दस्तक
दस्तक
"सुनो, आ जाओ ना?"
मनदीप इंतजार करके थक गया था। उसे नींद भी आने लगी थी। उसने पांच साल के बेटे लोकेश को भी सुला दिया था। "आ रही हूं। बस दो मिनट" किचन से मृदुला की आवाज आई।
"अरे यार, कब से वेट कर रहा हूं ? थोड़ा तो बंदे पर भी रहम खाया करो।" उसके लहजे में छेड़छाड़ के साथ साथ शिकायत साफ नजर आ रही थी।
"लो आ गई। अब खुश।" मृदुला पलंग पर बैठते हुए बोली
मनदीप ने मृदुला का हाथ अपने हाथ में लेने की कोशिश की तो मृदुला ने उसका हाथ झटक दिया। मनदीप सवालिया नजरों से उसे देखने लगा।
"तुम्हें तो बस एक ही काम है। क्या इसीलिए बुला रहे थे मुझे?" मृदुला की आंखों में ज्वाला सी थी।
"अरे यार शादी करके लाया हूं, कोई भगाकर नहीं लाया। अब उस काम के लिए तुमसे ही तो कहूंगा। किसी और से तो कह नहीं सकता ना?" मुस्कुराते हुए मनदीप ने कहा और मृदुला की गोदी में सिर रख दिया।
मृदुला उसे परे करते हुए बोली "आज तबीयत ठीक नहीं है"
"क्यों, क्या हुआ?"
मृदुला खामोश ही रही और शून्य में देखती रही।
"बोलो न क्या बात है ? बुखार तो नहीं है?" मनदीप उसके हाथों पर अपने हाथ फिराता हुआ बोला। "हाथ तो गर्म नहीं हैं?"
मृदुला फिर भी खामोश रही। उसके चेहरे पर तनाव साफ नजर आ रहा था। मनदीप कुछ समझ नहीं पा रहा था कि आखिर हुआ क्या है ? उसे ऐसी कोई घटना याद नहीं आई जिससे लगे कि उनमें कोई अनबन हुई हो। फिर किस बात का तनाव है मृदुला को ? मनदीप कयास लगाता रहा मगर कोई सूत्र हाथ नहीं लगा। आखिर वह बोला
"क्या बात है मृदुला ? कुछ बताओ तो?"
"मुझे तीन दिन चढ़ गये लगते हैं" मृदुला नीचे देखते हुए बोली
"सच ! अरे वाह ! ये तो बहुत अच्छी खबर सुनाई है तुमने।" मनदीप मृदुला को बांहों में भरते हुए बोला
मृदुला उसके इस तरह खुश होने पर बिफर पड़ी। उसे परे धकेलते हुए बोली
"मेरी तो जान पर बन आई है और जनाब खुश हो रहे हैं?"
"अरे, घर में खुशियों ने दूसरी बार दस्तक दी है तो भला खुश नहीं होंगे क्या?"
"नहीं, ये प्रसन्नता का नहीं चिन्ता का विषय है। मुझे दूसरा बच्चा नहीं चाहिए।" मृदुला ने ऐलान कर दिया।
"ये क्या कह रही हो मृदुला ? भगवान की कितनी बड़ी कृपा हुई है हम पर जो उसने फिर से इस घर आंगन में बहारें भेजी हैं। लोकेश को भी एक बहन या भाई की आवश्यकता है। एक अकेले बच्चे का उतना अच्छा विकास नहीं होता है जितना दो या तीन बच्चों के साथ रहने वाले बच्चों का होता है। इसलिए हमें इस अवसर पर खुश होना चाहिए।" मनदीप उत्साहित होकर मृदुला से लिपटने लगा।
मृदुला नागिन की तरह फुंफकार उठी "इस स्थिति के लिए केवल आप जिम्मेदार हैं। मैं उस दिन को कोस रही हूं जिस दिन आपकी जिद के आगे मैंने समर्पण कर दिया था। आप तो इतने लापरवाह हैं कि कुछ भी ध्यान नहीं रखते हैं। मैंने दस दिन पहले बता दिया था कि "वो" खत्म होने वाले हैं लेकिन आप बाजार से खरीदकर "वो" नहीं लाये। जब खत्म हो गये तो भी मैंने कहा था मगर आपको क्या फर्क पड़ता है ? झेलना तो हम स्त्रियों को ही पड़ता है ना ? इसीलिए मैंने उस दिन कहा था कि "रिस्क" मत लो। मगर आप पर तो भूत सवार था। कहते रहे "एक दिन से क्या हो जायेगा?" अब हो गया ना ? मैं कहे दे रही हूं कि मैं इसे किसी भी सूरत में मैं रखने वाली नहीं हूं। इस बात का ध्यान रखना।" मृदुला जलती हुई मशाल लग रही थी।
मनदीप सोच में पड़ गया। मृदुला की चिरौरी करते हुए बोला "मृदुला , ईश्वर ने कृपा की है। शायद कोई गुड़िया आ जाये इस घर में। हम भी कन्यादान के पुण्य से पुष्पित, पल्लवित हो जायेंगे। शास्त्र कहते हैं कि बिना कन्यादान के यह जीवन अपूर्ण है। जब हमारे पास इहलोक और परलोक सुधारने का मौका आया है तब तुम ऐसी बहकी बहकी बातें कर रही हो। शायद तुम यह भूल गई हो कि भ्रूण हत्या न केवल पाप है वरन् एक जघन्य अपराध भी है। किसी दुर्घटनावश अगर कोई बच्चा गिर जाये तो अलग बात है वरना भगवान के अंश की गर्भ में ही हत्या करना सौ नरकों के समान है। अब जिद छोड़ो और इसे ईश्वर का प्रसाद समझकर प्रसन्न होओ" मनदीप ने अपनी कोशिशें जारी रखीं।
मृदुला अपने निर्णयों में अटल थी। वह बोली "आप मेरा साथ दोगे या मैं कल अकेले जाकर यह काम करवा आऊं?" उसने मनदीप को धर्मसंकट में डाल दिया
"क्या तुम यह निर्णय अकेले ले सकती हो?"
"हां क्यों नहीं ? अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि बच्चे को जन्म देना या न देना यह केवल स्त्री का निर्णय होगा।"
"सुप्रीम कोर्ट की तो बात ही मत करो , उसने तो पता नहीं क्या क्या निर्णय दिये हैं। क्या तुम्हारा हृदय पत्थर का है जो एक अबोध भ्रूण को नष्ट करने पर तुली हुई हो?" मनदीप का स्वर भीग गया था बस आंखें ही बरसने से बच रही थीं।
मृदुला मनदीप से नजरें मिलाने की स्थिति में नहीं थी क्योंकि वह जानती थी कि वह गलत कर रही है मगर जिद के आगे वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी। मनदीप के सामने पहाड़ सा प्रश्न था "वह बच्चे को बचाये या गृहस्थी को?"
उसने गृहस्थी को बचाना श्रेयस्कर समझा। उसने आंसुओं में डूबते हुए भ्रूण हत्या के इकरारनामे पर हस्ताक्षर कर दिये।
श्री हरि