हरि शंकर गोयल

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हरि शंकर गोयल

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एलियन

एलियन

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एक समय की बात है । जम्बू द्वीप नामक एक राज्य था । उस राज्य पर एक "मौनी बाबा" राज्य कर रहा था । दरअसल मौनी बाबा तो नाम का राजा था मगर राज्य की बागडोर "राजमाता" के ही हाथ में थी । मौनी बाबा तो केवल हस्ताक्षर करते थे और सारा राज पाट राजमाता ही संभालती थी । उस राज्य में अव्यवस्थाओं का बोलबाला था । मौनी बाबा की ईमानदारी विश्व विख्यात थी मगर चारों तरफ भ्रष्टाचार कोहरे की तरह व्याप्त था । मौनी बाबा की नाक के नीचे भ्रष्टाचार खुलेआम हो रहा था मगर मौनी बाबा को वह दिखाई नहीं दे रहा था । नाक के नीचे की चीजें दिखाई देती हैं क्या ?  

जनता त्राहि त्राहि कर रही थी । मंहगाई आसमान छू रही थी और बेरोजगारी सुरसा की तरह मुंह फैला रही थी । "पॉलिसी पैरेलिसिस" की स्थिति थी । निर्णय नहीं हो पा रहे थे । मीडिया प्रशस्ति गान में व्यस्त था और सरकारी पैसे पर मौज उड़ाने में मस्त था । तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की आड़ में एक समुदाय को सिर माथे पर बैठा लिया गया था और बहुसंख्यक समुदाय को प्रताड़ित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई थी । जनता बहुत दुखी और परेशान थी । 


अचानक दूर गगन में एक रोशनी सी चमकी । लोगों ने उसे आशा की रोशनी समझ लिया । उस रोशनी में से एक "एलियन" बाहर निकला । देखने में वह "आम आदमी" सा लग रहा था इसलिए लोगों को वह बहुत जंच रहा था । लोग चौराहों पर बातें करने लगे । कोई बता रहा था कि ये एलियन "ईमानदारी के ग्रह" से आया है । उस ग्रह पर रहने वाले सारे लोग कट्टर ईमानदार बताये गये । भोली भाली जनता को एक नया "अवतार" मिल गया था । यह "ईमानदारी का अवतार" कहलाया । यह जो भी कहे , वही सच है बाकी सब झूठ है । इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं थी । एलियन का कहा गया एक एक शब्द भगवान की वाणी से भी बढकर था । उससे पूछने की हिम्मत मीडिया में भी नहीं थी । मीडिया का मुंह विज्ञापनों से जो भर दिया था उसने । यह एलियन ईमानदारी का पर्याय बन गया था । 

आते ही उसने घोषणा कर दी "साथियों , मैं ईमानदार ग्रह से आया हूं जहां ईमानदारी की मिसालें दी जाती हैं । मेरा कहना है कि जब यह जम्बू द्वीप एक गरीब देश है तो यहां के मंत्रीगणों को ना तो गाड़ी लेनी चाहिए और ना बंगला । उन्हें मैट्रो से आना जाना चाहिए । हर निर्णय जनता से पूछ पूछ कर होना चाहिए । और ये पक्ष विपक्ष वाले सब मिले हुए हैं जी । दोनों एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं जी । मैं तो एलियन हूं जी । आपके दुख दर्द जानता हूं जी । बच्चों की सौंगंध खाकर कहता हूं जी कि कभी किसी पार्टी का सपोर्ट नहीं लूंगा जी" । 

लोगों ने उस पर आंख बंद कर विश्वास कर लिया । लोग हैं ही ऐसे । वे एलियन पर ऐसे ही विश्वास करते हैं । दरअसल उन्होंने एलियन को कभी देखा नहीं था , केवल उसके बारे में सुना था , इसलिए गच्चा खा गये । उस एलियन को राज पाट दे दिया । 

एलियन की तो बांछें खिल गई । इतनी जल्दी राज पाट मिल जायेगा , इसकी कल्पना भी नहीं की थी उसने । मगर "बकरा" जब खुद को सुरक्षित रखने के लिए खुद "कसाई" के पास चला जाये तो इसमें कसाई का क्या दोष ? 

कसाई ने अपना काम शुरू कर दिया । बकरे को तिल तिल कर काटना शुरू कर दिया । जेल से वीडियो आने लगे । कैदी के ठाठ बाट दिखाने लगे । दारू सिर चढकर बोलने लगी । ईमानदारी की परतें खोलने लगी । टिकिट बेचे जाने लगे तो लोगों को चक्कर आने लगे । गाड़ी बंगला तो छोडिये, सुरक्षा में सैकड़ों जवानों को जोत दिया गया । सादगी की इबारत पर कालिख पोत दिया गया । हवाला का कारोबार पकड़ में आ गया । एक एलियन को उसी भ्रष्टाचार की जकड में पाया गया जिससे जनता निजात पाना चाहती थी । 

अब जनता उस "एलियन" से ऊब चुकी है । दुखों के सागर में डूब चुकी है । देखते हैं कि एलियन का झूठ कब तक टिका रहेगा । देश ऐसे मक्कारों के हाथों कब तक बिका रहेगा ? 


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