गाय की दयालुता
गाय की दयालुता
छोटी बहिन से बात हो रही थी ।बातों बातों में बचपन की बातें होने लगीं कि कैसे घर में गाय पाली जाती थी। तेज भाई भी गाय का दूध दुह लेते थे और हम उनके पास बैठकर देखा करते थे। गाय के दूध की उष्ण धार अपने मुँह में भी ले लेते थे और हम भी दुहने की कोशिश करते थे पर दुह नहीं पाते थे।
छोटी बहिन ने कहा -" एक बार अन्नी जी( मॉं) ने मेरे से कहा कि मुन्नी कच्चा दूध ले आओ थोड़ा सा। वे पूजा की चौकी पर बैठी थीं और उन्हें थोड़ा सा कच्चा दूध पूजा के लिये चाहिये था।"
उनकी बात सुनकर मुन्नी रसोई में गई, पर कहीं कच्चा दूध नहीं था। सारा दूध उबाल दिया गया था। मुन्नी ने सोचा -"कच्चा दूध कहॉं मिलेगा ?कैसे अन्नी जी से कहूँ ?यह कहना अच्छा नहीं लगेगा कि कच्चा दूध नहीं है।" फिर ध्यान आया कि गैया तो बाहर खड़ी ही है, बाहर दहलीज़ में बंधी है, क्यों न जाकर उससे थोड़ा सा दूध मॉंगा जाय ?
मुन्नी इससे पहिले अन्नी जी से सुन चुकी थी कि गाय के शरीर में तैंतीस करोड़ देवता निवास करते हैं ;और वह गाय के पास जाकर खड़ी होकर देखा करती थी कि क्या तैंतीस करोड़ देवता इसी में हैं ? फिर अन्नी जी यह भी कहतीं थीं कि गाय भी कामधेनु होती है, जो मांगो वह इच्छा पूरी करती है। मुन्नी अपने बचपन की निर्दोष ऑंखों से सब बातें पर विश्वास करके आश्चर्य व कौतूहल से गाय को देखा करती थी। उसी दहलीज़ से होकर आना- जाना होता था और गाय दृष्टिपथ में आती रहती थी।
घर में दोपहर का भोजन बनता था तो पहली रोटी गैया की निकाली जाती थी। उस रोटी पर घी लगा थोड़ी चीनी रखी जाती थी और जो भी दाल भात बना होता था थोड़ा-थोड़ा रख दिया जाता था। गाय को रोटी देने के लिये अन्नी जी मुन्नी को ही भेजा करती थीं। और वह रोज गाय को रोटी देकर आती थी।
तो उस दिन मुन्नी एक छोटा कटोरा लेकर गाय के पास गई और हाथ जोड़कर बोली-" अन्नी जी को पूजा के लिये दूध चाहिये, थोड़ा दूध दे दो। आप तो कामधेनु हो, सबकी इच्छा पूरी करती हो। आपमें देवताओं का निवास है। "यह कहकर हाथ जोड़ गाय के थन को हाथ लगाया, और कटोरे में थोड़ा दूध दुह लिया। गाय चुपचाप शान्त खड़ी रही।
मुन्नी ने दूध लिया और अन्नी जी को लाकर दे दिया। अन्नी जी ने कहा -'अच्छा, कच्चा दूध मिल गया', और वे अपने पूजा के काम में लग गईं। न मुन्नी से उन्होंने पूछा कि दूध कहॉं से लाई, न मुन्नी ने बताया।
मैंने छोटी बहिन की यह बात सुनकर कहा-"क्या गाय ने तुम्हें सींग नहीं मारे ? क्या लात नहीं मारी ?बिना बछड़ा खोले, बिना नहनि(रस्सी) बॉंधे , बिना बछड़े को दूध पिलाये तुम्हें दूध लेने दिया ?और क्या तुमको दूध दुहना आता था ? क्या पहिले कभी दूध दुहा था ?"
मेरे इतने सारे प्रश्न सुनकर मुन्नी ने कहा-"पहिले कभी दूध दुहा नहीं था और उसके बाद भी नहीं दुहा। वही पहली और आख़िरी बार था। मुझे दूध दुहना आता भी नहीं था। पर गाय ने कुछ विरोध नहीं किया, शान्त खड़ी रही। और जितना दूध मैंने चाहा लेने दिया। "
यह गाय की अद्भुत महिमा है। क्षमाशीलता है। मुन्नी की प्रार्थना क्या गाय ने सुन ली थी ? उसे निश्छल और भोली समझ दूध लेने दिया ?
मेरे लिये यह सुखद आश्चर्य की घटना थी। सुबह गाय का दूध दुहा जा चुका था। सब दूध उबाल भी दिया गया था। उस दिन कैसे तो पूजा के लिये कच्चा दूध रखना छूट गया था। मुन्नी ने निश्छल श्रद्धा और विश्वास से गाय का थोड़ा सा दूध दुह लिया, पूजा के लिये उससे मॉंगकर और गाय ने दयालुता से सरलता से उसकी अनुमति दे दी।
पशु पक्षी भी समझदार होते हैं, जानते हैं कि कौन उन्हें प्यार करता है, कौन हानि पहुँचाता है। मुन्नी के प्यार और अबोधता का उत्तर गाय ने अपनी दयालुता से दिया।