Anita Sharma

Inspirational

4  

Anita Sharma

Inspirational

हक उपहारों पर नहीं प्यार पर है

हक उपहारों पर नहीं प्यार पर है

4 mins
415


"सीमा तुम सुबह-सुबहअलमारी में क्या खोज रही हो? आज तो तुमने हमारे साथ नाश्ता भी नहीं किया । क्या हुआ कोई परेशानी है क्या?"

सीमा के पति नीरज ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुऐ पूछा तो सीमा डबडबाई आंखों से उसकी तरफ देखते हुऐ बोली.....

" नीरज मां जी ने आज सुबह ही बताया कि आपकी बड़ी बहन पूजा राखी पर बच्चों के साथ आ रहीं है तो उनके बच्चों को तो उपहार में नये कपड़े दिलाने ही पड़ेगें पर सोच रही हूं कि दीदी को जो पिछले रक्षाबन्धन पर मुझे मेरे भाई ने महंगी बाली साड़ी दी थी वही दे दूं। क्योंकि हमारा बजट इतना नहीं है न कि हम उनको नई साड़ी दिला सकें। ऊपर से इस बार तो हमने घर की मरम्मत भी करवा ली तो कैसे होगा सब? इसलिए वो साड़ी बाहर निकाल कर रख रही हूं।"

"सही कह रही हो तुम सीमा इस बार तो बॉस ने बोनस भी नहीं दिया। पर वो साड़ी तुम्हारे भाई ने तुम्हें कितने प्यार से दी थी तुम वो मत दो मैं कुछ करता हूं तुम परेशान मत हो।"


नीरज दुःखी होकर बोला और परेशान सा अपने ऑफिस चला गया। कैसा होता है नीरज अपनी दीदी से बहुत प्यार करता है। वो दिल से चाहता है कि अपनी दीदी को कुछ दे पर दीदी का साल में तीन बार आना और मां द्वारा उसके ऊपर उन्हे हरबार महंगें कपड़े और गिफ्ट दिलाने के लिऐ कहना उसे परेशान कर जाता है क्योंकि एक छोटी सी नौकरी करने वाले के लिऐ जिसका अपने परिवार के महीने भर का खर्चा चलाना मुश्किल हो जाता है हर बार बहन के लिऐ गिफ्ट लेना मुश्किल हो जाता है। 

बहुत दिमाग लगाने और जोड़-तोड़ करने पर भी जब नीरज पैसों का कोई इंतजाम नहीं कर पाया तो अपनी बीबी की साड़ी ही बहन को देने का सोच वो उदास होकर शाम को घर वापिस आ गया। पर घर में सीमा के चेहरे की खुशी उसे कुछ समझ नहीं आ रही थी। सुबह पैसों का इतना गुणा भाग करने वाली सीमा शाम होते -होते इतनी खुश होकर कैसे अपनी ननद के स्वागत की तैयारी करने में लगी थी। इसलिये नीरज ने सीधे से जाकर अपनी पत्नी से पूंछ ही लिया......

"क्या बात है सीमा बड़ी खुश लग रही हो? अब तुम्हें दीदी के आने और घर के बजट की चिन्ता नहीं हो रही?"

"नहीं जिसकी ननद इतनी अच्छी हो जो बिना कहे ही सब समझ जाऐं तो फिर हमें चिन्ता करने की कोई जरूरत ही नहीं है नीरज" सीमा ने चहकते हुऐ कहा तो नीरज आश्चर्य से आंखी बड़ी करते हुऐ पूछा.."मतलब"

तो सीमा मुस्कराते हुऐ बोली.....


"मतलब अभी थोड़ी देर पहले पूजा दीदी का फोन आया था वो था यहां आने से मना कर रही थी। जब मैंने उनके न आने का कारण पूछा तो उन्होंने सकुचाते हुऐ कहा कि.....

" भाभी भाई बहन के जितने भी त्यौहार है एक शहर में होने के कारण मैं सारे आप लोगों के साथ ही मनाना चाहती हूं, मां भी हरबार बुलाती है तो मैं मना नहीं कर पाती । पर अब मैं सोच रही हूं कि आना बंद कर दूं क्योंकि हरबार आप जो उपहार और पैसे खर्च करती है वो मुझे अच्छा नहीं लगता। ऐसा लगता है जैसे मैंने वहां आकर फालतू में ही आप लोगों पर अपना बोझ डाल दिया। इसलिये अबसे में एक ही शर्त पर वहां आऊंगी कि आप उपहार और विदाई के नाम पर ज्यादा खर्चा नहीं करोगी। साल में एक बार तो फिर भी ठीक है पर हरबार नहीं"!

"तो तुमने उनसे कहा नहीं कि ये उनका हक है! मां भी तो यही कहती हैं। अगर मेरी आर्थिक स्थिति ठीक चल रही होती तो हमें कोई परेशानी भी नहीं है इससब से !"

मैंने कहा था उनसे उनके हक के बारे में पर उन्होंने बड़े प्यार से समझाया कि....

"भाभी मेरा हक उपहारों पर नहीं आप सबके प्यार पर है! मैं वहां आऊं और उससे आपकी परेशानी बढ़ जाये तो स्वाभाविक तरीके से आप सबका प्यार मेरे लिऐ कम हो जाएगा जो मैं बिल्कुल नहीं चाहती। अब आप या तो मेरी शर्त मानो नहीं तो मैं अब त्योहारों पर आना बंद कर रही हूं।"


और तो और उन्होंने तो इसके लिऐ मां जी को भी मना लिया। तो मैंने भी उनकी ज्यादा खर्चा न करने की शर्त मान ली। क्योंकि उनके आने से हमें कभी भी कोई परेशानी थी ही नहीं परेशानी तो बजट की थी। जब वो परेशानी खत्म हो गई तो मैं खुशी-खुशी उनके स्वागत की तैयारी में लग गई।"

सीमा की बात सुनकर नीरज के मन में अपनी बहन के लिऐ सम्मान और आंखों में प्यार के आंसू झिलमिला उठे। 

सच में बहनें अपने भाई के घर किसी उपहार या रूपये पैसे के लालच में नहीं आती वो तो आती है उनसे प्यार और सम्मान पाने। अपने बचपन को याद करने और सबसे बड़ी बात त्योहारों पर माथे पर टीका और कलाई पर रेशमी डोर बांध अपने भाई की सलामती की दुआ करने। 


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational