AMAN SINHA

Drama Romance Fantasy

4  

AMAN SINHA

Drama Romance Fantasy

गोमती

गोमती

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दो चार बिस्किट के पैकेट एक पानी क्र्र बोतल और एक कोल्ड्रिंक लेकर वो अपने सीट पर लौटने लग़ा। जैसे ही वो बस पर चंढने लगा उसे लगा के शायद उसे हल्का हो लेना चहिये और यही सोचकर वो वपस उतरने लगा। नींचे उतरते हुए उसकी टक्कर एक श्ख़्स से हो गयी। वो ज़ल्दी मे था तो बिना किसी तरह का खेद जताए वो बाहर की तरफ निकल गया। जाते हुए उसने बस की ख़िडकी से अपनी सिट पर खाने पीने का सारा सामान रखते हुए गया। जब लौटा तो उसने देखा एक लडकी उसे दूर से ही लौटते हुए घूर रही थी। वो लडकी उसके पास वाले सिट पर ही बैठी थी। उसका इस तरह से उसे देखना कुछ असहज सा कर रहा था। यहां तक बस बिल्कुल खाली ही आयी थी मगर यहा से आगी भीड बढने वाली थी। यही सोचकर सबस पहले उसने अपने समान को समेटा और जाकर अपने स्थान पर बैठ गया। पास मे बैठी लडकी अब भी उसे गुस्से मे घूर रही थी, वो समझ नहीं पा रहा था कि उसके इस तरह देखने का कारण क्या है। जब कै मिनटों तक वो लडकी उसे युं ही देखती रही तो उसने पूछ ही लिया, क्या हम एक दुसरे को जानते है ?

लडकी ने ना मे सर हिलाया। तो फिर क्या मैंने आपका कुछ समान चुराया है ? लडकी ने फिर ना मे सर हिला दिया। अब उससे रहा नहीं गया तो गुस्से मे पुछ लिया तो आप मुझे ऐसे घूर क्यों रही है ? लडकी ने कहा क्या आपमे इतनी भी तमीज़ नहीं की किसी से ट्क्कर लगने पर रुककर खेद जताए ?

ये सनकर उसे अपने टकराने वाली घटना याद आयी। वो बोला माफ किजिएगा मैं उस समय थोडा जल्दी मे था, वो क्या है ना प्रकृति की पूकार थी तो मैं उसे रोक नहीं पाया, खैर मैं आपसे अभी माफी मांग रहा हूँ। लडकी थोडा गुस्से मे मुस्कुराई और बोलि चलो कोइ बात नहीं। मुझे लगा की आप ने जांबुझकर एक लडकी को धक्का मारा। इसके बाद दोनो काफी देर तक चुप ही रहे। वो लडकी खुद मे खो गयी और ये खुद मे डूब गया। जैसे ही इसने आंखें बंद की उसे इस लडकी का चेहरा दिखने लगा। रंग कुछ ज्यादा गोरा नहीं था मगर साफ था। माथे पर पानी साफ चमक रहा था। बालो का रंग पुरी तरह काला नहीं होकर कहीं-कहीं थोडा बहुत भुरा और लाल भी था। क्या ये डाई करवाती होगी? आंखे गहरी काली और पुतलियां हल्की भूरी। कान के बनावट बहुत ही महीन जैसे किसी कारीगर ने खूब समय लेकर तराशा हो। गाल थुल-थुली सी और नाक गोलाई लेकर लम्बी सी। दांत सफेद मोती की तरह और अवाज थोरी सी फंसी-फंसी मगर साफ। बस चेहरा ही दिख रहा था।

उसके दाये गाल पर शायद दो तील थे, नहीं एक तील या दो तील या शायद बाये गाल पर तील था। इस तील की गिनती और स्थान ने उसका ध्यान तोड दिया और उसने ये पुख्ता करने के लिये, कि तील दये गाल पर था य बाये गाल पर, अपनी आंखें खोली तो पाया कि उसके बगल मे कोइ और औरत आकर बैठ चुकी थी। अनयास ही घडी देखी तो पता चला की वो लघबघ आधे घंटे से सो रहा था। और इतने देर मे कितने लोग अपनी जगह बदल चुके थे।

इस एक तील ने उसके मन को बेचैन कर दिया था। ऐसा नहीं है की वो अवारा था और हर कीसी लडकी पर फिदा हो जाता था उसके आस पास हमेशा से स्त्रियों की उपस्थिती रही थी। चाल चलन से सही लड्का था मगर जब से वो अपने नयी कहानी मे मगन हुआ था तब से आज पहली बार उसे कोइ चेहरा इतना बेचैन कर गया था। उसने आस पास देखा मगर वो कही नज़र नहीं आयी। बहर झांक कर देखा शायद अभी-अभी उतरी हो मगर सब बेकार। आज पहली बार उसे अपने बस मे सोने की आदत पर पछ्तावा हो रहा था। क्या करे कैसे करे सब कुछ समझ से परे हो रहा था। उसे लगा जैसे उसकी कल्पना उसके पास बैठी थी मगर वो उसे पहचान नहीं सका। मन चाहा की किसी से पुछे मगर क्या किसी को पता होगा, और होगा तो क्या वो बताएगा? इसी उधेरबूंद वो उसने दस मिनट गवा दिये मगर कोइ हल नहीं मिला।

अंत मे उसने तय किया किसि से पूछ लेने मे क्या बुराई है ज्यादा-से-ज्यादा कोइ जवाब नहीं मिलेगा और क्या होगा कोइ उसकी जान तो नहीं ले लेगा ना। यही सोचकर उसने अपने पास बैठी महेल से पूछा। माफ किजिएगा ये कौन सी जगह है ? उस महिला ने उसके तरफ देखा और दो सेकेंड रुक्कर कहा अकोला के पास के जगह है? साथ मे ये भी पूछा की उसे कहाँ जाना है? उसने बताया की उसे अंतीम पडाव तक जाना है। फिर एक बार हिम्मत करके वो बोला माफ किजिए जब मैंए अपनी आंखें बंद की थी तब मेरे पास एक लडकी बैठी थी, बात बीच मे ही बदलकर बोला आप कब से इस सिट पर बैठी है ? वो महीला बोली, पिछले स्टोप पर मैं बस पर चढी थी। यहाँ एक लडकी थी उसने मुझे ये सिट दिया और चली गयी। उसने फिर पूछा माफ किजिएगा क्या आप बता सकती है कि इस बात को कितने देर हुए ? वो बोली यही कोइ दस मिनट। अब तो उसके अफसोस का पारा और बढ गया। मन ही मन खुद को कोसते हुए बोला दो मिनट पहले जाग जाता तो क्या बिगड़ जाता ? उसे ऐसा लगा जैसे मानो उसकी तपस्या का फल मिलते-मिलते रह गया हो। वो गुस्से और दर्द से अंदर-ही-अंदर चिख रहा था। मगर अब करे तो क्या करे अब तो काफी देर हो चुकी थी। उसके मन मे अनेक वीचार आने लगे जैसे वो अपनी गलती को सुधारने के नए रास्ते तलाश रहा हो। एक बार सोचा काश के बस मे झटका लगता और उसकी निंद टुट गयी होती तो उसे दोबारा देख पाता। फिर सोचता है की काश निंद मे ही वो दोबारा उससे टकरा जाता। फिर सोचता है की काश सोने के पहले ही उससे बात कर ली होती तो कितना अच्छा होता। जितनी सोच उतने तरीके मगर काम का एक भी नहीं।


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