AMAN SINHA

Drama Fantasy

4.0  

AMAN SINHA

Drama Fantasy

गोमती

गोमती

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365


कई दिनों से वो अपनी कहानी के लिये एक नायिका की खोज में लगा हुआ था। अपनी नायिका की जैसी कल्पना उसने की थी उस तरह की एक भी पात्र अपने आस पास ढूंढ पाने में वो अब तक सफल नहीं हो पाया था। जिस सौंदर्य की तलाश उसे थी वो उसकी जानकारी में दूर दूर तक कही दिख नहीं रही थी। कहानी तैयार थी मगर नायिका के अभाव में उसे गढ़ पाना इतना ही मुश्किल था जितना की सागर के जल से अपनी प्यास बुझाना। अपने इसी खोज के कारण वो कई दिनों से भटक रहा था। मगर ये तलाश खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी। कहते है जिसका मन खोजी हो उसे तब तक चैन नहीं मिलता जबतक के उसकी खोज पुरी ना हो जाए। जरा सी कमी भी मन को बेचैन करती रहती है। वो अक्सर रात को उठ कर बैठ जाता और अपनी कल्पना को सकार करने के रास्ते बनाने में जुट जाता। उत्सुकता ऐसी की डर और आनंद के भाव एक साथ मन में गोते खाया करते थे। ना तो उसने कोई तस्वीर देखी थी और ना ही किसी ऐसी लड़की से कभी मिला ही था मगर उसे लगता था कि कोई तो होगी जो उसके कल्पना से बिल्कुल मेल खाती होगी। लेखक तबतक कुछ नहीं लिख सकता जबतक की उसने अपनी कल्पना को जिया ना हो। भले ही वो कल्पना सही मगर लेखक की दुनिया में उसका अपना एक अस्तित्व होता है। वो बकायदा उन पलों को जीता है जिसकी वो वर्णन करता है। मगर इस बार उसकी कल्पना को जीने का मौका अभी तक नहीं मिला। आते-जाते हर सुरत में वो अपनी नायिका तलाशता रहता मगर एक में भी उसकी सोच के मुताबिक नहीं होती।

कई हफ़्तों बीत गये मगर उसकी खोज पर विराम नहीं लग पाया। खोज चलती रही और चलती ही रही। कई बार ऐसा होता है जब हम किसी चीज़ के विषय में बहुत अधिक सोचने लगते है और वो हमीं प्राप्त नहीं होती तो फिर उससे मन टूटने लगता है। एक समय के बाद हम उससे अपना ध्यान हटाना चहते है और एक बार ऐसी बातों से ध्यान हट जाए तो वो हमारे मन के किसी कोने मे दब कर रह जाती है। वो हमें निराश और परेशान करने लगती है और अंत में हमारे मन में एक अफसोस की तरह बन कर रह जाती है। उसके साथ भी ऐसा होने जा रहा था। उसने इस कहानी को अधूरा छोड़ने का मन बना लिया था और दूसरे काम में भीड़ गया था। लेकिन उससे कोई दूसरी कहानी लिखी ही नहीं जा रही थी। वो लिखना शुरु तो करता पर एक दो अंक लिखने के बाद उसका मन इन सब से उचटने लगता। बार-बार उसकी अधूरी कहानी उसे अपने अछूती कल्पना की याद दिलाती। अब उसका मन लिखने में लग नहीं रहा था और इसके अलावा कोई दुसरा काम उसे आता नहीं था। उसने सोचा की अगर दो चार दिनों के लिये वो कही घूम आयेगा तो शायद उसका मन फिर से लिखने मे लग जाए। हो सकता है की उसे कोई और कहानी भी मिल जाए। मगर जाए कहां ये भी एक समस्या थी। उसके मित्रों के संख्या बहुत कम थी और रिश्तों से वो हमेशा भागता रहा था तो कहां और किसके साथ जाए वो इसी असमंजस में पड़ा रहा। मगर जाना तो था ही तो तय किया कुछ सोचेगा नहीं घर से निकलेगा और सबसे पहले जो भी सवारी मिलेगी उसके अंतिम ठिकाने तक जाएगा फिर आगे की सोचेगा।

अगले दिन सुबह-सुबह ही जाग गया चार कपड़े तह किये दो जोड़ी जुते लिये और रोज़ मर्रा के जरूरत के समान अपने एक हैंड बैग में डालकर वो घर से निकला। जाते हुए अपने कमरे की चाभी वो मासी को देता गया। मासी उसके मकान मालकिन है। उसे मासी इसलिये कहता है क्योंकि उसे सीमा नहीं कह सकता। वो उमर में उससे बड़ी नहीं थी मगर सीमा उसके मां का नाम था तो वो उसे मासी बुलाया करता था। जब मासी ने उससे पूछा की वो कहाँ जा रहा है और कब तक आयेगा तो वो बोला अभी तो सफर शुरु ही नहीं किया और आपने वापसी की खबर पूछ ली। खैर छोड़ो, मान लो की दो-तीन हफ्ते के लिये मैं शहर से बाहर जा रहा हूँ। जब लौटूंगा तब लौटूंगा और चाभी तुम से ले लूंगा। इतना कह कर वो निकल गया। अपने बिना किसी योजना वाले योजना पर अमल करने। घर के मुख्य द्वार से निकलते ही उसने अपने मोबाइल पर रेडियो लगाया और हेड्फोन कान में डाला और उसी समय एक गाना बज उठा "हम जो चलने लगे तो चलने लगे है ये रास्ते, हां-हां मंज़िल से बेहतर लगने लगे है ये रास्ते"। इस समय उसके लिये इससे बेहतर कोई संगीत हो ही नहीं सकता था। शुरुआत तो अच्छी थी मगर आगे क्या होने वाला था ये तो वक़्त ही बताने वाला था। जैसा की उसने तय किया था की जो भी सवारी पहले आयेगी वो उसके अंतिम ठिकाने तक जाएगा तो सड़क पर आते ही उसने अपना हाथ बढ़ाया सवारी रोकने के लिये और सबसे पहले जो सवारी रुकी वो उसपर चढ़ गया। बस लगभग खाली ही थी तो उसे अपनी मन मुताबिक सीट चुनने में कोई परेशानी नहीं हुई। लगभग तीस मिनट बस चलने के बाद टिकट मांगने आया तो पता चला की ये बस नागपुर-इंदौर रुट की बस है और इसका अंतिम पड़ाव इंदौर के भंवर कुआं है। अब जो तय किया था उससे पीछे हटना खुद से दगा करने जैसा था तो उसने आखिरी पड़ाव का टिकट कटवा लिया। सफर लम्बा और थकाने वाला है ये समझते हुए उसने अपना समान जमाया और कान में हेडफोन डाले सो गया। जाने कब उसकी आंख लग गयी पता ही नहीं चला। अचानक एक झटके से उसकी निंद टूटी तो उसने अपनी कलाई पर नज़र दौड़ाई देखा सुबह के ग्यारह बज रहे थे। ये बस का पहला पड़ाव था सभी यात्री नीचे उतरकर नाश्ता-पानी का इंतज़ाम कर रहे थे। इतने में क्न्डक्टर चिल्लाया जिसको भी जो भी खाना-पीना लेना हो या फिर हल्का होना हो वो हो जाए अब ये बस इसके बाद तीन घंटे तक लगातार चलती रहेगी।

दो चार बिस्किट के पैकेट एक पानी क्र्र बोतल और एक कोल्ड्रिंक लेकर वो अपने सीट पर लौटने लग़ा। जैसे ही वो बस पर चंढने लगा उसे लगा के शायद उसे हल्का हो लेना चहिये और यही सोचकर वो वपस उतरने लगा। नींचे उतरते हुए उसकी टक्कर एक श्ख़्स से हो गयी। वो ज़ल्दी मे था तो बिना किसी तरह का खेद जताए वो बाहर की तरफ निकल गया। जाते हुए उसने बस की ख़िडकी से अपनी सिट पर खाने पीने का सारा सामान रखते हुए गया। जब लौटा तो उसने देखा एक लडकी उसे दूर से ही लौटते हुए घूर रही थी। वो लडकी उसके पास वाले सिट पर ही बैठी थी। उसका इस तरह से उसे देखना कुछ असहज सा कर रहा था। यहां तक बस बिल्कुल खाली ही आयी थी मगर यहा से आगी भीड बढने वाली थी। यही सोचकर सबस पहले उसने अपने समान को समेटा और जाकर अपने स्थान पर बैठ गया। पास मे बैठी लडकी अब भी उसे गुस्से मे घूर रही थी, वो समझ नही पा रहा था कि उसके इस तरह देखने का कारण क्या है। जब कै मिनटों तक वो लडकी उसे युं ही देखती रही तो उसने पूछ ही लिया, क्या हम एक दुसरे को जानते है? लडकी ने ना मे सर हिलाया। तो फिर क्या मैंने आपका कुछ समान चुराया है? लडकी ने फिर ना मे सर हिला दिया। अब उससे रहा नही गया तो गुस्से मे पुछ लिया तो आप मुझे ऐसे घूर क्यों रही है? लडकी ने कहा क्या आपमे इतनी भी तमीज़ नही की किसी से ट्क्कर लगने पर रुककर खेद जताए? ये सनकर उसे अपने टकराने वाली घटना याद आयी। वो बोला माफ किजिएगा मैं उस समय थोडा जल्दी मे था, वो क्या है ना प्रकृति की पूकार थी तो मैं उसे रोक नही पाया, खैर मैं आपसे अभी माफी मांग रहा हूँ। लडकी थोडा गुस्से मे मुस्कुराई और बोलि चलो कोइ बात नही। मुझे लगा की आप ने जांबुझकर एक लडकी को धक्का मारा। इसके बाद दोनो काफी देर तक चुप ही रहे। वो लडकी खुद मे खो गयी और ये खुद मे डूब गया। जैसे ही इसने आंखें बंद की उसे इस लडकी का चेहरा दिखने लगा। रंग कुछ ज्यादा गोरा नही था मगर साफ था। माथे पर पानी साफ चमक रहा था। बालो का रंग पुरी तरह काला नही होकर कहीं-कही थोडा बहुत भुरा और लाल भी था। क्या ये डाई करवाती होगी? आंखे गहरी काली और पुतलियां हल्की भूरी। कान के बनावट बहुत ही महीन जैसे किसी कारीगर ने खुब समय लेकर तराशा हो। गाल थुल-थुली सी और नाक गोलाई लेकर लम्बी सी। दांत सफेद मोती की तरह और अवाज थोरी सी फंसी-फंसी मगर साफ। बस चेहरा ही दिख रहा था। उसके दाये गाल पर शायद दो तील थे, नही एक तील या दो तील या शायद बाये गाल पर तील था। इस तील की गिनती और स्थान ने उसका ध्यान तोड दिया और उसने ये पुख्ता करने के लिये, कि तील दये गाल पर था य बाये गाल पर, अपनी आंखें खोली तो पाया कि उसके बगल मे कोइ और औरत आकर बैठ चुकी थी। अनयास ही घडी देखी तो पता चला की वो लघबघ आधे घंटे से सो रहा था। और इतने देर मे कितने लोग अपनी जगह बदल चुके थे। 

इस एक तील ने उसके मन को बेचैन कर दिया था। ऐसा नही है की वो अवारा था और हर कीसी लडकी पर फिदा हो जाता था उसके आस पास हमेशा से स्त्रियों की उपस्थिती रही थी। चाल चलन से सही लड्का था मगर जब से वो अपने नयी कहानी मे मगन हुआ था तब से आज पहली बार उसे कोइ चेहरा इतना बेचैन कर गया था। उसने आस पास देखा मगर वो कही नज़र नही आयी। बहर झांक कर देखा शायद अभी-अभी उतरी हो मगर सब बेकार। आज पहली बार उसे अपने बस मे सोने की आदत पर पछ्तावा हो रहा था। क्या करे कैसे करे सब कुछ समझ से परे हो रहा था। उसे लगा जैसे उसकी कल्पना उसके पास बैठी थी मगर वो उसे पहचान नही सका। मन चाहा की किसी से पुछे मगर क्या किसी को पता होगा, और होगा तो क्या वो बताएगा? इसी उधेरबूंद वो उसने दस मिनट गवा दिये मगर कोइ हल नही मिला। अंत मे उसने तय किया किसि से पूछ लेने मे क्या बुराइ है ज्यादा-से-ज्यादा कोइ जवाब नही मिलेगा और क्या होगा कोइ उसकी जान तो नही ले लेगा ना। यही सोचकर उसने अपने पास बैठी महेल से पूछा। माफ किजिएगा ये कौन सी जगह है? उस महिला ने उसके तरफ देखा और दो सेकेंड रुक्कर कहा अकोला के पास के जगह है? साथ मे ये भी पूछा की उसे कहाँ जाना है? उसने बताया की उसे अंतीम पडाव तक जाना है। फिर एक बार हिम्मत करके वो बोला माफ किजिए जब मैंए अपनी आंखें बंद की थी तब मेरे पास एक लडकी बैठी थी, बात बीच मे ही बदलकर बोला आप कब से इस सिट पर बैठी है? वो महीला बोली, पिछले स्टोप पर मैं बस पर चढी थी। यहाँ एक लडकी थी उसने मुझे ये सिट दिया और चली गयी। उसने फिर पूछा माफ किजिएगा क्या आप बता सकती है कि इस बात को कितने देर हुए? वो बोली यही कोइ दस मिनट। अब तो उसके अफसोस का पारा और बढ गया। मन ही मन खुद को कोसते हुए बोला दो मिनट पहले जाग जाता तो क्या बिगड जाता? उसे ऐसा लगा जैसे मानो उसकी तपस्या का फल मिलते-मिलते रह गया हो। वो गुस्से और दर्द से अंदर-ही-अंदर चिख रहा था। मगर अब करे तो क्या करे अब तो काफी देर हो चुकी थी। उसके मन मे अनेक वीचार आने लगे जैसे वो अपनी गलती को सुधारने के नए रास्ते तलाश रहा हो। एक बार सोचा काश के बस मे झटका लगता और उसकी निंद टुट गयी होती तो उसे दोबारा देख पाता। फिर सोचता है की काश निंद मे ही वो दोबारा उससे टकरा जाता। फिर सोचता है की काश सोने के पहले ही उससे बात कर ली होती तो कितना अच्छा होता। जितनी सोच उतने तरीके मगर काम का एक भी नही।

खुद को कोसते हुए मन ही मन कई बात बोल रहा था मगर अब उससे क्या ही हो सकता था। अपना मन बहलाने के लिये उसने मोबिले से हेडफोन जोडा और अपने मनपसंद रेडिओ स्टेशन लगाने लगा। दिन के इस वक़्त उसके पसंदिदा आरजे का शो आता है यही सोच कर ट्युन करने लगा। मगर वो भुल चुका था की अभी तक वो अपने शहर से काफी दूर आ चुका है और इस स्थान पर उस फ्रीक्वेंसी पर इस शहर का रेडिओ चैन्नल आ रहा था। फिर से एक बार उदासी छाने लगी मगर इससे पहले की वो दुसरे चैनल पर जाता इस्पर एक गाना बज उठा " भुला देना मुझे है अलविदा तुझे, तुझे जीना है मेरे बीना" एक बार तो लगा जैसे किसी ने उसके कटे पर नमक रगड दिया हो वो भी मिर्ची के साथ पर अब वो अपना गुस्सा किस पर उतारे यही सोकह्ते हुए अपना हाथ कुर्सी पर दे मारा। सामने वाले सिट के बंदे ने उसे ऐसे घूरते हुए देखा जैसे की अभी ही उसे उठाकर ज़मीन पर पटक देगा। इससे पहले कि वो उससे कुछ बोलने को होता यही बोल उठा, माफ करना भाई साहब गलती से हाथ टकरा गया। वो आदमी अपने सिट पर चिपक गया और ये अपने सिट पर पडे पडे फिर से आंखें मुंद लिया। उस लडकी का चेहरा इसे भुलाए नही भुल रहा था। जैसे ही आंख लगी तो वो फिर से सामने प्रकट हो गयी।म इस बार उसने देखा की उस लडकी ने गहरी लाल रंग की टाप पहने हुइ थी और साथ मे हरी रंग की लेगिंग्स भी थी। उसके बाल बिल्कुल सीधे थे और कान मे दो लच्छेदार बालियां भी थी। सर पर एक लाल रंग की बिंदी थी और साथ ही कलाइयों पर हरे और लाल रंग की चुडियां थी। इतना सब कुछ देखने की बावजुद वो एक बात साफ नही हो रही थी की उसके किस गाल पर तील था। तभी अचानक एक घुमावदार मोड आया जिसके झटके से इसकी निंद खुल गयी। अभी लग्भग दोपहर के २:३० बज  रहे थे। बाहर देखा तो सुरज अपनी चमक और गर्मी दोनो धरती पर उडेलने को जैसे अमादा हो। सरकारी बस होने के कारण वैसे ही गर्मी से मन बेहाल हुआ जा रहा था उसपर एक सुनहरा सपना टूट जाना कितना दु:ख़ दायी होता है ये तो बस वो ही समझ सकता है जिसके साथ ये हुआ हो। वो जागा और खिडकी के तरफ ही मूंह किये रहा। सोने से पहले जिस सुरत को उसने देखा था उससे दोबार से देखने की हिम्मत उससे ना हो पायी। करीब दस मिनट तक वो उसी अवस्था मे रहा, बीना किसी हीलडूल के तभी पास वले सिट से किसी ने उसे अवाज़ लगायी, क्या आप मुझे थोरी देर के लिये खिडकी पर बैठने देंगे? मुझी थोडी ताज़ी हवा की सख्त जरुरत है। चाहे वो हवाई जहाज़ हो या फिर सरकारी बस विंडोव सिट मांगना जैसे सामने वाले की किडनी मांग लेने के बराबर होता है। इस समय उसके कान और दिमाग दोनो ने बरी तेजी से एक साथ काम किया। कान ने आवाज पकडी और दीमग ने एक पल मे सम्झा दिया ये तो फिर से वही लडकी उसके पास आकर बैठ गयि है। मूंह ना बोलने को खुलते-खुलते रुक गये और हर्मोंस ने उसके दिल की धड्कन बढा दी। वो कुछ भी नही बोला बस अपने जगह से उठकर अपने सिट उसे सौंप दी। जब वो दुसरी सिट पर बैठा तो अपने सपनो से उसके परिधान का मिलान करने लगा। पिछले एल झलक मे देखे गये उसके सारी बारीकियां हू-ब-हू मिल रहे थी। 

अब वो इसे संजोग कहे या चमत्कार पता नही। सर से लेकर पांव तक सबकुछ बिल्कुल वही। कुछ भी अलग नही था एक बार तो उसे अपनी याद्दाश्त पर गर्व हुआ मगर फिर चकित भी हो गया कि उसने उसे सिर्फ एक बार ही तो देखा था तो सबकुछ वैसा ही कैसे हो सकता था। तभी जैसे उसकी तंद्रा टुटी और वो लडकी बोल पडी, धन्यवाद, कब से इन लोगो से कह रही थी मगर किसी ने मुझे खिड्की की सिट नही दी। अगर दो मिनट और ना मिलती तो मेरा दम ही घुटने वाला था। ये तो कमाल ही हो गया इसकी अवाज़ भी उसके सपने की अवज़ से मेल खाती थी। उसके तो आश्चर्य का ठिकाना हे नही रहा। वो खुद को सम्हालते हुए बोला, ऐसी कोइ बात नही, एक अदमी ही दुसरे आदमी के काम आता है। इसके पहले की वो कुच और बोल पाता लडकी ने अपना मुंह घुमा लिया। ये तरीक इसे अपने अपमान जैसा प्रतीत हुआ मगर लड्की से क्या कहे। मगर ये क्या उस लड्की ने तो ऊल्टी करना षुरु कर दिया। झट से इसने अपनी पानी कि बोतल उसके तरफ बढाते हुए कहा. आप ठीक तो है? लडकी ने खुद को सम्हालते हुए कहा, अब जाकर सही हुई। पानी के लिये धन्यवाद, आप खडे क्युं है बैठ जाइये ना। मामला कुछ सम्ह्ला तो वो बोली, मैं पहली बार बस से इतनी दूर सफ़र कर रही हूं ना तभी ऐसा महसूस हो रहा है। शहर के गर्मी और प्रदुषण मेरे तबियत से बिल्कुल मेल नही खाते। पहेल कभी इस तरह से सफर नही किया  मैंने, नाही इतने दूर का सफर किया है। और अब तो कसम खाती हूँ फिर से करुंगी भी नही। आप क्या अक्सर ऐसे सफर करते है? मैं काफी देर से देख रही थी आपको आप तो मस्त बिल्कुल निंद में खोये थे। पीछले चार घंटो मे आप बस दो बार ही जागे है पहली बार जब मै अपके पास बैठी थी और अब जब फिर से मैं आपके पास आयी हूँ। ये सुनते ही उसने पूछ लिया तो आप इतने देर तक बस में ही थे क्या? मैंए तो अपको आस पास नही देखा। वो बोली, हाँ वो तो मैं ड्राइवर के कैबीन मे बैठकर मूवी देख रही थी। मन घबराने लगा तो बाहर आकर वोंडो सीट की तलाश में आपके पास आ पहूंची। वैसे मैं ग़ोमती, ग़ोमती पटवर्धन। नागपुर से भंवर कुआ जा रही हूँ और आप कहाँ जा रही है? आपका नाम क्या है? अगर आप भी वही जा रहे है तो ये सफर काफी मजेदार होगा? खैर छोडिये पहले अपना नाम तो बताइये।

जी जा तो मैं भी वही रहा हूँ और मजे की बात ये है की मैं भी नागपुर से ही चढा हूँ। और मेरा नाम है………

इससे पहले की वो अपना नाम बता पाता एक जोर के झटके से वो सामने की ओर जा गीरा। पुरी बस दो-तीन चक्कर खाकर करीब ३० मीटर दूर जाकर औंधे गिर पडी। अंदर के सारे सहयात्री एक दुसरे के उपर बिखरे पडे थे। किसी का सिर फुटा तो किसी का हाथ टुटा। तीन लोग तो उसी स्थान पर एक झटके मे परलोक सेधार गये। रोने चिखने चिल्लाने की अवाज से पुरा बस गूंज उठा। बस की टंकी फट गयी और उसमे से तेल रीसने लगा। जब बस का घिसटना बंद हुआ तो आस पास के लोग तेज़ आवाज़ सूनकर मदद के लिये दौडे। चारो तरफ खुन और तेल का मिला जुला रंग फैला हुआ था। सबसे पहले लोगों ने ड्राइवर को बहर निकाला तो देखा कि बस की स्टेयरिंग उसके कंधे मे धस चुकी थी। उसके पास वाली सिट पर बैठे यात्री की तो गर्दन पुरी तरह से पीछे की तरफ मुडी हुई थी। हाल ऐसा की देखने वाले का दिल दहल जाए। एक-एक करके सभी को निकाला जा रहा था। शुक्र ये थी की उस बस मे एक भी बच्चा नही था। ज़्यादतर आदमी ही थी औरतों के संख्या भी कुछ खास नही थी। लगभग पांच मौतें हुई, अट्ठाइस लोग जख्मी हुए और कुछ लोगोन को गम्भीर चोटें आयी थी। अभी तक कईयों  को निकाला भी नही जा सका था। पता चला की बस का कंडक्टर कुछ दूर पहले ही सडक पर पडा मिला है। उसे ज़्यादा चोट नही आयी थी और वो पुरी तरह से होश में था। फिर एक-एक कर के दम्कर और अम्बुलेन्स और बाके की अपदा सेवा के संसाधन वहां पहुचने लगे। सडक बहित दूर तक जाम हो गयी। भीड इतनी की चिंटी के चलने की भी जगह नही थी। सडक नियंत्रण अधीकारी को उस रूट को अगले पांच घंटे के लिये बंद करना पडा। इतना सब कुछ हो गया मगर अभी तक दो बाते समझ नही आयी एक इस बस की दुर्घटना कैसे हुई और दुसरी कौन से दुसरे वाहन से ये बस टकराई क्युंकी प्रत्यक्ष दर्शियों का तो कहना था के अचानक ही ये बस पलट गयी। दुसरे किसी वाहन का दूर-दूर तक कोइ निशान भी नही था। घटना स्थल पर जो भी क्षतीग्रस्त पुर्जे मिले थे वो सब केवल मात्र इस एकलौते बस के थे। तो फिर दुर्घटना का कारण क्या था ये एक रहस्य बंकर उभर रहा था। जब बस कंडक्टर से बातचीत की गयी तो पता चला की उस समय बस मे कुल ६० लोग थे और सभी बस के आखिरी पडाव के ही यात्री थे। जब सभी यत्रियों को हस्पताल पहुंचाया गया तो पता चला के ड्राईवर और कंडाक्टर को छोडकर कूल ५८ लोगों का ही पता चला है। बस मे से दो लोग गायब है। अभी एक सभी एक रहस्य मे उलझे थे तभी ये एक और बात सामने आयी। उन दो लोगोन का पता लगाना बहुत जरूरी था क्युंकी हो सकता है की उन दोनो का ही इस दुर्घटना से सीधा नाता हो। मगर वो दोनो कौन थे ये जानकारी केवल कंडक्टर ही दे सकता था। पूलिस उस कंडक्टर को लेकर हस्पताल पहुंची और एक-एक करके सबसे मिलवाया। सबके पास अपने अपने हिस्से के टिकट बरामद हुए जिससे पूलिस का काम थोडा तो असान हुआ लेकिन डो टिकट का मिलान नही हो पा रहा था। बहुत सोचने पर कंडक्टर ने कहा साहब ये दो यात्री नाग्पुर से चढे थे, एक लडकी थी करीब २५-२६ साल की और एक लडका था वो भी लगभग उसी उम्र का रहा होगा। दोनो दिखने मे तो भले घर के ही लगते थे। पुलिस ने पूछा कि क्या वो दोनो साथ-साथ सफर कर रहे थे दो कंडक्टर ने ना मे सर हिला दिया और बोला देखने मे तो ऐसा लगता था की वो वो एक-दुसरे को जानते भी नही थे। वैसे भी वो लडकी बस मे आगे के तरफ बैठी थी और लडका बिल्कुल पीछे की तरफ। जनाब लडका तो बिकुल अकेला ही था क्युंकी सफर मे अभी तक का हिस्सा तो उसने बस सोकर ही काटा था। हाँ लडकी थोरी बातुनी ज़रूर थे मगर लडके के साथ तो नही थी ऐसा मुझे लगता है। पुलिस ने पूछ क्या वो उन दोनो के बस मे चढने का स्थान बत सकताअ है तो उसने हाँ मे सर हिला दिया। पुलिस ने उसे अपना बयान दर्ज़ करवाने औए उन दोनों की तस्वीर बनाने मे पुलिस की मदद करने को कहा। 

इधर बस दुर्घटना के दो सेकेंड पहले...... और मेरा नाम है... लडकी ने उसे बीच मे ही रोक दिया और बोली कस कर मेरा हाथ पकडो। इससे पहले की वो कुछ समझ पाता बस मे धक्का लग चुका था। मगर अचानक ही सबकुछ जैसे थम सा गया। बस उछला तो जरूर मगर ज़मीन से कुछ फुट की उचाई पर जाकर रुक गया। आस पास के सभी लोग बिल्कुल स्तब्ध दिख रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने सबको बुत बना दिया हो। सिर्फ अंदर ही नही बस के बाहर भी पुरी दुनिया बिल्कुल रुकी हुइ थी। किसी हाथ मे चाय के प्याली थी तो कोई अपने एक कदम बढाते हुए रुका था। हवा बंद, सब कुछ बिल्कुल शांत। सिर्फ गोमती उस्का हाथ पकडे हुई थी और उसे खींचती हुइ बाहर ले जा रही थी। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके बदन पर उसका ज़ोर हे नही हो। वो चिल्लाने की कोशिश कर रहा था मगर आवाज़ जैसे हलक मे फंस कर रह गयी हो। वो सबकुछ देख रहा था मगर खुद से कुछ कर नही पा रहा था। ये सभ कुछ घटित होने मे दो पल से ज़्यादा का समय नही लगा मगर उसे लगा जैसे ये सब कुछ ना जाने कब से हो रहा है। जैसे जैसे गोमती उसे बाहर लाने लगी उसे बस का उलटना,घिसटना, पलटना सब कुछ दिख रहा था मगर बिल्कुल धीमे-धीमे। ऐसा लग रहा था जैसे कि वो कोइ स्लोव-मोशन वाले फिल्म देख रहा हो। अभे तक ग़ोमती ने उसका हाथ नही छोडा था। इससे पहले की बस पहली पल्टी खाकर दूर गिरता ग़ोमती उसे लेकर बस से बहुत दूर खडी थी। अभी-अभे तो वो बस मे था तो फिर बस के ज़मीन मे गिरने के पहले वो यहाँ कैसे आ गया। वो यही सोच रहा था और बरे आश्चर्य से ग़ोमती को देख रहा था। मगर ग़ोमती बिल्कुल शांत थी और उसका हाथ कसकर पकडी हुई थी जैसे वो उसे काल के उस स्थान से निकालना चाह रही हो।  


क्या मैं मर चुका हूँ? उसने अपने डर को छिपाने कि कोशिश करते हुए पुछा। ग़ोमती बोली, तुम्हे क्या लागता है? अ........ अर्रे तुमने अपना नाम तो अभी तक बताया ही नही? वो फिर से पुछता है मगर इस बार उसके अवाज़ मे भय साफ झलक रहा था, क्या मैं मर चुका हूँ? ग़ोमती उसके तरफ देखते ही मुस्कुरा पडी और बोली नही तुम मरे नही हो पुरी तरह से ज़िंदा हो वो भी सही सलामत। देखो तुम सांस ले रहे हो, फिर उसने धीरे से उसे चिकोटी काटते हुए बोली देखो तुम्हे दर्द भी हो रहा है। तुम भी ज़िंदा हो और मैं भी ज़िंदा हूँ १०० प्रतीशत ज़िंदा। मगर इससे पहले की तुम कुछ भी और पुछो तुम मुझे अपना नाम बता दो ताकी मैं तुम्हे सही से सम्बोधीत तो कर सकूं। उधर उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था क्योंकि उसके साथ रहा था बिल्कुल अकल्पनिय था। मतलब उसके और गोमती की बीच जो भी बातें हो रही थी वो आसपास के समय रेखा से बिल्कुल अलग हो रही थी। जितनी देर मे उसने ग़ोमती से इतनी बातें कि थी उतने मे बस ने एक पल्टी भी नही खाई थी। सबकुछ इतना धीमा चल रहा था कि समझाना मुश्किल हो गया। कभी आपने दोपहर की निंद ली है? कभी-कभी दोपहर को जब हम गहरी निंद मे होते है और हमे कोइ सपना आ जाए तो उस समय हमारा दिमाग एक ही समय मे दो स्थानों मे बंट जाता है।  इस दौरान जब कभी हमारी आंख खुलने लगती है और हम घडी देख ले और फिर से सपनो मे लौट जाए और फिर काफी देर बाद वापस से असली दुनिया मे लौटे और फिर से घडी देख्ने तो दोनो बार के समय के बीच का फर्क़ बहुत ज्यादा नही होता। कभी कभी तो ये ३-५ सेकेण्ड का भी होता है मगर हमे सपने मे ऐसा लगता है की काफी समय बीत चुका होता है। निंद से बोझिल आंखें और दीमाग का आपस में संतुलन नही बन पाता जिसके कारण ये असमंजस के स्थिती पैद हो जाती है। इस समय उसे भी ऐसा ही प्रतीत हो रहा था। उसके उपर ग़ोमती का एक ही प्रश्न बार-बार दोहराना भी उसे खुद के सपने मे होने का एहसास करवा रहा था। 

ये सब सपना है सोचकर वो ज़ोर से चिल्लाया क्योंकी सपने मे हमें अपना ज़ोर लगाने के अज़ादी नही होती, मगर ये क्या वो तो सच मे चिल्ला रहा था, वो भी गला फाड कर। एक बात तो साबीत हो गये थी कि ना तो वो मरा है और ना ही वो सपना देख रहा है तो फिर ये कौन सी परिस्थिती मे वो अटका हुआ है जहाँ उन दोनो को छोड कर पुरी दुनिया बिल्कुल धीमी हो गयी थी। उस स्थिती मे एक सेकेण्ड भे जैसे वास्तविक समय से दस गुना धीमे गुज़र रहा था। उसके सामने ही बस पलट रही थी, लोग एक दुसरे के उपर गिर रहे थे। बस के शीशी टुट रहे थे मगर सबकुछ इतने धीरे हो रहा था की उसे कांच के एक एक टुकडे तक को गिनने का वक़्त था। अभी वो इसी मे लगा हुआ था की ग़ोमती ने उससे फिर से पूछ लिया अपना नाम तो बताओ वर्ना इसके बाद मैं तुम्हे बचा नही पाउंगी। इतना सुनते ही उसने अपना नाम बताया बोला मैं रचित, रचित शेखर मगर ये नाम गोमती सुन नही पायी क्युंकी उसके कहने और ग़ोमती के सुनने के बीच का जो समय था उसके अंतराल मे बस की टंकी फट चुकी थी और उसके शोर से पुरा वातावरण कोलाहित हो चुका था। वास्त्विक समय मे इस आवाज़ को खत्म होने मे दस से पंद्रह सेकेण्ड लगते है मगर चुकी वो लोग किसी दुसरे आयाम मे थे इस लिये उनके हिसाब से ये लगभग १:३० मिनट का रहा। रचित बार-बार अपने कलाए पर घडी देख रहा था और उसे ऐसा लग रहा था जैसे कि एक पल को दुसरे पल से अलग होने मे कई सौ पल लग रहे थे। ग़ोमती ने आखिरी बार पूछा तुम्हारा नाम क्या है ज़ल्दी बताओ नही तो मै तुमसे अलग हो जाउंगी और फिर मिल पाना नामुमकिन होगा। उसके अलग होने की बात सुनकर रचित जोर से चिल्लाकर बोला रचित शेखर। ग़ोमती ने झट से उसका हाथ पकडा और बोली मेरी दुनिया मे तुम्हारा स्वागत है रचित। और फिर एक तेज़ प्रकाश के बिम्ब के पिछे से कोइ अंधेरा उसे अपने अंदर खिंचने लगा। रचित बोला रुको तुम मुझे कहाँ लिये जा रही हो? मुझे तुम्हारे संग नही जाना है। ग़ोमती बोली क्युं क्या तुम्हे अपने कहानी के नायिका के बारे मे नहीं जानना है? क्या तुम मुझे अपनी कहानी मे नही लिखना चाहते? कितने दिनों से तुम मुझे हीं तो खोज रहे थे और अब जब मैं तुम्हे खुद ही मिल गयी तो तुम मुझे खुद से अलग करना चहते हो। ये तुम्हारी चाहत ही थी जिसने मुझे मेरी दुनिया से तुम तक आने पर मजबुर कर दिया है। पर अगर तुम नही आना चाहते तो कोइ बात नही लेकिन एक बात याद रखो अगर मैंने तुम्हारा हाथ छोड दिया तो तुम फिर कभी मुझे लिख नही पाओगे। मैं तुम्हे सिर्फ एक मौका दे रही हूँ। इतना सुनते ही रचित स्तब्ध हो गया। उसने पूछा तो क्या तुम मेरी कल्पना हो? ग़ोमती बोली हो सकता है के मैं तुम्हारी कल्पना हूँ या फिर ये भी हो सकता है की मैं सच हूँ अब ये तो तुम्हे खुद ही पता करना पडेगा। थामो मेरा हाथ और खुद ही जान जाओगे की मैं क्या हूँ मगर उसके लिये ये सफर तो तय करना हीं पडेगा। 

उस समय रचित के पास दूसरा कोइ चारा नही था इसी लिये वो उसका हाथ पकड कर उसके साथ चल पडा। अभी तक वो इसी असमंजस मे थी की ग़ोमती है कौन? उसे कैसे पता कि वो अपनी कहानी के लिये नायिका की तलाश मे है। और सबसे बडी बात, जो ये सब हो रहा था वो क्या है? कैसे उसके आस पास की दुनिया इतनी धीमी हो गयी और उनके बीच का समय आम समय के तरह ही चल रहा था। ऐसा कैसे हो सकता है की इतने बडे हादसे मे उन दोनों को छोड कर बाके सभी को चोट लग रही थी। ये सारी बाते उसके दिमाग मे चल ही रही थी की उसने पिछे मुड कर एक आखिरी बार देखा तो पाया की बस अब तक चौथी गुलाटी मारने वाली थी और उसके अंदर का सबकुछ अभी तक बिल्कुल वैसे ही धीमे-धीमे चल रहा है।

इधर तत्कालिन समय मे पोलिस मृत लोगों का पंचनामा करवा चुकी थी। घायलों का इलाज चल रहा था और मामुलि चोट वालों का बयान दर्ज करके उन्हे घर जाने के लिये कह दिया गयाtथा । इस केस को ईंस्पेक्टर रावत के हवाले कर दिया गया। रावत बहुत ही तेज़ तर्रार अफसर के तौर पर जाना जाता है। उसके हाथ मे जो भे केस आया वो तीन दिन से ज्यादा टिका नहीं। अपने करियर मे उसने लगभग २५ मसले सुलझाए है और वो भी बिल्कुल साफ-सुथरे तरीके से। उसे खास तौर पर ऐसे ही मसले सौंपे जाते थे जिसमें की मामले के स्थान से ऐसे कोइ भी निशान ना मिले हो जिससे की जुर्म की वजह का पता चल सके। लोग कहते है की उसका दिमाग जुर्म के स्थान से ही सारी बातें उगलवा लेता है। जब वो किसी जुर्म के जगह पर आता है तो जैसे वो जगह खुद ही उससे बात करने लगती है और घटना के तुरंत पहले और बाद की सारी दासतां सुनाती है। इस घटना को अभी तक १४ घंटे से ज़्यादा बीत चुके थे और अभी तक दुर्घटना का कारण समझ नही आ रहा था। तो पुलिस महकमे को रावत की याद तो आनी ही थी। रावत अपने दो सहयोगी के साथ उस जगह आता है जहाँ ये दुर्ग़घटना हुइ थी। सबसे पहले तो वहां के लोगो से बात करी और क्या हुआ था ये समझने की कोशिश की। जितने भी लोगो से बात की सभी ने लगभग एक ही तरह की बात कही मगर कोइ भी ये नही बोल पाया की उस बस की टक्कर आखिर किस चीज़ से हुइ थी क्योंकी उस समय वहां पर ऐसा कोइ भी दुसरा वाहन नही दिखा जिसे किसी ने टक्कर मारते हुए देखा हो । इतने बडे बस को उतने दूर तक भेजना किसी छोटे वाहन का काम तो नही हो सकता है और ना ही ये अक्स्मात होने वाली घटना प्रतीत होती है क्युंकी ऐसा लग रहा था के जैसे जिस किसि भी वाहन से इसकी टक्कर हुइ है वो इससे भी बडी और भारी वाहन होगा। अब रावत ने बस की तरफ रुख किया। सबसे पहले उसे सडक पर बस के घिसटने के निशान दिखे जो की लगभग दस मीटर तक खिचे हुए थे। बस के की ख़िडकियां और दरवजों की तो धज्जियां उड चुकी थी। टक्कर ड्राईवर के तरफ वाले हिस्से से लगी थी वो भी बस के ठिक बींचोबीच। जिसका मतलब था की टक्कर मारने वाला वाहन किसी मोड से सीधा निकल रहा था और उसके रास्ते मे ये बस आ गयी। लेकिन इस सडक पर पचास मीटर तक कोइ भी ऐसा मोड नही था जिससे होकर कोइ वाहन निकल सके। जो एक छोटी पग्डंडी है उससे होकर इतने बडे वाहन का निकलना मुमकिन नही था। वैसे भी ये सडक वन वे है तो दुसरी तरफ से किसी वाहन के आने का तो सवाल ही नही हो सकता । और अगर किसी वाहन से इसकी टक्कर हुइ भी होती तो वो वाहन हवा में गायब कैसे हो सकता है। इतने भयानक हादसे से तो उसके भी परखच्छे उड गये होंगे। मगर यहां इस बस के अलावा किसी भी दुसरे वाहन का कोइ मलबा भी नही मीला। तो फिर ये हादसा हुआ कैसे? ये बात रावत के गले नही उतर रही थी। एक सम्भावना थी के शायद बस की गति के कारण किसी तरह संतुलन बिगड गया होगा और बस ने पल्टी मार ली हो। मगर ऐसी हालत मे चक्को के निशान दूर दूर तक होने चहिये थे मगर यहाँ तो ऐसा कोइ भी निशान नही था। बस की हालत चीख-चीख कर कह रही थी कि उसे टक्कर मारी गयी है और वो भी बिल्कुल बिचोबिच मगर कैसे और किससे ये बात खुल नही रही थी। जिन भी यात्रियों का बयान लिया गया था उनमे से किसी ने भी किसी दुसरे वाहन के दिखने की बत से साफ इंकार कर दिया था। रावत ने बारीकी से उस जगह का ज़ायज़ा लिया और बुदबुदाया  चलो बताओ की आखीर यहाँ हुआ क्या था। एक-एक करके पुरी वार्दात उसके आंखो के सामने घटने लगी। लेकिन इसमे भी टक्कर मारने वाले का कोइ ज़िक्र नही था।

तमाम बारीकिया खंगालने और सभी गणित लगाने के बाद रावत को उस वास्तविक स्थान का पता चला जहां बस को टक्कर लगी होगी। तो उसने वही जाकर छांबीन शुरु करने की सोची। उसके गणित के हिसाब से जहाँ पर टक्कर लगी थी वहां सडक के दोनो तरफ़ ही बडे-बडे शोरूम थे मगर गली एक भी नही। इत्तेफाक़ से उस स्थान का कोण ऐसा बन रहा था की दोनो शोरूम के बाहर के तरफ़ वाला सी.सी.टी.वी कैमरा उस जगह को देख सकता था। साथ-ही-साथ सडक पर लगा सर्कारी कैमरा भी उसकी ज़द मे था। तो अब रावत का पहला काम था उन तीनों ही कैमरे की फ़ूटेज निकाल कर देखना। चुकी कोइ भी इंसान इस बात की शिनाफ्त नही कर सका की टक्कर किससे हुई थी तो अब ये फ़ूटेज ही कोइ तोड दिला सकती थी। फोरेंसिक डिपार्ट्मेंट को भी बस का मुआयना करने के लिये कह दिया गया। और तीनों कैमेरा की क्लिप्स लेकर रावत खुद ही लैब की ओर चल पडा। लब पहुंचा तो पता चला की की रिपोर्ट आने मे लगभग १ दिन तो लग ही जाएगा एक दिन के पहले फोरेंसिक वलो की भी जांच का नतीजा नही मिलने वाला था। इस वाकये ने पहली बार रावत से उसका एक दिन छिन लिया था। अभी तक तीन दिनों में केस सुल्झाने का उसका रिकोर्ड शायद टुटने वाला था। पुरे एक दिन बेकार, एक दिन यानी २४ घंटे बेकार।

खैर अभी किया भी क्या जा सकता है वैसे भी ये केस इतना सीधा लग भी नही रहा था जो तीन दिन में सुलझ जाए। लेकिन रावत के लिये एक दिन का भी इंतजार बहुत था तो उसने सोचा क्युं ना एक बार फिर से घटनास्थल की छान बीन की जाए, हो सकता है की कोइ सुराग मिल जाए जो की अभी तक उसके नज़र से बचा रहा हो। यही सोचकर वो उस तरफ चल पडा। इस बार वो अकेला ही जा रहा था सोचा अगर कुछ हाथ लगेगा तो इसके बारे मे ज़िक्र होगा नही तो किसी और को इसके बारे मे बताकर क्या करना है। आधे घण्टे मे रावत उस जगह पर था जहाँ बस को टक्कर लगे होने की उम्मिद थी। बडी देर तक उसने चारो तरफ नज़र दौराई के कही किसी दीवार पर किसी तरह के चोट य खरोंच के निशान तो नही। कही कुछ टूट-फुट तो नही हुई। मगर कुछ भी हाथ नही आया। फिर उसने वहाँ के सडक की बारीकी से छानबीन करनी शुरू की लेकिन सिवाय एक छोटे से गड्ढे के के और कुछ भी नही दिखा। उसे देखकर पहले तो उसे अनदेखा करके आगे बढ गया मगर क्या जाने क्युं उसे ऐसा लगा की जैसे वो गड्ढा उसे बुला रहा हो। अचानक वो मुडा औरे गड्ढे की तरफ बढने लगा। जैसे-जैसे वो गड्ढे की तरफ बढ रहा था उसकी धडकन बढने लगी थी। एक अंजानी सी ताकत जैसे उसी ओर खिंचते हुए लिये जा रही थी। उसके पैरों मे तेजी आने लगी और वो लगभग दौड़ने लगा था। इस बेचैनी को समझना उसके लिये असहज हो रहा था। आखीर उस गड्ढे मे ऐसा क्या है जो उसे इतना बेचैन किये जा रहा था। अभी वो गड्ढे से दो-तीन कदम की दूरी पर ही था कि उसका मोबाइल बज उठता है। वो रुककर फोन उठाना चहता है मगर उसके पांव नही रुकते। तभी एक झटके से कोइ उसे पीछे खिंच लेता है। ये उसके वैन का ड्राईवर था जो उसे कब से अवाज़ लगा रहा था। जब रावत ने कोइ जवाब नही दिया तो उसने उसे फोन भी किया मगर रावत फोन नही उठा रहा था। इसिलिये उसने पीछे से उसे पकड लिया। रावत पीछे मुडते ही बोला, ये क्या बद्तमिज़ी है? मुझे ऐसे क्युं पकडा है? क्या करूं साहब कब से मैं आपको अवाज़ दे रहा हूँ मगर आप है की सुन ही नही रहे थे। कब से एक ही जगह पर खडे है ना हिल-डूल रहे है और ना ही कोइ इशार ही कर रहे है। मुझे लगा की कहीं आपको कुछ हो तो नही गया। तो फिर मैंने आपको फोने लगाया लेकिन आप तो इतने धीरे-धीरे फोन निकाल रहे थे जैसे ना जाने इस फोन का वज़न कितना भारी हो गया हो मगर आप इतने धीमे-धीमे कहाँ जा रहे थे। ये सब बातें रावत को हैरान करने वाली थी क्युंकी उसके हिसाब से वो बहुत देर से उस गड्ढे की तरफ भाग रहा था। ये सोचते हुए वो पीछे मुडा तो देखा सबकुछ बिल्कुल सामान्य था। वो गड्ढा अभी भी उससे तीन कदम की दूरी पर था। उसने हवलदार से पूछा की क्या कारण है उसके आने का तो वो बोला साहब वो जो मिस्सिंग लोगों की तस्वीर बनाने के लिये कहा था ना, वो तैयार है। आप चलकर देख लेते तो अच्छा होता। रावत ने मन-ही-मन सोचा चलो इस गड्ढे को बाद में देख लेंगे पहले उन लोगों का चेहरा तो देख ले जो गायब हो गये है। यह सोचकर वो गाडी मे बैठ कर पूलिस स्टेशन के लिये निकल पडता है। रास्ते भर दो बातें उसे परेशान कर रही थी एक हवल्दार ने कहा था कि वो बडी देर से एक ही जगह पर खडा था जबकी उसके हिसाब से तो वो बडी देर से उस ग़ड्ढे की तरफ दौड रहा था और दुसरी की उस गड्ढे मे कुछ तो बात है जो उसे अपनी तरफ खींच रहा था। कोइ ताक़त जिसने उसके पैरों को जकड रखा था और उसी तरफ पुरी ज़ोर से लिए जा रहा था। उस समय जैसे उसके अपने शरीर मे उसका कोइ बस नही था। यह सब सोचते हुए ही ना जाने कब वो लोग पूलिस स्टेशन तक आ गये पता ही नही चला।

रावत सीधे अपने केबीन मे चला गया और हवलदार से बोला उस चित्रकार को और दुसरे इंस्पेक्टर( आपटे) को साथ मे ही अंदर भेज दे। जब दोनो आये तो रावत ने उन्हे बैठने का इशारा करते हुए चित्र दिखाने को कहा। यहाँ दो चित्र थे रचित और ग़ोमती की दोनो मेज पर रखते हुए आपटे ने कहा सर, जिन लोगों ने उन दोनों को देखा था उनके हीसाब से ये चित्र सबसे नज़दिकी है। लडका और लडकी का हुलिया इससे बिल्कुल मिलता है। रावत बोला एक काम करो इन दोनो के तस्वीर हर अखबार मे छपवा दो और साथ ही साथ मीडिया के साथ भी ये तस्वीर शेयर कर दो। और हाँ एक और काम करो, हमारे साईबर विंग से कहो की इन दोनों के बारे में शोसल मिडिया से जितनी जानकारी मिल सकती है वो हमें भिवा दें। एक और काम करो इन दोनों के तस्वीर लेकर एक्सीडेंट वाले जगह पर जाकर पता लगाओ क्या किसी ने इन्हे वहां जे भगते हुए देख़ा है क्या? अभी तक रावत ने उन दोनो की तस्वीर नही देखी थी। उन दोनों को वि दा करके वो अपने कुर्सी पर बैठ गया और कुछ सोचने लगा इतने मे ही कमिश्नर साहब का का फोन आता है। हैलो रावत क्या अपडेट है? केस कहां तक पहूंचा? कोइ लीड मिली क्या। रावत उन के साथ अभी तक का ब्योरा सांझा करता है तभी दोनो तस्वीर हवा से मेज से उड कर नींचे गिर जाती है। रावत बात करते हुए ही नींचे झुकता है और तस्वीर उठा कर मेज पर रखता है। फोन काटते ही वो ज़ोर से आप्टे को आवाज़ लगाता है। जैसे ही आप्टे अंदर आया वो बोला तुम्हारे पार इस तस्वीर की दुसरी कांपी है क्या? उसने ना मे स्र हिला दिया तो रावत चिल्लाते हुए बोला तो प्रेस में क्या अपनी तस्वीर दोगे छप्वाने के लिये। जाओ इसे लेकर और सबसे पहले इसकी बीस कांपी बनवाओ और काम पर लग जाओ और हाँ एक कांपी मुझे भी देते जाना, मैंने अभी तक इसे देखा नही है।

अर्रे सर आपको तो इसे पहले ही देख लेना चाहिये नही तो पता चला की आपसे ये दोनों रास्ते मे टकरा कर गुजर भी गये और आपको पता भी नही चला। रावत गुस्से मे आप्टे की तरफ घूरते हुए कहता है यहाँ कोइ मज़ाक चल रहा है, तुम जरा मर्यादा मे रहना सीख लो तो अच्छा होगा। ये तुम्हारी पहली और आखरी गलती है इस लिये जाने दे रहा हूँ। फिर से कभी ये गलती नही दोहराना वर्ना सही नही होगा। जैसा कहा गया है वैसा करो ज्याद जुबान मत चलाओ, दीमाग चलाओ। आप्टे सहम गया, आज के पहले कभी भी उसने रावत का ये रुप नही देखा था। खैर उसने बात को बढाना सही नही समझा और अपने अकाम मे लग गया। दोनो तस्वीर की उसने पांच कापियां बनवाइ और लौटते हुए एक कापी अखबा र वाले को दे दिया दुसरी टी.वी वालों को तीसरी साइबर क्राइम टीम को चौथी अपने खबरी को पांचवी पूलिश स्टेशन के वांटेड बोर्ड पर लगवा दी और ओरिजिनल कापी रावत के टेबल पर रखता गया। अब बस कहीं से किसी सुराग का इंतजार था। रात के लगभग दस बज चुके थे मगर रावत अभी तक अपने टेबल पर ही टिका हुआ था। जब तक वो घर नही जाएगा तब तक आप्टे का भी घर के लिये निकलना मुशिकल था मगर करे तो करे क्या? आज सुबह जिस मूड मे उसने उसे देखा था, अभी भी उसके सामने जाने से हिचकिचा रहा था। इतने मे उसका फोन बजा और दुसरी तरफ से रावत ने पूछा कहीं से कोइ लीड मिलि क्या? आप्टे बोला नही सर अभी तक तो नही मिला, खबरी को लगा रक्खा है, कल सुबह तक जरूर कुछ ना कुछ तो हाथ लगेगा । रावत ने पुरी बात सुनी और बोला ठिक है अभी घर चले जाओ मगर जैसे ही कुछ भी पता चले बीना देरी किए मुझे अपडेट कर देना। भुलना मत। मैं अभी यही हूँ, कुछ देर और रहना है। ये  बात कहते हुए रावत को फूटेज के बारे मे ध्यान आया और बोला, वो लैब वाले ने क्या कहा? आप्टे बोला कल सुबह सात बजे तक काम हो जाएग सर। ठीक है तुम जाओ, मैं भी थोडी देर मे निकलुंगा। आप्टे ने अपनी टोपी सम्हाली बेल्ट कसा और फोन पर ही सैल्युट मारकर निकल गया।

रावत अभी भी उस गड्ढे के बारे मे सोच रहा था। उसे लगा जैस जैसे जब वो उस गड्ढे के तरफ बढ रहा थ तब उसके आस-पास के हर चीज़ अजीब तरीके से व्यवहार कर रही थी। जैसे वो वहां होकर भी वहां नही था। जैसे ही वो उसके बारे में ज्यादा सोचने की कोशीश करता उसके सिर मे दर्द होने लगता। दो तीन बार ऐसा होने के बाद रावत ने सोचा लगता है मेरी तबियत खराब है मुझे एक काफी पीनी चाहिये। ये सोचकर वो काफी लाने चला जाता है। जब काफी लेकर लौटा तो उसे याद आया की आप्टे ने उसके टेबल पर उन दोनो की तस्वीर छोडी थी जो की उसे देखना है। वो उठा और उसकी तरफ बढने लगा। एक तस्वीर उठाइ और उसे देखने लगा। ये रचित की तस्वीर थी, तस्वीर देखकर कर रावत मन ही मन कुछ सोचता है – इस लडके की आंखे देखकर लगता है की ये किसी खास चीज़ की तलाश मे था, कितनी बेचैन आंखे है इसकी। बाल भी संवरे हुए है। चेहरे पर कोइ दाग भी नही है। तस्वीर में इसके माथे पर कोइ बल नही दिख रहा जिससे इसके कीसी तरह के डर या परेशानी नज़र नही आती। जिस तरह के कपडे इसे पहने हुए दिखाया गया है उसके अधार पर ये एक सुलझा हुआ आदमी जान पडता है। कंधे पर बैग भी टंगा हुआ है और लोग कह रहे थे की ये बस में ज्यादातर सोया हुआ था तो इन सब बातों से ये तो नही लगता की इस दुर्घटना मे इसका कोइ सीधा वास्ता होगा। लडका पढाकु और शांत जान पडता है। कंडक्टर ने कहा था की इसने टिकट भी लिया था और अपने पास वाले लडकी को खिडकी वाला सिट भी बिना किसी कहा-सुनि के दे दिया था तो इस अधार पर ये लडका आपराधिक प्रवृत्ती का तो नही लगता। बाकी तो जब मिलेंगे तब समझ ही जाएंगे। लेकिन बात ये है की ये लडका भंवर कुआं क्या करने जा रहा था और वो लडकी भी तो भंवर कुआं ही जा रही थी ना? दोनो में कुछ तो ताल्लुक है जरूर। कंडक्टर के मुताबिक दोनों ही नगपुर से चढे थें  मगर अलग अलग स्टाप से और पुरे सफर मे बस दो बार हीं एक साथ बैठे थे। तो अगर ये लडका अपराधी नही है तो फिर शायद उस लडकी से ही कुछ पता चलेगा। मेरा दिमग कह रहा है की इन दोनो की कुछ-ना-कुछ कहानी रही होगी। ये सोचते हुए वो लडकी की तस्वीर के तरफ हाथ बढाता है मगर तभी उसका मोबाईल बज उठता है। दुसरी तरफ से उसकी बिवी बोल पडती है, आज भी रात जेल मे बिताओगे य फिर घर लौट रहे हो। अगर आ रहे हो तो मैं खाना गर्म करने के लिये जागती रहूं वर्ना तुम्हारे बेटे को खिलाकर सुलाकर मैं भी सो जाती हूँ। जब भी तुम लौटोगे मैं भी तुम्हारे साथ ही खाना खाउंगी। इस पुरे बात-चीत के दौरान रावत बिल्कुल चुप रहा और अंत मे बोला तुम खाना गरम करो मैं दस मिनट में आता हूँ। हाथ मे उठाइ हुइ तस्वीर को उल्टे ही रखते हुए उसने काफी खत्म की और थाने से बाहर जाने लगा। फिर थोडा रुका और दोनो तस्वीर एक लिफाफे मे डाल्कर अपने साथ लेता चला। सोचा रात को घर पर इसे देख लेगा। मगर अपनी बिवी की बात याद करके बुदबुदाया क्या खाक देखुंगा अगर ये उसके नज़र मे पड गया तो वो मेरा खून पी जाएगी और रोज़ का घर और काम के बीच का झगरा शूरू हो जाएगा। छोडो कल ही देख लुंगा इसे, और वो घर के लिये निकल पडा। गाडी मे  बैठ्ते हुए हवलदार से कहा रास्ते मे लैब होते हुए चलना, पता तो चले काम कहां तक बढा। सबकी सर्कारी नौकरी है, काम हो ना हो आराम जरूर होना चाहिये। ड्राइवर ने गाडी लैब के तरफ मोड लिया। लैब पहूंचा तो पता चला की टेक्निकल स्टाफ के कमी के कारण तीनो मे से कोइ भी भिडिओ अभी तक प्रोसेस उनिट मे ही पडा हुआ है। कल सुबह ही कोइ जानकारी हो पाएगी।

कल की बात सुनकर एक बार तो रावत को बहुत ज़ोर का गुस्सा आया मगर अपने डिपार्टमेंट के काम करने के तरीके से वाक़िफ था और फिर वो भी तो इसी सिस्टम का ही हिस्सा था। आज उसे ज़रुरत पडी है तो क्या हुआ उसके लिये ये आदी काल से चलता हुआ ढर्रा बदल तो नही सकता। आज उसे एहसास हो रहा था की कैसे किसी आम आदमी को अपना काम करवाने मे माथाफोडी करनी पडती है। झुझलाता हुआ वो अपने घर की तरफ बढ जाता है। रास्ते भर उसके मन मे आने वाले कल के बारे मे योजना बन रही थी। सबसे पहले वो लैब से विडियो लेगा फिर जाकर उस तस्वीर को देखेगा और फिर उसके बाद की योजना बनाएगा। इधर पोलिश अपना काम रही थी तो उधर राजनितिक पार्टियां इस मौके को भुनाने मे लगे हुइ थी। विपक्ष सत्ताधारी सर्कार पर लानत और ताने देने से रुक नही रही थी और मुख्य मंत्री के इस्तिफे की बात कर रही थी तो दुसरे तरफ़ गृह मंत्री का पुलिश विभाग पर दबाव बढता ही जा रहा था। इन सबका कोइ हल नज़र नही आ रहा था। घर पहुचने के पहले ही कमिश्नर साहब का का फोन आया, रावत अगर कल तक इस केस मे कोइ भी कडी नही मिलि तो गृह्मंत्री इसे विदेशी हमला करार देने वले है। फिर ये केस दिखावे के लिये ही सही हमारे हाथ से निकल जाएगा और हमारी इज्जत मिट्टी मे मिल जाएगी। तुम कुछ भी करके कल तक इसका कोइ ना कोइ रास्ता निकालो नही तो हम दोनों का तबादला होना तय है। रावत के समझ मे कुछ न अही आ रहा था मगर उसने कमिश्नर से कल तक इसे सुलझा लेने का वादा कर कर फोन काट दिया। 

घर पहुंचा तो देखा कि उसकी बिवि उसके इंतजार मे अभी तक डाइनिंग टेबल पर ही सो रही है। एक बार तो उसे उस्पर दया आये और खुद पर गुस्सा के उसके वजह से ही इसकी ये हालत हुइ है पर अगले ही पल खुद को सम्हालता उसे आवाज देता है। वो जाग जाती है और दोनो के लिये खाना लगाती है। खाते हुए दोनो घर की बाते करने लगते है और उसी बात ही बात मे इस नए केस की भी बात चल पडती है। रावत कोशिश करता है की वो उसे इस मामले के बारे मे ज्यादा जानकारी ना दे मगर बिवी से कौन जीत है भला। कई तरह के बातैन सुनकर वो बोलि चलो अच्छा है अगर कल तक ये मामला ना सुलझा तो कम से कम हमे इस शहर से बाहर जाने का मौका तो मिलेगा। मैं तो कब से ही यहाँ से अपना सामान समेटने का सोच रही थी। मैं तो भगवान से प्रार्थना करुंगी की कल भे तुम्हे इसमे कोइ सुराग ना मिले। रावत के तो जैसे जले पर बिवी ने नमक डाल दिया हो। लेकिन वो अभी झगरा नही करना चाहता था तो उसने चुप रहने मे ही भलाई समझी। सुबह पांच बजे का अलार्म लगा कर वो सो गया। जैसे जैसे उसे निंद आने लगी उसके बिवी की आवाज़ उसके कानो से दूर होती गयी और अंत मे बिल्कुल ही धीमे हो गयी। उसकी बिवी भी थोडी देर तक खुद मे ही बडबडाते रही उसके तरफ गुस्से से देखती रही और फिर सो गयी। 

 

अचानक ही रावत को किसी ने अवाज़ लगायी और वो बिस्तर से उठा और उस अवाज़ की तरफ चलने लगा। अभी उसे चल्ते हुए थोडा समय हीं हुआ था की उसे वो ग़ड्ढा दिखा जो की उसने सुबह उस सडक पर देखा था। वो तेज़ी से उसके तरफ बढने लगा। वो दौडने लगा, फिर भागने लगा तेज़ अय्र तेज़ इतनी तेज़ की पसीने से पुरी तरह भींज चुका था। कपडे से पानी ऐसे बह रहा था जैसे की वो किसी तालाब से नहाकर बाहर आ रहा हो। मगर ये ग़्ड्ढा अभी तक वही था जहा पहले था। रावत के कदम एकदम भारी होने लगे। वो हाँफने लगा उसकी सांसे उखडने लगी मगर वो ग्डढे तक पहूंच नही पा रहा था। लेकिन वो भी कहाँ हार मानने वाला था। थोडा रुका, गहरी सांसे ली, अपना पसीना पोंछा और जैसे ही बढने को हुआ तो उसे लगा की जैसे कोइ उसे नींचे खिंच रहा है। ये कैसे हो सकता है अभी अभी तो ये कितनी दूर था और अभी अचानक से मेरे पैरों के नीचे कैसे आ सकता है। वो छटपटाने लगा बाहर आने ले लिये हाँथ पैर चालाने लगा मगर उसके पैर नही चल रहे थे। वो चीज़ उसे उसके बदन के ताक़त से कही ज्यादा ज़ोर से नीचे खींच रही थी। वो चीखना चाहता था मगर उसकी आवाज़ जैसे उसके हलक मे अटक कर रह गयी हो। तभी उसने नींचे देखा तो एक अजीब सा जीव उसे अपनी दसों भुजाओं से जकडे हुए था। ना तो उसकी आंखे थी और नाही सिर बस भुजाए ही दीख रही थी। फिर एक अजीब से बदबु से पुरा वातावरण महक उठा। उसकी ताकत से रावत का दम घुटने लगा और एक ज़ोर की चींख के साथ उसका सपना टुट गया। वो हाँफ़ते हुए उठ बैठा, पुरी तरह पसीने से नहाए हुए। ए,सी के तरफ नज़र दौडाया तो देखा की २० डिग्री का मान दिखा रहा था। तो क्या उसने कोइ भयानक सपना देखा था। हाँ ये सपना ही तो था, कितना दर्द्नाक और भयानक सपना जैसे कि वो मौत के मूंह से बच कर निकला हो। डो मिनट बिस्तर पर बैठे रहने के बाद वो उठा और पाने पीने चला गया। लौटते हुए घडी पर नज़र डाली तो वो ४:५५ का समय बता रही थी। अब क्या सोना ये सोच कर वो जोग्गिंग के लिये निकल पडा। लौटते हुए छ: बज चुके थे और सुबह का अख्बार भी आ चुका था। चाय की चुस्की के साथ उसने अखबार के पन्ने पलटने शुरु कर दिये। पहले पन्ने से लेकर तीसरे पन्ने तक बस उसी बस एक्सीडेंट की खबरें थी। जितने लोग उतनी बातें। उसने पुरा अखबार छान डाला मगर कही भी उसे उन दोनो के तस्वीर नही दिखायी दी। कल ही तो उसने आप्टे को हरेक अखबार मे उनकी तस्वीर देने को कहा था। 


रुको जरा, कब से मुझे बस भगा ही रही हो। बताती क्युं नही कि तुम्हे मेरे कहानी के बारे मे कैसे पता है? ज़रा रुको तो सही, ये सब मेरे लिये किसी तिलस्म से कम नही। मैं ऐसे और नही चल सकता या तो पहले तुम मुझे अपने बारे मे बताओ या फिर मुझे यहाँ से जाने दो। मैं इस तरह से कश-म-कश मे नही रह सकता। इतना कहते हुए रचित मुडने लगता है तभी ग़ोमती उसका हाथ पकड कर खिंचने लगती है और बोलती है, इतने दिनों से मेरी तलाश मे तुमने अपना भुख-प्यास निंद-चैन सब गवा दिया है और अब जब मैं खुद चलकर तुम्हारे पास आई हूँ तो तुम मुझसे दुर भागने की सोच रहे हो। कमाल है यार। ठीक है चलो मैं तुम्हे अपने बारे मे सब बताती हूँ और ये भी समझाती हूँ कि ये जो भी तुम्हारे साथ हो रहा है वो क्या और क्युं है मगर पहले हमें उस मकान मे जाना पडेगा ताकी कोई हमे देख ना सके क्युंकी जब से मैं तुम्हारे खयालो से निकल कर इस दुनिया मे आयी हूँ तुम्हारे कहानी के कई किरदार मेरा पीछा कर रहे है। मेरे कहानी के कौन से किरदार तुम्हारा पीछा कर रहे है?  क्युं क्या तुम मानव को भुल गये? मानव का नाम सुनते ही रचित ठिठक गया अब वो ये तो जान गया की ये लडकी जो भी है मगर झूठ नही बोल रही है। फिर यकायक उसकी नज़र उस मकान मे रक्खे एक अल्मारी पर पडी ये बिकुल वैसा ही था जैसा रचित ने अपनी कहानी मे लिखा था। फिर एक एक करके जब उसने पुरे मकान को देखा तो उसे मालुम हुआ की ये वही मकान है जिसका जिक्र उसकी कहानी मे था। बिल्कुल वही मकान, सब कुछ बिल्कुल रचित के कहानी के जैसा। वही दीवारें, वही दरवाज़ें, हु-ब-हू टंगी हुई चित्रकारी। सब कुछ बिल्कुल वैसा ही था जैसा रचित ने अपनी कहानी मे लिखा था। रचित को तस्वीर भी दिखी जिसमे से उसने अपनी नायिका का चेहरा अधुरा छोड दिया था क्युंकी उसकी तलाश अभी तक खत्म नही हुइ थी। रचित अपने ही कल्पना के के संसार मे जी रहा था। यहाँ वो सब कुछ था जिसके बारे मे उसने अभी तक लिखा हुआ था। और जो कुछ सोच रखा था उन सबकी धुधली सी छाया बन रही थी। ये सब देखते हुए रचित अचम्भीत हो रहा था।

 अभी तक ग़ोमती ने रचित को उस मकान का कोना-कोना दीखा दिया था और हर एक कोने के बारे मे बता भी दिया था। जब रचित ने उससे उन धुंधली छाया के बारे मे पुछा तो ग़ोमती बोल पडी अभी तक तुमने उसे पुरी तरह से रचा नही है इसिलिये वो बस एक छाया बनकर रह रही है। ये नही हो सकता, बिल्कुल नही हो सकता। भला मेरी कल्पना इस तरह से मुझे अपने अंदर कैसे क़ैद कर सकती है?  ग़ोमती ने कहा, क्युं?  जैसे तुम लेखक अपनी कल्पना शक्ति से हमे ज़िंदा या मुर्दा बना सकते हो तो क्या हम तुम्हे इस दुनिया मे क़ैद नहींं कर सकते?  ये तुम्हारा ही किया धरा है जो तुम देख रहे हो। तभी रचित के नज़र दीवार पर टंगे घडी पर गई तो उसने देखा की ये समय रात के ८ बजे का है ये देखकर रचित पूछ बैठता है की आज तारीख  क्या है? ग़ोमती जवाब मे कहती है आज ही तो हमारी कहानी शुरु होने वाली है। भुल गये आज ८ मई है, ८ मई २०२०, रात के आठ बजे है। रचित समझ गया के आगे क्या होने वाला है। उसने पूछा की बाकी के सब लोग कहाँ है? ग़ोमती बोली सब एक एक करके सामने आएंगे जैसा की तुमने लिखा है।

तो इसका मतलब है की कहानी अभी शुरू होने वाली है। सभी किरदार अपने-अपने हिस्से का काम करेंगे और मैं उनको देख सकुंगा। हाँ, तुम देख सकोगे सुन सकोगे और मेहसुस भी कर सकोगे। तो क्या मैं अगर कुछ बदलना चाहूँ तो वो भी हो सकता है? ग़ोमती उसके तरफ सवालिया नज़र से देखती हुई बोली और किस लिये तुम्हे यहाँ लेकर आयी हूँ मैं। मैं तुम्हारे कहानी की नायिका हूँ और तुमने मेरे साथ ही ऐसा किया। मुझे ये पसंद नही आया, तो तुम्हे उसे बदलने के लिये यहाँ लेकर आना पडा मुझे। जिस समय से मैं तुम तक पहूंची हूँ उस समय तुमने जिस कातील को मेरे पीछे भेजा था वो अभी तक मुझे ढूंढ रहा है। तुम्हे मेरी मौत टालनी पडेगी। मेरा किरदार फिर से लिखना पडेगा। लेकिन तुम्हारे आने मे तो अभी काफी वक़्त है। लगभग चार साल मैं इतने दिनों तक यहाँ क्या करूंगा। तुम यहा बैठोगे और हर एक लम्हा देखोगे हर एक किरदार देखोगे और हर किसी जगह जहाँ मैं कहुंगी तुम्हे चीज़ों को बदलना पडेगा। पर ये कैसे हो सकता है, जो मैंए लिख दिया उसे मैं कैसे बदल सकता हूँ, वो तो कहानी की मांग है। अगर मैंने कुछ भी बदला तो कहानी नया मोड ले लेगी। हाँ ले लेगी लेकिन अगर तुमने नही बदला तो तुम्हारी खुद की कहानी इसी कहानी के अंदर दफन हो जाएगी और कोइ जान भी नही पाएगा।

रचित एक क्षण रुकता है कुछ सोचता है और फिर बोलता है, तो क्या तुम मुझे मारना चहोगी? मगर तुम चाह कर भी ऐसा नही कर सकती क्युंकी मैंए तुम्हे उस सोच की साथ नही बनाया है। ग़ोमती घुरते हुए उसके पास तक आती है और कहती है, हाँ ये सच है की मैं तुम्हे मार नही सकती मगर ये भी सच है की तुम मेरे बारे मे जो भी लिखना चाहते हो मैं वो सब समझ सकती हूँ और इसी से मुझे मालुम है की तुमने मुझमे क्या शक्तियां डालने की सोच रखी है? और अब मैं तुम्हे यहाँ से जाने से तब तक रोक सकती हूँ जब तक की तुम मेरी किस्मत का लिखा नही बदल देते। तुम जानते हो ना की मैं क्या कर सकती हूँ? ये सुनते ही रचित के जहन मे ग़ोमती की शैतानी शक्तियों का पुरा ब्योरा दोहराने लग जाता है और ठीक उसी समय ग़ोमती भी सब कुछ जानने लग जाती है। रचित को ये बात समझने मे थोडा समय लगा तब तक ग़ोमती अपना काम कर चुकी थी। उसने कहानी की बाकी सभी पात्रों को ये बता दिया था की उन सबको बनाने वाला खुद ही अपने कहानी में फंस चुका है। और जिसे जो भी बदलवाना है वो उसके पास आ सकता है। 


कहानी तो अब शुरु होती है। भारत के दक्षिणी छोड पर एक द्वीप समूह है जिसे हम अण्डमान निकोबार के नाम से जानते है। यहींं  पर भारत क सबसे अंतीम स्थल बिंदु है ईंदिरा प्वाइंट। ये आम तौरे पर सैलानियों क पसंदिदा स्थान है क्युंकी यहाँ पर मौज मस्ती के लिये हर वो सामान असानी से प्राप्त हो जाता है जो कि भारत के अन्य किसी भी क्षेत्र मे मिल पाना कठिन होता है। समुंद्र का किनारा, तैरते नांव, मौज मस्ती करती लड्किया और खुला समुंद्र जिसमे आप चाहे जहाँ तक तैर सको। यहाँ कई छोटे-छोटे होटल्स है जिनमे इनकी क्षमता से ज्यादा लोग जमे रहते है। यहीं के होटल सी साइट के दुसरे माले के कमरा नम्बर २०९ में आज रात के ८ बजे चार लोग इकट्ठे हुए है। मानव, शमीत, हितेश और पुष। पुष उसके दोस्त उसे प्यार से बुलाते है वैसे उसका नाम पुष्कर है। जिस कमरे मे वो रुके है उसकी एक ख़िडकी समुंद्र के तरफ खुलती है और दुसरी ख़िडकी सीधे सडक के ओर। दीवारों पर कई लडकियों की तस्वीरें टंगी हुई है। तस्वीरों मे कला बहुत कम और अश्लिलता और कामुकता कूट-कूट कर भरी हुइ है। कमरे के अंदर की रोशनी बिल्कुल उस महौल के तरफ इशारा करती है जो की किसी के साथ हमबिस्तर होने को बेकरार कर दे। गद्दे दार पलंग, शराब की बोतलें उत्तेजक गाने और खाने में कबाब यानी की शराब,शबाब, और कबाब तीनो का इंतेजाम था यहाँ पर। मगर कोई भी लडकी नज़र नही आ रही थी।

मानव और शमीत दोनो जाम बना रहे थे और इतने में हितेश बोल पडता है यार क्या मस्त जगह है ना? मजा आ गया यार, कई दिनों के बाद हम सब दोस्त यहाँ एक साथ मिले है। याद है पिछले बार हम कब मिले थे? मानव कहता है हाँ तेरी होने वाली शादी के पहले, हमे तो लगा था कि इस बार तो तु गया काम से मगर साले तुने शादी ही नही की। तेरे बाद हम तीनो ने शादी कर ली मगर तुने अभी तक शादी नही की। हम सब क़ैदी बने हुए है और तु अभी तक छुट्टे सांड के तरह घूम रहा है। हितेश बोला तभी तो तुम लोगोंं को यहाँ लेअकर आया हूँ ताकी कुछ दिनों के लिये ही सही मगर इस आवारगी क मज़ा तुम भी उठा सको। इतने मे शमीत बोला- भाई ये रूम वगैरह तो मैने मैनेज कर लिया मगर मैं अपनी लडकी तुम्हारे साथ शेयर नही करने वाला हूँ। पुष तुने सभी के लिये अलग-अलग लडकी बूक करवाइ है ना? देखो इस रूम मे चार कमरे है हम चारो के लिये तो जैसे ही लडकिया आती है सब अपने अपने कमरे मे मजे करने के लिये चले जाएंगे। कोइ भी किसी के माल पर नज़र नही देगा। हम चार लोग चार दिन के लिये यहाँ है और ये चारों लडकिया भी हमारे साथ चार दिन तक रहेंगी। हम आपस मे अदला-बदली तो कर सकते है मगर एक साथ काम नही कर सकते। मानव उसे छेडते हुए कहता है, तु कबसे इतना शरीफ बन गया साले, कभी मेरी माल को दबोचने के पहले सोचता है? भाई हम यहाँ मौज़ मस्ती करने आये है किसी तरह के लफ़डे मे पडने के लिये नही। वैसे लडकियों से बात भी वैसे ही हुइ है एक रात बस एक के साथ। तो जो जिस रात जिसके हिस्से मे मिली उसे उसके साथ ही रात बितानी पडेगी। हमारे बीच लडकियों को लेकर कोइ मतभेद ना हो इसी लिये हम एक खेल खेलेंगे और उसी खेल के जरिये ये तय होगा कि कौन सी लडकी किसके साथ जाएगी। खेल मजेदार है और इसे खेलने के तरीके से इसका मज़ा और ज्यादा आयेगा। मानव बीच मे ही बोल उठा इंट्रो ना दे क्लाइमैक्स बता। तो सुनो जब लडकियां अंदर आयेंगी तो उनका चेहरा पुरी तरह से ढका हुआ होगा। हम सब अपने अपने नाम की एक चिट बना कर एक-एक ग्लास मे रख देंगे। फिर उन ग्लासेस को घुमा देंगे। जब लडकियां आयेंगी तो हम उन्हे शराब के ग्लास उठाने को कहेंगे। जो लडकी जिस ग्लास को लेगी उसपर लिखे नाम के साथ उसके कमरे मे चली जाएगी। लेकिन जब तक वो कमरे के अंदर नही जाती तब तक उसका चेहरा दिख नही सकता। इससे ये होगा की ना तो हम एक दुसरे के माल को देख सकेंगे और नाही किसी तरह के खिंचा-तानी या बहस बाजी होगी। मानव बोला, ये बिल्कुल सही है नही तो पिछले बार की तरह पुष और हितेश आपस मे ही लड पडेंगे। उन ल्डकियों ने भी क्या सोचा होगा, नही? अरे पुष माल तो सही होगा ना? उसकी चिंता तुम मत करो जिस अजेंट से बात हुइ है वो हमेशा फ्रेश और कच्चा माल ही रखता है। मैने उसे ज्यादा पैसे भी दिये है तो माल तो अच्छा होना ही है। तभी हितेश बोल पडता है, क्या हम ये खेल रोज़ खेल सकते है? सब उसकी तरफ देखते है, मतलब की उन लडकियों को तो इससे फर्क़ नही पडता की उनके साथ कौन सोने वाला है? और नाही हमको उनसे एक रात मे प्यार होने वाला है जो हम उन्हे बदलने मे हिचकिचाए है कि नही? तो हर रोज़ ये खेल खेलेंगे तो हो सकता है की हम सबके पास चार दिन मे चार अलग अलग लडकियों के साथ सोने का मौका हो। बात सबको जम गयी और सबने हितेश को दबोचते हुए कहा साले कमिनेपन मे तेरा जवाब नही है। तो तय रहा की आने वाले चार दिनो तक कोइ मोबाइल नही छुएगा, नो लैपटाप, नो काल्स कुछ नहीं। पुष तेरा काम तुने कर दिया है, हितेश तु यार खाने-पीने का इंतजाम कर ले, मानव तू लडकियों के रहने और नहाने का इंतजाम कर दे और मैं पैसो का इंतजाम करूंगा। चलो इसी बात पर एक जाम हो जाए। सब एक साथ जाम टकराते हुए कहते है, एक जाम हमारी चार दिन के अजादी के नाम। तभी दरवाज़े पर दस्तक होती है, पुष झट से उस तरफ भागता है। सभी अपने आप को स्थिर करते है और बडे बेचैनी से दरवाजे की तरफ टकटकी लगाये हुए देखते है। दरवाजा खुलता है और एक आदमी अंदर आता है? आदमे को देखकर सब घबरा जाते है इससे पहले की कोइ कुछ बोले वो आदमी बोल पडता है- सर आपका सामान आया है. कैश ओन डेलिवरी है। पहले कैश दिजिये तभी माल अंदर आएगा। इतना कहकर वो आदमी अपने बैग से एक स्वाईप मशिन निकालता है और पुष की ओर बढा देता है।


पुष शमित की तरफ देख़ता है और इशारा करता है कि ये तो कार्ड मांग रहा है। शमित अपने कमीज़ से २००० हजार के १० नोट्स निकालकर उसे देता है और कहता है, लगता है आजकल आप लोगों का धंधा बहुत सही चल रहा है तभी तो स्वाइप मशिन लेकर घूम रहे हो। सामने वाला बोला साहब हमारा सब काम बिल्कुल लिगल तरीके से होता है। आप चाहे तो अपको इस सर्विस का पुरा पक्के का बिल दे सकता हूँ। शमित को थोरा अजीब लगा मगर कुछ बोला नही। लेकिन पुष बोल उठा, तो आपका कहना है की आप लोग ये कारोबार सरकार के नियम कानून के साथ कर रहे है? जी आप ऐसा समझ सकते है। इतना कहकर वो आदमी वहाँ से चला जाता है और अपने पीछे चार जवान लडकियां छोड जाता है। एक-एक करके चारो लडकिया कमरे के अंदर आती है और उनके आते हुए पुष उनकी गिनती करता है एक-दो-तीन और चार, माल पुरा है भाई। उसे देखकर मानव कहता है ये क्या कोई गिनने की चीज़ है जो तु इतने ध्यान से गिन रहा है? कोइ छोटा सामान है क्या जो खो जाएगा? नही मैं तो बस कंफर्म कर रहा था की सब कुछ सही तो है ना? उधर से हितेश आगे बढता हुआ कहता है वेल्कम लेडिज़, वेलकम तो आवर स्विट। इससे पहले की अप सब अपना चेहरा बेपर्दा करें मैं आप सबसे रिक़्वेस्ट करूंगा की आप ऐसा ना करे, हमारा खेल खराब हो जाएग। सबसे पहले आप अपने सामने रखे हुए ग्लास उठाए ताकी हम दोस्तों को आज के रात के अपने हिस्से का जोरिदार मिल सके। जब ये हो जाएगा तो आप सब अपने-अपने रूम मे जाकर कपडे बदल लेना। जैसा की हमने सोच रखा है वैसे ही कपडे आज आपको पहनने होंगे। हम आपके खाने-पीने का सामान और खुद को लेकर आपके कमरे मे चले आएंगे। सभी लडकियां हंसने लगी और जैसा कहा गया वैसा ही करने लगीं। टेबल पर रख़े ग्लास को उन्होने एक-एक करके उठा लिया। सबसे पहले नाम पुष का निकला, फिर हितेश, फिर शमित और सबसे अंत मे मानव का नाम निकला। जैसे-जैसे नाम निकलते गये वो लोग अपना सामान लेकर अपने-अपने कमरे मे जाने लगे। पुष तो इतना खुश हो रहा था जैसे की उसको कोई खज़ाना मिल गया हो। एक झटके से उसने अपनी वाली का हाँथ पकडा और लेकर उसे अपने कमरे मे चला गया। इसी तरह सब के सब अपने अपने कमरे मे चल दिये और सबके कमरे का दरवाजा बंद हो गया। अभी उनको अंदर गये दो मिनट भी नही हुए होंगे की उनके ग्रूप मे एक मैसेज अया " कोइ भी काम करने के पहले माल चेक कर लेना कही कोइ डैमेज तो नही है, अगर कोइ डैमेज मिलता है तो आइटम बदला जा सकता है, क्युंकि एक बार इस्तेमाल करने के बाद उसे बदला नही जा सकता। मैने तो अपना चेक कर लिया तुम भी कर लो"।   

पुष अपना काम शुरु कर चुका था उसने सबसे पहले उस लडकी से उस्का नाम पूछा तो वो बोलि हमे अपना नाम बताने के पैसे नही मिलते तो पुष ने कहा हाँ वो तो सही है पर अब जब चार दिन तक साथ रहना है तो किसी नाम से पुकारना पडेगा ना? इसपर वो बोली ठिक है तुम मुझे सोनिया बुला सकते हो। फिर उसने खुद ही कहा हमे बताया गया है कि हम सबसे पहले आपको अपने शरीर का एक मुआयना करवा दें ताकी बाद मे कीसी तरह की कोइ शिकायत नही हो। कस्टमर की संतुष्टी हमारे लियी सबसे उपर है। हाँ ठिक है, पहले तुम अपने तरीके से दिखाओ क्या दिखाना चहती हो, बाद मे तो मैं अपने हिसाब से देख हीं लुंगा। सोनिया एक एक करके अपने सारे कपडे उतारती है। सबसे पहले उसने अपने चेहरे से नकाब उतारा। गोल सा सुंदर सा चेहरा। चेहरे पर एक भी निशान नही थे। उसने कोइ ज्यादा मेकअप भी नही किया था। काले घने लम्बे बाल उसके कमर को छू रहे थे। होट लाल और सुर्ख। आंखे भुरी मगर चमकदार। भरे-भरे गाल और उसपर हल्का सा ब्लश। गर्दन लगभग चार इंच की मगर बिल्कुल मांसल। उसके होंट के नीचे एक तील शयद वो मेकअप था या नही वो तो छुने के बाद ही पता चल सकता था। हल्की सी हंसी से उसके दांत भी दिखने लगे जो काफी सजे हुए थे। इसके बाद उसने अपना स्कार्फ निकाला। स्कार्फ के सरकते ही पुरे कमरे मे खुशबू फैल गयी। ये खुशबू पुष को बेकाबु करते जा रही थी। स्कार्फ के हटते ही उसे सोनिया की हल्की पीली शर्ट दिखी जिसका सबसे उपर का बटन खुला हुआ था। मगर शर्ट इतनी टाइट थी की उसका यौवन उसमे फंसा हुआ था। सोनिया ने शर्ट के बटम खोलने शुरु कर दिये। जैसे जैसे उसके हाँथ निचली बटन के तरफ बढते पुष की आंखों मे शुरुर चढता जाता। पहले एक फिर दुसरा फिर तीसरा और फिर आखिरी बटन खुल गया। मगर अभी तक पुष ने जिस दृश्य की कल्पना की थी वो दिखी नही। सोनिया ने अंदर जालीदार ब्रा पहन रखी थी। उस जाले के छेद से उसका यौवन साफ झलक रहा था जिससे पुष की कामुकता चरम सीमा तक जा पहुंची थी। वो झट से उठा और सोनिया को अपनी तरफ ख़िंचने लगा मगर सोनिया ने उससे कहा की अगर आप मुझे पुरी तरह से चेक किये बिना ही काम करते है तो मेरी और आपकी दोनो की रेटिंग खराब हो जाएगी और इससे मुझे नये कस्टमर मिलने मे मुश्किल होगी। आपके पास चार दिन है थोडा सब्र करिये ये काम बीस मिनट मे खत्म हो जाएगा फिर अप जैसे चाहे मुझे इस्तेमाल कर सकते है। पुष को ऐसा कगा जैसे वो किसि काल सेंटर के कस्टमर केयर वाली लडकी से बत कर रहा है और वो उसे टर्म्स और कंडिशन्स समझा रही है। ये सोचकर पुष को हंसी आ गयी और वो ठहाके मार कर हंसने लगा। मगर इन सबका सोनिया पर कोइ असर नही हुआ।

रावत ने झट से आप्टे को फोन घुमाया । दो बार घण्टी बजी मग र उसने फोन ऊठाया नहीं। रावत का गुस्सा बढने लगा। जब उसने तीसरी बार फोन लगाने की सोची तभी उधर से आप्टे का फोन आता है। उसके कुछ बोलने के पहले हीं रावत जोर से चिल्लाने लगता है, मैंने तुमसे कहा था की आज सुबह इस रज्य के हर अखबार मे उन दोनों की तस्वीर छप जानी चाहिये, ऐसा हुआ क्युं नही? तुमसे कोइ काम ढंग से नही होता, एक काम कहा था वो भी नहीं कर सके तुम। दो-चार गालियां और ढेर सारी लानत के सुनने के बाद आप्टे बोला तस्वीर छपवाने का खर्चा कमिश्नर साहब ने पास नहीं किया। मैं गया था उनके पास मगर वो बोले मंत्री साहब अब इस मुद्दे को और नही बढाना चाहते है। उनके उपर प्रेशर बढता ही जा रहा है आज तीन दिन हो गये है और अभी तक पुलिस ना तो कोइ गिरफ्तारी कर पाई है और नाही कोइ सुराग ही ढुढ पाई है। वो इसे बाहरी ताक़त का हमला कहकर सी.बी.आई को सौंपने वाले है और उन दोनो फरहार लोगो को भी अब वो ही ढूंढ निकालेंगे। हमारे हाथ से ये केस अब निकने वाला है सर। आप चाहे तो कमिश्नर सर से बात कर सकते है। ये सब सुनकर रावत को जैसे धक्का सा लगा। ऐसा पहली बार हुआ था जब उसे कोइ केस मिला हो और वो उसे सुलझाने मे असमर्थ रहा हो। इस केस मे तो काम अभी तक ढंग से शुरु भी नही होने दिया गया और उससे केस छिन गया। ये बात रावत को बिल्कुल बर्दाश्त नही हो रही थी। वो झट से उठा अपनी वर्दी पहनी और सीधे कमिश्नर के आफिस के लिये रवाना हुआ। उसके दीमाग मे अभी बस इस केस को अपने हाथों से जाने देने से रोकने की बात चल रही थी। करीब ४० मिनट तक ड्राइव करने के बाद वो कमिश्नर के आफिस मे था। सीधे उनके केबिन मे घुस गया, जोर से बूट बजाते हुए सैल्युट किया और अपने आने का कारण बताने लगा। मगर उसके कुछ कहने के पहले खुद कमिश्नर साहब ही बोल पडे, मुझे पता है की तुम क्या कहने के लिये आये हो? मगर अब मेरे हाँथ मे कुछ भी नही है। गृह मंत्रालय के आर्डर्स है की इस केस के जल्द से जल्द सी.बी.आई के हवाले करना है। तुम अपनी एक रीपोर्ट बना लो और इस केस से जुडे सभी काग्जात मेरे आफिस मे भेजवा दो। मैं इसे आगे बढा दुंगा। फिक्र मत करो तुम्हारे करीयर पर इस केस का कोइ प्रभाव नही पडेगा।

रावत ये सब चुप-चाप से सुनता गया। जब कमिश्नर साहब बोल चुके तो उसने कहा, जी सर आप जैसा कहें मैं कर दूंगा, वो भी बीना किसी सवाल जवाब के मगर इस केस से कागाजात के साथ एक और कागज आपको मिलेगा आप उसपर दस्तखत कर दिजिएगा। कमिश्नर ने उसके तरफ सवालिया नज़र से देखते हुए पूछा, कौन से कागज़ात? रावत ने समय गवाए बीना कहा मेरा इस्तीफा सर। मैं पुलिस की नौकरी छोड रहा हूँ। इतने दिनो तक जो नाम कमाया उसे इतने असानी से जाने तो नहीं दे सकता ना सर? तो अगर ये केस मुझसे बीना किसी कारण से और सिर्फ इस वजह से छिना जा रहा है कि गृह मंत्री को उपर जवाब देना है तो फिर मैं ये नौकरी छोड दुंगा। क्या बच्चों की तरह बात कर रहे हो तुम? ये क्या ज़िद है? ये ज़िद नही है सर मेरे काबिलियत पर शक और सीधा प्रहार है। या तो आप मुझे दो दिन और दिला दें ताकी मैं इस केस को क्लोज कर सकूं या फिर मेरा इस्तिफा मंजुर करें। कमिश्नर साहब रावत का पिछ्ला रिकार्ड जानते थे, और ये भी जानते थे की वो सच मे इस्तीफा दे भी सकता है। अब वो धर्म संकट मे फंसे हुए थे कि क्या करें? कुछ सोचते हुए वो बोले ठिक है मैंने तुमको दो दिन दिये, लेकिन दो दिन के अंदर अगर कोइ पुख़्ता सुराग नही मिला तो मैं फिर कुछ कर नही पाउंगा याद रखना और उसके बाद तुम्हे इस्तीफा देने की ज़रूरत भी नही पडेगी क्युंकी गृह मंत्री साहब खुद ही तुमको डिसमिस कर देंगे। रावत ने कहा परवाह नही सर, आप बस मुझे दो दिन तो दे दिजिए। ओके, मैं उनको इंफोर्म कर देता हूँ की अभी सारे काग्जाज़ तैयार करने मे कम-से-कम दो दिन का समय लग जाएगा तो वो लोग अगले सोमवार को आकर केस टेकओवर कर सकते है। रावत ने फिर से जोर से सैल्युट मारी और जाने लगा। जाते जाते रुका और बोला, सर पेपर के इस्तेहार को तो जाने दिजिए, ये मेरे लिये काम आयेगा, कमिश्नर साहब हंसे और कहा ठिक है आप्टे के हाँथो सब्जेक्ट और मैटर भिज्वा दो मैं पास कर देता हूँ। 

रावत वहाँ से निकला और सीधे लैब जा पहूंचा। लैब जाते ही उसने सबसे पाहले टेक्निशियन के बारे मे जानकारी ली तो पता चला वो आया तो है मगर अभी कहाँ है पता नही। रावत ने झट से उसे फोन मिलाया और अपने सिट पर आने को कहा। अब रावत के लिये एक-एक पल बहुत किमती हो रहा था वो एक भी पल खराब होते हुए नही देख सकता था। जैसे ही टेक्निशियन आया उसने उससे काम पर लग जाने के लिये कह दिया। ये टेक्निशियन बडा हीं ढीला था, चाल मे एक अजीब सी आलसी पन दिखता था। इतना सुस्थ और धीमा की दुनिया का सबसे आलसी जांवर भी शर्मा जाए। रावत खिझ रहा था और उसे जैसे कोइ फर्क़ ही नहीं पर रहा था। वो एक बार रावत को देखता और एक बार अपने मोनिटर के तरफ। फिर मन हीं मन कुछ बुद्बुदाता है- क्या बकवास मशिन है बंद होता है तो चलने का नाम नही लेता और चलता है तो बस नाम का चलता है। रावत का पारा बढता ही जा रहा था मगर वो टेक्निशियन तो जैसे बर्फ बना बैठा था। रावत अपने हाव भाव से उसे अपना गुस्सा जाहीर करने की कोशिश मे था मगर उसे रावत के किसी भी प्रतिक्रिया से कोइ मालब ही नही था। बस अपने मोनिटर को ताक रहा था और बर्बरा रहा था।

रावत को गुसा तो इतना आ रहा था कि क्या कहे मगर अभी उससे काम निकलवा लेना गुस्सा जाहीर करने से कहीं ज्यादा जरूरी था। एक बार जब मोनिटोर ओन हो गया तो रावत झट से बोला ( अपने गुस्से को काबु मे करते हुए) क्या आप जल्दी से मेरा काम कर सकते है? मैं कब से आपकी ही राह देख रहा था। वो बंद बडे अराम से अपने कुर्सी पर बैठा और बोला, भाइ साहब अभी-अभी तो मशिन ओन किया है, थोडा दम तो लेने दो। वो क्या है ना जब तक सुबह की चाय की घूंट मेरे गले के नींचे नही जाएगी ना तब तक मेरा ये कम्प्युटर काम नहे करता। इसे भी मुझे चाय पीते देखने की आदत है ना। अब तो जैसे रावत के सबर का बान्ध हीं टुट गया। वो धीरे से अपने जगह से उठा और सीधे उसके केबिन के अंदर जा पहुंचा। इससे पहले की वो कुछ समझ पाता रावत ने एक झन्नाटेदार थप्पर उसके गाल पर रसीद कर दी। वो बंदा ऐसे किसी भी प्रतिक्रिया के लिये तैयार नही था। चाय का प्याला उसके हाथ से उडते हुए दुसरे टेबल पर जा गिरा। आंखो का चश्मा जमीन पर गिरते-गिरते बचा और खुद वो बंदा एक दम से जैसे स्तब्ध रह गया। ये सब इतनी जल्दी हुआ की दुसरे केबिन मे बैठे लोग समझ हीं नही पाये कि ये सब क्या और कैसे हो गया। उस बंदे के कान मे तीन मिनट तक सीटी बजती रही और जब कान मे आवाज़ ने दस्तक दी तो पहली अवाज़ मे ही उसने झट से तीनों विडियो की एनालिसिस रिपोर्ट एक पेन ड्राइव मे करके रावत के हवाले कर दिया। रावत ने उसके तरफ देखा और कहा देखा कितना असान है काम करना। वैसे मुझे तुमपर हाथ नही उठाना चाहिये था। मगर आब किये को वापस नही लिया जा सकता मगर माफी तो मांगी ही जा सकती है। तो भाइ दिल पर मत लेना और मुझे मांफ कर देना। ये सब देखकर उस आफिस के सभी कर्मचारी उसे घेर कर खडे हो गये और रावत को जाते हुए देखने लगे। तभी वहां का पियुन चाय लेकर आया और बोला साहब आपकी पसंदीदा चाय लाया हूँ मलाई मारकर। उसे देख कर आफिस के सभी लोग हंसते हुए अपने-अपने सिट पर वापस चले गये। 

अब बारी थी पुलिस के साईबर सेल जाने की ताकी वहां भी कमिश्नर साहब के आर्डर दिखाकर उन दोनो की जांच-पडताल तो शुरु करवाई जा सके। लैब से साईबर सेल की दुरी १५ मिनट की थी और बीच मे कोइ दुसरा काम भी नही था। उसने पेन ड्राईव अपने जेब मे डाली और चल पडा उस तरफ। जैसे ही उसने गाडी स्टार्ट की उसे लगा जैसे कोइ चीज़ उसके अंदर आ घुसी। उसके हाँथ पैर ऐंठने लगें। उसके गले मे अजीब सा दर्द होने लगा। आंखे लाल होने लगीमूंह से लार निकलने लगी। छटपटाहट मे गाडी ने गियर पकड लिया और गारी आगे बढने लगी। वोप चाह कर भी उसे रोक नही पा रहा था मगर कुछ कर भी नही पा रहा था। जैसे ही गारे मेन सडक पर आयी दुसरे तरफ से अते हुए एक ट्रक ने उसे ठोक दिया। रावत की गाडी किनारे वाले दीवार से जा टकराई और एक ही झटके मे रुक गयी। ट्रक का ड्राईवर पुलिस की गाडी देखकर तुरंत नींचे उतरा और रावत की तरफ़ भागा। ना तो गाडी को ज्यादा नुक्सान हुआ था और नाही रावत को कोइ खरोंच ही लगी थी मगर अंदर रावत सही नही था। ट्रक ड्राईवर ने तुरन्त रावत को बाहर खींचा और उसे लेकर अस्पताल की तरफ भागा। अस्पताल मे दखिल करके डोक्टोर से उसके हाल मे पूछा तो डोक्टोर ने कहा देखने मे तो ये मिर्गी का दौरा लग रहा हैबाकी टेस्ट करने पर पता चलेगा की मामला क्या है। शरीर पर कोइ बाहरी ज़ख्म नही दिख रहे है और कोइ चोट के निशान भी नही है उम्मिद करता हूँ कि कोइ अंदरुनी ज़ख्म ना निकले तो अच्छा होगा। धडकन भी सही चल रही है और सांस भी नोर्मल है तो खतरे कि कोई बात नही है। होश भी जल्दी ही आ जानी चाहिये। इतने मे नर्स आकर कहती है पेशेंट को होश आ गया है। डाक्टर ट्रक ड्राईवर को लेकर अंदर चला जाता है।म अंदर जाते दिखाई देता है की रावत अपने कपडे और जुते पहन रहा है। डाक्टर ने उससे घटना के बारे में पूचा तो वो बोलाकुछ नही डाक्टर साहब मुझे ऐसे दौरे आते रहते है। पहले भी दो बार हो चुका है मगर उस दौरान मैं घर पर ही था तो कोइ बडी बात नही हुइ। मैं इसकी दवाई आलरेडि ले रहा हूँ। तो अपको फिक्र करने की जरूरत नही है। इतना कहकर और ड्राईवर को धन्यवाद कहकर रावत निकल गया मगर इस पुरे घटना मे तीन घंटे बर्बाद हो चुके थे। यानी रावत के पास अब बस कुछ घंटे ही बचे थे इस केस को साल्व करने के लिये। 

उसने जोर से आवाज़ लगाकर एज टैक्सी रोकी और उसे साईबर सेल चलने को कहा। टैक्सी मे बैठते हुए उसे पेन ड्राईव की याद आयीउसने अपने शर्ट की जीब टटोली तो उसे कुछ भी नही मिलाफिर पैंट की जेब टटोली वहां भी नहीफिर उसने अपने पैंट के पीछे की जेब टटोली तो पेन ड्राईव वहां बरामद हुइ। उसने इशारे से टैक्सि को बढने को कह दिया। सफर काटने के लिये उसने आंखे मूंद लिया। इतने मे हीं उसकी फोन की घंटी बज उठती होफोन कमिश्नर साहब का था।

रावत ने फोन उठाया तो दुसरी तरफ से आवाज़ आयी, तुम ठिक तो हो ना? खबर मिलि की तुम्हे फिर से दौरा पडा था। अभी कहाँ हो तुम? रावत बोला, सर मैं अभी साईबर सेल जा रहा हूँ, और बिल्कुल हीं ठीक हूँ, आपके फिक्र करने के लिये धन्यवाद। मेरे पास समय बहुत कम बचा है तो अब मैं आपसे केस साल्व करने के बाद ही मिलुंगा। अभी ये बात खत्म भी नही हुइ थी की रावत की बिवी का नम्बर दिखने लगा। कमिश्नर साहब का फोन काटते हुए रावत ने बिवी का काल ले लिया। उसके कुछ भी कहने के पहले ही बोल उठा, मैं बिल्कुल ठीक हूँ, चिंता के कोइ बात नही है, दवा मेरे पास है तुमसे रात को मिलता हूँ। सामने से कोइ जवाब नहीं आया और फोन कट गया। दर्द से छटपटाता हुआ रावत जैसे-तैसे साईबर सेल के आफिस मे घुसा। जाते हुए उसने टैक्सि वाले को रुकने का इशारा किया और अंदर चला गया। अंदर उसके साथी उसी की राह देख रहे थे। उसे देखते ही जुनियर टेक्निशियन बोला- सर जैसा की आपने हमें उन लोगों के बारे मे पता करने को कहा था तो उसमे से एक का (लडके) तो पता चल गया है। मगर दुसरी का पता हीं नही चल रहा है। इस लडके का नाम रचित शेखर है। नागपुर मे रहता है, लेखक है। शोसल मिडिया मे काफी प्रचलित है। ये लगभग हर शोसल साईट पर मौजुद है। उम्र २५-२८ के बीच की है। आज तक का कोइ भी क्राईम रिकार्ड नही है। लगभग २ लाख के आसपास इसके चाहने वाले शोसल मिडिया मे मिल जाएंगे। पिछले कई दिनो से इसकी कोइ खास हलचल नही है। आखिरी पोस्ट दो दिन पहले का है जब ये अपनी नयी कहानी के लिये नायिका की खोज मे जाने की सोच रहा था। कहाँ जाएगा और कब ये नही लिखा। इसका आखीरी पोस्ट भी उसके मकान से हुआ था। दो दिन पहले दोपहर चार बजे के बाद से इसका कोइ लोकेशन नही मिल रहा है। रावत जुनियर के बात से काफी प्रभावित हुआ और पूछा कब से काम कर रहे हो? जुनियर बोला एक हफ्ते हुए टास्क फोर्स से जुरे हुए। और कोइ जान कारी है इसके बारे मे? हाँ सर है, ये पिछले सात साल से इसी मकान मे किराये पर रहता है। कभी किसी भी तरह के पचरे मे इसका कोइ नाम नही आया। पढा लिखा लडका है और अच्छे परीवार से है। रावत ये सब सुनकर बहुत खुश हुआ मगर जब बात लडकी की आयी तो जुनियर सिर्फ एक बात ही बता सका, जो तस्वीर आपने हमे भिजावाई है वो शोसल साईट मे मौजुद किसी भी लडकी से १ प्रतीशत भी मेल नही खाती। ना तो ये इंटेर्नेट मे मौजुद है और नाही इसका कोई दस्तावेज़ ही मिल पाया है। मगर सबसे बडी समस्या जो है सो ये है की ये तस्वीर मुझे थोडा परेशान कर रही है, क्युंकि इस तस्वीर को देख कर ही ऐसा लग रहा है जैसे ये तस्वीर सच नही हो सकती। रावत थोडा चौंका और बोला सच नही हो सकती से क्या मतलब? क्या मामला है? जुनियर ने उनकी तरफ देखते हुए पूछा आपने लडकी की तस्वीर देखी है सर? रावत को याद आया की अभी तक तो उसने सच मे लडकी की तस्वीर देखी ही नही है। उसने ना मे सर हिला दिया। तो फिर आपको देखनी चहिये इतना कहते हुए जुनियर ने लडकी की तस्वीर रावत को पकडा दी। जैसे ही रावत ने तस्वीर देखी वो हताश होकर कुर्सी पर बैठ गया। उसके आंखो के सामने अंधेरा छा गया और फिर से उसे दौरा पर गया।    

सोनिया एक करके अपने कपडे उतारे जा रही थी और पुष की मदहोशी बढती जा रही थी। वो उत्तेजना के सागर मे गोते खा रहा था। जैसे जैसे सोनिया के कपडे कम हो रहे थे वैसे-वैसे पुष की कामोत्तेजना सर चढ रही थी। अब सोनिया के शरीर पर एक भी कपडा नही था। वो पुरी तरह से निर्वस्त्र हो चुकी थी। पुष उसे देखकर खुद को रोक नही पा रहा था मगर सोनिया ने उसे पहले अच्छे तरह से खुद की जांच करने के लिये कह रही थी। पुष उसके पास गया और एक एक करके उसके सभी अंगो को छुकर और टटोल कर देखने लगा। उसके वक्ष देखे, उसकी कमर देखी, उसके पीठ, पेट, जांघ और योनी सब कुछ एक-एक करके देखा और बोला- सब सही है। मुझे कोइ खराबी नही दिख रही है। फिर सोनिया ने उसी अवस्था मे अपने मोबाईल से अपनी एक फोटो निकाली और पुष के नम्बर पर भेज दिया। साथ मे एक लिंक भी था जिसमे सोनिया के तत्कालिन मेडिकल हिस्ट्री थी। उसने पुष को कहा की एक बार वो उस लिंक पर जाकर इसे कंफर्म कर दे तो फिर वो उसके साथ आराम से सेक्स कर सकती है। ये सब पुष के लिये बिल्कुल नया था। आजतक जितनी भी लडकियों के साथ वो सोया था उनमे से किसी के पास भी ऐसा मोडेर्न सिस्टम नही था। पुष ने झट से अपना फोन निकाला और उस लिंक पर जाकर उसे कन्फर्म कर दिया। कंफर्मेशन मिलते ही सोनिया पुष पर टूट पडी। और बोली अब से आने वाले चार दिनो तक मैं तुम्हारा खिलौना हूँ। तुम जब चाहे, जितनी बार चाहे जिस तरह से चाहे मुझसे खेल सकते हो। मेरा काम तुम्हारी हर विश को पूरा करना है तुम चाहो तो मै घोडी बन जाउं या फिर कहो तो मैं तुम्हारी गुलाम बन जाऊं। जैसा तुम कहो मैं करने के लिये तैयार हूँ।

रचित ये सब देखकर थोरा भी विचलित नही हो रहा था अखिर ये सब लिखने वाला भी तो वही था मगर इसके आगे जो हुआ उसका अंदाजा राचित को नही था। जैसे ही सोनिया ने पुष के सामने आत्मसमर्पण किया वहां का वातावरण अचानक थम गया। पुष आधा लेटा और आधा बैठा हुआ था उसका एक हाथ हवा मे और दुसरा सोनिया के छाती पर था। सोनिया की एक टांग पलंग से लटक रही थी और दुसरी पुष के कमर पर थी। घडी के कांटे अचानक से ८:४५ पर जाकर रुक गये थे। मोमबत्ती की लौ कब से टेढी ही हो रखी थी। कमरे के पर्दे हवा मे उडे तो फिर निंचे आये ही नही । सब कुछ थम गया। रचित को समझ मे नही आया के ये क्या हो रहा है क्युंकि उसके कहानी मे तो ऐसा कोइ भी दृश्य नही था। तभी पीछे से गोमती ने उसे हिलाया तो वो पलट गया। देखा तो सोनिया बिल्कुल वैसी ही खडी है जैसे वो पुष के सामने बिस्तर पर पडी है। बीना किसी कपडो के, ये देख कर रचित थोडा सा सकुचा गया। उसे देखकर गोमती बोलि अर्रे वाह रचित साहब आपको तो शर्म भी आती है। जब आपने हमारा चरित्र चित्रण किया था तब आपको जरा भी शर्म नही आयी थी। ये तो सब वैसे ही तो हो रहा है जैसा अपने लिखा है। इतने मे सोनिया बोल पडी तु रुक इससे अभी मुझे बात करनी है। क्या सोचकर तुमने मुझे इस तरह से गढा है। मैं कोइ भी और हो सकती थी, तुम मुझे कुछ भी और बना सकते थे मगर तुमने मुझे वैश्या बनाकर रख दिया। तुम्हारी कहानी मे मै तो खुद को मेहसुस ही नही कर पा रही हूँ। तुमने मुझसे जो भी बाते कहवायि है और जो भी काम करवाए है मैं उन सबको बदलना चाहती हूँ। मैं ऐसी लडकी नही हूँ। मुझे मेरे मां बाप ने ऐसे तो नही पाला है। और तुम मेरे अतीत के बारे मे कुछ क्युन नही बताते हो मुझे। मैं ये जानना और समझना चाहती हूँ की तुमने मुझे ऐसा क्युं बनाया है। अब या तो तुम मुझे मेरे अतीत के बारे मे बताओ या फिर मुझे अपनी कहानी से मुक्त कर दो। मैं तुम्हारे बनायि दुनिया मे इस तरह से नही रह सकती मैं तुमसे विनती करेती हूँ के मुझे अपनी कहानी से निकाल दो। हो सके तो मेरे किरदार को यही खत्म कर दो।

इस बार रचित थोडा सा घबराया जरूर था। जो कहानी उसने लिखी थी उसमे सोनिया का आगे भी बहुत बडा योगदान है, अगर वो अपने किरदार को खत्म कर्ना चाहती है तो कहानी पुरी तरह से बदल जाएगी। उसे ये तो समझ मे आ रहा था की शायद वो किसी तरह से अपनी कहानी के संसार मे क़ैद हो चुका है मगर साथ-ही-साथ ये भी समझ रहा था की ये पात्र उसको किसी तर से भी नुक्सान नही पहुंचा सकते है। ये सभी पात्र उसकी कल्पना के कारण ज़िंदा है। अगर उसने एक भी कलम चलायी तो ये सब के सब खत्म हो जाएंगे। मगर ये सब मुझसे बात कैसे कर सकते है। ये सब मुझसे अप्नी बात मनवाने की जिद कैसे कर सकते है। अगर ये आ सकती है तो मानव भी तो आ हीन सकता है। नही उसके आने से पहले मुझे यहन से जाना पडेगा। अगर मैं अपनी कहानी के अंदर फंस के मर गया तो असली दुनिया मे कभी मेरे बारे मे कोइ जान हे नही पाएगा। लेकिन फिल्हाल सोनिया को तो काम पर वाप्स भेजना पडेगा। रचित ने सोनिया को कहा, जो काम तुम छोड कर आयी हो उसे पुरा करो। अभी तक जो भी मैं लिख चुका हूँ उसे बदलना यहाँ से मेरे लिये सम्भव नही होगा। तुम एक काम करो जहाँ तक तुम्हारा किरदार तुम्हे ले जाता है वहां तक तुम चलती रहो और इसे गोमती को कहो की मुझे मेरी सलई दुनिया मे वपस भेज दे ताकी मैं तुम्हारे किरदार को फिर से लिख सकू।

ये बात सुनकर सोनिया मुस्कुराई और बोली, मुझे जो चाहिये था वो मैने बोल दिया मगर ग़ोमती तुम्हे जाने देगी या नही ये तो गोमती ही जाने। उसके किरदार के बारे मे अभी तक बात ही कहाँ हो पायी है। मुझे पता है की जब तक तुम मेरा चरित्र नही बदल देते तब तक हर कोइ मुझे ऐसे ही पढता रहेगा और मुझे ये सब उनके लिये बार बार करना पडेगा। लेकिन याद रहे कि अगर हम तुम्हे यहाँ ला सकते है तो यहाँ कह्त्म भी कर सकते है। हम तुम्हे यहाँ से जाने नही दे सकते, बही, बिकुल भी नही। अभी तो हर पात्र से तुम्हारा परिचय होना है। तुम्हारे रचे किरदार तुमसे ही मिलने को है बेकरार। मैं चलती हूँ बेचारा पुष बेकार हीं अटका प्डा है। ग़ोमती पास ही खडी ये सब देख रही थी मगर बोली कुछ नही। रचित को तो काटो तो खुन नही वाला हाल हो गया था। वो अब केवल मानव से मिलने से डर रहा था। ना जाने किस मोड पर मानव उससे टकराने वाला है। अभी तक के कहानी मे वो एक मात्र ही सबसे गुस्सैला और ज़िददी आदमी है। खुद के गुस्से पर उसका बस नहीं चलता है। वो एक बार भडका तो बस फिर सब्को ले डुबेगा लेकिन तभी उसे याद आया की उसके आने मे तो अभी कम से कम दो घंटे की देरी है( इस दुनिया के समय के अनुसार)। पर उसे आना तो है हीं तो क्युं ना ग़ोमती से बात करके उससे मदद मांगी जाए, उसे समझाया जाय की अगर वो मुझे अपने दुनिया मे वापस नही भेजेगी तो मैं उसके लिये कुछ भी नही कर पाउंगा। हो सकता है कि उसे मेरी बात समझ आ जाये और वो मुझे वापस अपने दुनिया मे भेज दे। अगर मैं एक बार यहाँ से निकल सका तो वापस जाकर सब कुछ बदल दूंगा। ये सोचकर वो ग़ोमती के तरफ पलटता है तो देखता है की ग़ोमती उसे देखकर मुस्कुरा रही है। उसकी हंसी को देखकर रचित को ये समजह्ने मे देर नही लगी की ग़ोमती उसके मन की बात को पढ सकती है। उस हंसी से रचित सकते मे आ गया।

जब रावत ने उसके हाथ मे पडी तस्वीर देखी तो एक दम से भौचक्का रह गया। ये कैसे हो सकता है? ये असमंभव है। यह वही लडकी थी जो रावत को उसके सपने मे उस गड्ढे के अंदर खींच रही थी। बिल्कुल वही लडकी थी। रावत ने उसका चेहरा सपने में तो देखा हीं था मगर उसने उस ऐक्सिडेंट वाले स्थान पर भी इसी चेहरे को मेहसूस किया था। कद काठी सब कुछ बिल्कुल वैसा ही ओत था। ये बात रावत के समझ के बाहर थी की ये सब उसे हीं क्युं दिख रहा था य उसके साथ ही क्युं हो रहा था। रावत ने जुनियर से कहा, ये लडकी तुम्हे इंटेर्नेट पर नही मिलेगी। क्युंकी ये सच नही है। ये कोइ अद्भुद शक्ति है जो सिर्फ दिखती है मगर छुई नही जा सकती। मैने भी बस इसे महसुस हीं किया है। इसे ढूंढना बेवकुफी है। तुम ऐसा करो दो तीन आदमी रचित के घर भेजो। पता लगाओ की ये लडका का अगला पीछला क्या है। मुझे इसकी पूरी कुण्डली चहिये, वो भी आज-के-आज। गर हमे इस लडके के बारे मे सबकुछ पता चल गया तो ये केस हम बचे एक दिन मे क्रैक कर हीं लेंगे। जुनियर की तरफ देखते हुए उसने कहा तुम मेरे साथ चलो, मुझे तुम्हारी मदद की दरकार है। जुनियर को लेकर रावत पास के केबिन मे चला जाता है। जेब से पेनड्राईव निकाल कर देते हुए कहा, इस फुटेज की अच्छी तरह से जांच करो और बताओ की तुम्हे क्या पता चलता है। बरी बारीकी नज़र से देखना कुछ भी छुटने ना पाए। जुनियर अपने काम मे लग जाता है। इतने मे रावत का फोन बजता है। रावत ये देखे बीना कि किसने फोन किया है उसने फोन काट दिया। फोन दोबारा बजता उठता है। इस बार भी रावत फोन काट देता है लेकिन जब तीसरी बार फोन आया तो रावत ने फोन ऊठा लिया और उसके कुछ कहने के पहले ही दुसरे तरफ से उसकी बिवि ने कहा की कभी तो घर की ज़रुरत को भी तवज़्ज़ो दिया करो। पांच बजने वाले है और अभी तक सलोनि घर नही आयि है। ( सलोनि रावत की इकलौती बेटी है)। ये सुनकर रावत बोला उसका स्कूल कब बंद होता है? साढे तीन बजे, उधर से आवाज़ आयी। और वो घर कब तक लौट आती है? बहुत ज्यादा तो साढे चार बजे तक, मगर तो पांच बज गये है तुम ज़रा पता तो लगाओ की क्या हुआ। होगा क्या? कुछ नही हुआ होगा? सबकुछ ठीक ही होगा देखना अगले दस मिनट मे ही वो घर पर होगी। उधर से उसने कहा, मेरा जी बडा घबरा रहा है ना जाने क्या हुआ है। इतना कहते हुए वो रोने लगी मगर तभी दर्वाजे की घंटी बजी। वो दौरते हुए दर्वाजे पर गयी और दर्वाजा खोलए ही सामने उसे सलोनी दिख पडी। उसे गले लगाकर वो जोर से रोने लगी। रोते हुए ही उसने रावत को कहा हाँ वो आ गयी है। लो बात करो उससे, ये बात सुनते ही रावत बोला, कहा था मैंने कही फंस गई होगी, तुम तो ख्वा-म-ख्वाह ही परेशान होती हो। मैं रखता हूँ अभी बाद मे बात करुंगा। 

 

जब रावत के लिये समय रोके नही रुक रहा था, उसके लिये जैसे समय को पंख लगे हुए थे वही रचित के लिये तो समय जैसे कट हीं नही रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो एक जन्म से इस दुनिया मे अटका परा है। सब कुछ बिलकुल धीमे, धीमे हो रह था। रावत के लिये जैसे दिन ना गुजरे वाला हाल था तो रचित के लिये ये पल गुजरे तो थोडा आराम हो वाला हाक था। जहाँ रावत समय के गुजर जाने से परेशान हो रहा था वही रचित समय के रुक जाने से परेशान था। दोनो एक दुसरे की विपरीत समय मे थे। मगर दोनो भाग एक ही तरफ रहे थे। उनमे से कोइ भी इस परिस्थिती मे फंसे हुए नही रहना चाहता था। रचित चाह कर भी इस जगह से निकल नही पा रहा था और रावत इस जगह ताक आने के लिये जी जान लगाये हुए था। दोनो मे से किसी का   भी बस नही चल रहा था। 

 

फोन रखते ही रावत जुनियर की तरफ पल्टा और पूछा क्या बात है? कोइ सुराग मिला क्या?

जुनियर बोला सुराग नहीं सर पुरा चिट्ठा ही हाथ लग गया है। ज़रा आप इधर तो देखिये। क्या है, रावत ने पुछा? वहाँ से नही सर यहाँ आकर देखियेगा तभी समझिएगा। रावत लपक कर उसकी तरफ जाता है। तीनो कैमरे मे से एक कैमरे के फुटेज मे कुछ ऐसा था जिसको परिभाषित करना रावत के बस मे नही था। ऐसा नज़ारा उसने पहले कभी नही देखा था। जिस स्थान पर बस दुर्घटना ग्रस्त हुई थी उस जगह पर ऐसी कोइ भी वास्तविक वस्तु नही थी जिससे बस टकराई हो। जब विडियो की गती को सबसे कम करके ज़ूम किया गया तो पाया गया की जब बस पल्टी तो ठिक उसके नींचे से एक अदृश्य विस्फ़ोट हुआ था, इसकी गती इतनी तेज़ थी की खुली आंखो से इसे समझ पाना असम्भव था। और जब उसकी और जांच की गयि तो उसमे से एक अती विशाल काय आभा भी दिखी जो एक माइक्रो सेकेण्ड से भी कम समय मे हवा मे विलिन हो गयी। और ठीक उसी स्थान पर एक गड्ढा भी हो गया। रावत तुरंत उस गड्ढे को पहचान गया। उसने ये विडियो को तुरंत कमिश्नर साहब को भेजने को कहा। 

 

उस समय कमिश्नर साहब मंत्री जी के समक्ष थे, प्रेसवार्त्ता के तैयारी चल रही थी। मंत्री जी अभी से दो मिनट के अंदर ही इस घटना को विदेशी ताक़त की कारिस्तानी बताने वाले थे। कमिश्नर साहब परेशान थे मगर मंत्री जी को कौन रोके? भला वो कब किसकी बात सुनने वाले थे। लेकिन जब ये विडियो उनके पास पहुंची तो वो तुरंत मंत्री जी के तरफ भागे। और उन्हे एकांत मे ले जाकर ये विडियो दिखाया। विडियो देखकर मंत्री जी दंग रह गये। उन्होने कमिश्नर को रावत को बुलाने का इशारा किया। कमिश्नर को ये भी कहा की वो प्रेस वार्ता का विशय बदल देंगे मगर सबसे पहले उनका रावत से बात करना जरूरी है । 


कमिश्नर साहब ने रावत तक ये संदेश भेज दिया कि वो फौरन मंत्री जी से आकर मिले। इस केस के सिलसिले मे वो कुछ खास बात करना चाहते है। रावत ने अगके पंद्रह मिनट मे मंत्री जी के केबिन मे होने का वादा करके फोन काट दिया। अब ये केस एक नया मोड ले रहा था अभी तक सब इसे कोइ शाजिश समझ रहे थे अचानक से उनके सामने ये नया तथ्य सामने आया था। अब इसके तह तक जाने की बारी थी। रावत अब पुरी तरह से अपने पुराने रूप मे आ चुका था। उसकी आंखे एकदम से चमक रही थी। उसका रिकार्ड टुटने से बच गया था। यह गुत्थी भले पुरी तरह से ना सुलझी हो मगर अब ये तो समझ मे आ हीं गया था की ये किसी की साजीश नही थी बल्की कोई अप्राकृतिक घटना है जो उस स्थान पर हुई थी। इसके पिछे ना तो कोई विदेशी ताक़त है और नाही किसी घरेलु हिंसावादी लोगों की कर्तुत है। इस्का मतलब था की रवत को अब इस केस को सुलझाने के लिये पुरा समय मिलने वाला था। इस समय रावत खुद मे बहुत हल्का महसूस कर रहा था। उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके सर से कोइ बहुत भारी बोझ उअर गया हो। इन सब मे एक बात जो छुट रही थी वो ये थी की आखिर वो दोनों यात्री (रचित और ग़ोमती) गायब कहाँ हो गये। 

जैसे हीं रावत मंत्री जी से मिलता है तो ये कहता है सर हमे सबसे पहले उन दोनो लोगों के उपर से आपराधिक मामले हटा लेना चाहिये और उन्हे ग़ुमशुदा के लिस्ट मे डालना चहिये। दो बेगुनाह लोगों को बदनाम करने से हमारा ही नुकसान होगा। मंत्री जी ने उससे कहा हाँ ठिक है वो कर देंगे मगर तुम मुझे ये बताओ कि ये सब सच है। ये जो विडियो तुमने मुझे भेजा है वो सच है। ऐसा हो सकता है? मतलब आज के ज़माने मे तुम मुझे एक ऐसी बात पर यकीन करने को कह रहे हो जो शैतान और इंसान कि कहानियां पर अधारित है। इस विडियो मे जो दिख रहा है वो किसी धुल के तुफान के जैसा कुछ है, हो सकता है की बस के टायर के फटने से वहाँ पर तेज़ हवा के साथ-साथ धुल उडी हो और उसी के कारण ऐसी कोइ आकृति उभरी हो। या ऐसा भी तो हो सकता है की बस के टायर मे कोइ किल धंस गयी हो जिसके कारण बस का टायर फ़ट गया हो। रावत ये सुन कर दंग रह जाता है। उसे कम से कम इस तरह के बेवकुफी भरे व्यवहार की उम्मिद तो नही थी, मगर मंत्री जो ठहरा, कहे भी तो क्या? खुद पर काबू पाते हुए उसने मंत्री जी से कहा, सर शायद आपकी हीं बात सही है मगर हम वहाँ मौजुद उस गड्ढे को कैसे इग्नोर कर सकते है। वो भी ठिक उसी समय और उसी जगह पर अचानक से निकलने का कारण भी तो हमे नही पता। आप तो बस दो दिनों तक इस मामले को संभाल लिजिए और उस ग्ड्ढे की छान-बीन करने के पर्मिशन दे दिजिए। 

दो दिन तो मैं किसी तरह से मैनेज कर दुंगा मगर इन दो दिनों के अंदर तुम्हे उन दोनो लोगों को मेरे सामने लाकर खडा करना पडेगा, मैं खुद उनसे बात करना चाहुंगा। और याद रखना दो दिन मे भी अगर तुम्हारी ये थ्योरी सही साबित नही हुइ तो इसके बाद मैं तुम्हारी कोइ बात सुनने वाला नही जान लो। कमिश्नर साहब सिर्फ आपके कहे पर मैं इसे ये समय दे रहा हूँ। ये समझ लिजिये की आपकी और इसकी दोनो की नौकरी बस इसिकी हाथ मे है। मैं आपको यकीन दिलाता हूँ मंत्री साहब रावत हमे निराश नही करेगा। जब आधी सच्चाई सामने आ ही गयि है तो बाकी की आधी भी कब तक अंधेरे के पिछे चूपी रहेगी। रावत और कमिश्नर दोनो एक दुसरे को देखते है और कुछ इशारे बाजे होती है। कमिश्नर को रावत पर पुरा यकिन था। और उसी यकिन के कारण वो मंत्री जी से भी पर्मिशन लेने पर अडे हुए थे। मंत्री ने एक बार दोनो के तरफ फिर से सवालों वाले नज़र से देखा और पेपर पर दस्तखत कर दिया। बाहर निकलते हुए रावत बोला सर मुझे तीन लोग चाहिये मैने उनके नाम अपको भेज दिये है। आप उसे देखकर जल्दी से जल्दी मेरे पास आने को कह दिजिए। अब मैं इस काम को ज्यादा देर तक नही खिंचना चहता हूँ। एक फोरेंसिक टीम को उस स्थान पर भेजना है, मैं न्ही उनके साथ ही रहुंगा। एक टीम उन दोनो के घर जाएंगे और एक टीम रिपोर्ट बनाएगी। 

जो टीम रचित के घर के रवाना हुइ थी उन्हे रचित के घर ढूंढ निकालने मे कोइ तकलिफ नही हुई। मासी ( सीमा) से जैसे ही उन्होने कहा की वो पुलिस से है, उसकी तो हालत ही खराब हो गयी। बीना किसी टालमटोल के उसने रचित के कमरे की चाभी उन लोगो को थमा दी। रचित के कमरे अंदर जाते ही उन्हे कई अजीब बातें दिखाए दी। कमरा वसे तो साफ ही था मगर कुछ ऐसी चीजें इस तरह से लग रही थी जैसे अभी-अभी उन्हे अपने जगह से हटाया गया हो। उसके रूम से उसका लैप्टाप गायब था। बाके बहुत से पन्ने मिले जिसमे उसके नई कहानी के नयिका के चित्रण के अनगिनत असफल प्रयास थे। एक बात जो बडी मजेदार थी वो ये की कमरा देखने मे ऐसा लग रहा था जैसे किसि ने अभी-अभी इसकी सफाई करी हो। जब मासी से इसके बारे मे पूछा गया तो वो बोलि कि जबसे रचित गया है उसका कमरा तो बंद हीं था। ये कमरा तो आप लोगों ने ही अभी-अभी खोला है। मैं इस सफाई के बारे मे कुछ नही जानती। वैसे भी मैं उस लडके के कमरे मे झांकने तक नही आती तो सफाइ तो बहुत दूर की बात है। मुझे तो बस अपने किराए से मतलब है, वो टाईम पर अते रहे तो फिर जो चाहे वो करे, मुझे इससे कोइ पर्वाह नही। पर साहब हुआ क्या है? कोइ बडी बात है क्या? लडका देखने मे तो बडा शरीफ जान पडता है किसी गम्भीर चक्कर तो नही।  

सीमा ने थोडा डरते हुए इंस्पेक्टर से पूछा – साहब आखिर बात क्या है? रचित ठिक तो है ना? पिछले कई दिनों से उससे कोई बात भी नहीं हो पायी है। वो किसी मुसिबत मे तो नही है ना? सीमा की तरफ अजीब निगाह से देखते हुए इंसपेक्टर साहब बोले, नहीं अभी तक तो वो मुसिबत मे नही है पर अगर जल्द ही उसकी कोई खबर नहीं मिली तो वो एक बडी मुसिबत मे पड जरूर सकता है। वो जिस बस से जा रहा था उसका ऐक्स्सिडेंट हो गया है। और हालात ऐसे बन रहे है की रचित और उसके साथ गायब हुई लडकी दोनो पर उस बस का ऐक्सीडेंट करवाने का शक जा रहा है। अगर आप उसके बारे मे कुछ भी जानती है तो अभी बता दिजिए और पुलिश की मदद करिए। लडकी का नाम सुनकर सीमा जैसे स्तब्ध हो गयी उसके चेहरे से जलन के भाव झलक रहे थे। वो एक पल को चुप हुई और फिर बोली, जहाँ तक मैं जानती हूँ रचित की कोई गर्ल फ्रेंड नही है। तो उसके साथ किसी लडकी का होना मुझे समझ नहीं आ रहा। और अगर थी तो अच्छा हुआ मर गयी। इतना कहते कहते हीं वो चुप हो गयी। इंसपेक्टर साहब ये सब सुन रहे थे तभी सीमा का दायां हाथ देखते हुए कहा ये चोट कैसे लगी आपको? सीमा जरा झेंपते हुए बोली ये तो कल काम करते हुए शिशा हाँथ मे लग गया था। 

शिशा हाथ मे लग गया था या हाथ से खिडकी का शिशा टूट गया था? 

तभी सीमा की नज़र पीछे की खिडकी के टुटे हुए कांच पर पडी। खिडकी का शिशा टुटा हुआ था और निंचे चारो ओर कांच के टुकडे गिरे हुए थे। खिडकी के टुटे हुए शिशे मे किसी का खून लगा हुआ था। ये देखकर इंस्पेक्टर ने सीमा को हाथ से पट्टी उतारने को कहा। सीमा का घाव देखकर ये यकिन हो गया था की उसे चोट इसी खिडकी से लगी थी। सीमा ने बात घूमानी चाही मगर इंसपेक्टर का लाल चेहरा देखकर कर सच बता दिया। बोली कल रात को जब मैं अपने कमरे मे पढ रही थी तभी मुझे रचित के कमरे से किसी की बात करनी की आवाज आयी। मैं खूश हो गयी की रचित वापस आ गया तो मैं दौडती हुई निंचे आयी। मगर यहाँ तो बाहर से ताला लगा हुआ था। लेकिन फिर भी अंदर से दो लोगोनं के बात करने की आवाज़ आ रही थी। मैंने सोचा चाभी लाकर देखती हूँ के कौन है। मैं उपर से जब चाभी लेकर लौटी तो एक जोर की आवाज़ हुई जैसे किसी ने ख़िडकी का कांच तोडा हो। मैं झट से ताला खोलकर अंदर गयी तो देखा एक लडकी एक लडकी और एक लड्के का साया खिडकी के इसी छेद से देखते-देखते गायब हो गया। ये देखकर मैं डर गयी और बेहोश होकर खिडकी से जा टकरायी। 

ये सब सुनकर इंसपेक्टर साहब बोले, अच्छा, कहानी तो बहुत अच्छी है मगर मैं मानता नहीं। वो आगे बोले- क्या रचित का कमरा हमेशा इतना ही साफ रहता है। सीमा बोली नही साहब वो लडका तो सही है मगर कमरा सही नही रख सकता। मेरी हमेशा उससे इसी बात पर कहा सुनी हो जाती है। मगर जब कल रात को मैं लौटी तो उसका कमरा देखकर दंग रह गयी। ऐसा लगा जैसे अभी-अभी किसी ने इस कमरे को साफ किया हो। मगर इसके पहले की मैं कुछ भी समझ पाती उस साये को देखकर मैं बेहोश हो गयी। इंसपेक्टर साहब थोडा हंसे और फिर कमरे की तलाशी मे जुट गये। डस्टबिन मे पडी उन पन्नों मे से एक दो को पढा और फिर सबकुछ अपने साथ ले लिया। रचित के कमरे मे उन्हे ऐसा कुछ भी नहीं मिला जो की संदेह के घेरे मे आये। जब वो जाने को हुए ही थी की उनकी नज़र रचित के एक डायरी पर पडी। उस डायरी के एक पन्ने के बीच एक पेन फंसा हुआ था। जब पलट कर देखा तो उसमे एक लडकी का चित्र दिखायी दिया। कलम से बनाई गयी एक लडकी का चेहरा। उसे देखकर ये सोचने लगा की इस लडकी को कहीं तो देखा है। वो ठिटक गया और दीमाग पर जोर देने लगा की इसे कहाँ देखा है। अभी सोच ही रहा था की उसके फोन की घंटी बज उठती है। और उसी के साथ उसके दिमाग की भी घंटी बज उठी, ये तो वही लडकी है जो बस मे रचित के साथ थी। उसने फोन ऊठाया तो दुसरी तरफ से रावत बोला कुछ मिला या बस समय की बर्बादी ही कर रहे हो? इंसपेक्टर बोला, सर वैसे तो लडके के घर से कुछ खास नहीं मिल पाया क्युंकी कल रात को इसके घर मे चोरी हुई है। मगर एक तस्विर मिली है जो हू-ब-हू उसी लडकी से मैच खाती है जो की उसके साथ बस मे थी। दोनों का कुछ ना कुछ कनेक्शन तो जरूर है सर। 

बस एक तस्विर और कुछ भी नही मिला

नहीं सर हम शायद थोडा लेट हो गये, कमरा साफ हो चुका है। जो भी हाथ लगा है उसे लेकर अभी हेड क़्वार्टर निकल रहे है। रावत बोला ये चोरी वाली बात क्या है? वो बोला रचित की मकान मल्किन का कहना है की कल रात को किसी ने पीछे की खिडकी से घुसकर उसके कमरे मे चोरी कर ली है। रचित का लैप्टोप गायब है। मैंने शिकायत लिख ली है और आस पास के सिसिटिवी की रेकोर्डिंग के लिये भी रिक्वेस्ट भेज दिया है। देखते है क्या होता है? 

रावत बोला तुम फौरन हेड क्वार्टर आओ और रेपोर्ट सब्मिट करो और हाँ उस मकान माल्किन को भी अपने साथ लेते आओ। मैं भी उससे ज़रा कुछ पूछ्ताछ करना चाहुंगा। इंसपेक्टर तुरंत वहा से सीम को साथ लेकर निकलता है। रास्ते भर सीमा खुद में ही बडबडाती रहती है। ( अच्छा तो ये बात थी, इस लडकी के लिये उसने मुझे कभी देखा तक नहीं, जब लौट कर आयेगा तो फौरन ही घर खाली करवाउंगी मैं। इतने दिनो से अपना समझ कर रहने दिया, खाना खिलाया, कपडे धोये मगर उसकी नज़र तो किसी और से लडी हुई थी। आने दो देखती हूँ।

उधर उस रात जिस रात रचित के कमरे की खिडकी टूटी थी। 

ग़ोमती तुम मुझे इस तरह से मेरी कहानी बदलने को मजबूर नहीं कर सकती। ये मत भुलो की तुम सब मेरे ही गढे हुए किरदार हो। मैं चाहूं तो तुम सभी के किरदार को एक ही बार मे किसी दुर्घटना की बली चढा सकता हूँ और यहाँ से आजाद हो सकता हूँ। गोमती उसकी तरफ देखती है और एक शरारत भरी हंसी देते हुई कहती है, अगर तुम ऐसा करना चाहो तो भी ऐसा कर नही सकते क्युंकी तुम्हारी मेहनत तुम्हे ऐसा करने से रोक रही है। मेरे ही तलाश मे तुम घर से निकल कर इतनी दूर तक आये थे। और अब जब तुम अपने बनाये किरदार को ज़िंदा देख रहे हो तो तुम उनकी जान तो नहीं ले सकते। अगर तुम चाहो तो अपने लिखे कहानी के पन्ने जरूर फाड सकते हो। लेकिन उसके बावज़ूद हम तुम्हारे बस मे अही आ सकते क्युकि इस समय तुम अपनी दुनिया मे नही हमारी दुनिया मे हो और यहाँ तुम ब्रम्हा की तरह हो जो सबका भविष्य लिख तो सकता है मगर उसे मिटा या बदल नही सकता। लेकिन मैं तुम्हे तुम्हारी गलती को ठिक करने का एक मौका जरूर दूंगी। कम से कम मुझे मेरी अपनी ज़िंदगी तो वापस मिलेगी।

एक मिनट तुम्हे तुम्हारी ज़िंदगी वापस मिलेगी का क्या मतलब है। तुम तो मेरी लिखी चरित्र मात्र हो। ज़िंदगी तो मेरी फंसी हुइ है इस माया नगरी में जहा से मुझे आज़ाद होना है। तुम नही जानती इस कहानी को लिखने के लिये मैं कितनी ही रात सो नहीं पाया। एक-एक शब्द लिखने के लिये मुझे कितनी कठिनाई को पार करना पडा है। और तुम्हे अपनी ज़िंदगी वापस चाहिये। भला एक काल्पनिक पात्र की भी कोई ज़िंदगी होती है क्या

क्या कहा तुमने? मैं एक काल्पनिक पात्र भर हूँ। नही मिस्टर रचित मैं कोई काल्पनिक पात्र नहीं हूँ, मैं एक जीती जागती लडकी हूँ जो तुम्हारे इस कहानियों की दुनिया मे जाने कहा से आ फंसी। मैं तो हर रोज़ की तरह शाम को अपने काम से वापस लौट रही थी। बस मे बैठी और बस के चलते ही मुझे एक झपकी आ गयी। बस दो पल की झपकी हीं रही होगी मगर जब आंख खुली तो मैंए खुद को तुम्हारी दुनिया मे पाया। मैं बस मे शाम को बैठी थी जब पलक झपकी तो एक झटके में सुबह हो गयी। मैं खुद को एक विरान कमरे मे पाती हूँ जहाँ चारो तरफ बस लडकिया ही लडकिया है। और सब की सब धंधे वाली। पर मैं तो कभी यहाँ आयी ही नही थी। मेरी समझ मे कुछ भी नही आ रहा था की आखिर ये सब है क्या? और मैं यहाँ तक कैसे आयी? बाकी की सभी लडकियां जाने कहाँ जाने के लिये तैयार हो रही थी। मैं मारे डर के एक कोने मे जा छुपी और बस बाकियों को देखने लगी। तभी पीछे से काले कोट मे एक आदमी आता है और मुझसे बडे प्यार से बोलता है – लो तुम यहाँ खडी हो और मैं ना जाने कब से तुम्हारे कहाँ-कहाँ ढूंढ रहा हूँ। चलो तुम्हारे जाने का समय हो गया है। ऐसा कहकर वो मुझे खिंचता हुआ अपने साथ लिये जाता है। मैंए उससे अपना हाथ छुडाने की बहूत कोशिश की मगर मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे मेरे जिस्म मे कोई ताक़त ही नही बची है। ना तो मैं चीख पा रही थी और ना हीं उसके हाथ से अपना हाथ ही छुडा पा रही थी। पहले मुझे लगा की ये सब एक सपना है मगर उसने जैसे मेरे हाथ को पकडा हुआ था उसके कारण होने वाला दर्द बिल्कुल सच का लग रहा था। मेरे हाथ पर उसके पंजो के निशान उभर आये थे। मगर उसके मन में थोडी सी भी दया नही आ रही थी। वो तो किसी जल्लाद की तरह मुझे खिंचा लिये जा रहा था। मैं अपने आप को खिंचते हुए देखकर हद से ज्यादा डर रही थी। खिंचते हुए वो मुझे एक बडे से कमरे तक ले गया। वहा पहले से ही कुछ लडकिया मौजूद थी। वहाँ एक कोने मे एक बडा सा टेबल रक्खा हुआ था जिसके दुसरी तरफ दो डाक्टर और तीन नर्स खडी थी। 

सभी लडकियां क़तार मे खडी अपनी पारी का इंतजार कर रही थी। एक-एक करके सभी आगे बढ रही थी और एक डाक्टर उनकी पुरे शरिर की जांच कर रहे थे। सर से लेकर पांव तक अच्छे से जांच करने के बाद उन्हे आगे किसी कमरे मे भेज दिया जाता था। जब मेरी पारी आयी तो उन्होने मुझे भी जांचना चाहा। मगर इस बार किसी तरह की जबर्दस्ती नही की जा रही थी। क्युंकि वही पास मे एक उअर दैत्य के आकार का आदमी खडा हुआ था जो जांच ना करवाने वाले को सीधे लेकर किसी दुसरे कमरे मे चला जाता था और उसके ठीक एक मिनट के अंदर एक जोर की चिंख आती थी जो उसकी आखिरि आवाज़ होती है। और मैं अभी मरने के लिये तैयार नहीं थी तो इसीलिये मैंने भी कोई विरोध नहीं किया। जब मुझे दुसरे कमरे में ले जाया गय तब पता चला की यहाँ तो जितने भी है सब मेरी ही तरह से कही और से गायब होकर यहाँ आ पहुंचे है। और यहाँ सिर्फ लडकिया ही नही है बल्की यहाँ तो लडके भी है। ये सभी कही और थे किसी और काम मे लगे हुए थे और सभी अचानक से यहाँ आ पहुंचे थे। लेकिन एक बात जो इनमे से किसी को भी मालुम नहीं थी वो ये थी के वो सब कहाँ है और इन्हे यहाँ कब से लाया गया है। दीवार पर टंगी घडी जाने कब से एक ही समय दिखा रही थी। यहाँ किसी को भी पता नहीं था की ये सब कहाँ है और क्युं है। सबके अपने काम बंटे हुए है मगर ये किसके लिये काम कर रहे है कोई नहीं जानता। ये कभी भी रुक जाते थे और जब रुकते थे तो तो फिर कब चलेंगे ये पता ही नही होता था। बस चलते चलते रुक गये और फिर एक दम से चल पडे। ऐसा लगता था जैसे ये सब किसी के आदेश पर काम कर रहे है। 

 

 


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