हम बच्चों द्वारा मां की जासूसी
हम बच्चों द्वारा मां की जासूसी
जब हम छोटे थे तब का यह संस्मरण याद आ गया। कल भाई साहब से बात हो रही थी। तो वह चक्की चुराना याद कर रहे थे बहुत हंसे हम। हमारे यहां पर दिवाली पर और कोई भी त्यौहार पर मेरी माता जी बेसन की चक्की बहुत अच्छी बनाते। उस दिन तो हमको खाने दे देते। फिर क्योंकि घर में बहुत लोग होते थे तो थोड़ा वह छिपाकर स्टोर की कोई टांड में छुपा देते। हम बच्चे ठहरे शैतान हमको तो चक्की बहुत ज्यादा चाहिए होती थी । तो हम क्या करते हैं जैसे ही माताजी मंदिर के लिए निकलते। हम सब भाई बहन सबसे बड़े भाई साहब तो चक्की निकालने टांड पर चढ़ते और हम तीनों। मैं सब से बाहर खड़ी रहती और सीक्रेट इशारा करना होता था कि बाई जी आ रहे हैं।
कभी तो मजे से नहीं आते तो भी इशारा कर देती थी, तो सब एकदम भागते थे क्योंकि हमारी माता जी बहुत स्ट्रिक्ट थी। कभी पकड़े जाते कभी नहीं पकड़े जाते मार तो हमने कभी नहीं खाई, मगर चक्की बहुत मजे से चुराई हुई खाते थे और बहुत मजे ले लेकर। वास्तव में वह बहुत टेस्टी लगती थी ।
अब कहां वह बचपन रहा और कहां बाईजी कहां दोनों भाई रहे दीदी रही खाली हम तो भाई बहन हैं। बीच वाले भाई साहब उनको बहुत याद कर रहे थे और उस मंजर को भी जो हम करते थे। बाई जी के हाथ के सत्तू चक्की बेसन वाली और उनके हाथ का खाना सभी हम बहुत मिस करते हैं बहुत याद करते हैं।
यदों के मंजर से निकाला गया खजाना आपके साथ बांट रहे हैं।