Arun Gode

Others

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Arun Gode

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गुप्त समझौता

गुप्त समझौता

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कुछ पुराने वर्ग मित्रों के प्रयास से उनके सभी वर्गमित्रों को एक बार एकत्र मिलने का सपना पूरा होने जा रहा था। अभी तक तो सभी अपना-अपना कमाना, अपना- अपना खाना जीवन भर कर रहे थे। सेवानिवृत्ती के कारण वे अपनी नींद सोना, अपनी नींद जगना का जीवन जीने की शुरुआत की थी।  कुछ मित्रों ने प्रयास करके अपने पुराने स्कूल में पुनरमिलन कार्यक्रम करने की स्कूल प्राचार्य से अनुमति प्राप्त की थी। अनुमति पाकर वे समझते थे कि उन्होंने आसमान छू लिया है। लेकिन ये बात उतनी ही सच है कि उन्हें आसमान इतनी खुशी जरूर मिली थी। उन्होंने जो सोचा था। वह हकीकत बनने जा रहा था !। अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता , वर्गमित्रों के संयुक्त प्रयासों से वे यह नामुमकिन कार्य करने जा रहे थे। इसकी जानकारी वाट्स एडमिन ने सेकंड रेसर ग्रुप पर डाल दी थी। इस संदेश के कारण ग्रुप के मित्रों में मंत्रणा शुरु हो चुकी थी। क्योंकि वे सभी इस समाचार सुनने के लिए आतुर थे।

पदमनाभन : हैलो अरुण, कैसे हो।  

अरुण : बढ़िया । और आप कैसे हो, और आज हमें कैसे याद किया ?।

पदमनाभन : मजे में हूँ, अरुण। मित्र को याद करने की क्या जरूरत है। वो तो वैसे ही दिल में रहते है। मित्र से बात करने के लिए कारण होना जरूरी थोड़ी होता है। वो तो जब दिल में आये। तब बात कर लो। अरे मैंने आज ही व्हाट्स अप पर वर्गमित्र पुनरमिलन कार्यक्रम का संदेश देखा। चलो हमारे मिलने का कार्यक्रम पक्का हो गया है। ये बात सच है कि आप तीनों नागपुर वाले मित्रों ने बहुत अच्छा काम किया है। मैं सबका शुक्रिया अदा करता हूँ । मेरे पास कुछ सुझाव है वो मैं पहिले तेरे साझा करना चाहता हूँ । हम सब मित्रों को पाँच - पाँच मिनट का समय देंगे।  हरेक अपने मित्र को संक्षिप्त मैं अपना और परिवार की जानकारी देने का अवसर देंगे । वे सभी, अपने –अपने जीवन के अच्छे और कठिन अनुभव को हमारे साथ साझा करेगें।

अरुण : अरे आप का सुझाव एकदम बढ़िया है। मैं आप के साथ एकदम सहमत हूँ। मैं चाहता हूँ कि जो हमारे मित्र है। जिन में अभी भी कुछ हुनर बाकी है वे सब तैयारी से आये। और अपने कला को भी प्रस्तुत करे। इससे कार्यक्रम में सभी का मनोरंजन भी होगा। ये सुझाव मैं खुद व्हाट्स अप पे डालने वाला हूँ ।

पदमनाभन : अरे ये तो एकदम अच्छा सुझाव है। इस से हमारा और अतिथियों का मनोरंजन भी होगा। कलाकारों को एक मंच भी मिलेगा। अभी से इसकी सूचना होने पर वे सब तैयारी से कार्यक्रम में आयेंगे !।

अरुण : अरे , पदमनाभन : तुझे भी भाभी के साथ तैयारी से आना है।   आप लोग हमारे यहां ही रुकेंगे। फिर हम सब मिल के यहां से फिर कार्यक्रम में एक दिन पहिले चलेंगे। क्योंकि कार्यक्रम कि व्यवस्था भी अपने आंखों से देख लेंगे। आप को विशेष जिम्मेदारी दी जाती है। अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनते हुये। जैसे की आप को पता है। मैं छोटी-मोटी कविता कर लेता हूँ । उसका एक काव्य संग्रह किताब के रुप में तैयार कर रहा हूँ । उसकी प्रस्तावना तुम्हें लिखना है। क्योंकि आप से बेहतर मुझे कौन जानता है ?। इसका विमोचन भी आप के हाथों होगा !।  ये मैंने तय कर लिया है। क्योंकि एक मित्र ने लिखा काव्यसंग्रह का हर्ष जीतना एक मित्र को होगा। उतना दूसरे को नहीं होगा। इसलिए ये कार्य आप को करना ही है।  सभी मित्रों को एक –एक काव्यसंग्रह की प्रति स्मरण भेट करके सभी को देना चाहता हूँ ।

पदमनाभन : अरे इतना बड़ा काम मेरे अजीज मित्र ने किया। उसके लिए, मैं सर्वप्रथम तेरा तहे दिल से अभिनंदन करता हूँ । लेकिन किताब का विमोचन अगर हमारे गुरुजनों से किया जाय तो अच्छा होगा। ऐसा मुझे लगता है।

अरुण : नहीं। मैं जो सोच रहा हूँ । वो मेरे दिल की पुकार है। मेरा दिल कह रहा है। वह मेरे लिए अंतिम है। आपको ये कार्य करना ही है। इस राज को आप राज ही रहने दो क्योंकि हमें सबको आश्चर्यचकित करना है। आप अपना आने का आरक्षण कर लीजिए । कम से कम दो तीन दिन पहिले आना है।  आप की मर्जी है। आप कल भी आ सकते है। आप अपना सुझाव तुरंत कल व्हाट्स अप पर डाल दो।  मैं भी आज ही डाल देता हूँ ।

पदमनाभन : अरे तेरा हुक्म सर आँखों पर। मैं चाहता हूँ कि कार्यक्रम के लिए धन की जरूरत पड़ेगी। हम सबको कुछ किमान राशी जमा करने के लिए सबको अनुरोध करना चाहिए।  

अरुण : इस संबंध में आपने, मेरे से चर्चा कर ली है। आप श्रीकांत और गुनवंता से बात कर लो। मैं तो सहमत हूँ ही।  सबके साथ चर्चा करके आप ऐसा मैंसेज डाल सकते है। आप फिर अपने से ही शुरुआत करे। पैसे श्रीकांत के खाते में जमा करे। हमने उसे अपना इस कार्य के लिए नेता घोषित किया है। ठीक रहेगा ना। अच्छा फोन रखता हूँ ।

श्रीकांत : हैलो, अरुण। कैसे हो।

अरुण : बहूँ त बढ़िया। तू कैसा है।

श्रीकांत : तेरे से भी बढ़िया। मेरी और गुनवंता की पदमनाभन से बडी लंबी चर्चा हुई है। हम मित्रों ने जो-जो, अन्य मित्रों ने सुझाव दिये। उन पर काफी लंबी चर्चा की और उसमें से कई तर्कसंगत भी है। पदमनाभन कह रहा था। तेरे साथ भी उसकी इन बिंदुओ पर विस्तार से चर्चा हुई है। मैं सोचता हूँ कि कार्यक्रम की रुपरेखा वाट्स पर डाल देते है। ताकी सभी मित्रों को दो फरवरी- 2020 को कार्यक्रम कैसा होगा इसकी जानकारी मिल जाएंगी। वे अपने- अपने आने का कार्यक्रम भी बना लेंगे।  इससे हमें ये अंदाजा हो जाएगा कि कितने मित्र और अपनी सहेलीयाँ और उनके परिवार के कितने सदस्य आयेंगे। और फिर हम उचित प्रबंध कर पायेगें !।

अरुण : तू , ठीक कह रहा है।  सभी मित्रों को आने की जानकारी यथाशीघ्र देने का आग्रह करो।  जैसे पदमनाभन कह रहा है। वैसे सभी को पैसे भेजने को भी कह दो। मैंने पदमनाभन से कहा है कि वह पैसे भेजने की शुरुआत करे। वह इस बात के लिए राजी है। वह यथाशीघ्र ऐसा करेगा। उसका देखा –देखी सब मित्र करेंगे।  महिला मित्रों का तू ध्यान रखना।  उनसे बातचीत करते रहो। उन्हें मोटिवेट करते रहना। अभी तक तो तूने उनके पतियों पर अपना जादू कर दिया होगा। वो मुस्कुराने लगा, ठीक है। महिला मोर्चा मैं संभाल लेता हूँ । अरे ,लेकिन वो मिल गई क्या ?  जिसके लिए ये तू सब कुछ कर रहा है। वो मुस्कुराने लगा। अभी कार्यक्रम तक राज को राज ही रहने दो।  

गुनवंता: हैलो अरुण, कैसे हो, हमेशा की तरह बढ़िया हूँ । अरे तू बता कैसा है ?। और कैसे याद किया। अरे तू वाट्स पर देख रहा होगा। मुझे सभी मित्रों की कार्यक्रम के प्रति जो प्रतिक्रिया है, वो बहुत अच्छी है। मुझे लगता है, हमें अभी काम से लग जाना चाहिए क्योंकि की समय बहूँ त कम बचा है। और काम बहूँ त करना है। पदमनाभन ने एक काम अच्छा किया है जो पैसे भेजने का सुझाव ग्रुप पर डाला है।  पैसे भेज के सबके आगे एक मिसाल रख दी है। अन्य मित्र भी ऐसा ही करेंगे। मुझे पुरी उम्मीद है।

अरुण : अरे,हम सब कार्यक्रम प्रबंधन के सदस्य भी पैसे, श्रीकांत भेजकर , वाट्स पर संदेश दे देते है। इसे देखते हुये, बहुत सारे मित्र भी पैसा भेजेंगे।   हमारा काम चालु हो जाएगा। कुछ दिन बाद फिर कार्यक्रम कि व्यवस्था करने फिर मित्रों से मिलने पुलगांव चलते है। इससे उनका भी हौसला बढ़ेगा । बचे हूँ ये अन्य महत्वपूर्ण कार्य भी कर डालेंगे। तू श्रीकांत से इस मामले में बात कर ले। अरे मुझे फिर बता, कब जाना है।

श्रीकांत :  अरे मैं श्रीकांत बोल रहा हूँ ।

अरुण : अरे बोल यार ,तेरे ही तो बोलने के दिन है। आजकल तू ही तो दिखता है ग्रुप में। सभी के दिलों छा गया है। सभी तेरे ही गुन-गान गा रहे है। चलो बढ़िया है। ऐसे ही कार्यक्रम होने तक सक्रिय रहो। मेरी दुआएँ है की तू जिस घड़ी का इंतजार कर रहा है। वो घड़ी जल्दी – जल्दी आ जायें।  

श्रीकांत : अरे यार मजाक छोड़ ना ।  

अरुण : कैसे मैं मजाक छोड़ूँ।  अगर मैं छोड़ूँगा नहीं तो, तेरे मैं जोश कैसे आयेगा। काम करेने का। चलो , काम की बात करो।

श्रीकांत : । अरे कल मैं और गुनवंता सुबह आ रहे है।  हम सब पुलगांव चलते है। बचे हुये सब काम कर लेते है। अपने पुलगांव वाले मित्रों को सुचित कर दिया है। दूसरे दिन फिर हम सब मित्र जमा हो गये। आपस में कार्यक्रम की रुपरेखा तैयार कर रहे थे। हरेक की राय ली जा रही थी। उस पर चर्चा करके आम सहमती से उसे अंतिम रुप दिया जा रहा था। विस्तृत चर्चा के बाद कार्यक्रम की अंतिम रुप-रेखा तैयार कर ली गई थी। स्थानीय मित्रों, किशोर और मदन के भतीजों को उनके विशेषताओं और अनुभव के चलते कुछ कार्य का आवंटन किया गया था। संदीप को जलपान और सजावट का जिम्मा दिया गया था। तो अन्य को फोटोग्राफी और वीडिओ का काम दिया गया। स्थानीय मित्रों ने इस में पूरा सहयोग प्रदान करने की जिम्मेदारी ली। स्कूल के चित्र के साथ स्मृतिचिन्ह बनाने का कार्य के साथ अन्य कार्य की जिम्मेदारी नागपुरकर ने ली थी। इस तरह दो फरवरी- 2020 के कार्यक्रम को अंतिम जामा पहनाया गया था। सभी मित्रगण इस अनोखे कार्यक्रम के लिए बहुत उत्साहित थे। फिर मैं, गुनवंता और श्रीकांत ने स्थानिय मित्रों से वापसी की अनुमति लेकर चलने लगे। वापसी में हम तीनों बहूँ त खुश थे क्योंकि हमने जो कार्यक्रम करने का सपना देखा था, वह लग-भग हकीकत बनने जा रहा था।  चलते –चलते श्रीकांत कुछ सहेलियों के नाम लेता जा रहा था।  उससे मेरी बात हो गई । और वो भी आनेवाली है। ऐसे धीरे-धीरे एक –एक सहेली के बारे में चर्चा करते जा रहे थे। अचानक उसने मुझे जीसा की तलाश थी, उसका जिक्र किया। मैंने अपने आप को सँवारा। अपने भावनाओं को रोका था।

अरुण : मैंने बीच में खलल डालते हुये पुछा ,कौन रीना, क्या वो अपने क्लास में थी क्या ? बीच में बात काटते हुए गुनवंता ने कहा। अरे वो घूंगराले बाल वाली रीना की बात कर रहा। फिर अच्छा, वो क्या। हां थोड़ा –थोड़ा याद आ रहा है। मैंने पूछा, क्या वो आ रही है ?।

गुनवंता: मेरे तरफ देखते हुये कहा। अरे तुझे भी उससे मिलना है क्या ?।

अरुण : उससे क्या, मैं तो सभी से मिलना चाहता हूँ । लेकिन श्रीकांत जिसके लिए ये सब उठापटक खुद कर रहा है। और हमसे भी करवा रहा है। मुझे उसी से मिलना है। लेकिन अपना मित्र राज को राज ही रख रहा है।

गुनवंता: अरे श्रीकांत, राज खोल दे ना यार। वो गाने लगा। बोलो जी बोलो ,वो राज खोलो, किसके तरफ है इशारा। अरुण ने गुनवंता का साथ देते हुये कहा ।

अरुण : उसका तो सजनी है नाम। मैंने, मजाक करते हुयें कहा, खोल दे ये राज आज। वरना ऐसा ना हो की तीनों की मंजिल एक ही हो। और वो राज, आज बुढ़ापे में पता चल रहा है। जब तीनों किसी लायक नहीं रहे।

श्रीकांत : मुस्कुराते हुये कहा ,बुढ़ापा आने से कुछ नहीं होता । दिल जवान होना चाहिए। चलो राज को राज ही रहने देते है।

अरुण : ठीक है, राज को राज ही रहने देते है। लेकिन मुझे मन से बहूँ त खुशी हो रही थी। चलो मुझे वह वाट्स पर प्रतिसाद नहीं दे रही है। वो अन्य के साथ वाट्स पर चीट- चाट कर रही है। लेकिन मेरे साथ नहीं करती। शायद मेरे साथ नाराज हो। लेकिन फिर भी वह आने वाली है। चलो उससे नजरे तो मिलेगें ही ना !।  मैं इसी बात से खुश था। लेकिन गुनवंता जानता था। उनसे ज्यादा संपर्क उसका मेरे साथ था। उसे पता था कि वो इसके साथ स्नातकोत्तर में भी थी। प्रवास के दौरान फिर हम पुराने बातों को याद कर- कर के खुश होते थे। मौका मिलने पर एक दूसरे कि खिल्ली उड़ाते हुये अपने – अपने घर पहुँच गये। इस प्रवास के दौरान में एक गुप्त प्रस्ताव उनके सामने रखा। हम सभी मित्रों को यादगार के रुप में स्मृतिचिन्ह तो दे ही रहे है। एक पंथ दो काज, जैसे आप जानते हो कि मैं एक छोटा-मोटा कवी हूँ । मेरे पास बहुत सारी कविताएँ जमा हो चुकी है। मैं अपना एक कविता संग्रह का विमोचन इस कार्यक्रम में करना चाहता हूँ =। अपने तरफ से हरेक मित्र को एक कवितासंग्रह की प्रति भेट उन्हें देना चाहता हूँ। उन्होंने कहां ये तो बहूँ त अच्छी बात है। इस में क्या पूछना है ?  नेकी और पूछ -पूछ। लेकिन मैंने उसने कहाँ, इसे आप गुप्त रखीये। मैं सबको आश्चर्यचकित करना चाहता हूँ। उन्होंने इसे गुप्त रखने का मुझे भरोसा दिलाया था।



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