दयालुता
दयालुता
अनीशा ने एम.बी.बी.एस.पास कर लिया था। अब इंटर्नशिप कर रही थी। जहाँ पर वह मरीज़ देखती थी सब उसी की लाइन में जाना चाहते थे। उसकी लाइन बढ़ती जाती थी। उसे दोपहर का भी विश्राम या खाने का समय नहीं मिल पाता था। वह सबसे प्यार से बोलती, सब का दुख सुनती। फिर वह उनकी केस हिस्ट्री लिखती और उन्हें सीनियर डॉक्टर के पास जाने के लिए कहती कि वही आपको दवा देंगे।
मरीज़ कहते किहमें आप ही दवा दे दीजिए, हम और कहीं नहीं जाना चाहते। अनीशा कहती कि "मैं जूनियर डॉक्टर हूँ, सीनियर डॉक्टर आपको अच्छे से देखकर दवाई देंगे।" पर मरीज़ कहते कि "आप जूनियर डॉक्टर हैं या सीनियर, हमें मतलब नहीं है, हमें आप ही दवा दें।"अनीशा की दयालुता और मधुर स्वभाव के कारण सभी उसे पसंद करते थे।
कभी कोई मरीज़ के साथ आयी बूढ़ी स्त्री अपने साथ लाया हुआ पराठा अनीशा को देना चाहती और उसे खाने की ज़िद करती और कहती कि " आपने सुबह से कुछ खाया नहीं हैं कुछ खा लीजिए "। वहाँ का वॉर्ड बॉय कहता कि "मैंने आपके लिए कैंटीन से एक कप चाय और समोसा लाकर रखा हुआ है, क्योंकि कैंटीन बंद होने वाली थी। आप उसे ले लीजिये नहीं तो सब ठंडा हो जाएगा"। सब अनीशा की सेवा भावना देख मदद करना चाहते । अनीशा उन्हें प्यार से समझा देती और अपना काम करती रहती । मरीज़ों का दुख दर्द देखकरअनीशा अपना ध्यान रखना भूल ही जाती थी।
एक बार एक मरीज़ बहुत बीमार था, वह छोटा लड़का ही था और उसके कमजोर बूढ़े माँ बाप उसके पास ही बैठे हुए थे। वे बहुत ग़रीब थे और सुबह से बैठे हुए थे। लड़का गंभीर रूप से बीमार था और माँ बाप उसे छोड़ के जा भी नहीं सकते थे। अनीशा ने उनका मुरझाया चेहरा देखा तो उसे लगा कि उन्होने सुबह से कुछ खाया नहीं है, न उठकर कहीं बाहर गए हैं। अनीशा ने उनसे पूछा कि आप कहीं खाने नहीं गये, न अपने साथ खाना लाए हैं, भूखे बैठे हैं।पर वह चुप रहे ,क्या कहते । वे रोज कमाने खाने वाले मज़दूर थे, काम पर नहीं गए तो पैसे नहीं मिले।
अनीशा ने कैंटीन से दो कप चाय और डोसा लाकर उन्हें खाने के लिए दिया अपने ख़र्च से, और कहा कि आप भूखे बैठे हैं ,खा लीजिए। उनकी आँखों में आँसू आ गये कि उनकी पीड़ा को कोई समझने वाला है। उन्होंने खाना ले लिया और अनीशा के पैर छू लिए और कहा कि आप देवी हैं।
अनीशा ने देखा कि उनके लड़के को कुछ टैस्ट कराने की ज़रूरत थी, पर माँ बाप के पास टैस्ट कराने के लिए पैसे नहीं थे।
अनीशा ने जाकर मैनेजमेंट से बात की और कहा कि ये लोग बहुत ग़रीब हैं कुछ कंसेशन करके टैस्ट करा दीजिए। पर वह तैयार नहीं हुए और कहा कि इलाज कराने के लिए पैसे नहीं हैं तो लड़के को घर ले जायें।
अनीशा ने लड़के की हालत गंभीर देखी,उसे तुरंत चिकित्सा की ज़रूरत थी। अनीशा उसकी सहायता करना चाहती थी पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे उसकी मदद करे। अनीशा को पता चला कि एक सोशल सर्विस फंड है जिससे कुछ लोग गरीबों की मदद करते हैं। उसने उन लोगों को वस्तुस्थिति समझायी। कोशिश करने पर उस फंड से मदद मिल गई जिससे लड़के की चिकित्सा ठीक से हो गई। इलाज करने वाले एक डॉक्टर ने अपनी फ़ीस भी छोड़ दी।
अनीशा और उसके साथियों की सहृदयता से मैनेजमेंट पर भी असर पड़ा और उन्होंने उस लड़के का अस्पताल में रहने का ख़र्चा माफ़ कर दिया ।
इस तरह अनीशा की दयालुता के कारण एक ग़रीब लड़के की ठीक से चिकित्सा हुई और उसके माँ बाप को सहारा मिला ,सहायता मिली।
बच्चे अपनी पढ़ाई के लिए संघर्ष करते हैं। डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है पैसा भी ख़र्चा होता है तब कहीं जाकर आदमी डॉक्टर बनता है। परंतु इस संघर्ष के साथ भी अग़ल बग़ल के लोगों की मदद की जा सकती है जिन्हें सहायता की ज़रूरत है। पर इसके लिए दूसरों का दुख दर्द समझने की संवेदना होनी चाहिए और उनके दुखों के प्रति सहानुभूति होनी चाहिए। तो कोई न कोई मदद करने का रास्ता निकल ही आता है।