होली का आगमन
होली का आगमन
चारों तरफ धूम मची हुई थी ,सभी रंग बिरंगे होकर इधर से उधर घूम रहे थे।किसी के मुंह में पीला तो किसी के मुंह में लाल रंग लगा हुआ था। बच्चों की पार्टी तो और भी मस्त होकर घूम रही थी। पार्क में खाने पीने की व्यवस्था के साथ साथ डीजे भी लगा था। कुछ आदमी और औरतें होली के गानों पर नृत्य भी कर रहे थे।
रामप्रसाद भी सफ़ेद धोती-कुर्ता पहने हुए अपनी पत्नी के साथ वहांमौजूद थे। उनकी पत्नी सविता देवी ने भी पीले रंग की साड़ी पहनी हुई थी जो उन पर बहुत अच्छी लग रही थी। हालांकि दोनों के ही चेहरे पर खुशी नाम की चीज नहीं थी ,होती भी कैसे अभी एक सवा साल पहले उन्होंने अपना बेटा खोया था। दो साल के पोते का दिल रखने के लिए दोनों उसे लेकर पार्क में आये थे। लोग अबीर का टीका लगाकर उनसे होली खेल रहे थे ,इन सब से बच्चा बहुत खुश हो रहा था।
" आपकी बहू रिंकी कहां है ?" एक महिला ने सविता जी से पूछा।
" घर में ही है , बहुत कहा पर नीचे नहीं आयी। आज सुबह से ही बहुत उदास है।" सविता जी ने उत्तर दिया।
"हां वो तो है ,पर यहां आती तो उसका मन ही लगा रहता।" पड़ोसन ने कहा।
"क्या करें समझाते तो बहुत हैं पर अभी कच्चा घाव है ,भरने में समय लगेगा।"सविता देवी ने कहा।
बड़े ही धूमधाम से अभी तीन साल पहले रामप्रसाद जी ने अपने इकलौते और इंजीनियर बेटे श्रेयांस का विवाह रिंकी से किया था। श्रेयांस एक इंजीनियर था तथा रिंकी ने भी एम.ए. किया था। साल बीतते बीतते उनकी गोद में एक बेटा भी आ गया। सभी बहुत खुश थे। चांद सी बहू और सुंदर सा पोता पाकर दोनों ही मानों निहाल हो गये थे।सविता जी सभी से अपनी बहू की तारीफ करते थकती नहीं थीं।बहू में ही उन्हें बेटी नजर आती थी। श्रेयांस की शादी भी केवल लड़की की सुन्दरता और पढ़ाई देखकर की थी , उन्होंने एक रुपए भी दहेज़ में नहीं लिए ,ना ही कोई सामान ही लिया। रिंकी एक गरीब परिवार की लड़की थी पर उसकी सास ने उसे इस बात का आभास भी नहीं होने दिया। दोनों सास-बहू कम मां बेटी ज्यादा लगती थी।
क़िस्मत का भी खेल न्यारा ही है।उनकी खुशी पर ग्रहण लग गया। श्रेयांस बहुत ज़्यादा शराब और सिगरेट पीने का आदी था। इसी आदत के कारण उसे अचानक ही हार्ट अटैक आया और फिर बचाया नहीं जा सका। रिंकी बदहवास सी हो गई थी। रामप्रसाद तथा सविता देवी इतने बड़े सदमे के बावजूद रिंकी
और बच्चे को संभालने में लगे थे।छ:महीने के बच्चे ने तो पापा को ठीक से पहचाना भी नहीं होगा।
करीब साल भर बाद रिंकी अपने को थोड़ा संभाल पायी थी। रामप्रसाद जी ने उसकी सर्विस एक प्राइवेट स्कूल में लगवा दी ताकि चार लोगों के बीच में उसका मन लगा रहे। सविता देवी ने बच्चे की जिम्मेदारी स्वयं ले रखी थी। वे दोनों बहू और पोते की खुशी में ही अपनी खुशी देख रहे थे।
रामप्रसाद जी के बड़े भाई का लड़का जो श्रेयांस का ही हमउम्र था ,वह भी होली में उनसे मिलने के लिए आया हुआ था। पुनीत रिंकी की सुन्दरता और सादगी का तो पहले से ही कायल था। वह रिंकी के उदास चेहरे को खुशी देना चाहता था पर डरता था की कहीं चाचा-चाची बुरा ना मान जायें। पता नहीं रिंकी ही उसे
गलत ना समझ बैठे।
मौका देखकर उसने चाचाजी से मन की बात कह डाली।
"चाचा जी रिंकी की अभी उम्र ही क्या है,वह कैसे अकेले पूरा जीवन पार करेगी ?"
"इसकी चिंता तो मुझे भी है बेटा ,कोई अच्छा रिश्ता मिले तो बात भी करूं।"रामप्रसाद जी ने
कहा।
"चाचा जी अगर आप मुझे इस योग्य समझें तो मैं तैयार हूं। आखिर मैं भी एक अच्छी सर्विस करता हूं। "पुनीत उत्साहित होकर बोला।
बेटा तुम ,तुम तो सबसे अच्छे हो।पर क्या भैया भाभी भी सहमत होंगेे। वे एक कुंवारे लड़के की शादी विधवा लड़की से करने के लिए तैयार हो जायेंगें ?
"हां चाचाजी वे भी तो आपके ही भाई हैं। मैंने मम्मी-पापा को मना लिया है। बस आप दोनों की और रिंकी की मंजूरी चाहिए।" पुनीत खुश
होते हुए बोला।उसे उसकी आकांक्षा सत्य सिद्ध होती दिख रही थी।
रामप्रसाद जी ने सारी बात सविता को बतायी। सविता भी यही चाहती थी की रिंकी का किसी तरह से फिर से घर बस जाये। वे उसके भविष्य के बारे में बहुत चिंतित रहती थीं। हमेशा सबसे यही कहतीं ,"जब तक हम दोनों हैं ठीक है,उसके बाद रिंकी का क्या होगा ?वह कैसे अकेले पूरा जीवन काटेगी ? अभी उम्र ही कितनी है, मात्र तेईस वर्ष।" सविता के मंजूरी के बाद रिंकी से बात करने की समस्या सामने आयी। रिंकी का कहना था की वह मम्मी-पापा को छोड़कर कहीं नहीं जायेगी ,उन्हीं की सेवा में जिंदगी बिता देगी। बेटा भी तो है वह कल
को बड़ा होकर हम सबका साथ देगा।
आखिरकार सबके समझाने पर और यह कहने पर की तुम्हें कहीं जाना कहां है तुम तो इसी परिवार का हिस्सा बनी रहोगी ,रिंकी ने बड़ी मुश्किल से 'हां' किया। आज सभी को होली का रंग चटकीला और सुंदर नजर आया। रिंकी के जीवन में होली का रंग पुन: प्रवेश कर रहा था।