Sangeeta Aggarwal

Inspirational Others

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Sangeeta Aggarwal

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हिंदी दिलों की भाषा

हिंदी दिलों की भाषा

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"ओह किंशुक यहां तो कहीं भारतीय खाना नजर ही नहीं आ रहा जिधर देखो या तो नॉनवेज फूड रेस्टोरेंट हैं या पिज़्ज़ा बर्गर!" अपने पति के साथ हनीमून पर थाईलैंड आईं प्रकृति बोली।

"अरे प्रकृति अब तुम नॉन वेज की आदत डाल ही लो खाकर तो देखो बहुत टेस्टी है!" किंशुक स्वाद ले खाते हुए बोला!

"तुम्ही खाओ मैं बाहर जा रही हूं हो जाए तो आ जाना तुम!" प्रकृति ये बोल रेस्टोरेंट से बाहर आ बोली।


ये कहानी जब की है उस वक़्त थाईलैंड में भारतीय होटल नहीं थे कोई एक दो थे भी तो वहां भी नॉनवेज खाना ही मिलता था। अब तो हर जगह भारतीय खाने की धूम है और विदेशी भी बड़े चाव से खाते हमारे यहां के पकवान।


"कितना मना किया था क़िंशुक को अपने देश में ही कहीं चलते हैं घूमने पर इसे तो विदेश घूमने का भूत सवार था अब खुद कैसे मजे से खा रहा एक बार नहीं सोचा बीवी भूखी है!" बाहर आ प्रकृति खुद से सोचने लगी।

"आर यू इंडियन?" तभी उसे एक स्वर सुनाई दिया।

उसने पलट कर देखा तो एक अंग्रेज उससे सवाल कर रहा है।

"येस आई एम!" उसने जवाब दिया।

"आप खाना नहीं खा रहे!" उस अंग्रेज के मुंह से हिंदी सुन प्रकृति सुखद आश्चर्य से भर गई।

"हां पर आप हिंदी ...कैसे?" प्रकृति ने हकलाते हुए पूछा।


"मैडम मेरा नाम डेविस है मेरे पापा यहां थाईलैंड के हैं पर मेरी मम्मी इंडियन है तो उन्होंने मुझे हिंदी भाषा का भी ज्ञान दिया है। मुझे हिंदी भाषा बहुत प्यारी और दिल से जुड़ी लगती है मैं इस रेस्टोरेंट में पार्ट टाइम वेटर की जॉब करता हैं वैसे पढ़ाई भी करता हूं!" वो बोला।

"ओह तभी..वैसे यहां विदेशी धरती पर एक अंग्रेज के मुंह से अपनी भाषा को इतने अच्छे से सुन बहुत सुखद एहसास हुआ और आपसे मिलकर अच्छा भी लगा वैसे मेरा नाम प्रकृति है अपने हसबैंड के साथ हनीमून पर आईं हूं और सामने वाले होटल में रुकी हूं!" प्रकृति ने अपना परिचय दिया।

"ओके प्रकृति आप डिनर नहीं कर रहे?" डेविस ने सवाल किया।

"वो असल में मैं कोई भारतीय रेस्टोरेंट देख रही जहां मैं कुछ शाकाहारी भोजन कर सकूं क्योंकि मैं नॉनवेज नहीं खाती!" प्रकृति बोली।

"तो तुम पिज़्ज़ा बर्गर खा सकती हो हमारे रेस्टोरेंट में वो सब भी है!" डेविस बोला।

"असल में डेविस मैं कल से यही खा रही तो अब नहीं खाया जाएगा पर कोई नहीं मैं फलों से काम चला लूंगी!" प्रकृति बोली।

"अरे ऐसे कैसे आप हमारी मेहमान हैं हमारे देश में आईं हैं वो भी ऐसे देश से जो मेरे खून में भी बसा है, यहीं पास में मेरा घर है आप मेरे घर चलिए मेरी मम्मी आपसे मिल बहुत खुश होंगी!" डेविस बोला।

"पर डेविस ऐसे कैसे?" प्रकृति असमंजस में बोली।

"क्या हुआ प्रकृति ये जनाब कौन है?" तभी किंशुक बाहर आ डेविस को देख बोला।

"सर बन्दे को डेविस कहते हैं मैं इस रेस्टोरेंट का वेटर हूं!" डेविस ने खुद परिचय दिया और हाथ आगे बढ़ा दिया।

किंशुक ने हैरानी से डेविस को देखा और हाथ बढ़ा दिया। उसे हैरान देख प्रकृति ने डेविस के विषय में बताया और उसके निमंत्रण के विषय में भी बताया।

किंशुक और प्रकृति डेविस के साथ आने को तैयार हो गए डेविस अंदर जा अपना काम साथी को सौंप दोनों को के अपने घर आया।


"मां देखो कौन आया है!" डेविस ने बाहर से आवाज़ लगाई।

"कौन है डेविस?" एक आकर्षक सी 45-46 साल की महिला बाहर आई।

"नमस्ते मेम !" किंशु क और प्रकृति ने उन्हें नमस्ते किया जवाब में उन्होंने भी नमस्ते किया और डेविस की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। डेविस ने साइड ले जाकर उनसे कुछ कहा।

"बेटा आओ बैठो तुम दोनों खाना तैयार है बस मैं लगाती हूं!" डेविस की मां जिनका नाम चंद्रा था वो बोली।

"नहीं नहीं मैडम खाना नहीं!" प्रकृति ने कहा।

"ऐसे कैसे नहीं तुम हमारी मेहमान हो और मेहमान भगवान होता बैठो चुपचाप!" चंद्रा जी अधिकार से बोली अब मना करने की गुंजाइश नहीं थी।

प्रकृति और किंशु क डेविस के साथ बैठ गए उन्हें एक पल को भी वहां नहीं लग रहा था कि वो विदेश में है घर की सजावट भी भारतीय थी।

खाने में उन्होंने दाल चावल अचार सब्जी रोटी परोसी। किंशुक तो खाकर आया था उसने मना कर दिया प्रकृति को चंद्रा जी ने बड़े प्यार से खाना खिलाया प्रकृति को खाने में मां के हाथ का स्वाद आया उसकी आंख नम हो गई। उसने खुले दिल से खाने की तारीफ की।

खाना खा वो लोग कॉफी पीने बैठे तब प्रकृति ने पूछा।

"मेम आप इतने साल विदेश में रहकर भी पूरी तरह भारतीय हैं आपकी भाषा में भी जरा भी फर्क नहीं आया और तो और आपने डेविस को भी हिंदी सिखाई वो भी इतनी अच्छी!" 

"भारतीय कहीं भी चले जाएं रहते तो भारतीय ही वैसे भी हिंदी इतनी प्यारी भाषा है जो लगता दिल से बोली जाती हम दोनों जब अकेले होते तो हिंदी में ही बात करते अब तो मेरे पति भी थोड़ी हिंदी बोल लेते वो बाहर गए हैं वरना तुमसे मिलकर बहुत खुश होते!" चंद्रा जी बोली।


थोड़ी देर बैठ उन दोनों ने डेविस और चन्द्रा जी से विदा ली। चंद्रा जी ने इस वादे के साथ जाने दिया कि दोनों वक़्त का खाना वो डेविस के हाथ भेज देंगी। प्रकृति और किंशुक ने बहुत मना की पर वो नहीं मानी।

अगले आठ दिन प्रकृति का खाना डेविस लाता रहा। आज उन दोनों का थाईलैंड में आखिरी दिन है उन्होंने डेविस को कुछ पैसे देने चाहे तो डेविस बोला" हमने आपको खाना पैसे के लिए नहीं खिलाया आप हमारे मेहमान हो और मेहमान नवाजी के पैसे नहीं लिए जाते बस आप आज हमारे घर आयेंगी तो हमे अच्छा लगेगा!" 

"हम जरूर आएंगे!" किंशुक बोला।

"मेम ये आपके लिए !" अपने सामान में लाई एक खूबसूरत नई साड़ी और एक शाल चंद्रा जी को देती हुई प्रकृति बोली।

"बहुत सुंदर है ये मैं इसे जरूर पहनूंगी!" चंद्रा जी खुश होते हुए बोली।

"और ये डेविस तुम्हारे लिए!" वहीं की मार्केट से खरीदा एक परफ्यूम और पेन डेविस को देती प्रकृति बोली।

"शुक्रिया प्रकृति!" डेविस बोला। 


सबने खूब बातें की खाया पिया अब विदा लेने का समय था क्योंकि सुबह की दोनों की फ्लाइट थी वापसी की दोनों तरफ के लोगों की आंख भर आईं। दोनों ने अपने नंबर एक दूसरे को दिए।

"जब भी थाईलैंड आओ हमारे यहां जरूर आना!" चंद्रा जी प्रकृति को गले लगाती बोली।

"जी जरूर और आप भी भारत जरूर आना!" प्रकृति बोली।

"हम जरूर आएंगे आप लोगों से एक रिश्ता सा बन गया है जो हम याद रखेंगे!" डेविस नम आंखों से बोला।

"ये रिश्ता बना है इस भाषा की वजह से जो तुम्हारी मां ने तुम्हे सिखाई सच में हिंदी भाषा दिल की भाषा होती जो दिल के रिश्ते बनाती!" किंशुक बोला।

"बिल्कुल सही कहा ईस्ट और वेस्ट हिंदी इस द बेस्ट!" चंद्रा जी बोली तो सब नम आंखो से भी हंस दिए।

चलते समय प्रकृति और किंशुक को चंद्रा जी ने भी गिफ्ट्स दिए उन्होंने खूब सारी तस्वीरें खींची साथ साथ और विदा हो गए। प्यारी सी यादों के साथ।


सच दोस्तों विदेश में कोई अपना सा मिल जाए तो सुखद अनुभूति होती ही है और अपने अगर चंद्रा जी और डेविस जैसे प्यारे हो तो एक रिश्ता सा जुड़ ही जाता। हम नहीं जानते भविष्य में ये लोग दुबारा मिले ना मिले पर हिंदी भाषी होने के कारण उनमें एक रिश्ता सा जरूर बन गया जो शायद ही भुला जा सके।



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