हमनवां day-6
हमनवां day-6
मेरे हमनवां,
ई -मेल और मैसेज के जमाने में खत लिख रही हूँ,
समझ जाना आज कुछ बहुत अहम् लिख रही हूँ।
हम दोनों लगभग पिछले २ वर्षों से एक -दूसरे के साथ हैं । हम दोनों एक -दूसरे को पसन्द करते थे और फिर धीरे-धीरे पसंद प्यार में बदली । तुम मुझमें अपनी भावी जीवन संगिनी देखने लगे, लेकिन माफ़ करना मैं तुममें अपना भावी जीवनसाथी नहीं देख पायी ।
इसीलिए कल जब तुमने मुझसे पूछा कि,"मुझसे शादी करोगी ?" मैं बिना कोई जवाब दिए वहाँ से उठकर चली आयी थी । अपने अशिष्ट व्यवहार के लिए तुमसे क्षमा चाहती हूँ ।
अपनी बात कहने से पहले तुमसे एक प्रसंग साझा करना चाहती हूँ, उम्मीद है तुम मेरी बात समझोगे ।
कबीरदास जी ऐसे ही एक बार अपने घर आये कुछ आगंतुकों से चर्चा कर रहे थे। चर्चा का विषय था कि अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में शादी एक बड़ी बाधा है। आप जैसे ज्ञानी पुरुष ने शादी क्यों कर ली। ज्ञातव्य हो कि कबीर जी शादीशुदा थे। कबीरजी ने कुछ नहीं कहा।
उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज़ लगाते हुए कहा कि,"ज़रा एक दीपक तो जलाकर ले आना।" कबीरदास जी की पत्नी बिना कुछ कहे भरी दोपहरी में दीपक जलाकर वहां रखकर चली गयी। कबीर जी ने आगंतुकों को कहा अगर आपसी समझ हो तो शादी उद्देश्य प्राप्ति में बाधक नहीं है, बल्कि सहायक है। " आगंतुकों को अपना जवाब मिल गया।
मेरे मन में एक प्रश्न, जो है तो बड़ा ही सरल लेकिन बार-बार उठता रहता है। प्रश्न यह है कि इंसान शादी क्यों करता है ? लेकिन इसका कोई संतोषजनक जवाब आज तक भी मुझे नहीं मिल पाया है। अगर कबीर जी के साथ घटित प्रसंग पर गौर फरमाए तो शादी किसी न किसी उद्देश्य के लिए होनी चाहिए।
वास्तव में, पीकू मूवी में भी अमिताभ बच्चन ने यही कहा था कि उद्देश्यविहीन शादी की कोई सार्थकता नहीं है। आप अकेले होते हैं, शादी से आप १ और १ ग्यारह हो जाते हैं। लेकिन समस्या यह है कि पुरुष के लिए तो १ और १ ग्यारह हो जाते हैं, लेकिन स्त्री के लिए १-१ =0 हो जाता है। हम सभी कबीर जी को जानते हैं, उनके कार्यों और उपलब्धियों के पीछे निश्चित तौर पर उनकी पत्नी का योगदान भी कुछ कम तो नहीं रहा होगा, लेकिन उनका नाम हम में से कितने ही लोग जानते हैं। मैं ऐसी शादी बिल्कुल नहीं करना चाहती जहाँ 'हम ' का अर्थ सिर्फ 'तुम ' हो और 'मैं 'कहीं गुम हो जाऊं।
इतिहास ऐसे अनेक उदाहरणों से भरा हुआ है, जहाँ पुरुष अपने जीवन में इसलिए महान उपलब्धियाँ हासिल कर सके कि उनकी शेष जरूरतों और कार्यों की देखभाल के लिए उनकी पत्नियां थी। तो क्या स्त्री के जीवन का सिर्फ यही उद्देश्य है कि वह अपने पति की देखभाल करे और पति के जीवन -उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान दे? आज भी हम में से अधिकांश स्त्रियां इसे ही अपना उद्देश्य मानती हैं, इनके ऑफिस का टाइम हो गया है, इनके आने का टाइम हो गया है, इनके खाने का टाइम हो गया है। तो फिर हम स्त्रियों के लिए शादी का अर्थ क्या है ?
किसी स्त्री के उद्देश्य प्राप्ति में पति ने सहयोग किया हो, ऐसे उदाहरण शायद ही मिले और मिलेंगे भी तो उँगलियों पर गिनने लायक। इस सबके बावजूद अगर हम शादी जैसे संस्थान पर आवाज़ उठा दें तो हमें परिवार तोड़ने वाला और पता नहीं क्या -क्या कहा जाएगा। परिवार का अर्थ है जहाँ सब एक -दूसरे को सहयोग करे। सब साथ हों, साझेदार हों, सभी को अपने -अपने व्यक्तित्व के विकास का पूरा -पूरा अवसर मिले।
स्त्रियों को कभी भी अपनी क्षमताओं को विकसित करने का पूरा अवसर दिए बिना ही उन्हें क्षमताहीन मान लिया गया। स्त्रियों का कोई उद्देश्य ही नहीं होता। इतना ही नहीं चार आश्रम भी पुरुषों के लिए ही थे, स्त्रियों के लिए केवल गृहस्थाश्रम था। क्यूंकि स्त्रियां तो केवल घर ही सम्हाल सकती हैं, शासन, प्रशासन, युद्ध आदि यहाँ तक की अध्यात्म के क्षेत्र में भी स्त्रियों की अनुपस्थिति दिखती है।
स्त्री के लिए फिर शादी का अर्थ क्या माना जाये ?अब अगर कोई नए अर्थ देने की कोशिश करे तो यह समाज आसानी से उसे घर तोड़ने वाला कह देता है। क्यूंकि समाज ने घर जोड़ने की भी पूरी जिम्मेदारी स्त्री को ही तो दे रखी है। शादी को सफल बनाने के लिए दोनों ही साझेदारों का योगदान होना चाहिए। लेकिन हम स्त्रियां तो खुद ही यह सीख लेती हैं या हमें सिखा दिया जाता है कि शादी को सफल बनाने के लिए हमें ही पूरे प्रयास करने हैं। क्यूंकि हमारे तो जीवन का उद्देश्य ही शादी है।
लेकिन मेरे लिए शादी का अर्थ अलग है । शादी मेरे जीवन का एक हिस्सा हो सकती है, पूरा जीवन नहीं। शादी दोनों ही साझेदारों को आगे बढ़ने में, प्रगति करने में सहयोग देने वाली होनी चाहिए। तब ही मेरे लिए शादी का सही अर्थ साकार हो पायेगा। अगर तुम ऐसे विचार वाली स्त्री के साथ अपन पूरा जीवन व्यतीत कर सकते हो तो तुम्हारा प्रस्ताव स्वीकार है । अन्यथा तुम मेरे हमनवां अवश्य रहोगे, लेकिन हमसफ़र नहीं बन पाओगे ।
तुम्हारी अपनी।