हद.. बेहद
हद.. बेहद
ऑफिस में काम करते हुए उनके रिलेशन काम के साथ साथ कलीग ना होकर दोस्त से ज्यादा हो गये थे।
ऑफिस से साथ जाना...साथ आना... साथ लंच करना.... वह थोड़ी लिबरल थी...अपने थॉट प्रोसेस में और बिहेवीयर में भी...
घर के लोग भी जानते थे कि वे दोनों अच्छे दोस्त है। घर का अगर फ़ोन भी आता तो वह धड़ल्ले से बताती की वह उनके साथ है।
जिंदगी यूँही मजे से चल रही थी।
औरत का दोस्त जब दोस्त से इतर कोई होता है तो अमूमन उनकी बॉडी लैंग्वेज चेंज हो जाती है... और जाने अनजाने में वे अपने उस स्पेशल रिलेशन और उस स्पेशल पर्सन को दोस्तों में भी फ्लॉन्ट करने की कोशिश करती रहती है... शायद अपनी जीत को जताना चाहती हो ...
एक दिन वे दोनों लंच में रोज़ की तरह बात कर रहे थे की उनके फ़ोन की रिंग बजी।
उसने हँसतें हुए पूछा, घर से मिसेज का फ़ोन है?
उन्होंने होठों पर उँगली रखते हुए खामोश रहने का इशारा किया.....
शायद उनकी मिसेज का ही फ़ोन था।
वह अचकचा उठी...
बताना तो दूर वह उसके प्रेजेंस को ही नकार रहे थे। क्या उनका उसके प्रेजेंस को ही नकारना भर था?
नही... पत्नी के सामने शायद वह खुद को पाक साफ़ करार दे रहे थे....
आज अनजाने में ही उनका मुखौटा उतर गया था....
पब्लिकली उसके साथ उसका बिहेवीयर डिफरेंट होता था...
अचानक उसे उनसे और अपने उस रिलेशन से घिन आने लगी। उन्हें इशारा देते हुए की फोन पर बात जारी रखे झट से खड़ी होकर वह वहाँ से निकल गयी... शायद उस रिलेशन से भी....