एक आसमाँ में एक चाँद
एक आसमाँ में एक चाँद
आजकल न जाने क्यों लिख नहीं पा रही हूँ। ऐसा नहीं की विषय नहीं है या फिर मेरी लिखने की शक्ति नहीं रही.....
लेकिन कुछ बात तो है। मैं लिख सकती हूँ कोई कविता या फिर कोई कहानी उस बच्चे पर जो ढेर सारे खिलौनों के बीच भी उदास है। न वह पीएसटु गेम से खुश होता है और ना ही पिज़्ज़ा से....उसे बस अपनी माँ साथ चाहिए होती है.....लेकिन माँ तो अपने ऑफिस के किसी सेमिनार में हार्ट अँड हेड इन वर्किंग प्लेस जैसे सब्जेक्ट पर तालियों की गड़गड़ाहट में प्रेजेंटेशन दे रही होती है...
मैं क्यों लिखूँ यह सब? हर कोई मुझे कहेगा कि उस औरत की सक्सेस को भी तो एन्जॉय करना चाहिए। न जाने कितनी मेहनत से वह उस पोजीशन को हासिल कर पायी हो। वह बच्चा तो बच्चा है। खिलौनों से बहल जाएगा और फिर माँ घर आने पर उसके साथ क्वालिटी टाइम स्पेंट भी तो करती है....
यह सारी बातें मेरे कवि मन को कभी भाती नहीं है। मुझे हमेशा ही यह बातें कचहरी में किसी घाघ वकीलों की दलीलों जैसी लगती है....जिसे बस अपना पॉइंट प्रूव करना होता है और वह करता भी है....
कल ऐसे ही ऑफिस में महिलाओं की बात हो रही थी। वह कहने लगी कि आजकल उसे ऑफिस की प्रॉबलम्स, घर की प्रॉबलम्स के अलावा उनकी टीन एज लड़की के प्रॉबलम्स को भी डील करना होता है। यह बात करते हुए उसकी आवाज़ का दर्द साफ़ झलक रहा था की हर पापा विल नॉट हेल्प इन धिस...
कभी कभी मुझे लगता है की इस दुनिया में हर एक व्यक्ति का अपना आसमाँ होता है और उसका अपना एक चाँद और उसके साथ साथ अँधेरा भी....