एक अनोखी प्रेम कहानी : भाग 13
एक अनोखी प्रेम कहानी : भाग 13
भाग 13
सपना ने कभी सोचा नहीं था कि शिव इतना धोखेबाज निकलेगा । कितनी शिद्दत से चाहा था उसने शिव को । अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करती है वह शिव से । और शिव ऐसा निकलेगा , ये उसके कल्पना से बाहर की बात थी
"मेरा सुंदर सपना टूट गया ।
मैं प्रेम में उसके खो सी गई
वो पूरी दुनिया लूट गया ।
मेरा सुंदर सपना टूट गया"
सपना को बहुत जोर से रुलाई आने लगी। जब मनुष्य को प्यार में धोखा मिलता है तब उसका रोम रोम फफक पड़ता है । सपना ऐसी अभागन थी कि वह खुलकर रो भी नहीं सकती थी । उसकी मां सामने ही सो रही थी । उसके जगने की संभावना थी । वह बाथरूम में गई और मुंह में कपड़ा ठूंस कर जोर जोर से रोने लगी । वह कितनी देर रोई , पता नहीं पर रोने से उसका मन हलका हो गया था । जब दिल टूटता है तब कोई आवाज नहीं होती है मगर अंदर ही अंदर एक प्रलय सी आ जाती है । ऐसे में आंसू निकल जाने से बहुत राहत मिलती है। "ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं" दिल की बात आंसू कह देते हैं । सपना बाथरूम में पड़ी पड़ी सुबह तक रोती रही । बाहर उजाला होने को था तब सपना अपने बिस्तर पर लेट गई और फिर उसकी आंख लग गई ।
गीता जी ने देखा कि सपना अभी सो रही है तो उन्होंने खुद ही तीन चाय बना ली । जब वह चाय देने शिव के पास गई तब गीता जी ने शिव को ऊपर छत पर व्यायाम करते देखा । गीता जी शिव को थोड़ी देर तक व्यायाम करते हुए देखती रहीं । शिव व्यायाम करने में पारंगत नजर आ रहा था । वह शिव से पहले ही प्रभावित थीं मगर अब और भी प्रभावित हो गईं । शिव वास्तव में एक योगी है । यह सोचकर वह नीचे आ गई और सोचा कि शिव जब अपना व्यायाम पूरा कर लेगा तब वह पुन: चाय बनाकर दे देगी।
उसने सपना को आवाज दी "सपना, बेटी सपना"
सपना शायद नींद में थी इसलिए उसने आवाज नहीं सुनी थी । गीता जी ने फिर से आवाज दी । इस बार थोड़ी ऊंची आवाज लगाई "सपना , बेटी उठ जाओ । आठ बज रहे हैं । लो, चाय पी लो । मैंने बना दी है।"
सपना को बड़ी मुश्किल से नींद आई थी और मम्मी ने उसे जगा दिया था । एक तो शिव की धोखेबाजी का दर्द उस पर कच्ची नींद का असर । वह बिफर पड़ी
"मुझे सोने दो मां । मुझे नहीं पीनी चाय वाय।" और वह करवट बदल कर लेट गई।
"रात में नींद नहीं आई क्या ? रात रात भर मोबाइल में लगी रहती है । सोने को टाइम ही नहीं मिलता है महारानी जी को तो दिन में ही नींद आयेगी , और क्या ?" गीता जी बड़बड़ाने लगीं।
सपना मां को कुछ कह भी नहीं सकती थी । मां तो उसकी प्रेम लीला से पूरी तरह अनजान थी । उसे क्या पता कि उसके दिल दिमाग में क्या चल रहा है ? वैसे हर मां को चाहिए कि वह अपनी 15 साल और उससे अधिक की उम्र की बेटी पर विशेष ध्यान रखे कि कहीं वह "किसी" के चक्कर में तो नहीं पड़ गई है । 15 से 20 साल की उम्र बहुत कच्ची होती है । इसमें बहकने के अवसर बहुत ज्यादा होते हैं । विपरीत लिंग का आकर्षण भी बहुत होता है और सहेलियों की छींटाकशीं भी इसमें बहुत काम करती है । जब सहेलियों के ग्रुप में हर लड़की का कम से कम एक ब्वॉय फ्रेंड होता है तो जिस लड़की का कोई ब्वॉय फ्रेंड नहीं होता है, वह लड़की बहुत हीन भावना महसूस करती है । वह भी चाहती है कि उसका भी कोई ब्वॉय फ्रेंड हो इसलिए वह जलन के मारे हर किसी को अपना ब्वॉय फ्रेंड बना लेती है मगर जब वह धोखा खाती है तब तक बहुत देर हो जाती है । इसलिए मां को उस उम्र में अपनी बेटी की सखी बन जाना चाहिए ।
पर पुराने जमाने की गीता जी इन सब बातों को कहां जानती थीं ? फिर अब मोबाइल से कब बात कर लें, कब चैटिंग कर लें, पता ही नहीं लगता है । बेचारी भोली भाली मांऐं अपनी बेटी को "सीता" समझती हैं और बेटियां गुल खिला देती हैं । यह बात जब पता चलती है तब तक परिवार की इज्ज़त धूल में मिल जाती है ।
शिव ने अपने गांव की एक घटना सपना को बताई थी। उसने बताया था कि उनके गांव में एक सेठ कजौड़ी मल जी रहते थे । बाजार में उनकी हलवाई की दुकान थी जो शिव के चाचा की दुकान के ठीक सामने थी । शिव भी कभी कभार अपने चाचा की दुकान पर बैठ जाया करते थे। शिव के चाचा की दुकान भी हलवाई की ही थी । शिव तो मिठाई के लालच में दुकान जाता था । कजौड़ी मल की तीसरी बेटी शिव की हम उम्र थी । वह शिव से अक्सर चिढ़ती थी, कारण समझ नहीं आया था शिव को कभी । वह सांवली या यों कहें कि वह काली थी इसलिए जब जब दोनों में लड़ाई होती थी, शिव उसे गुस्से में काली कह देता था । इससे वह और भी चिढ़ जाती थी और अनाप-शनाप बकने लग जाती थी।
सेठ कजौड़ी मल के एक नौकर था जो बहुत सालों से काम कर रहा था । देखने में वह पतला दुबला सा था पर वह सेठजी का बड़ा वफादार था । सुबह से लेकर शाम तक काम करता था । सेठ ने एक भट्टी घर पर भी बना रखी थी । वह कभी घर पर तो कभी दुकान पर काम करता था ।
दिन बीतते रहे और बच्चे बड़े होते रहे। शिव कॉलेज में पढ़ने शहर चला गया । जब वह 19-20 साल का था तब एक दिन वह अपने चाचा की दुकान पर चला गया। उस दिन उसने उस लड़की "काली" में कुछ अजीब सी बात देखी। उसका पेट बाहर निकला हुआ था । शिव को लगा कि अचानक यह इतनी मोटी कैसे हो गई । शिव ने अपने चाचा से पूछा "चाचा, यह लड़की इतनी मोटी कैसे हो गई ? "
चाचा ने उसे इशारे से चुप कराते हुए कहा "चुप कर बदमाश। वह मोटी नहीं है"
"फिर उसका पेट मोटा क्यों है" ?
"तू नहीं समझेगा, अभी तू बच्चा है"
यह बात शिव को चुभ गई। वह गुस्से से बोला "चाचा, अब मैं छोटा बच्चा नहीं हूं, बड़ा हो गया हूं । मुझे बताओ कि उसका पेट मोटा क्यों है ?" शिव ने चिल्ला कर कहा तो उसकी बात काली ने सुन ली और वह चौंक गई । उसने अपने पेट की ओर देखा और उसने चुन्नी से अपना पेट ढक लिया। उसके चेहरे पर शर्म की लकीरें उभर आईं । शिव के चाचा ने शिव को डांटते हुए कहा
"चुप रह कमबख्त ! वह पेट से है"
शिव को बहुत आश्चर्य हुआ । काली की तो अभी शादी भी नहीं हुई थी और वह पेट से कैसे हो सकती है ? शिव ने अपनी शंका चाचा के सामने रखी तो चाचा ने कहा "पेट से होने के लिए शादी होनी जरूरी नहीं है । और अब तू यहां से जा । मेरा भेजा मत खा।"
चाचा ने शिव को दुकान से भगा दिया । शाम तक यह बात पूरे गांव में पता चल गई और सेठ कजौड़ी मल रातों-रात परिवार के साथ कहीं पर चला गया । तब पता चला कि वह नौकर अपनी वफादारी का ईनाम सेठजी को दे गया । बाद में पता चला था कि काली उस समय लगभग छ: महीने की पेट से थी जिसका गर्भपात कराना पड़ा था । अब किसकी गलती कहें इसे ? मां की ? वह घर में खिलते गुल से वाकिफ क्यों नहीं थी ? अपनी बेटी की हरकतों से अनजान क्यों थी ? सेठ कजौड़ी मल की ? उसने अपने नौकर से घर पर क्यों काम करवाया ? घर पर काली से आसानी से बातचीत हो जाती थी और इतने बड़े घर में "सुविधा क्षेत्र" भी आसानी से मिल गया था । काली की गलती तो सौ फीसदी थी ही । वह कच्ची उम्र में नौकर की बातों में आ गई और अपना सर्वस्व गंवा बैठी ।
सपना को शिव की बातें एक एक कर याद आने लगी थी । शिव ने कभी नाजायज फायदा नहीं उठाया था । मजाक मजाक में वह कहता जरूर था मगर उसने ऐसी ख्वाहिश नहीं जताई थी कि उसे अभी सब कुछ चाहिए । यदि शिव इतना भला है तो फिर रात में उस औरत से क्यों मिला था ? इसके पीछे क्या राज है ? सपना सोचने लगी ।
क्रमश: