गाइडेंस टू द राइटर
गाइडेंस टू द राइटर
कल ऐसे ही कोई बात हो रही थी। अब बात बात से बात बढ़ती जाती है। हमारी बात भी कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी।
हमारी बात शुरू हो गयी थी मेरे कहानी और कविता लिखने की बात पर। "आप जो लिखती हो वह बहुत नेगेटिव नैरेटिव वाला होता है। आपकी कहानियों और कविताओं में औरतें मज़लूम दिखती है। मुझे तो इस टाइप की मज़लूम औरतें कही आसपास भी नज़र नहीं आती। आजकल की स्त्री तो डॉमिनेटिंग होती है। उन पर कहाँ कोई मर्द अत्याचार करता है भला?" कहते हुए वह हँसने लगे। मैं कहने लगी, "यह जो मैं लिखती हूँ वह हक़ीक़त होती है लोगों की बातचीत के बाद कल्पना करते हुए लिखती हूँ ...."
"नहीं, नहीं, आप बहुत ही नेगेटिव और कुछ भी लिखती रहती हो। अव्वल तो मुझे आपकी कहानियाँ सीरियस लगती है और कुछ तो समझ भी नहीं आती है मुझे....आप अपने लेखन को थोड़ा चेंज क्यों नहीं करती है ?"
मैं ठहरी एक वर्किंग और इंडिपेंडेन्ट वुमन जो गलती से लेखक है। और कभी कभी बिटवीन द लाइन्स पढ़ लेती है।
मुझे लगा अब तो मुझे कैसे लिखना और क्या लिखना यह भी समझाया जाने लगा है।
बीइंग राइटर मेरा एक थॉट प्रोसेस होता है। हो सकता है वह डिफरेंट हो। और वह थॉट इंडिपेंडेन्ट भी हो सकता है।
मुझे महसूस हुआ की महिला होने के नाते मुझे यह बताया जा रहा है की आप यह लिखिए और आप यह न लिखिए। आप ऐसा लिखिए। आप ऐसा न लिखिए।
और फिर यही लोग बात करते है की आज की महिलाएँ आज़ाद है... सोसाइटी में उन्हें रोकटोक नहीं है... वह इंडेपेंडैंटली अपना काम कर सकती है वगैरह वगैरह।
क्या कोई पुरुष लेखक को कह सकता है की तुम यह क्यों लिखते हो या यह क्यों नहीं लिखते हो?
आप की क्या राय है इस बारे में?