राजकुमार कांदु

Tragedy Classics Inspirational

4.2  

राजकुमार कांदु

Tragedy Classics Inspirational

हिस्सा

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” भैया ! अंजलि के लिए हम जो लड़का देख कर आये हैं वह किसी भी तरह अंजलि के काबिल नहीं हैं। मुझे समझ नहीं आ रहा अंजलि इस रिश्ते के लिए कैसे तैयार हो गयी ? ” मदन ने अपने बड़े भैया सोहन से मन की आशंका जाहिर की।

सोहन कुटिलता से मुस्कुराता हुआ बोला ” लल्ला ! तू न समझेगा मेरी चाल ! फिर बुराई क्या है उस लड़के में ? चालीस साल का ही तो है। भले अंजलि पच्चीस की ही है लेकिन विधवा होने के साथ ही एक बेटे की माँ भी है। भला अपनी बिरादरी में कौन उसका हाथ थामेगा ?”

” भैया ! लेकिन इसमें चाल क्या है ? मैं समझा नहीं। ”

” तू ठहरा नीरा बेवकूफ ! सोच अगर अंजलि शादी से इनकार कर दे तो क्या होगा ? पूरी जिंदगी हमें उसे और उसके बेटे को बैठाकर खिलाना पड़ेगा। इतना ही नहीं उसके बेटे को अपनी संपत्ति में से भी एक हिस्सा देना पड़ेगा। शादी के लिए उसे रजामंद करके मैंने एक तीर से दो शिकार किये हैं। समाज की नजर में बड़े भाई का फर्ज भी निभाया और अपनी संपत्ति में एक और हिस्सा लगने से भी बचा लिया। है कि नहीं मस्त चाल। इसे कहते हैं ‘ हर्रे लगे न फिटकरी, रंग चोखा ‘। ”

” लेकिन भैया ! शादी के बाद भी अगर उसने अपना हिस्सा मांग लिया तो ? ”

” अरे ! तो समाज किस दिन काम आएगा ? ”


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