Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

3  

Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Tragedy

“ दर्दनाक सफर ” ( यात्रा -संस्मरण )

“ दर्दनाक सफर ” ( यात्रा -संस्मरण )

4 mins
176


सुखद सफर और दर्दनाक सफर जिंदगी के अनुभव हुआ करते हैं। सुखद सफर जिंदगी के किताबों में अधिकांश मिलते रहते हैं परंतु कहीं -कहीं किसी किताबों के पन्नों दर्द भरी दास्ताँ भी छुपी रहती हैं। मैं भला 03 जनवरी 2009 के सुबह को कैसे भूल सकता हूँ ?


मैं अपनी धर्मपत्नी आशा झा को अपने ससुराल शिबीपट्टी, मधुबनी, बिहार दिनांक 02 जनवरी 2009 सुबह 5 बजे अपनी मारुति 800 में बिठा कर चल पड़ा। मुझे उम्मीद थी कि दुमका, झारखंड शाम तक पहुँच जाऊंगा। यह सफर 350 किलोमीटर का था। हालाँकि 350 किलोमीटर का सफर अच्छी सड़क पर हो तो आज ही 5 बजे शाम तक दुमका पहुँच जाना निश्चित था।


चल तो चुके पर चारों ओर कुहासे की चादर फैली हुई थी। और शिबीपट्टी गाँव से मधुबनी बाजार तक रास्ता जर्जर हो चुका था ! यह 8 किलोमीटर का सफर मानो 40 किलोमीटर का सफर हो गया। वैसे सड़क अच्छी तरह दिख नहीं रही थी। कड़ाके की ठंड थी। कुहासे के पानी को हटाने के लिए मैंने वाइपर चला रखा था। मधुबनी पहुँचते -पहुँचते कुहासा अपने घूँघट को समेटने लगा और मेरी मारुति कार पंडौल, सकरी, दरभंगा को छूती हुई मुसरीघरारी तक पहुँच गयी।


8 बज चुके थे। सूर्य की किरणे हमें कुछ ताजगी दे रही थी। कुहासा छँटने लगा था। आशा से मैंने पूछा, ---

चलिए, किसी होटल में कुछ नास्ता कर लें और एक -एक कप चाय हो जाय।”

आशा तो अपने मायके से कुछ खा कर नहीं चली थी। मुझे ससुराल वाले के आग्रह पर नाम मात्र दही -चूड़ा खाना ही पड़ा ! मुझे तो सिर्फ चाय पीनी थी। फिर भी आशा को साथ देने के लिए मैंने भी कुछ खाया और चाय पी।


मुसरीघरारी से समस्तीपुर तक की सड़क उतनी अच्छी नहीं थी तो खराब भी नहीं थी। पर समस्तीपुर बाजार पहुँचकर मुझे जाम का सामना करना पड़ा। किसी तरह छूटे तो समस्तीपुर से बेगूसराय 0 माइल तक खराब सड़क का सामना करना पड़ा। मारुति की रफ्तार कम हो गयी। आशा बार -बार हिदायत दे रही थी, ---

“ देखिए, गाड़ी सम्हाल कर चलाइए। देर हो जाये तो कोई बात नहीं।”

“ हाँ ...हाँ, मैं भी यही सोच रहा हूँ “ –मैंने कहा।


हल्का -हल्का मीठा -मीठा मेरे पेट में मचोड़ होने लगा। अपने बेल्ट को मैंने ढीला किया। टाइ को भी मैंने ढीली की। हमलोग 2.35. दोपहर को बेगूसराय 0 माइल पहुँच गए। ठीक एक- एक घंटे में मेरे ससुराल से फोन आ जाता था। उस समय एक छोटा मोबाईल नोकिया का था। मेरी आदत यही थी कि जब कोई मुझे फोन गाड़ी चलाते वक्त करता था तो मैं अपनी गाड़ी को रोककर उनसे बातें किया करता था। 10 मिनट वहाँ रुका और बाद में मैंने लेफ्ट टर्न लिया और भागलपुर की ओर प्रस्थान किया।


अतिवृष्टि और भारी वाहन के दुष्प्रभाव से बेगूसराय से भागलपुर तक की सड़क का भी बुरा हाल था। खगड़िया और महेशखुट पहुँचते -पहुँचते शाम के 5 बजे गए। ठंड का समय था। सूर्य की लालिमा समाप्त होने लगी। नौगछिया पहुँचते काफी अंधेरा हो गया। दरअसल मैं देवघर, जमुई और राजेन्द्रपुल होकर मधुबनी गया था। अब दूसरे रास्ते की स्थिति का अनुमान नहीं था। आज 02 तारीख है और हमलोग यहाँ हैं।


रात अंधेरी हो चली थी। यह सड़क हाई- वे सीधी पूर्णिया और असम के तरफ निकल जाती है। मुझे दाहिना टर्न भागलपुर पुल के लिए करना था। स्ट्रीट लाइट नहीं थी। धुंध में कुछ नजर नहीं आ रहा था। परिणाम स्वरूप मेरी मारुति भागलपुर पुल को छोड़ आगे पूर्णिया की ओर निकल पड़ी ! करीब 20 किलोमीटर के बाद मुझे एक पुल मिला जो भागलपुर के रास्ते में नहीं होना चाहिए। मैंने अपनी मारुति रोकी और एक ट्रक को रोक कर पूछा, --------

“ भागलपुर वाला पुल आखिर कहाँ छूट गया ?”

उस ड्राइवर ने कहा, -----“ वो तो काफी पीछे ही रह गया। आप तो पूर्णिया के तरफ जा रहे हैं।”

मारुति को वापस लिया और फिर मुझे भागलपुर का पुल मिला।


भागलपुर रेल्वे ओवरब्रिज से बैजानी तक रोड का निर्माण चल रहा था। आधे में निर्माण रात में हो रहा था और आधे सड़क में लंबी जाम। गोरहट्टा चौक ओवरब्रिज से मात्र एक किलो मीटर होगा। यहाँ तक पहुँचने में 2 घंटे लग गए। यहाँ तक 10 बजकर 15 मिनट हो गए। सर्दी कड़ाके की पड़ रही थी। किसी तरह गोरहट्टा पेट्रोल पम्प में पेट्रोल लिया। आशा बार -बार कह रही थी, ---

“ रात हो रही है, चलिए कहीं होटल में रुक जाय।”

पर मैंने कहा, ----

“ अब दुमका सिर्फ 3 घंटे का सफर है। चलते हैं, वहीं पर आराम करेंगे।”


भागलपुर से दुमका के बीच में तकरीबन 10 डिवर्शन बने हुए थे। सारा रास्ता ध्वस्त पड़ा हुआ था। नींदें सता रही थी। चारों तरफ धूल उड़ रहे थे। रास्ता धूमिल पड़ने लगा। स्ट्रीट लाइट कहीं नहीं थी। अब तो तारीख भी बदल गया। हम 3 तारीख में पहुँच गए। समय बीतता गया। रात भर मारुति को खींचता रहा। हँसड़िहा झारखंड तो पहुँच गया। नोनिहाट, बारापलासी पार किया।


ठीक सुबह 3 बजे 10 किलोमीटर दुमका से दूर था। लकड़ापहाड़ी में ट्रकों की कतार आ रही थी। पता नहीं क्या हुआ छह चक्का वाली ट्रक ने हमें ठोक दिया। गाड़ी चकना चूर हो गयी। आशा को काफी जख्मी कर दिया। रात के सन्नाटे ट्रक वाले निकल भागे। दुमका से अविनाश मेरे मित्र का लड़का और भूषण ड्राइवर आया और अपनी गाड़ी से दुमका ले गया। इस दर्दनाक सफर को जब कभी याद करता हूँ तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं।



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Tragedy