dolly shwet

Inspirational

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हाउसवाइफ

हाउसवाइफ

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आज मार्केट में जैसे ही मोटरसाइकिल खड़ी करके अनिल सामान लेने के लिए सामान लेकर दुकान से बाहर आया तो उसका बचपन का मित्र रमेश मिल गया।


अनिल-"रमेश कैसे हो यार ।खुशी से अनिल अपने दोस्त से गले लग जाता है "बहुत साल हो गए मिले हुए घर में सब कैसे हैं"?

रमेश-"बढ़िया यार, तू सुना अनिल कैसा है।"


अनिल-"सब अच्छा है यार। पापा का रिटायरमेंट हो चुका है। मम्मी ठीक है। थोड़ा ब्लड प्रेशर रहता है पर मां बच्चों व घर को संभाल लेती हैं। मेरी पत्नी मोनिका टीचर है वह एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाती हैं। मेरी सर्विस में मुझे बाहर मीटिंग , सेमिनार, प्रोजेक्ट के काम से अक्सर शहर से बाहर जाना होता है। मेरे दो लड़के हैं अभी छोटी क्लास में ही है मोनिका ही उन्हें घर में पढ़ाती है।"

अनिल ने उत्सुकतापूर्वक अपने दोस्त से पूछा "चल मेरी छोड़ अपनी बता। बाबूजी अम्मा जी, बड़ी भाभी और नीतू भाभी क्या हाल-चाल है।"

 

रमेश -""बढ़िया हूं यार सर्विस चल रही है ।पापा मां ठीक हैं मां को 2 साल पहले लकवा मार गया था।तो वह अभी तक बेड पर हैं ,अपना काम भी नहीं कर पाती हैं।पिताजी का तुम जानते ही हो यार दोस्तों में ज्यादा रहना है तो उनसे मिलने कोई ना कोई आता रहता है।दीपू की शादी कर दी है| वह पुणे में शिफ्ट हो गई है। जीजा जी उसका बहुत ध्यान रखते हैं और वह डॉक्टर हैं।"


अनिल-"रमेश मुझे दीपक भैया के बारे में भी पता लगा यार बहुत दुख हुआ। बड़ी भाभी के क्या हाल-चाल हैं।"


 रमेश-"बड़ी भाभी ने भी भैया के जाने के बाद प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली है|"

 

अनिल-"नीतू भाभी वह तो एमएससी गोल्ड मेडलिस्ट हैं जरुर कोई बड़ी व्याख्याता बन गई होंगी ,वह तो बचपन से ही टॉपर है। अनिल ने रमेश की पत्नी नीतू के बारे में पूछा जो पढ़ाई में बहुत होशियार थी और उसके बहुत बड़े बड़े सपने थे और वह हर बार अपने कॉलेज के साथ साथ हर एक्टिविटी को टॉप करती थी|"


रमेश ने बड़े दुखी मन से यह कहा "नहीं यार जैसा सोचा था वैसा कुछ नहीं हुआ ,नीतू ने दो तीन बार कंपटीशन की तैयारी की पर वह फिर भी पास ना हो सकी| कंपटीशन की पढ़ाई के लिए मेहनत करनी पड़ती है| पर वह घर के काम में ज्यादा इंटरेस्ट लेती है तो कहां से पास होगी। 1-2 बच्चों को ट्यूशन जरुर पढ़ा लेती हैं|"


अनिल को रमेश की बात सुनकर अचंभा हुआ,और उसने रमेश से कहा , "यार अनिल यह कैसी बात कर है? कंपटीशन फाइट करना एक सामान्य आदमी के लिए बहुत बड़ी बात होती है। तुझे याद हो तो हमने भी बहुत मेहनत करी थी पर आज हम एक प्राइवेट जॉब में काम करते हैं।कंपटीशन की बात तो यह है कि कई बार मेहनत का फल एक सामान्य वर्ग को नहीं मिल पाता।फिर एक औरत की बहू के रूप में , पत्नी के रूप में , और मां के रूप में बहुत जिम्मेदारियां होती हैं। रमेश जरा सोचो।"

  

अनिल थोड़ा ठहरा और फिर कहने लगा "नीतू भाभी तो बहुत बड़ा पद संभाले बैठी है, हाउसवाइफ का पद,जो आसान नहीं होता। उन्होंने अपने सपनो को छोड़कर तुम्हारे परिवार के प्रति अपने दायित्वों को पहले समझा।यह सोचो अगर नीतू भाभी परिवार की ढाल ना बनती और अपने सपनों को पूरा करने में लग जाती है तो मां की सेवा जिनका है सुबह से सारा काम स्वयं अपने हाथों से करती हैं। वह कौन संभालता। तुम तो सुबह से ऑफिस चले जाते होंगे।पिताजी के मेहमानों की आवभगत उनके लिए चाय नाश्ता बड़े बुजुर्गों की देखभाल उनकी रुचियो का ध्यान रखना।

और सबसे बड़ी बात उन्होंने अपना भावनात्मक सहयोग भी छोटी बहन बनकर बड़ी भाभी को दिया। वह चाहती तो अपनी मेहनत से अच्छी नौकरी प्राप्त कर बड़ी भाभी को सहयोग दे सकती थी। पर उन्होंने बड़ी भाभी को भावनात्मक ठेस ना पहुंचे इसलिए स्वयं घर की जिम्मेदारी लेकर इतने बड़े दुख से भाभी को उभारा आर्थिक समस्याओं से बचाया।

 और फिर तुम्हारे बच्चे और तुम्हारी जरूरतें कौन पूरी करता। और फिर इतना कुछ संभालने पर भी वह बच्चों को ट्यूशन भी देती हैं और अपने बच्चों को पढ़ाई में मेहनत से पढ़ा भी रही हैं।यह आज के समय में बहुत बड़ी बात है।हमें तो नीतू भाभी पर गर्व होना चाहिए। वह तो पूरे परिवार की नींव बन गई है।और तुमने उनके सपने पूरे करने के लिए उनका क्या सहयोग दिया।"

 

अनिल की बात सुनकर रमेश को कल का झगड़ा याद आ गया उसने नीतू को यह ताना दिया था वह पढ़ी-लिखी होकर भी पुराने ख्यालात की व घरेलू औरत है। उसे अपनी बात पर बहुत दुख हुआ। रमेश को यह एहसास हुआ कि उसने नीतू को सपने पूरे करने के लिए कभी कोई सहयोग ही नहीं दिया।


अनिल को बाय कहता हुआ रमेश अपने घर की तरफ चल दिया। नीतू माता जी की सेवा में लगी थी उसने नीतू को कल के झगड़े के लिए सॉरी बोला और गले लगा लिया ।और वह सोचने लगा कि अगर अनिल मेरा हृदय परिवर्तन नहीं करता तो मैं नीतू के त्याग तपस्या को समझ ही नहीं पाता।

अगले ही दिन से नीतू के भी सपने पूरे हो और उसके भी  अपने सपने पूरे करने का समय मिल सके रमेश ने पारिवारिक व भावनात्मक सहयोग देना शुरू कर दिया ।पूरे परिवार ने भी रमेश का भावनाओं को समझ कर उसका साथ दिया।


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