एक डरावना अनुभव ( संस्मरण )
एक डरावना अनुभव ( संस्मरण )
शादी करके मैं ससुराल आयी कैंटोन्मेंट का इलाका अंग्रेजो के वक्त का बंगला डबल सीलींग की छत जिसके रौशनदान छत पर खुलते थे...डर लगता था कोई ऊपर से कमरे में ना उतर आये , बगल में तालाब था बेशूमार साँपों का बसेरा और रोज़ घुमते - टहलते कोई ना कोई साँप हमारे यहाँ भी दर्शन दे जाता था...कभी सपेरे को बुलाना पड़ता कभी पति के चाचा लोगों को ( साँप को पकड़ने में ज़बरदस्त उस्ताद ) हम चूहे पकड़ने में डर जाए पर चाचा लोग तो साँप ऐसे पकड़ते थे जैसे कोई पालतू जानवर । बिटिया छोटी थी उसको बता रखा था कि अगर कोई चीज ज़मीन पर चलती हुयी नजर आये तो तुरन्त आस - पास जो भी ऊँचा समान हो उस पर चढ़ जाये ।
मेरी माँ बहुत परेशान रहती थी कि मैं बच्चे के साथ कैसे उस घर में रहती हूँ खैर ज़िन्दगी चल रही थी सास - ससुर को लगा कि घर के वास्तु में कुछ गड़बड़ है...पंडित आये मौलवी बुलाए गये मैं और मेरी बेटी बैठ कर सब देखते थे मौलवी ने हमारे चेहरे पर मोर पंख फेरते हुये कुछ पढ़ा और फूँक मारी मेरी दो साल की बेटी ने वापस मौलवी के मुँह पर फूँक मार दी सब के सब हँस पड़े... निष्कर्ष नही निकल पा रहा था सब थोड़े - थोड़े परेशान थे कि एक दिन पति के मामा ने जान - पहचान का कम उम्र का एक सर्जन हमारे घर भेजा सर्जन को बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त थी उसका ज्यादा समय वृंदावन में बीतता था ।
उस सर्जन ने दो दिन बाद रात में पूजा की उस पूजा में सिर्फ सास - ससुर को बैठना था पूजा संपन्न होने के उपरांत सर्जन ने बोला की मैं कल वापस नही जा रहा हूँ ( उसका कल का रिजर्वेशन था ) क्योंकि जो पूजा मैने की है उससे इस घर में रह रहा जीन्न परेशान हुआ है वो अपना वार ज़रूर करेगा आप लोग वो नही सह पायेंगे और मैं रहूंगा तो मेरे ऊपर करेगा क्योंकि मुझे उसका तोड़ आता है तो प्रभाव कम हो जायेगा...मुझे ये सब अजीब लग रहा था कभी ऐसा कुछ देखा नही था सोचा चलो जो होगा देखा जायेगा और होगा भी या नही पता नही । सुबह हुयी मैं उठी तो देखा कि सब बैठे चाय पी रहे हैं मैं वहाँ गयी तो सास बोली की देखो जीन्न ने तो रात में अपना वार कर दिया ये कहते हुये उन्होंने पंखे के डैने की तरफ इशारा किया मेरी तो आँख फटी की फटी रह गई पंखे के डैने को जैसे किसी ने कपड़े की तरह फाड़ कर नीचे फेका है ।
जिस कमरे में सर्जन सो रहा था उस कमरे में बिना चौघड़िया ( बहुत ऊंचा स्टूल ) और दो आदमियों के पंखे तक पहुचना नामुमकिन था , पंखे का नट - बोल्ट भी नही खुला था उस पंखे के डैने को फाड़ कर सोते हुये सर्जन पर वार किया गया था उसको कोई चोट नही आई थी लेकिन जीन्न ने अपने होने का एहसास करा दिया था । उस डरावने अनुभव को मैने आँखों का देखा था अविश्वास करना नामुमकिन था लेकिन जो भी हो पूरे बारह साल उस घर में रही मेरा बेटा भी उसी घर में हुआ पर कभी भी मुझे डर का एहसास तक नही हुआ ना ही हमारा कुछ बुरा हुआ । जो भी था इंसानों से तो बहुत अच्छा था ...जो था...आखों देखा था...क्या था पता नही...जिसके विषय में हम नही जानते उसके बारे में कहना मुश्किल है ।