Akanksha Gupta

Tragedy

3  

Akanksha Gupta

Tragedy

एक अनजान सी कशमकश

एक अनजान सी कशमकश

1 min
321


दिन जैसे जैसे ढल रहा था वैसे-वैसे उसकी चिंता बढ़ रही थीं। वो चाहती थी कि दिन ढलने से पहले वो अपने घर के अंदर महफूज़ हो जाए लेकिन ऐसा करना उसके लिए मुनासिब नहीं था क्योंकि यह नौकरी उसके परिवार की एकमात्र सहारा थी। उसने अपनी चिंता को अपने काम के बीच नही आने दिया। उसका डर उसके चेहरे पर एक मुस्कान बन कर खिल रहा था। जैसे जैसे भीड़ कम हो रही थीं उसकी रूह को सुकून मिल रहा था।


थोड़ी देर बाद उसने जैसे ही घर की ओर जाने के लिए कदम बढ़ाए, पीछे से आवाज आई- “रुक जाओ, तुम्हारे शरीर का एक कतरा बाकी है अभी बिकने के लिए।” इतना सुनते ही उसकी रूह डर से कांप उठी लेकिन उसके चेहरे मुस्कान लौट आई क्योंकि उसके शरीर का आखिरी जर्रा भी अब खर्च होने वाला था और उसकी कीमत से वो कुछ छोटी छोटी सी खुशियाँ खरीद सकती थी अपने परिवार के लिए उन्हें बिना बताए ! 



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy