हट जा रे खड़ूस!

हट जा रे खड़ूस!

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मुम्बई सेंट्रल ,यात्रीगण अपने -अपने  ट्रेन के आने के इन्तज़ार में बैठे हैं। कुछ को ट्रेन पकड़ के कहीं जाना है और कुछ, किसी के आने का इन्तज़ार कर रहे हैं। सुबह-सुबह शोर थोड़ा कम है, लोग भी कम हैं। कुली लोग सामान ढोने वाली हाथ-गाड़ी लेके तैयार हो रहे हैं, मुम्बई राजधानी कुछ ही देर में आने वाली है। 

कुछ लोग अख़बार पढ़के देश-दुनिया की ख़बर ले रहे हैं। पुलिस और सुरक्षाकर्मी अपनी ड्यूटी पे तैनात हैं। हर तरह के लोग स्टेशन पे दिख रहे हैं, सफ़ेद टोपी लगाए कुछ मौलाना लोग आपस में हाथ मिला रहे हैं , कुछ लोग बैठे चाय पी रहे हैं, स्टेशन जैसा स्टेशन लग रहा है। 

तभी एक पागल सी दिखने वाली, थोड़ी ज़्यादा उम्र की लड़की, प्लेटफ़ॉर्म की तरफ़ से, वेटिंग हॉल में दाख़िल होती है। उसके कपड़े गन्दे लग रहे हैं जैसे बहुत दिनों से धुले नहीं हैं, या बहुत दिनों से उतरे नहीं है और जितनी गन्दगी जम सकती थी,जम चुकी है। एक तरह से ये भी कह सकते हैं कि उसके कपड़े इतने गन्दे है कि उससे और ज़्यादा गन्दे अब हो नहीं सकते। ये भी कह सकते है कि गन्दगी ने अब उसके कपड़ों से मुँह मोड़ लिया है,अब गन्दगी को भी उस गन्दी लड़की के कपड़े गन्दे करने में मज़ा नहीं आ रहा है, वो लड़की इतनी गन्दी दिख रही है। 

उसने अपना दुपट्टा अपने सीने पे कुछ इस तरह फैला रखा है कि उसके सीने के साथ-साथ उसका पेट भी ढका हुआ है, इतनी समझ है उसे। 

वो लड़की ढूँढ़-ढूँढ़ के कुली लोग के पास जाती है और कहती है, "गुड मॉर्निंग"

एक अधेड़ उम्र के कुली ने कहा, "आ गई तू?"

उस पागल सी दिखने वाली लड़की ने कहा, "ए मामा, दे ना,चाय-पानी दे ना"

उस अधेड़ सी उम्र वाले कुली के पास कुछ कुली और बैठे हुए हैं, एक ने कहा, "चाय-पानी चाहिए तुझे, हाँ...?"

वो लड़की अजीब-अजीब सी हरकतें कर रही है। कभी अजीब सी ज़ुबान में बातें करने लगती है, जो किसी को समझ में नहीं आ रही है,कभी वो बेमतलब हँसने लगती है। हर कुली के पास जाती है और चाय-पानी माँगती है, कोई उसे कुछ दे नहीं रहा है सब बस खीसे निपोर के हंस रहे हैं। 

वो लड़की भी हंस रही है,उसके पास और कोई तरीक़ा भी नहीं है, उनकी ‘ना’ को हज़म करने का। ये कुछ ऐसा है कि उसे भी मालूम है कि, “कौन देगा और कौन नहीं देगा” और जिनसे वो हाथ फैला के माँग रही है उन्हें भी मालूम है कि, “ये तो इसकी आदत है”

बड़ी मेहनत के बाद एक कुली ने उसे पाँच रुपए दिये।वो लड़की बड़ी ख़ुश हुई,पाँच रुपए पाकर उसे ऐसा लगा जैसे उसने सबकुछ पा लिया,पाँच रुपए के सिक्के को उसने उलट-पलट के देखा जैसे देख रही हो कि, “कहीं नकली तो नहीं? लोगों का क्या भरोसा?”

पाँच रुपए उसने अपनी सलवार के नेफ़े में ठूँस लिए और तसल्ली से अपनी कमीज़ नीचे सरका दी, ऐसे, जैसे उसने वो पाँच का सिक्का ज़मीन में गाड़ दिया है और अब किसी की नज़र उस पे पड़ने वाली नहीं। 

एक अधेड़ उम्र का कुली उसे बड़ी गहरी नज़र से देख रहा है। लड़की से उसकी नज़र मिलती है तो भी उसने अपनी नज़र न हटाई, आख़िर में लड़की को ही अपनी नज़र हटानी पड़ती है। 

"और चाहिए?" उस अधेड़ उम्र के कुली ने पूछा। 

उस लड़की को मालूम है कि, “ये देने वाला कुछ नहीं है, बस फोकट में मज़े ले रहा है” उसने भी उसकी ही ज़ुबान में जवाब दिया, "हट, जा रे खडूस...!!"

उस कुली का मुँह इतना सा हो गया क्यूँकि बाकी कुली उस पे हँसने लगे, लड़की को भी लगा कि, “मैंने करारा जवाब दिया है” मगर उस कुली की आँखों में ‘कुछ’ उतर आया था जो किसी ने नहीं देखा। 

कुछ और लोगों के सामने दाँत निपोरने के बाद जब उसे लगा कि, “अब कुछ नहीं मिलने वाला”, तब उसने सोचा, “कुछ खा लेती हूँ। सुबह से कुछ खाया नहीं है” फिर वो पास ही की एक नाश्ते की दुकान से कुछ लेके खाने चली जाती है, कुली लोग आपस में बात करने लगते हैं, लोगों का आना-जाना बदस्तूर जारी है। 

वो लड़की नाश्ता करने के बाद हाथ धोने के लिए महिला शौचालय में घुस जाती है। सुबह-सुबह का वक़्त है, भीड़ कुछ ज़्यादा नहीं है। वो लड़की शौचालय से निकलती है कि, “चलूँ, अब थोड़ी देर का इन्तिज़ाम हो गया, फिर भूख लगेगी, तब देखूँगी” इतने में ही किसी ने उसे झटके से अपनी ओर खींचा और वो आवाज़ न करे, इसके लिए उसके मुँह पर अपना हाथ रख दिया। उसे कुछ समझ में आता, इससे पहले ही उसे शौचालय में घसीट लिया गया, जब घसीटने वाले का हाथ उसकी सलवार का नाड़ा ढूँढ़ने लगा, तब उसे लगा कि, “इस आदमी की नज़र मेरे पैसों पे है, जो मैंने अपने नेफ़े में ठूँसा था, लेकिन उन पैसों से तो मैंने नाश्ता कर लिया”

पर वो नासमझ ये न समझी कि ये बात तो उसे मालूम है, उस आदमी को नहीं और उस पागल लड़की को तो ये भी पता नहीं था कि जो बात उस आदमी को मालूम है, वो उसे नहीं मालूम है। 

उस आदमी की मज़बूत पकड़ के आगे वो पागल, कमज़ोर लड़की, कमज़ोर पड़ जाती है, लेकिन उस आदमी ने तो उसके नेफ़े की तरफ़ ध्यान भी न दिया।अब उस लड़की को ये नहीं समझ आ रहा है कि, “आख़िर ये आदमी चाहता क्या है? इसे अगर पैसे नहीं चाहिए थे तो इसने मेरा नाड़ा क्यूँ खोला?”

तभी उस पागल लड़की के मुँह से एक दबी हुई चीख़ निकलती है, “हट जा रे खड़ूस...!!!”

 


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