संजय असवाल

Abstract

4.3  

संजय असवाल

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एक सुहाना सफर..!यात्रा संस्मरण.

एक सुहाना सफर..!यात्रा संस्मरण.

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आज कई वर्षों पश्चात जब दुनिया कोविड़ के पंजे से धीरे धीरे उबरने लगी है फिर से अपने पुराने दौर में आने लगी है जहां सभी व्यस्त थे खुश थे अपने लोगों के संग, परिवार के हर छोटे बड़े दुःख सुख में शरीक होने लगे हैं। वहीं गांव के कुलदेवता के वार्षिक पूजा में सम्मिलित होने अवसर मिला तो हृदय से असीम आनंद की प्राप्ति के साथ कुलदेवता के आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ। गांव का टूटा फूटा पैतृक मकान अब रेनोवेट हो चुका था तो रहने की समस्या का भी हल हो चुका था । अब दिल गांव जाने के लिए और ज्यादा कुलांचे भरने लगा था। गांव जाने का प्लान पहले से तैयार था । हमें अपने चाचा चाची के साथ उनकी गाड़ी से गांव जाना था तो सुबह सुबह धर्मपत्नी ने सारा सामान आदि पैक कर उसे स्कूटी में लाद दिया। मैं ,छोटा बेटा हनु और धर्म पत्नी जी घर से चाचा जी के घर की ओर बढ़ चले।

बहुत खुशी महसूस हो रही थी क्यों कि कई अरसों बाद गांव जाने का मौका मिल रहा था। चाचा चाची जी पहले से तैयार बैठे हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहे थे। स्कूटी अंदर खड़ी कर के सारा सामान गाड़ी में अच्छे से लगा कर सभी कुल देवता"गरीबनाथ जी" का जयकारा लगाते हुए अपने गंतव्य स्थल की ओर बढ़ चले।

गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। ठीक ग्यारह बजे हम लोग देहरादून से हरिद्वार पहुंच गए। रास्ते में बच्चे के लिए चिप्स कोल्डड्रिंक आदि लेते हुए हम हरिद्वार से आगे बढ़े तो गर्मी शुरू हो गई थी। रास्ते में गाड़ियों का जमावड़ा भी होने लगा था। गर्मियों की छुट्टियां होने से साथ ही चार धाम यात्रा अपने पूरे शबाब में थी। बाहर से लोग पहाड़ घूमने आने लगे थे। शहर शहर छोटे छोटे कस्बे आदि भीड़ भाड़ से पटे पड़े थे ।

हरिद्वार से कोटद्वार का सफर राजाजी नेशनल पार्क और जिम कार्बेट पार्क से होते हुए गुजरता है । चारों ओर घने जंगलों के बीच से गुजरती हुई सड़क और उसपर यात्रा का अनुभव रोमांचित कर देता है।

भारत सरकार के सड़क मंत्रालय की अद्भुत प्रयास से हर ओर फोरलेन सड़कों का निर्माण जोरों पर है। कहीं कहीं पर सड़क निर्माण रुका हुआ है पर अन्य जगहों पर सड़क निर्माण तेजी से हो रहा है।

चौड़ी सड़कों पर गाड़ियां सरपट दौड़ रही है। फिर चिड़ियापुर पर हल्का नाश्ता करने के बाद हम लोगों ने राष्ट्रीय राजमार्ग छोड़ कर नहरवाली सड़क ले ली। बीच में बंदरों के लिए केले आदि लिए तथा साथ ही ककड़ी आदि का स्वाद भी लेते हुए दो बजे हम लोग कोटद्वार पहुंच गए। सफर बहुत बेहतरीन जा रहा था। कोटद्वार पहुंच कर हमने गांव के लिए सब्जियां,फल और चीनी चायपत्ती,बिस्किट ब्रेड आदि खरीद लिए क्यों कि गांव में दुकान आदि नहीं है।

लगभग ढाई बजे कोटद्वार से सिधबली बाबा के जयकारे के साथ गांव के लिए निकले। रास्ते में दुगड्डा पहुंचने पर बहुत पुराने प्रसिद्ध "धारे" का मीठा पानी और स्वादिष्ट ककड़ी का स्वाद लिया। अब यहां से पहाड़ का रोमांच शुरू हो गया था। सड़कें घुमावदार एक तरफ पहाड़ी नदी दूसरी ओर बांज बुरांस, चीड़ के लंबे लंबे पेड़ से खड़े पहाड़ और उनके बीच सर्पीपीली सड़क में यात्रा का अनुभव बेहद रोमांचित करता है। फतेहपुर से सड़क तंग हो जाती है और उस पर गाड़ियों का जमावड़ा थोड़ा परेशान भी करता है पर गांव जाने की खुशी में सब भुला कर आगे बढ़ते हुए चार बजे डेरियाखाल पहुंच कर गांव की खुशबू आने लगी थी।

एक्साइटमेंट बढ़ने लगा था । अब दूर पहाड़ों की गोद में हमारा गांव भी नजर आने लगा था। धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए चमेथा गांव से उतरते हुए हम अपने पुराने बाजार" चुन्दाई "पहुंचे तो बहुत राहत मिली। यहां पहुंच कर पुरानी दुकान से चाय का स्वाद लिया साथ ही बन/फैन खाएं तो पुरानी यादों का मंजर आंखों के सामने नजर आने लगा।

कुछ जरूरत का सामान लेने के बाद हम अपने गांव के लिए निकल पड़े। पहले कंडोली गांव से आगे बढ़े फिर नए सड़क जो सीधे "भगुली नाथ" मंदिर की ओर जाती है के लिए निकल पड़े। सफर में छोटे बेटे हनु में बिल्कुल भी परेशान नहीं किया जो सुखद अहसास दिलाता रहा। पूरे सफर में "हनु की एक्साइटमेंट भी देखते ही बनती है।

अब मंदिर परिसर में पहुंच कर" मेदी गाड़" नदी में हाथ मुंह धोकर मंदिर में भोलेनाथ के दर्शन किए, पूजा आदि करके पुनः गांव की ओर निकल पड़े। अब कुछ मिनटों का सफर रह गया था। गांव नजर आने लगा था और दिल की धड़कन भी बढ़ने लगी थी। कुछ मिनटों में हम अपने गांव के ऊपर सड़क पर पहुंच गए।यहां गाड़ी को किनारे खड़ी कर सारा सामान आदि बाहर निकाल कर गाड़ी लॉक कर सामान सर पर कंधों में रख कर पगडंडियों से आहिस्ता आहिस्ता नीचे उतरने लगे। शाम हो गई थी गांव में सभी बड़े बुजुर्गों से मिलते मिलाते घर पहुंचे तो छोटे चाचा चाची हमारे स्वागत के लिए तैयार बैठे थे। सभी के साथ रामा रामी के बाद गांव के धारे का मीठा पानी का स्वाद लिया चाय पी और थोड़ा सुस्ता लिया।

गांव का पैतृक मकान पहले से काफी सुंदर बन गया है। शिबू चाचा ने बहुत मेहनत कर पुराने मकान का रेनोवेशन कराया उसमे टॉयलेट बाथरूम,किचन आदि बन चुके थे पर अभी बहुत काम बाकी है जो धीरे धीरे चल रहा है।

शाम को मंदिर में जागरण का कार्यक्रम है साथ ही मंदिर समिति का सभी गांव वालों और बाहर से पूजा में सम्मिलित होने वालों के लिए सामूहिक भोज का कार्यक्रम बना है जिसमें भी सभी की भागीदारी सुनिश्चित है। मैंने हाथ मुंह धोकर सीधे अपने इष्ट देव "गरीब नाथ "जी के दर्शन किए वहां सभी बड़े बुजुर्ग मौजूद थे। सभी के पांव छूकर नमस्कार कर रात्रि भोज के कार्यक्रम में जुट गया। साथ के दोस्त बड़े भाई आदि सभी से मिलकर उनका हाथ बटाने लगा।

साथ बैठ कर पहले सब्जियां काटी, फिर पूरी बेलने में भी पूरी मदद की। सच बहुत अद्भुत अनुभव था। रात्रि को सभी गांव वाले भोज में शामिल हुए।

पहाड़ी परंपरा के हिसाब से सभी ने नीचे बैठ कर फोड़ में पंगत में खाना खाया। मैंने साथियों के मिलकर खाना आदि बांटने में मदद की । फिर जब सभी बुजुर्गों, माता बहनों, बच्चों ने खाना खा लिया तब आखिर में हम सभी मित्रों ने एक साथ भोज का आनंद लिया। भोज के पश्चात मंदिर में जागरण का कार्यक्रम था।

रात भर देवी देवताओं के गीत, भजन आदि चलते रहे जिसमें सभी ने खुशी खुशी प्रतिभाग किया। सुबह चार बजे कार्यक्रम समाप्ति पर सभी अपने अपने घर की ओर चल पड़े।

मैं भी अपने नए घर में पहुंच कर लेट गया। थकान के कारण फौरन नींद आ गई। सुबह आठ बजे उठकर दैनिक निवृत होकर पनघट में ठंडे पानी से स्नान किया। आज का कार्यक्रम बहुत व्यस्त रहने वाला था। आज गरीब नाथ मंदिर में वार्षिक पूजा के साथ गांव के लोग झंडा भी चढ़ाएंगे फिर पूजा हवन के पश्चात पुनः सामूहिक भोज का कार्यक्रम है।

दस बजे से सभी लोग मंदिर में जुटने लगे। पंडित जी पूजा आदि शुरू कर दिए और दूसरी ओर प्रसाद के लिए रोट लड्डू आदि भी बनने लगा था।

मंदिर में पूजा हवन के साथ झंडे भी पूरी गांव के परिक्रमा के बाद पहुंच गए थे। पूजा के बाद सभी ने कुल देवता से आशीर्वाद लिया।

दूसरी ओर जागरी जी ने अपने जागर से कुछ देवताओं का आवाहन किया। कुछ लोगों पर देवता भी आए और वो नाचे भी बहुत। फिर हम सभी मित्रों ने प्रसाद आदि सभी को वितरित किया।

दिन का सामूहिक भोज भी तैयार हो रहा था। जिसमें सभी मित्रों ने बहुत बेहतरीन तरीके से सामूहिक कार्य करते हुए खाना आदि तैयार करवाने में भरपूर सहयोग किया।

अब सामूहिक भोज पुरानी परंपरा अनुसार फोड़ में जिसमें पंगती में बैठ कर भोज किया जाता है सभी बारी बारी सामूहिक भोज का आनंद लेते हुए इष्ट देवता के जयकारे के साथ इस कार्यक्रम में शामिल हुए। हम सभी ने भी भोज का आनंद लिया। भोज के पश्चात बर्तन आदि धोने में भी सभी एक दूसरे मदद की।

शाम को मैं अपनी धर्म पत्नी, बेटे हनु के साथ फिर से गरीब नाथ मंदिर में आकर बैठे और गांव के प्राकृतिक सौंदर्य का भरपूर आनंद लिया। धर्मपत्नी जी ने सब्जी के लिए तिमले के पेड़ से खूब सारे तिमले तोड़े और सुहानी याद के साथ हम अपने पैतृक निवास में रात्रि विश्राम के लिए आ गए।

सुबह हम सभी को वापस देहरादून आना था तो सभी सोने चले गए।

सुबह उठते ही दैनिक निवृत होकर स्नान आदि कर सामान आदि की पैकिंग कर सभी बड़े बुजुर्ग का आशीर्वाद ले कर हम पगडंडियों से होकर गांव के ऊपर सड़क पर पहुंचे तो दिल में अजीब सी मायूसी छाने लगी, सच गांव से जाने का मन नहीं हो रहा था धर्म पत्नी जी ने कल शाम को ही अगले साल ज्यादा दिन गांव में बिताने का मुझसे वादा लिया था। छोटा बेटा हनु भी दुखी लग रहा था क्यों कि यहां वो अपने साथ के बच्चों के साथ काफी घुलमिल गया था।

गांव में बिताए कुछ पल जिंदगी के बेहद खास पल हैं और सच कहूं ये बेफिक्री ,तनाव मुक्त जीवन, प्राकृतिक सौंदर्य, पहाड़ जंगल, नदी/ नाले (गदन),मंदिर, गांव की सादगी भरा जीवन, खुली हवा, ठंडा मीठा पानी भागती तनाव भरी जिंदगी के लिए बेहद राहत का काम करती हैं।

अब धीरे धीरे हम अपने गांव को छोड़ते हुए वापस आ रहे हैं तो गांव आंखों से ओझल होने लगा है साथ ही गांव में बिताए सुखद पल आंखों में आसूं बनकर झर झर बहने लगे हैं।

गांव हम तुम्हें कभी नहीं भूल पाएंगे। हम बेशक आगे बढ़ गए पर तुम अब भी वहीं खड़े हो हमारी उम्मीद में कि हम जब लौट कर आएं तो हमारे स्वागत में गांव उसी तन्मयता से मिले जैसे अभी मिले थे।

"आप सभी पहाड़ियों से हाथ जोड़कर प्रार्थना है अपने वजूद से कभी दूर नहीं जाना" ।

गांव जरूर जाएं .........!!!

पुरानी यादों के लिए अपने अपनों के लिए....!!



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