फ़ायर ब्रिगेड़ के कुत्ते
फ़ायर ब्रिगेड़ के कुत्ते
लेखक: ल्येव टॉल्स्टॉय
अनुवाद: आ. चारुमति रामदास
अक्सर ऐसा होता है कि शहरों में जब कभी आग लग जाती है तो बच्चे घरों के भीतर ही रह जाते हैं और उन्हें बाहर निकालना नामुमकिन हो जाता है, क्योंकि वे डर के मारे छुप जाते हैं और चुप रहते हैं, और धुँए के कारण उन्हें देखना भी संभव नहीं होता. इसलिये लंदन में कुत्तों को ट्रेनिंग दी गई है. ये कुत्ते फ़ायर ब्रिगेड़ दल के साथ रहते हैं, और जब किसी घर में आग लग जाती है, तो फ़ायर ब्रिगेड़ के कर्मचारी इन कुत्तों को भीतर भेजते हैं ताकि वे बच्चों को बाहर खींच सकें.
एक ऐसे ही कुत्ते ने लंदन में बारह बच्चों की जान बचाई; उसका नाम था बॉब.
एक बार एक घर में आग लग गई. और जब फ़ायर ब्रिगेड़ के लोग घर के पास आये तो उनके पास एक औरत भागकर आई. वह रो रही थी और कह रही थी कि घर के अंदर दो साल की बच्ची रह गई है. फ़ायर ब्रिगेड़ के लोगों ने बॉब को भेजा. बॉब सीढ़ियों पर दौड़ा और धुँए में छुप गया. पाँच मिनट बाद वह भागता हुआ घर से बाहर आया और दाँतों में कमीज़ पकड़कर बच्ची को बाहर लाया.
माँ बच्ची के पास लपकी और ख़ुशी के मारे रोने लगी कि उसकी बच्ची ज़िंदा है. फ़ायर ब्रिगेड़ के कर्मचारियों ने प्यार से कुत्ते को सहलाया और देखने लगे कि वह कहीं जला तो नहीं है; मगर बॉब फिर से तीर की तरह घर के भीतर भागा. फ़ायर ब्रिगेड़ वालों ने सोचा कि घर में शायद कोई और ज़िंदा चीज़ है, और उन्होंने उसे छोड़ दिया. कुत्ता भाग कर घर के अंदर गया और फ़ौरन दाँतों में कुछ पकड़े बाहर आया. जब लोगों ने ग़ौर से देखा कि वह क्या लाया है, तो सब हँस पड़े. वह बड़ी-सी गुड़िया को ला रहा था.