ने वाणी का हाथ पकड़ा और घुटनों पर बैठ कर कहा,


"मेरे धड़कते हुए दिल का करार हो तुम,

मेरे हर दर्द का इलाज हो तुम,

मेरी तरसती हुई निगाहों का इंतज़ार हो तुम,

मेरी ज़िंदगी का पहला प्यार हो तुम"


"वाणी, जिंदगी की आखिरी सांस तक सिर्फ आपका इंतजार रहेगा... मुझसे शादी करेंगी..." आकाश ने वाणी की उंगली में अंगूठी पहनाते हुए पूछा।


वाणी निशब्द सी खड़ी हुई थी। उसे आकाश की इस योजना के बारे में कुछ भी नहीं पता था। तभी प्रियंका ने वाणी को अंगूठी दी और इशारे से आकाश को पहनाने को कहा। वाणी ने प्रियंका को हैरत से देखा और समझ गई कि प्रियंका को आकाश की योजना के बारे में सब पता था। उसने प्रियंका से अंगूठी ली और शरमाते हुए आकाश की उंगली में पहनाते हुए कहा,"  ज़िंदगी की हर धड़कन सिर्फ आपका ही इंतज़ार करेगी..."

दोनों ने एक-दूसरे को गले से लगा लिया। फिज़ाओं में हर तरफ प्यार  ही प्यार था। और उस प्यार की खुशबू से आकाश - वाणी दोनों महक रहे थे।


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