भावना कुकरेती

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4.5  

भावना कुकरेती

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उस दिन अविनाश नशे में भी नहीं था ।रात भर वेब सेरीज देखने के बाद सुबह सुबह कमरे से बाहर हॉल वे में चला आया था। उसे लता अपने कमरे के बाहर निकलती दिखाई दी। सुबह के 4 हो रहे थे मगर पहाड़ों में इस वक्त गुलाबी ठंड के साथ अंधेरा था। साटन के सिंपल से बेबी पिंक गाउन में खुले बालों के साथ वह उसे बहुत आकर्षक दिख रही थी।

लता और अविनाश एक वर्कशॉप के लिए अलग अलग जगहों से इस होटल में ठहरे थे। अविनाश पिछले डेढ़ महीने से देश भर के अलग अलग कोनों में ही घूम रहा था। उसकी एक्सपर्टीज से कम्पनी अपने एम्प्लाइज को अपडेट करना चाहती थी। 


इधर लता पूरी वर्कशॉप में अपने में रहती रही थी, मगर उसका अपनी टीम के साथ प्रेजेंटेशन उसे सबके बीच हाईलाइट कर चुका था। उसकी तन्मयता और सहज व्यवहार अविनाश को अच्छा लग रहा था वह अन्य तेज तर्रार महिलाओं के बीच सौम्य सी थी।अविनाश उससे बात करने का इच्छुक था मगर वर्कशॉप के बाद वह अचानक जाने कहाँ गायब हो जाती थी। 

वह जब भी होटल लौटती सिर्फ नमस्ते के साथ हल्की सी मुस्कान दे कर अपने रूम में बंद हो जाती और सीधे डिनर टेबल पर ही दिखती और फिर तुरन्त अपने रूम में लॉक।


वर्कशॉप के बाद उनके इस तरह 3-4 घंटे गायब रहने से उसको लेकर सबके मन मे कौतूहलता थी मगर उसके सरल व्यवहार से कोई प्रश्न नहीं करता था। मगर कल शाम अविनाश ने उसे वर्कशॉप के ही एक अन्य सदस्य के साथ कॉफी पीते देखा था।दोनो आपस में बहुत कंफर्टेबल लग रहे थे।अविनाश बड़ी देर तक दोनो को देखता रहा। लता उस समय बहुत चंचल थी। लता के स्वभाव को लेकर अविनाश की झिझक खत्म हो गयी। 


रात में अविनाश ने लता से डिनर पर बात की। इधर उधर की बात के बाद अविनाश का मन हुआ कि वह लता से कॉफी वाली जगह को पूछे मगर लता गुड नाईट सर कह कर उठ गयी। अविनाश ,लता को उसके रूम की तरफ जाता देखता रह गया था।

 "आपकी तबीयत ठीक नहीं लग रही, आप बैठ जाइए सर।"वह लता के करीब पहुंच गया था।

 सामने लता थी, एक टक उसको देख रही थी। वह उसे पास के बेंच पर बिठाना चाह रही थी। उसे पता नहीं चला कि कब उसके हाथों ने लता की दोनों बाजुओं को जकड़ लिया था। लता के चेहरे पर चिंता झलक रही थी।

लेकिन अविनाश के शरीर में उत्तेजना चरम पर थी,"प्लीज टेक मी टू माय रूम।" उसने अभिनय किया। लता अविनाश के संवेग से अनजान उसे संभालती हुई उसे उसके कमरे तक ले आयी।


लता ने उसका रूम खोला। वह उसका सहारा लिए अपने बिस्तर तक चला आया। निढाल हो कर गिरते हुए लता को खींचना चाहा मगर पता नहीं कैसे लता के दोनो बाजू उसकी पकड़ से छूट गए । वो जैसे ही गिरा लता ने अपनी हथेली उसके सर के नीचे रख दी।उसने देखा लता के चहेरे पर दर्द की लहर दौड़ गयी थी। उसने सर उठा कर देखा।उसके सर और बेड के हेडर के बीच लता की हथेली थी। लता ने हथेली को दबाते हुए उठ रहे दर्द को दबाने की कोशिश की।

"आप ठीक से लेट जाएं सर, मैं रिसेप्शन पर फोन कर डॉक्टर बुलाती हूँ।"

 "नो-नो आई थिंक अम बेटर नाउ",

"नहीं ,एक बार दिखाना सही रहेगा,आपका यहां कोई है भी तो नहीं" कह कर लता ने इंटरकॉम से डॉक्टर के लिए कह दिया। वापस जाने लगी। 


"लता मैंम ...क्या आप जाते जाते मेरा एक काम कर देंगी?",

"जी बताइये सर" ।

अविनाश आंख बंद कर कुछ देर को बेड पर टेक लगा कर बैठ गया। उसके दीमाग में कीड़ा तैज़ी से कुलबुलाने लगा था।

"सर? सर? आप कुछ कह रहे थे!" 

"लता मैंम ..." उसने आंखें बंद किये धीमे से कहा। 

"क्या सर सुनाई नहीं दिया? " लता उसके करीब चली आई। 

   

अविनाश ने आंखें खोलीं लता उसकी ओर झुकी हुई थी,और बहुत चिंता में उससे कह रही थी "सर ... तकलीफ हो रही है क्या? चिंता मत करिए डॉक्टर आते ही होंगे", उसे अपने शरीर मे बहुत गर्मी लगने लगी।

"ए सी ..ओंन कर दीजिए मैंम।",

"ए सी?? ",


लता ने पहली बार ए सी को ढूंढने के लिए रूम में देखा। ए सी के ठीक नीचे म्यूट में टी वी पर एडल्ट सेरीज चल रही थी। अचानक सब बहुत ऑकवर्ड हो गया ।लता ने अविनाश की ओर कनखियों से देखा ।अविनाश की आंखें लाल थीं और उसके शरीर पर इधर उधर भटक रहीं थीं,वह धीरे से उसकी ओर देखता हुआ उठ रहा था। लता को एक पल में ही सर का अचानक से उसके सामने आना , लड़खड़ाते हुए उसके बाजू पकड़ना और बहाने से रूम में ले आना अब साफ समझ आ रहा था। लता उसे खुद को ऐसे देखता देख  ,अपनी ओर बढ़ता देख वो तेज़ी से दरवाजे की ओर पलटी मगर अपने ही गाउन में उलझ कर गिर पड़ी।


अविनाश उसे गिरता देखा उसकी ओर तेज़ी से लपका। लता उसे अपनी ओर आता देख जमीन पर बर्फ सी जम गई। भयानक आशंका उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ा रही थीं। समय जैसे बहुत धीमा हो गया था।मन में शोर होने लगा " पागल हो क्या तुम,जो शराफत से बात करता हो जरूरी नहीं शरीफ हो ।" ," ऐसे बिना कुछ सोचे क्यों चली आयी?", " इरादा भांप क्यों नहीं पाई ?" अविनाश के चेहरे में बस उसे उसकी आंखें ही दिख रही थी। जो धीरे धीरे करीब और बड़ी होती जा रहीं थी। "प्लीज सर " बहुत जोर से उसने अविनाश को धक्का देते हुए कहा ।वो सन्न रह गया, उसके  होश ठिकाने आ गए।उसने तुरंत टी वी बन्द किया।और  वहीं सर पकड़ कर बैैैठ गया। फिर उठते हुए बोला।

  "सॉरी सॉरी मैंम,  ...उठिए उठिए।"अविनाश  शर्मिंदगी से पसीने पसीने हुए जा रहा था। उसने लता को उठाया और पास के सोफे पर बैठाया। 

लता अभी भी अंदर से बुरी तरह डरी हुई थी। अविनाश का उसे उठाते हुए छूना , उसे लिजलिजा महसूस हो रहा था। उसकी नजरें, कान दरवाजे पर थे, ' काश कोई अभी ही आ जाये।'

 

अविनाश ने उसे डरा हुआ देखा तो स्थिति को संभालते हुए बोला।

 "मैंम झूठ नहीं कहूंगा एक पल को मैं बहक गया था। एम सो सॉरी ..प्लीज़ डोंट बी स्केयर्ड"

 "सर मुझे जाना है।" लता रुंधे गले से बोली।

"ओके ओके मैंम " अविनाश उससे दूर खड़ा हो गया।लता तेज़ी से भाग कर अपने रूम में आ गयी।


नाश्ते के समय सब थे सिवाय लता के। सबने डिनर के वक्त अविनाश को उससे काफी देर तक बात करते देखा था। उससे कहा वह जा कर लता मैंम को बुला लाये।अविनाश पहले तैयार नहीं हुआ मगर हेड के जोर देने पर वह लता को बुलाने चला आया।

"मैंम?" उसने लता के रूम को नॉक किया।

"कौन?" 

"मैंम आपको सब बुला रहे हैं।"

"जी ,मुझे नाश्ता नहीं करना ,मैं सीधे वेन्यू पर पहुंच जाऊंगी।"

"ओके मैंम" 


कुछ देर बाद लता उसी सदस्य के साथ वर्कशॉप में पहुंची जिसके साथ अविनाश ने उसे देखा था। अविनाश ने देखा आज वह उसके साथ भी खींची खींची सी थी। हेड ने अविनाश और लता को एक टीम में कर दिया। अविनाश के पास अब मौका था सफाई देने का।


प्रेजेंटेशन को तैयार करने के बहाने उसने बात शुरू की।और कहा 

"मैंम आई होप आप मुझें माफ कर देंगी।"

"..." 

"प्लीज़ आई बेग..सब भूल जाइये, में बहुत शरमिन्दा हूँ।"

"..."

"असल मे आपको राजीव के साथ कॉफी पर देखा था फिर आप यहां कुछ और वहां उसके साथ कुछ... और .."

"तो?  ..."

"होनेस्टली मुझे लगा कि आप .." अविनाश पूरी ईमानदारी से लता मैंम को एक एक वजह साफ कर देना चाहता था।

"इजी हूँ, अवेलेबल हूँ? "

"सॉरी ... सॉरी मैंम गलत इमेज बन गयी थी... प्लीज़ वो बस वक्ती तूफान..." 

"ओके सर ..अब आप काम पर ध्यान दीजिये।

लता ने कठोर और सपाट चेहरे से कहा। अविनाश उस समय लता की मजबूती देख कर दंग रह गया। उसे सुबह की लता और इस वक्त की लता में जमीन आसमान का फर्क दिख रहा था।

प्रेजेंटेशन के बाद सबने अविनाश और लता की टीम को बहुत सराहा। अविनाश लंच के दौरान अपनी प्लेट ले कर एक कोने में जा कर बैठ गया।


"हाय!अविनाश जी अम राजीव "

"हेलो राजीव जी"

"सर आपके और लता मैंम के बीच जबरदस्त सिंक था आज ,कमाल का प्रेजेंटेशन था।"

"आप लंच नहीं करेंगे?" अविनाश ने बात टालने की कोशिश की।


" लता मैंम इज़ सो केयरिंग न हेल्पिंग नेचर की हैं न!आज के जमाने में बिना स्वार्थ कौन किसी के काम आता है। मदद करने के लिए आउट ऑफ द वे भी चली जाती हैं,अपनी इमेज की भी परवाह नहीं करती..यू नो औरत होना और ..वो सब दकियानूसी बातें।

राजीव बोले जा रहा था। " ऐसे देखिये तो कितनी शान्त और जब फॉर्म में आती हैं तो एज इफ कोई और...अलग ही पर्सनालिटी होती है उनकी..वर्क फ्रंट पर तो ...सबके तोते उड़ा देती है । अविनाश ने राजीव को देखा।


"यू नो हर वेरी वेल इसन्ट ?"

"येप, हम एक दूसरे को काफी सालों से जानते है। शी इस एक्चुअली ग्रेट फ्रेंड।हमारी मित्र मंडली इस बार हमें जॉइन नहीं कर पाई,सो क्या करें...हहहह एक दूसरे का ही सर खा रहे हैं।"

"आई सॉ बोथ ऑफ यू यस्टरडे " अविनाश ने कनखियों से राजीव को देखते हुए कहा।

" यस्टरडे?"

"कॉफी शॉप?! "

"ओह हाँ, श्योर देखा होगा। आज तो आप भी हमारे साथ चलने वाले थे!"

"व्हाट डू यू मीन?"


"कल रात शायद आपकी उनसे डिनर पर बात हुई होगी, उन्होंने मुझे फोन पर बताया था कि आप जेंटल मेन लगे उसे,बहुत सेंसिबल,पोलाइट ..सच कल जलन हो गयी थी आपसे जब उन्होंने कहा सर को अपने ग्रुप में ऐड करते है और कल बढ़िया कॉफी पिलाते है", राजीव ने हंसते हुए कहा।


"ओह के"

"पर अब एक उलझन है।"

"व्हाट?" 

"वो अब आपको क्या, मेरे साथ भी कहीं नहीं जाना चाहती..इट्स सो स्ट्रेंज!? कह रही थीं कि अब वे कभी किसी के साथ न फ्रैंडली होंगी न कहीं जाएंगी।" कह कर राजीव उठ गया। अविनाश ने देखा लता मैंम अपना पर्स उठा कर बाहर निकल रही थी।

  राजीव भागता हुआ लता मैंम के पास पहुंचा, शायद उसके साथ चलने को कहा रहा था। लता ने दोनों हाथ जोड़े कुछ कहा और मुस्करा कर चली गयी। 

अविनाश जानता था कि उसने लता के मन पर जो घाव दिया है वो अब हमेशा नासूर की तरह रहेगा।


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