दोस्त
दोस्त
एक तरफ़ तो निःस्वार्थ दोस्ती का मतलब बचपन में बेहतर जानते थे, लेक़िन उसके मायने बस खेलकूद, मौजमस्ती, और मनोरंजन तक ज़्यादा सीमित हुआ करते थे, परन्तु मेरे लिए दोस्ती का अच्छा व असली मतलब इस घटना के बाद महसूस हुआ। बात मेरी छठी कक्षा की है मैं एक दिन घर से अपने साथ खाना लेकर नहीं जा सका, क्योंकि मैंने बैग में से कोई क़िताब निकालते वक़्त टिफ़िन बाहर निकाल दिया था, और उसे वापस अंदर रखना भूल गया था, और माताजी-पिताजी को भी उस टिफ़िन का पता नहीं चल सका। दोपहर भोजनावकाश में मुझे याद आया और मैंने किसी को नहीं बताया, मुझे भूख भी लगी हुई थी, तभी मेरे सहपाठी दोस्त अंकित को मेरे बारे में पता चल गया और वह अपना खाना मेरे साथ बाँटने लगा, मैंने मना किया कि कहीं वह भूखा न रह जाये, लेक़िन वह मेरे बिना खाना खाने के लिए राजी ही नहीं हुआ, और अंततः हम दोनों को साथ में भोजन करना ही पड़ा। बात उसके खाना देने की नहीं थी, बल्कि उसके पीछे छुपी हुई भावना, उसके समर्पण, संवेदनशीलता और प्रेम की थी, उस दिन से मुझे सच्ची दोस्ती का सच्चा अर्थ समझ में आया। धन्य हैं ऐसे दोस्त।