डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Tragedy

4.2  

डाॅ सरला सिंह "स्निग्धा"

Tragedy

एक दोस्ती का अंत

एक दोस्ती का अंत

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चारों तरफ‌ हरियाली , बड़े बड़े घने पेड़ विद्यालय के प्रांगण में थे। बीच में कुछ  जगह थी जहां तरह तरह के फूलों के छोटे-छोटे से झुरमुट से थे। इनमें झुरमुटों के नीचे दो-तीन लोग आराम से बैठ सकते थे। किनारे-किनारे कमरे बने हुए थे।एक तरफ दो मंजिला आठ कमरे बने हुए थे इनमें ऊपर इण्टर की कक्षाएं लगती थीं और नीचे स्टाफ रूम और साइंस लैब, संगीत कक्ष , लाईब्रेरी तथा अॉफिस बना हुआ था। प्राइमरी का स्टाफ रूम व लाइब्रेरी अलग था। सामने बड़ा सा गेट लगा हुआ था। किनारे एक छोटा सा गेट भी था जहां गेटकीपर खड़ा रहता था। कुल मिलाकर बहुत सुन्दर विद्यालय।

विद्यालय के बीच में फूलों के झुरमुट में दो लड़कियां प्रायः देखी जाती थी जो आपस में जाने क्या गुटरगूं किया करती रहतीं थीं। दूसरी लड़कियों को उनकी इस घनिष्ठता से ईर्ष्या भी होती थी। इनमें एक लड़की का‌ नाम तो महिमा था दूसरी का दिशा। महिमा एक बहुत ही सीधी- सी एक संवेदनशील लड़की थी। वह अपने मन की सारी बातें दिशा को बताती। कभी कभी कुछ कविता ,कहानी लिखती तो उसे भी दिशा को ही लाकर दिखाती फिर छिपाकर रख देती ।उसको अपने माँ और पिताजी से डर लगता था कि यदि वे उसकी कविता, कहानी देख लेंगे तो उसे डाँट पड़ सकती है और उसकी पिटाई भी हो सकती है।उसकी कविताएँ बहुत अच्छे स्तर की थीं पर न तो कभी उसकी सहेली दिशा ने ही कभी भी उसे प्रोत्साहित किया और न ही किसी अन्य को ही उसने अपनी रचनाएँ दिखालाईं।

महिमा साफ दिल से अपनी सारी बातें दिशा को बताती लेकिन दिशा के लिए महिमा सहेली तो कम और उसके साथ समय बिताने का साधन अधिक थी । महिमा पढ़ने में भी बहुत ही अच्छी थी तो उसकी कॉपी के सभी नोट्स भी दिशा को आसानी से मिल जाता था। दिशा एक शातिर दिमाग की लड़की थी किसका फायदा वो कैसे कैसे उठा सकती है , बखूबी जानती थी।

 दिशा देखो मैंने आज फिर एक कविता लिखी है कहकर महिमा ने बहुत ही खुश हो कर अपनी काॅपी दिशा की ओर बढ़ा दी। दिशा ने उसकी कॉपी लेकर कविता पढ़ी फिर उससे बोली , "हाँ बहुत अच्छी है ‌। यह किसके लिए लिखी हो ? 

"किसी के लिए भी नहीं बस मेरे मन में आया और मैंने लिख दिया।" महिमा ने कहा। 

यह एक श्रृंगारिक कविता थी जो सोलह सत्रह साल की लड़की की संवेदनशीलता और भावुकता को पूर्णतया व्यक्त करने में समर्थ थी। दिशा को वह कविता बहुत अच्छी लगी उसने भी उसे अपनी कॉपी में उतार लिया।

धीरे-धीरे समय बीतता गया। बोर्ड की परीक्षा का समय नजदीक आने लगा।परीक्षाओं की तैयारी जोरों पर चल रहीं थीं ।फिर परीक्षाएँ शुरू हो गई। उन दोनों ही सहेलियों को जब भी थोड़ा सा समय मिलता वे बैठकर खूब सारी बातें करतीं। परीक्षा के बाद महिमा अपनी एक कविता दिशा को दिखाना चाहती थी पर दिशा के भाई- भाभी बिहार से उसे लेने आ गये वह महिमा को बिना बताए ही अपने घर चली गई। अपनी ही बहन से विवाद के बाद वह करीब साल भर से अपनी एक सहेली नीलम के यहाँ रुकी हुई थी। हालांकि साल भर नीलम के यहाँ रुकने के बावजूद वह दूसरी लड़कियों से उसे बेवकूफ और लड़ाकू ही बनाया करती थी। उसने कभी भी किसी से नहीं बताया की वह नीलम के यहाँ रह रही है।

दिशा के जाने के बाद महिमा हमेशा व्याकुल सी रहती थी की किसे अपनी रचनाएँ दिखाए,किससे वह अपने दिल की बातें करे। उसके पास दिशा का फोन नं भी तो नहीं था । हालांकि दिशा एक माह बाद फिर वापस एक डेढ़ माह के लिए अपनी सहेली नीलम के घर आयी थी , प्रैक्टिकल परीक्षा देने के लिए परन्तु कभी भी महिमा का नाम तक नहीं लिया। महिमा से उसका काम निकल चुका था और काम निकल जाने के बाद फिर कौन किसको पूछता है।

धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता रहा। महिमा की शादी भी हो गयी और दिशा की भी। महिमा के दिल में दिशा ने जो घर बना लिया था वह अपने स्थान पर ज्यों का त्यों कायम था। उसे हमेशा यही लगता कि काश किसी सहेली से दिशा का मोबाइल नंबर मिल जाता तो कितना ही अच्छा होता।वह दिशा से दिल भरकर बातें करती और अपनी उपलब्धियों को भी दिखलाती। अब तक महिमा एक होनहार बेटे और बेटी की माँ बन चुकी थी। वह पेपरों में भी लिखने लगी थी यही नहीं उसकी अपनी पत्रिका भी प्रकाशित होने लगी थी। इन सबके बावजूद महिमा के मन में वही कॉलेज वाली दिशा ही समायी हुई थी जिससे वह मिलकर अपने दिल में सँजोए हुए सारे के सारे लम्हों को व्यक्त करना चाहती थी।

"अरे नीलम कहाँ जा रही हो?" एक कान्वेंट स्कूल के सामने खड़ी नीलम को देखकर महिमा ने पूछा? महिमा भी उधर से ही किसी अन्य काम से आ रही थी।

" मेरी बिटिया यहाँ पढ़ती है,उसी को लेने रोज ही आती हूँ। दो बजे छुट्टी होती है।" नीलम ने बताया।

"अच्छा मेरे भी बच्चे यहीं पढ़ते हैं बेटी और बेटा दोनों ही। दोनों ही पढ़ने में बहुत अच्छे हैं। दोनों बच्चों के पास अपनी अपनी बाइक है उसी से आते जाते हैं।" महिमा ने बताया।

 तभी बातों ही बातों में दिशा की बात छिड़ गयी। 

"अरे नीलम दिशा से बात तो होती होगी?" महिमा ने पूछा।

"कहाँ, जबसे यहाँ से गयी है शादी भी हो गयी और उसने कभी भी फोन नहीं किया। अपनी जिस बहन से लड़कर मेरे यहाँ वह सालों रही थी उनके घर तो वह बराबर आती जाती है पर कभी भी मेरे यहाँ नहीं आती है।" नीलम के चेहरे पर आक्रोश की भावना साफ-२ झलक रही थी।

"चलो तो उसकी दीदी के यहाँ चलकर उनसे मोबाइल नंबर लाते हैं,अगर दे दें तब।" नीलम ने सुझाव दिया और उसी समय नीलम की लड़की भी आ गयी।

"अरे यह तो बिल्कुल तुम्हारे जैसी है, पढ़ने में भी तेज़ ही होगी।" महिमा ने नीलम की बेटी को दुलारते हुए कहा।

"हाँ अच्छी भी है और नटखट भी।" नीलम ने हँसते हुए कहा।

 

नीलम महिमा को लेकर दिशा की दीदी के पास पहुँची। वहाँ से दिशा का मोबाइल नंबर लेकर जब घर पहुँची तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। वह एक बार फिर से कालेज के दिनों में पहुँच गई थी। उसने उसी समय जल्दी-जल्दी कॉपी और डायरी दोनों में मोबाइल नंबर दो तीन जगह पर नोट करके रख दिया, मानों किसी हीरे को सहेज रही हो। फिर बिस्तर पर बैठ कर इत्मिनान से फोन मिलाने लगी। खुशी के मारे उसके ओंठ काँप रहे थे। उसकी प्यारी सहेली दिशा से आज पच्चीसों साल बाद बात होगी।

पहली बार जब फोन लगा तो आवाज आयी, "कौन , कौन बोल रहा है?

"दिशा मैं महिमा हूं। बनारस से बोल रही हूँ।"

 "कौन सी महिमा ?" और इसी के साथ फोन कट गया।

 महिमा ने फिर से फोन मिलाया," अरे दिशा तुम मुझे नहीं पहचान रही हो, मैं तुम्हारी सहेली महिमा हूँ , तुम्हारी अपनी पक्की सहेली। हम लोग कालेज में झुरमुट के नीचे बैठकर के बातें किया करते थे।" महिमा ने पिछली बातें याद दिलाईं।

"अरे वो वाली महिमा , कैसी हो? और फिर अपने रुतबे का वर्णन चालू कर दिया। मेरा यहाँ बहुत बड़ा मकान है । मेरे ससुर कमिश्नर हैं।पति डाक्टर हैं। बेटा टाॅपर हैऔर जाने क्या क्या डींगे हाँकने लगी। यही नहीं अपने ही काॅलेज को गंदा कहने लगी जहाँ पर उसने पढ़ाई की थी। जहाँ इतने सालों तक रही उसी दीदी के घर की बुराई करने लगी ।जिस सहेली के यहाँ साल भर तक मुफ्त में रही यदि उसे साल भर रुकने का सहारा नहीं मिलता तो इण्टर तक नहीं कर सकती थी उसे ही बेवकूफ बनाने लगी। कुल मिला कर वह

खुद को एक महारानी सिद्ध करने में लगी हुई थी। बाकी  महिमा कॉलेज के झुरमुट से सीधे यथार्थ लोक में आकर गिर पड़ी। वह दंग रह गयी क्या कोई इतना अधिक बदल जाता है। वह कॉलेज की वह दिशा अब नहीं थी ।वह तो अब पैसों में खेलने वाली प्रौढ़ा औरत बन चुकी थी। जिसके मन में संवेदनशीलता दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रही थी।

महिमा को लगा काश उसको दिशा का मोबाइल नंबर ही नहीं मिलता तो उसकी अपनी सहेली कल्पनाओं में ही सही पर, जीवित रहती। जिस क्षण की उसने वर्षों तक प्रतीक्षा की थी उसी क्षण ने उसे धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया था। उसकी सहेली दिशा भौतिकता की चमक-दमक में कहीं खो गयी थी।



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